सेवा विस्तार एवम् पुनः नियुक्ति पाये अन्य अधिकारियों पर भीं गिर सकती है गाज
शिमला/शैल। प्रदेश विधानसभा के चुनावों के परिदृश्य में प्रदेश की परिस्थितियों का आंकलन करने शिमला पहुंची केन्द्रिय चुनाव आयोग की पूरी टीम के समक्ष राजनीतिक दलों द्वारा रखी गयी प्रशासनिक वस्तुस्थिति का कड़ा संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग ने सरकार को लोक संपर्क विभाग के निदेशक आर.एस.नेगी को तुरन्त प्रभाव से हटाने के निर्देश दिये हैं। स्मरणीय है कि नेगी को सरकार ने सेवानिवृति के बाद एक साल का सेवा विस्तार दिया था। नेगी की ही तरह कई अन्य अधिकारियों को भी सेवानिवृति के बाद या तो सेवा विस्तार या फिर पुनः नियुक्तियां दी गयी है। ऐसे अधिकारियों को लेकर चुनाव आयोग ने स्पष्ट कहा है कि ऐसे अधिकारी किसी भी तरह से चुनाव काम से नही जुड़े होने चाहिए। आयोग ने यह भी स्पष्ट कहा है कि यदि ऐसे अधिकारियों की कोई शिकायत आती है तो उस पर तुरन्त कारवाई की जायेगी। स्मरणीय है कि भाजपा ने जब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संबित पात्रा की पत्रकार वार्ता में ‘‘हिसाब मांगे- हिमाचल’’ क्रम में वीरभद्र सरकार के खिलाफ पहला विधिवत हमला बोला था उस समय जारी किये गये प्रपत्र में कुछ अधिकारियों को अपने सीधे निशाने पर लिया था। इन अधिकारियों की सूची में डा. एच.एस. बवेजा मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया, लोक आयोग के नव-नियुक्त चेयरमैन सेवानिवृत मेजर जनरल धरम वीर सिंह राणा, आयोग की सदस्य श्रीमति मीरा वालिया, प्रदेश के मुख्य सचिव वी.सी. फारखा और मुख्यमन्त्री के सुरक्षा अधिकारी पदम ठाकुर के नाम शामिल रहे हैं। इस सूची में निदेशक लोक संपर्क का नाम नही था लेकिन अब चुनाव आयोग के सामने सेवानिवृत अधिकारियों की जिस तर्ज में स्थिति रखी गयी है उसमें अब निदेशक पर गाज गिरने से अन्य लोगों पर भी संशय की तलवार लटक गयी है।
भाजपा की शिकायत पर निदेशक लोक संपर्क का हटाया जाना यह इंगित करता है कि आने वाले दिनों में भाजपा की आक्रमकता की धार कितनी तेज रहने वाली है। भाजपा पूरी आक्रमकता के साथ भ्रष्टाचार को केन्द्रित करके वीरभद्र और सरकार पर अपने हमले तेज करती जा रही है। शिमला में संबित पात्रा फिर केन्द्रिय मन्त्री रविशंकर प्रसाद और उसके बाद धर्मशाला में सुधांशु त्रिवेदी की अमित शाह की कांगड़ा रैली से पहले की गयी पत्रकार वार्ताओं में जिस तरह से भ्रष्टचार को मुद्दा बनाया गया था ठीेक उसी तर्ज पर अमित शाह ने कागंड़ा में हुंकार रैली में भ्रष्टचार के आरोपों से वीरभद्र पर सीधा हमला बोला। शाह की रैली कांगड़ा में कितना सफल रही या असफल इस पर केन्द्रित होने से पहले ही 3 अक्बूतर को प्रधान मन्त्री नेरन्द्र मोदी द्वारा बिलासपुर के कोठीपुरा में एम्ज़ का शिलान्यास किये जाने की चर्चा सामने आ गयी। प्रधानमन्त्री भी बिलासपुर में भ्रष्टाचार पर प्रत्यक्षतः/अप्रत्यक्षतः हमला बोलेंगे ही यह तो तय है। लेकिन भाजपा के इन हमलों का ठोस जवाब देने के लिये अभी तक कांग्रेस की ओर से कुछ भी सामने नही आ रहा है। बल्कि कांग्रेस के अन्दर तो अभी तक वीरभद्र बनाम सुक्खु द्वन्द ही खत्म नही हो पा रहा है। कांग्रेस के कौल सिंह और जी.एस.बाली जैसे वरिष्ठ मन्त्री ही अभी तक अपने- अपने स्टैण्ड के बारे में स्पष्ट नही हैं। विक्रमादित्य युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के एक परिवार से एक ही टिकट दिये जाने के स्टैण्ड पर चल रहे हैं जबकि उनके ही पिता मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह यह कह चुके हैं कि टिकटों के लिये पार्टी के अन्दर ऐसा कोई नियम नही है। विक्रमादित्य का जब पहली बार यह ब्यान आया था तब तो कौल सिंह ठाकुर ने भी यहां तक कह दिया था कि क्या ब्यान वीरभद्र सिंह को पूछकर दिया गया है। लेकिन अब दूसरी बार वही ब्यान आने से यह तो समझ आता है कि विक्रमादित्य का यह ब्यान अपने युवा संगठन की वकालत है क्योंकि यदि एक ही परिवार से दो-दो टिकट दिये जाने का चलन शुरू हो जाता है तो फिर युवाओं की बारी आ पाना संभव ही नही होगा। इसलिये युवा संगठन की वकालत के आईने से तो ऐसा ब्यान जायज है। लेकिन आज लोकसभा चुनावों के बाद से कांग्रेस की जो हालत हो चुकी है उसे सामने रखते हुए इस समय ऐसे ब्यान केवल नुकसानदेह ही साबित होंगे।
क्योकि राजनीतिक दलों ने सेवा विस्तार या पुनः नियुक्ति पाये अधिकारियों पर आयोग में आपति जताई है और कल को इसका सीधा निशाना मुख्यमन्त्री कार्यालय हो सकता है। राजनीतिक दलों ने मुख्यमन्त्री द्वारा इन दिनों की जा रही घोषणाओं पर एतराज उठाते हुए आरोप लगाया है कि यह सब बजट प्रावधानों के बिना हो रहा है। राजनीतिक दलों ने सरकार द्वारा विभिन्न स्थानों पर लगाये गये अपनी उपलब्धियों के होर्डिंग्स पर भी एतराज उठाया है और आयोग के निर्देशों पर उन्हें हटाने की नौबत आ जायेगी। चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के मुद्दों को गंभीरता से लिया है और इसका प्रभाव सरकार पर पड़ना तय है।
इस समय पंजाब को छोड़कर देश के इस हिस्से में कांग्रेस कहीं नही है आज यदि हिमाचल भी कांग्रेस के हाथ से निकल जाता है तो फिर कांग्रेस को पांव रखने के लिये भी कोई स्थान नही बचेगा। यह सही है कि हिमाचल में एक लम्बे अरसे से कभी कोई सरकार रिपीट नही हो पायी है। लेकिन इससे पहले नोटबंदी और फिर आयी जीएसटी तथा इन दोनो के कारण पैट्रोल डीजल की कीमत बढ़ने से जो मंहगाई और बढ़ गयी है उससे अचानक मोदी और उनकी सरकार बैकफुट पर आ गये हैं। इसी सबका परिणाम है कि आज राजस्थान को छोड़कर अन्य विश्वविद्यलायों में भाजपा के विद्यार्थी संगठन एबीवीपी को भारी हार का मुख देखना पड़ा है जो युवा विद्यार्थी एक समय मोदी के प्रति आकृष्ट हो गये थे आज उनका मोह भंग होना शुरू हो गया है। ऐसे में क्या प्रदेश कांग्रेस इन स्थितियों को सामने रखकर अपनी रणनीति में कोई बदलाव लाती है या नही इस पर सबकी नजरें केन्द्रित हैं।
शिमला/शैल। कुछ समय पहले तक निदेशक बागवानी और एमडी कृषि विपणन बोर्ड का एक साथ कार्यभार संभाल रहे डा. एचएस बवेजा को अब सरकार ने स्थायी रूप से कृषि बोर्ड कार्यभार सौंप दिया है। डा. बवेजा जब निदेशक बागवानी थे उस समय ठियोग के पास बन रहे एक कोल्ड स्टोर की सब्सिडी के मामलें में काफी विवाद उठा था। कोल्ड स्टोर बना रही कंपनी ने डा. बवेजा के खिलाफ काफी गंभीर आरोप लगाते हुए एक शिकायत भी सरकार को भेजी थी। शिकायत में आरोप था कि सब्सिडी रिलिज करने के लियेे दो करोड़ रूपये की मांग की गयी थी लेकिन सरकार ने इस शिकायत पर कोई कारवाई न करके अब इस तरह से उन्हे राहत प्रदान कर दी है। जबकि ऐसी शिकायतों को तुरन्त विजिलैन्स को भेजकर जांच करवाई जाती है लेकिन बवेजा के मामले में ऐसा नही हुआ।
यही नही डा. बवेजा के खिलाफ सोलन के चंबाघाट में 374 वर्गमीटर सरकारी भूमि का अतिक्रमण करने का मामला भी अभी तक लंबित चल रहा है। इस अक्रिमण की जांच करके ग्रामीण राजस्व अधिकारी वृत बसाल त. सोलन ने 8.10.2015 को रिपोर्ट सौंप दी थी। रिपोर्ट में भू-राजस्व अधिनियम की धारा 163 के तहत कारवाई किये जाने का मामला पाया गया था। नियमानुसार इस रिपोर्ट के बाद डा. बवेजा के खिलाफ कन्डक्ट रूल्ज 1964 के तहत कार्यवाही हो जानी चाहिये थी। क्योंकि 14 सितम्बर 2005 को इस संद्धर्भ में सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में नियम 4.। के उल्लेख में स्पष्ट कहा गया है।
सरकारी भूमि पर हुए अतिक्रमणों पर प्रदेश उच्च न्यायालय ने कड़ा संज्ञान लेते हुए इन अतिक्रमणों को हटाने के निर्देश दिये हुए हैं। उच्च न्यायालय के इन निर्देशों पर कारवाई करते हुए कई बागवानों को बागीचों से हाथ धोना पड़ा है। इन्ही निर्देशों की अनुपालना करते हुए जिलाधीश सोलन ने अगस्त 2017 में तहसीलदार सोलन को इनमें तुरन्त प्रभाव से कारवाई करने के निर्देश जारी किये हैं। लेकिन सूत्रों के मुताबिक अभी तक आगे कोई बड़ी कारवाई नही हुई है।
सरकार का डा. बवेजा के प्रति ऐसा नरम रूख क्यों है कि उनके खिलाफ किसी भी मामले में कोई कारवाई होती ही नही है। इस संद्धर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि 2012 में जब डा. बवेजा नौणी विश्वविद्यालय में वरिष्ठ वैज्ञानिक थे तब एक मामले में इनके खिलाफ जांच के आदेश हुए थे और इसके लिये 21.7.12 को सेवानिवृत सैशन जज ओपी शर्मा को जांच अधिकारी लगाया गया था। लेकिन डा. बवेजा ने ओपी शर्मा को जांच अधिकारी लगाये जाने का विरोध किया। इस विरोध के बाद ओपी शर्मा के स्थान पर 14.8.2012 को ही सेवानिवृत आईएएस अधिकारी राकेश कौशल को जांच सौंप दी गयी। लेकिन बवेजा ने कौशल को जांच अधिकारी लगाये जाने का भी विरोध किया। जब सरकार ने उनके विरोध को स्वीकार नही किया तो बवेजा ने इस पर 1.9.2012 को राज्यपाल के पास बतौर चांसलर अपील दायर कर दी और राज्यपाल ने इस अपील पर 7.9. 2012 को जांच स्टे कर दी। इस स्टे के बाद अन्ततः 20.3.2013 को राज्यपाल ने डा. बवेजा को इस मामले मे क्लीनचीट दे दी। जबकि इसमें कोई जांच रिपोर्ट आयी ही नही। लेकिन इसी 2013 के दौरान ही बोर्ड में हुई कुछ खरीददारीयों और अन्य मामलों में डा. बवेजा के खिलाफ सरकार के पास शिकायतें आयी जिन पर कोई कारवाई नही हुई जबकि इस शिकायत में सबसे बड़ा आरोप 60 लाख के सीसीटीवी कैमरों की खरीद का रहा है। इनमें अरोप है कि टैण्डर आदि की सारी प्रक्रिया को पूरी तरह पूरी किये बिना ही यह कैमरे संजौली स्थित ग्लोबल नेटवर्क गुरूनानक बिल्ड़िग आईजीएमसी रोड़ से खरीद लिये गये। यह कंपनी मुख्यमन्त्री के एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चैहान की कही जाती है। और संभवतः इसी संपर्क का लाभ डा. बवेजा आज तक उठा रहे हैं। तभी सरकारी भूमि पर अतिक्रमण जैसे गंभीर मामले में अभी तक कोई कारवाई नही हो पा रही है।
शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने विधानसभा चुनावों के लिये ’’हिसाब मांगे हिमाचल’’ के नाम से चार पन्नों का एक पोस्टरनुमा पर्चा छापकर अपनी नीयत और नीति सार्वजनिक कर दी है। चुनावी संद्धर्भ में आयोजित पहली पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. संबित पात्रा ने यह चर्चा मीडिया को जारी करते हुए न केवल प्रदेश सरकार और इसके मुखिया वीरभद्र सिंह पर हमला बोला बल्कि कांग्रेस हाईकमान सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर भी निशाना साधते हुए सावल किया कि वीरभद्र जैसे आरोपों में घिरे नेता को देव भूमि हिमाचल का नेतृत्व क्यों सौंपा? भाजपा के इस चार पन्नो के पोस्टर में सबसे पहले उद्योग मन्त्री मुकेश अग्निहोत्री के उद्योग विभाग पर आरोप लगाते हुए कहा गया है कि पिछले चार वर्षों में अवैध खनन के 30,000 से अधिक मामले सामने आये हैं और इनमें प्रदेश को 2400 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ है। सोलन की एक कंपनी से खनन के लिये मिलने वाली 22.72 करोड़ की रायल्टी और 4.39 करोड़ का ब्याज क्यों नही वसूला गया यह और सवाल उठाया गया है।
खनन के बाद ड्रग्स को लेकर आरोप लगाया गया है कि इसमें 900 करोड़ का अवैध करोबार चल रहा है और 40% हिमाचली युवा इसके शिकार हो चुके हैं। इससे होने वाली मौते दस गुना बढ़ गयी है। जबकि इस अवैध धन्धे में लिप्त लोगों की गिरफ्तारियों में 30% अधिक की गिरावट आयी है। वन माफिया के नाम पर आरोप लगाया गया है कि प्रदेश के वन क्षेत्र मे से 54000 हैक्टेयर पर अतिक्रमण हो चुका है। बिल्डर माफिया हर कहीं अन्धाधुन्द अवैध निर्माण में लगा हुआ है और विभाग की मिली भगत से यह निर्माण नियमित भी होते जा रहे हैं। राज्य आपदा राहत कोष से 19 करोड़ रूपया निकालकर सरकारी इमारतों की मुरम्मत पर खर्च कर दिया गया। लोक निर्माण विभाग ने 9 करोड़ रूपया सड़कों की रिपेयर करने की बजाये अधिकारियों के लिये गाड़ियां खरीदने पर खर्च कर दिया गया। जिन क्षेत्रों में बर्फ पड़ती ही नही वहां पर 20 करोड़ रूपया बर्फ हटाने के नाम पर खर्च कर दिया गया। लोक निर्माण विभाग की भ्रष्ट कार्य प्रणाली के कारण पांच वर्षो में 500 करोड़ के कोलतार का ही नुकसान कर दिया गया। मंडी में 20 करोड़ की लागत वाली 20 सड़कों को डीपीआर के अनुसार नही बनाया गया और अधूरी सड़को को ही यातायात के लिये खोल दिया गया। 250 करोड़ की लागत से बनने वाले सस्पेंडिडस्काईवे ट्रांसफोर्ट सिस्टम का ठेका बेला रूस की कंपनी स्काईवे टेक्नोलाॅजी को बिना किसी प्रक्रिया के दे दिया गया। पेयजल और सिंचाई योजनाओं में 1053 करोड़ का घोटाला किये जाने का भी आरोप लगाया गया है। जंगी थोपन पवारी जल विद्युत परियोजना में ब्रेकल पावर कारपोरेशन पर भाजपा सरकार के दौरान 1800 करोड़ का जुर्माना लगाया गया था लेकिन कांग्रेस सरकार ने न केवल इसे माफ कर दिया बल्कि ब्रेकल से वसूले गये 280 करोड़ के अग्रिम शुल्क को भी वापिस करने का फैसला कर दिया। सोरंग परियोजना का ठेका 20 करोड़ का अग्रिम लिये बिना ही एक अन्तर्राष्ट्रीय कंपनी को दे दिया।
इन आरोपों के अतिरिक्त बागवानी निदेशालय के निदेशक डा. बवेजा मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया उनकी पत्नी मीरा वालिया रि मेजर जनरल धर्मवीर सिंह राणा और मुख्य सचिव वीसी फारखा की नियुक्तियों पर भी गंभीर सवाल उठाये गये हैं। इन आरोपों के अतिरिक्त मुख्यमन्त्री पर व्यक्तिगत रूप से हमला बोलते हुए वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य द्वारा दिल्ली के मैहरौली में खरीदे गये फार्म हाऊस निजि आवास हाॅलीलाॅज को एक कन्स्ट्रक्शन कंपनी को किराये पर देने आदि के आरोपों को फिर से दोहराया गया है।
भाजपा ने इसी पत्रकार वार्ता में यह भी घोषणा की है कि इस तर्ज पर आने वाले दिनो में चार पत्रकार वार्ताएं आयोजित की जायेगी। इन वार्ताओं में किसी न किसी मुद्दे पर सरकार से हिसाब मांगा जायेगा। जिस तर्ज पर भाजपा की पहली पत्रकार वार्ता में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर उठाया गया है। उसमें प्रदेश में सरकार नही बल्कि माफिया राज चलने का आरोप लगाया है। आने वाली पत्रकार वार्ताओं में भी सरकार की यही माफिया छवि जनता में उभारने का प्रयास किया जायेगा यह स्पष्ट हो गया है।
भाजपा के आरोपों पर वीरभद्र सरकार या कांग्रेस पार्टी की ओर से कोई ठोस प्रतिकार नही आया है। बल्कि सूत्रों के अनुसार जिन विभागों के खिलाफ आरोप लगाये गये हैं उनसे भी इन आरोपों के बारे में कोई जानकारी नही मांगी गयी है। इससे यही संकेत उभरता है कि या तो सरकार के पास इसका कोई जवाब ही नही है या वह फिर इन्हे गंभीरता से नही ले रही है। लेकिन यह माना जा रहा है कि यदि समय रहते सरकार और संगठन की ओर से कोई काऊंटर नही आता है तो जनता के पास इन्हे सही मानने के अतिरिक्त कोई विकल्प नही रह जायेगा।
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