शिमला/शैल। कांग्रेस विधायक दल के नेता मुकेश अग्निहोत्री को अन्ततः नेता प्रतिपक्ष का अधिकारिक दर्जा मिल गया है। यह दर्जा आठ माह बाद मिला है जबकि पहले सत्ता पक्ष कांग्रेस के पास सदन में विधायकों की वांच्छित संख्या न होने के नाम पर यह दर्जा नहीं दे रहा था। कांग्रेस के पास विधायकों की संख्या अब भी उतनी ही है जितनी पहले इसलिये अब यह दर्जा मिलने पर राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में इसको लेकर चर्चाएं होना स्वभाविक है। इन चर्चाओं के मुताबिक जयराम सरकार इस आठ माह के कार्यकाल में अभी तक अपने होने का प्रभावी संदेश नही छोड़ पायी है। यह सरकार कुछ अधिकारियों के हाथों की कटपुतली होकर ही रह गयी है यह सचिवालय के गलियारों में आम सुना जा सकता है। क्योंकि जब सरकार नियमों के विरूद्ध जाकर एक सेवानिवृत अतिरिक्त मुख्य सचिव को स्टडीलीव का लाभ दे दे और भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत जमीन खरीद कर टीडी भी हालिस कर ले तथा सरकार उसके खिलाफ कारवाई करने की बजाये उसे ताजपोशी से नवाजे़ तो निश्चित रूप से यही संदेश जनता में जायेगा। यही नही मन्त्रीमण्डल की पहली ही बैठक में बीवरेज कारपोरेशन के मामले में जांच के आदेश करे और उस पर आठ माह में मामला तक दर्ज न हो पायें सहकारी बैंकों में हुए घपले पर मुख्यमन्त्री और मुख्य सचिव की अनुशंसा के बावजूद विजिलैन्स केस न दर्ज करे तो सरकार को लेकर क्या संदेश जायेगा इसका अंदाजा लगाया जा सका है। फिर पूर्व मुख्यन्त्री वीरभद्र सिंह अधिकारियों की कार्यशैली और नीयत को लेकर कई बार मुख्यमन्त्री जयराम को सचेत कर चुके हैं। यह इन अधिकारियों के कारण ही हुआ कि मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने जब सदन में पूर्व प्रधानन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व विधायक दिले राम शबाब, वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्र तथा वर्षा की त्रासदी से हिमाचल तथा केरल में जानमाल के नुकसान पर शोक प्रस्ताव रखा तब उस प्रस्ताव में प्रदेश की पूरे पांच वर्ष राज्यपाल रही उर्मिला सिंह के नाम का उल्लेख ही नही था। यह नाम शोक प्रस्ताव में मुकेश अग्निहोत्री की श्रद्धांजलि के बाद जुड़ा ऐसे कई मामले हैं जहां अधिकारियों के कारण ऐसी भूलें हुई हैं। लेकिन मजे की बात यह है कि नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री बहुत सारे सवेदनशील मामलों पर चुप हैं। प्रदेश कर्ज में डूबा हुआ है और ऐसे में जब किसी को नियमों के विरूद्ध जाकर लाखों का वित्तिय लाभ दे दिया जाये तथा प्रतिपक्ष उस पर मौन साधे रहे तब यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या यह ‘‘मौन’’ सरकार को विपक्ष का रचनात्मक सहयोग है। हर सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टालरैन्स का दावा करती है कांग्रेस ने भी किया था और अब भाजपा भी कर रही है। यह भ्रष्टाचार का बड़ा मुद्दा न बनाया जाये हर सत्तापक्ष को विपक्ष से यह सहयोग चाहिये। लेकिन इस सहयोग के लिये ज़मीन तैयार करनी पड़ती है। मुकेश अग्निहोत्री सरकार पर भारी पड़ते आ रहे थे उनके ब्यानों पर लगभग पूरे मन्त्रीमण्डल को प्रतिक्रिया देनी पड़ती रही है। समय के साथ यह स्थिति बढ़ती ही जानी थी यह तय था। इस परिदृश्य में नेता प्रतिपक्ष से कैस और क्यों सहयोग मिलता संभवतः यह चिन्ता मुख्यमन्त्री के निकटस्थों में होनी शुरू हो गयी थी और चर्चा है कि इस सहयोग के लिये नेता प्रतिपक्ष के अधिकारिक दरवाजे से होकर ही गुजरना पड़ना था। अब यह हो गया है इसलिये आने वाले दिनों में यह देखने को मिलेगा की विपक्ष की धार आगे कितनी तेज रहती है।
अभी युवा कांग्रेस के प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज हुआ है जिसमें कईयों को गंभीर चोटें आयी है। सत्ता पक्ष के मुताबिक प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया जिसके परिणाम स्वरूप यह सब घटा। ऐसी वारदातां के लिये सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालते हैं यह पुरानी राजनीतिक परिपाटी है। इस लाठी चार्ज पर कांग्रेस अध्यक्ष सुक्खु ने स्पष्ट कहा है यदि सरकार लाठी चार्ज करने वालों के खिलाफ कोई ठोस कारवाई नही करती है तो वह सदन नही चलने देंगे। अब यह देखना रोचक होगा कि क्या सरकार सुक्खु की मांग पर पुलिस के खिलाफ कोई कारवाई करती है या नही। यदि कोई कारवाई नही होती है तब क्या कांग्रेस सदन को चलने देगी या नही। इसमें नेता प्रतिपक्ष के नाते मुकेश सरकार के खिलाफ कितने आक्रामक रहते हैं। क्योंकि यह माना जा रहा है कि युवा कांग्रेस का प्रदर्शन पार्टी का सुनियोजित कार्यक्रम था। कांग्रेस को दिल्ली से लेकर राज्यों तक आक्रामकता की रणनीति पर चलना आवश्यक है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की आक्रामकता से सत्तापक्ष पूरी बौखलाहट में आ गया है। अब जिस तरह से स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर भाजपा और उसकी सरकारें अतिबादिता की हद तक आ गयी हैं उसको लेकर वाजपेयी की ही भतीजी एवम् कांग्रेस नेता करूणा शुक्ला के ब्यान के बाद एक नया मुद्दा, खड़ा हो गया है। इसमें प्रदेश कांग्रेस अपने को पार्टी की राष्ट्रीय लाईन के साथ कैसे सक्रिय रख पाती है यह सब प्रदेश के नेताओं के लिये एक टैस्ट साबित होगा। क्योंकि प्रदेश के राजनीतिक हल्को में यह आम चर्चा है कि इस समय वीरभद्र जयराम सरकार को अपना पूरा आर्शीवाद दिये हुए हैं।
शिमला/शैल। राहूल गांधी के कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश कांग्रेस के दो नेताओं राजेश धर्माणी और दीपक राठौर को राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारीयां दिये जाने के बाद पार्टी के समीकरणों में बदलाव के संकेत उभरने लगे हैं। स्मरणीय है कि पूर्व विधायक एवम् सीपीएस राजेश धर्माणी वीरभद्र सरकार के पूरे पांच वर्ष के कार्यकाल में एक ऐसे नेता रहे हैं जो आखिर तक अपने स्टैण्ड पर कायम रहे। जब धर्माणी के वीरभद्र की कार्यशैली को लेकर उनसे मतभेद हो गये थे तब उन्होने सीपीएस के पद से यागपत्र दे दिया था। वीरभद्र ने यह त्यागपत्र स्वीकार नही किया था। लेकिन धर्माणी ने त्यागपत्रा के साथ ही सचिवालय में मिले अपने कार्यालय में आना छोड़ दिया था और कार्यकाल के अन्तिम दिन तक अपने इस फैसले पर कायम रहे। वीरभद्र विरोधियों की अग्रिम पंक्ति में उनका पहला नाम आता था और शायद इसी का नुकसान भी उन्हें विधानसभा चुनावों में उठाना पड़ा।
इसी तरह दीपक राठौर को ठियोग विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया गया था। राठौर को हटवाने के लिये वीरभद्र को किस हद तक उनका विरोध करना पड़ा है यह चुनावों के दौरान ही खुलकर सामने आ गया था। लेकिन इस विरोध के बावजूद राठौर अपने स्टैण्ड पर चलते रहे। दीपक राठौर को चुनाव टिकट राहूल गांधी का विश्वस्त होने के नाम पर मिला था और शायद यही वीरभद्र की नाराज़गी का कारण भी रहा है। अब जब राठौर को राहूल गांधी ने जिम्मेदारी सौंपी है उससे यह संदेश गया है कि वह अभी भी विश्वस्तों की सूची में बने हुए हैं।
इन दोनां युवा नेताओं के अतिरिक्त इस समय आनन्द शर्मा और आशा कुमारी कांग्रेस की राष्ट्रीय स्तर की सर्वोच्च कमेटी के सदस्य हैं। आनन्द शर्मा का कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर एक कारगर योगदान चला आ रहा है। जिस कारण उन्हें पार्टी की विदेश मामलों की कमेटी की अध्यक्षता सौपी गयी है। आशा कुमारी का योगदान पंजाब प्रभारी के नाते सबके सामने रहा है। आज आनन्द शर्मा और आशा कुमारी प्रदेश कांग्रेस में वीरभद्र और कौल सिंह के बाद अगली पंक्ति के नेता माने जाते हैं। वीरभद्र के बाद कांग्रेस का नेता कौन होगा इसका अभी कोई अन्तिम फैसला नही आ पाया है। क्योंकि वीरभद्र जिस तरह से प्रदेश अध्यक्ष सुक्खु का विरोध करते आ रहे हैं उससे उनका अपना ही कद हल्का पड़ा है। मुकेश अग्निहोत्री नेता प्रतिपक्ष हो गये हैं लेकिन यह सभी जानते हैं कि विधायकों का एक बड़ा वर्ग दबी जुबान से उनका विरोध भी कर रहा था। फिर वीरभद्र सिंह ने भी अभी तक सार्वजनिक रूप से यह नही कहा है कि मुकेश प्रदेश के अगले नेता होंगे। वीरभद्र का जयराम सरकार के प्रति नरम रूख आज सबसे बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है और यह माना जा रहा है कि इससे लोकसभा चुनावों में नुकसान हो सकता है।
ऐसे परिदृश्यों में राहूल गांधी द्वारा राजेश धर्माणी और दीपक राठौर को जिम्मेदारीयां दिया जाना इस बात का खुला संकेत है कि कांग्रेस हाईकमान अभी से प्रदेश में अगला नेतृत्व तैयार करने की दिशा में कदम उठा चुका है। क्योंकि यह दोनो युवा नेता वीरभद्र के प्रभावक्षेत्र से बाहर के माने जाते हैं।
शिमला/शैल। नगर निगम शिमला में जब गरीब परिवारों के लिये बीपीएल योजना के तहत बनाये गये आवासों का आंवटन किया गया था तब निगम की बीपीएल सूची पर ही गंभीर आरोप लगे थे। इन आरोपों पर निगम के हाऊस में चर्चा आयी थी और सदन ने 25.4.2008 को हुई अपनी पहली ही बैठक में निगम की सचिव के खिलाफ जांच करवाये जाने के आदेश दिये थे क्योंकि बीपीएल कार्ड जारी करने की जिम्मेदारी सचिव के पास थी। निगम के सदन के आदेश पर संयुक्त आयुक्त को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया। संयुक्त आयुक्त ने 10.7.2018 को जांच शुरू की और 12.7.2018 को इस पर फैसला भी दे दिया।
संयुक्त आयुक्त विकास सूद की जांच रिपोर्ट मे कुछ महत्वपूर्ण खुलासे सामने आये हैं। सबसे पहले यह सामने आया है कि 2012 तक बीपीएल कार्ड जारी करने के लिये आयुक्त/संयुक्त आयुक्त ही अधिकृत थे। लेकिन 15.5.12 को यह जिम्मेदारी निगम की सचिव को दे दी गयी। दूसरा बिन्दु यह आया है कि निगम में बीपीएल परिवारों का सर्वे 2007 में एक एनजीओ समीक्षा द्वारा करवाया गया था। समीक्षा को यह कार्य 10.7.2008 को निगम के सदन की स्वीकृति से दिया गया था। समीक्षा ने 3050 परिवारों का सर्वे किया था। जिसे 13 जून 2008 को ए.सी.एस(यूडी) ने भी अनुमोदित किया था। जांच रिपोर्ट में यह भी समाने आया है कि निगम के सदन ने प्रस्ताव संख्या 3 ;3द्ध दिनांक 27.7.2011 को यह पारित किया था कि हिमाचली प्रमाणपत्र औरआय प्रमाण पत्र पर बीपीएल कार्ड जारी कर दिये जायें। लेकिन बीपीएल के लिये जो दिशा निर्देश जारी किये गये थे उनके मुताबिक वार्ड संभाएं गठित करके उनकी सिफारिश पर ही यह कार्ड जारी किये जाने थे। परन्तु नगर निगम में यह वार्ड सभायें एमसी एक्ट 1994 के मुताबिक आज तक भी गठित ही नही हुई है। फिर बीपीएल कार्डों की वैधता भी केवल एक वर्ष रखी गयी है यह भी जांच रिपोर्ट में सामने आया है।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब एमसी एक्ट के मुताबिक बीपीएल कार्ड वार्ड सभाआें की सिफारिश पर ही दिये जाने हैं और उनकी वैधता भी केवल एक वर्ष ही है तो फिर 2007 में एनजीओ समीक्षा से यह सर्वे क्यों करवाया गया। जबकि बीपीएल नीति के तहत इसकी आवश्यकता ही नही थी। यदि सर्वे की आवश्यकता थी तो फिर यह सर्वे 2007 के बाद क्यों नही करवाया गया। फिर बीपीएल कार्ड की वैधता केवल एक ही वर्ष क्यो रखी गयी। क्योंकि जब बीपीएल को आधार बनाकर ही शहरी गरीबों को आवास आदि की सुविधा दी जानी है तो क्या यह सुविधा और सूची हर वर्ष बदलती रहेगी। जब निगम के सदन में यह मुद्दा आया तब इस पर कोई ठोस और स्थायी नीति बनाने की बजाये सदन ने अपनी जिम्मेदारी सचिव पर क्यों डाल दी। जिस कार्य के लिये सदन को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिये था उसके लिये सचिव की जांच क्यों? आज तक वार्ड सभाएं गठित नही हो पायी हैं ऐसे में आज बीपीएल कार्ड क्या हिमाचली और आय के प्रमाण पत्रों पर ही जारी नही किया जायेगा।
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