शिमला/शैल। सीबीआई के शीर्ष अधिकारियों निदेशक और विशेष निदेशक के बीच चले आ रहे विवाद में अस्थाना के विरूद्ध एफआईआर दर्ज हो चुकी है। 15.10.2018 को दर्ज हुई एफआईआर पीसी एक्ट की धारा 7 & 13(2) R/W 13 (1) (d) और धारा 7A के तहत दर्ज की गयी है। स्मरणीय है कि मोदी सरकार ने पीसी एक्ट संशोधित कर दिया है। नया एक्ट 27 जुलाई को अधिसूचित होने के बाद लागू हो गया है। संशोधित एक्ट के लागू होने के बाद इसमें यह प्रावधान किया है कि मामला दर्ज करने से पहले सरकार से अनुमति ली जायेगी। लेकिन इसमें अस्थाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले कोई अनुमति नही ली गयी है। इसी आधार पर इसे दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी है। यहां यह भी गौरतलब है कि इस एफआईआर में नये और पुराने दोनों अधिनियमों का सहारा लिया गया है। इस मामले में अदालत का निर्णय क्या आता है यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। लेकिन इस एफआईआर को देखने के बाद सीबीआई के भीतर की स्थिति का पता चल जाता है और इसी उद्देश्य से यह एफआईआर पाठकों के सामने रखी जा रही है।
शिमला/शैल। एनजीटी ने पंथाघाटी में बन रही डाक्टरों की कॉलोनी के निर्माण पर तत्काल प्रभाव से पाबंदी लगाते हुए डाक्टरों की हाउसिंग सोसायटी को विभिन्न नियमों की उल्लंघना करने के लिए तीन करोड़ 24 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया है।
इस रकम में से सोसायटी को 75 फीसद राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और बाकी 25 फीसद रकम केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जमा करानी होगी। पंचाट के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल, न्यायिक सदस्यों जावेद रहीम व एसपी वांगड़ी और विशेषज्ञ सदस्य नगीन नंदा की पीठ ने स्थानीय नागरिक विद्या शांडिल की याचिका पर यह आदेश दिए हैं। याद रहे नगीन नंदा प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व सदस्य सचिव रह चुके हैं।
पंचाट की चार सदस्यीय इस पीठ ने साथ ही यह भी आदेश दिए है कि इस मामले की पड़ताल पंचाट के आदेशों पर शिमला में किसी भी तरह के निर्माण की मंजूरी के लिए गठित सुपरवाइजरी कमेटी करे और यह समीति एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट पंचाट को पेश करे।
पीठ ने कहा कि अगर वह सोसायटी के पर्यावरण की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों से संतुष्ट होगी तो आगामी निर्माण के बारे में विचार करेगी। पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि आईजीएमसी डाक्टर्स कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी को पंथाघाटी में कॉलोनी बनाने के लिए नगर निगम ने छह फरवरी 2010 को मंजूरी दे दी थी। लेकिन सोसायटी ने इस बावत पर्यावरण के विभिन्न प्रावधानों के तहत टीसीपी से कोई मंजूरी नहीं ली। जबकि यह मंजूरी लेना जरूरी था। इसके अलावा पर्यावरण मंजूरी भी नहीं ली। इसके तहत सीवरेज, यातायात, सड़क निर्माण, ठोस कचरे के निपटान, ढलान की मजबूती व इनके पर्यावरण पर पड़ने वालों प्रभावों का आकलन किया जाना था।
सोसायटी का 32 करोड़ 48 लाख रुपए के यह प्रोजेक्ट 21057.931 वर्ग मीटर पर बनाना था व पर्यावरण नियमों के मुताबिक सासोयटी को 20 हजार वर्ग मीटर से ऊपर के प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन करवाना होता हैं। लेकिन सोसायटी ने कुछ नही किया। जब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सोसायटी को नोटिस भेजे तो भारी निर्माण होने के बाद पर्यावरण प्रभाव आकलन करवाया गया। जो कि हो ही नही सकता था। यह आकलन निर्माण करने से पहले होता है।
इस बीच 16 दिसंबर 2015 को सोसायटी ने राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण में मंजूरी के लिए आवेदन किया। प्राधिकरण ने 15 अक्तूबर 2016 को पर्यावरण मंजूरी दे दी। लेकिन साथ ही शर्त लगा दी कि सोसायटी को यहां पर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाना होगा या नगर निगम की सीवरेज लाइन से कनेक्शन लेना होगा।
पीठ ने कहा कि राज्य विशेषज्ञ अप्रेजल कमेटी पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार किए बिना पर्यावरण की मंजूरी नही दे सकती थी और अगर अध्ययन में उल्लंघन पाया जाता तो मंजूरी केंद्र से मिलनी थी। लेकिन ऐसा नही हुआ।
पीठ ने कहा कि नियमों के मुताबिक पंचाट के पास दो ही विकल्प हैं या तो बने सभी फलैटों को ढहा दिया जाए या सुरक्षा प्रावधानों का पालन करवाकर निर्माण को जारी रखने की इजाजत दी जाए।
पीठ ने कहा कि जहां पर निर्माण पहले हो गया है और पर्यावरण की मंजूरी नही ली गई है ऐसे मामलों के लिए केंद्र सरकार ने 14 मार्च 2017 को एक अधिसूचना जारी की थी व इसके प्रावधानों के तहत सोसायटी को कदम उठाने थे। पीठ ने कहा कि सोसायटी को तीन महीने का समय दिया गया लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ।
पीठ ने कहा कि सोसायटी ने परियोजना शुरू करने से पहले न पर्यावरण मंजूरी मांगी और न ही केंद्र मंत्रालय की 14 मार्च 2017 की अधिसूचना के तहत अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं पर अमल किया। इसके अलावा सोसायटी ने राजधानी में निर्माण के लिए पंचाट की ओर से गठित सुपरवाइजरी कमेटी जिसके अध्यक्ष अतिरिक्त मुख्य सचिव शहरी विकास हैं, से अपने मामले की पड़ताल करवाई। जबकि सोसायटी ऐसा कर सकती थी।
पीठ ने कहा कि ऐसे में सोसायटी को या तो सारे फलैट ढहाने होंगे या पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर जरूरी कदम उठाने होंगे। उसके बाद अगर पंचाट संतुष्ट हुआ तो निर्माण की इजाजत दी जाएगी। सोसायटी में डेढ सौ के करीब सदस्य हैं जिनमें से पचास से ज्यादा आइजीएमसी के डाक्टर हैं। पिछली सरकार में इस परियोजना को लेकर बहुत कुछ रसूख के दम पर हुआ था। लेकिन अब इस आदेश के आने के बाद डाक्टरों के हाथपांव फूल गए हैं। लेकिन बड़ा सवाल है कि नियमों को ताक पर रखकर मंजूरियां दी क्यों गई।
प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के दफतर से कुल एक किलोमीटर की दूरी पर बन रही इस कॉलोनी के कर्ताधर्ताओं को बोर्ड के अधिकारी ने 23 जून 2014, 18 जुलाई 2014, 4 अगस्त 2014, 7 अप्रैल 2015, 18 जून 2015 और 20 अक्तूबर 2015 को चिठियां लिखकर सोसायटी को निर्माण न करने के निर्देश देते रहे। लेकिन ये काम नहीं रुका। कायदे से बोर्ड को तीन नोटिस देने के बाद सोसायटी के खिलाफ मुकद्दमा दायर कर देना चाहिए था। लेकिन बोर्ड ने ऐसा नहीं किया और काम चलता रहा। बोर्ड ने इस बारे में नगर निगम को भी अवगत कराया कि वो इस कॉलोनी का निर्माण कार्य रुकवाए। लेकिन धूमल सरकार व वीरभद्र सिंह सरकार में रसूखदारों ने ऐसा हाहाकार मचाया कि न तो काम निगम ने रुकवाया और न ही प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड ने मुकद्दमा दायर किया।
सोसायटी ने पंथाघाटी में प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से बिना अनुमति लिए 20 हजार वर्ग से ज्यादा इलाके में निर्माण कर दिया।;जबकि सोसायटी ने नगर निगम से 14000 वर्ग मीटर में इस सोसायटी का निर्माण करने का नक्शा पास करवा लिया था। सारा घपला यहीं हुआ है। बताते है कि ये सारा मामला धूमल सरकार के दौरान 2008 से लेकर 2012 के बीच हो गया। अब सोसायटी के आका भांडा निगम पर फोड़ने पर आ गए है।
सोसायटी के कर्ताधर्ताओं का कहना है कि जब उन्होंने नक्शा पास करवाया तो निगम ने उन्हें ऐसा कुछ नहीं बताया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी मंजूरी लेनी लाजिमी है। इसके अलावा पर्यावरण मंजूरी का भी कोई झमेला नहीं था। हालांकि ये कर्ताधर्ता सही कह रहे हैं। पर्यावरण मंजूरी लेने की जरूरत तब पड़ती है अगर बिल्ट अप एरिया 20 हजार वर्ग मीटर से ज्यादा हो। सूत्रों के मुताबिक जब नक्शा पास कराया गया था तो ये 20 हजार वर्ग मीटर से कम ही था। लेकिन जब सोसायटी ने पर्यावरण विभाग से पर्यावरण मंजूरी मांगी तो सोसायटी के दस्तावेजों में ये बिल्ट अप एरिया 21 हजार से ज्यादा सामने आ गया। मामला एनजीटी पहुंचा व अब ये आदेश आ गया है। अब देखना ये है कि इंप्लीमेंटेंशन कमेटी व सुपरवाइजरी कमेटी क्या करती है।
शिमला/शैल। केन्द्र सरकार ने हिमाचल को 70 राष्ट्रीय उच्च मार्ग दिये है। इन राजमार्गोे के दिये जाने को प्रदेश भाजपा और सरकार ने एक बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित एवम् प्रसारित किया है। कांग्रेस ने बतौर विपक्ष सरकार पर यह आरोप लगाया है कि इन राष्ट्रीय उच्च मार्गो की स्वीकृति अभी केवल सैद्धान्तिक स्तर पर ही है और इन्हें अमली शक्ल में अभी वक्त लगेगा। यह सही भी है कि अभी तक इनकी डीपीआर तक तैयार नही हो पायी है। यह सब होने में समय लगेगा लेकिन इतना तय है कि यह राज मार्ग देर सवेर शक्ल लेंगे ही। इस समय चार फोरलेन परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इसी के साथ अब राज्य सरकार ने टीसीपी का दायरा भी पूरे प्रदेश में बढ़ा दिया है। 150 से ज्यादा नये इलाकों को टीसीपी में शामिल कर दिया है। चार फोरलेन 70 राष्ट्रीय उच्च मार्ग और पूरे प्रदेश को टीसीपी के दायरे ला देना विकास की दृष्टि से एक बड़ा कदम है। यह सारा विकास जब ज़मीन पर उतर कर हकीकत की शक्ल लेगा तब इसका सही आकलन हो पायेगा कि इससे प्रदेश के किसान बागवान और इन पर आश्रित खेती हर मज़दूर को कितना लाभ मिला है। क्योंकि इस विकास को ज़मीन पर उतारने के लिये किसान बागवान की ज़मीन अधिगृहित की जायेगी। क्योंकि विकास के लिये ज़मीन चाहिये और वह केवल किसान-बागवान के ही पास है। किसान/बागवान से क्या उसकी ज़मीन सही मुआवजा देकर ली जा रही है? भू-अधिग्रहण 2013 की सारी शर्तों की अनुपालना हो पा रही है? इसको लेकर सरकार की कथनी और करनी में आये अन्तर को लेकर इस अधिगृहण से प्रभावित लोग पिछले तीन वर्षो से संघर्षरत है। इसके लिये उन्हें प्रदेश स्तर पर संयुक्त संघर्ष समिति का गठन करना पड़ा है क्योंकि सरकार उन्हंे उचित मुआवजा नही दे रही है। इस अधिगृहण से हजारों किसान /बागवान प्रभावित हुए हैं। भाजपा जब विपक्ष में थी तब विधानसभा में भी यह मुआवजे का मुद्दा आया था और तब भाजपा ने किसानों की मांगों का समर्थन करते हुए यह मांग की थी उन्हें बाज़ार भाव का चार गुणा मुआवजा दिया जाना चाहिये। लेकिन अब सत्ता में आने पर उसी वायदे को पूरा नही कर पा रही है। संयुक्त संघर्ष समिति ने सरकार को एक माह का समय दिया है यदि इस समय सीमा में इनकी मांगे न मानी गयी तो यह लोग सड़क पर उतर आयेंगे।
भू-अधिग्रहण अधिनियम में चार गुणा मुआवजे का प्रावधान है और इसके आकलन के लिये फैक्टर दो परिभाषित है लेकिन सरकार ने एक अप्रैल 2015 को फैक्टर एक अधिसूचना जारी करके मामले को उलझा दिया। अब फैक्टर एक की अधिसूचना को रद्द करने की मांग पहला मुद्दा बन गया है। 2013 के अधिनियम के शैडयूल दो में भूमिहीन को भूमि,बेघरों को घर, बेरोजगारों को रोजगार अथवा पांच लाख की राशी देने का प्रावधान है। इसी भूमि पर आश्रित खेती हर मजदूरों के भी पुर्नवास और पुन स्र्थापना का प्रावधान है। अनुसूचितजाति और जनजाति के लोगों के लिये विशेष आर्थिक पैकेज दिये जाने की व्यवस्था है। लेकिन इस दिशा में अभी तक सरकार ऐसे लागों को चिन्हित तक नही कर पायी है जिन्हे यह सब मिलना है। मकानों का मुआवजा वर्तमान दरों की बजाये 2014 की दरों पर दिया जा रहा है। इसमें 12ः की दर से ब्याज दिये जाने का भी प्रावधान है और कुछ को यह ब्याज दे भी दिया गया है। पेड़, पौधों व अन्य फसलों का मूल्याकांन 1979 में बने ‘‘हरवंस सिंह फाॅर्मूले’’के आधार पर दिया जा रहा है जबकि यह आकलन 2018 के आधार पर किये जाने की मांग है। इस तरह अधिग्रहण से जुड़े इतने मुद्देे हो गये हैं जिनको हल करने के लिये सरकार पर भारी वित्तिय बोझ पड़ेगा। अभी तो मुआवजे की यह मांगे फोरलेन के लिये ली गयी ज़मीन तक ही सीमित है। जब 70 राष्ट्रीय उच्च मार्गों का काम शुरू होगा तब प्रदेश का हर हिस्सा इससे प्रभावित होगा और यह मांग रखेगा।
इस भू-अधिग्रहण के साथ ही अब लोगों की दिक्कत टीसीपी का दायरा पूरे प्रदेश में बढ़ाने से और बढ़ेगी। क्योंकि यह सारे क्षेत्र अब प्लानिंग एरिया में आ जायेंगे। यहां पर होने वाले निर्माणों पर प्लानिंग के नियम/कानून लागू होंगे। एनजीटी के आदेश के बाद अब यहां भी अढ़ाई मंजिल से ज्यादा के निर्माण नही हो पायेंगे। अभी लोगों को इसके बारे में पूरी विस्तृत जानकारी नही है। जब यह जानकारी हो जायेगी तब आम आदमी सरकार के इस फैसले पर कैस प्रतिक्रिया देता है वह रोचक होगा।
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