Friday, 19 September 2025
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चुनौती पूर्ण होगा सुरेश कश्यप को यह विरासत संभालना

शिमला/शैल। शिमला संसदीय क्षेत्र के सांसद सुरेश कश्यप को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी मिल गयी है। सुरेश कश्यप का मनोनयन राजीव बिन्दल के त्यागपत्र के करीब दो माह बाद हो पाया है। भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष के लिये मनोनयन में इतना समय लगना अपने में ही स्पष्ट कर देता है कि संगठन के अन्दर की हकीकत क्या है। क्योंकि कश्यप से पहले अध्यक्ष के लिये राज्य सभा सांसद इन्दु गोस्वामी का नाम इस हद तक चर्चा में आ गया था कि पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विजय वर्गीय तक ने उन्हे बधाई दे दी थी। विजय वर्गीय पार्टी के केन्द्रिय मुख्यालय में राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा के निकट सहयोगी हैं। इसलिये उनके बधाई देने को आसानी से नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता। यह सब जिक्र करना इसलिये महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि प्रदेश के वरिष्ठतम भाजपा नेता पूर्व मुख्यमन्त्री एवम् केन्द्रिय मन्त्री शान्ता कुमार की वर्तमान राजनीति पर यह टिप्पणी आयी है ‘‘ कि देश की सियासत में चटुकारिता सबसे बड़ी योग्यता बन गयी है।’’ संयोग से यह टिप्पणी इस मनोनयन के बाद आयी है इसलिये इसे आसानी से संद्धर्भ हीन कहकर नज़रअन्दाज़ नही किया जा सकता। क्योंकि इसके पहले राजस्थान के संद्धर्भ में भी वह यह सवाल पूछ चुके हंै कि भाजपा को सरकारें गिराने की आवश्यकता क्या है जबकि उसे विपक्ष से कोई खतरा नही है। शान्ता कुमार का यही सवाल इस समय राष्ट्रीय सवाल बन चुका है। प्रदेश अध्यक्ष के लिये बिन्दल के समय भी कई नाम चर्चा में चल रहे थे और अब भी थे। बिन्दल जब अध्यक्ष बनाये गये थे उस समय स्वास्थ्य मन्त्री परमार को विधानसभा का स्पीकर बनाया गया था। परमार को स्पीकर बनाने का फैसला केन्द्र ने स्वास्थ्य मन्त्रालय को लेकर उठ रहे विवादों के परिदृश्य में लिया था। लेकिन परमार के हटने के बाद भी यह विवाद शान्त नही हुए और बिन्दल के भी हटने का कारण बन गये। अभी तक इन विवादों को विराम नही लगा है। मण्डी के संासद रामस्वरूप शर्मा के पत्र ने एक बार फिर चर्चा में ला दिया है। क्योंकि जयराम सरकार कैग रिपोर्ट की स्पष्ट टिप्पणीयों के बाद भी इस दिशा में कोई कारवाई नहीं कर पायी है। अब तो इन विवादों में कांगड़ा के एक मन्त्री की संपति खरीद भी जुडने लग पड़ी है। मन्त्री ने अपनी एक पंचायत प्रधान और उसी के परिवार की जिस तरह से स्वास्थ्य योजनाओं तथा सीएम रिलिफ फण्ड से मद्द करवाई है वह क्षेत्र में चर्चा का विषय बन हुआ है। इसी तरह शिमला के निकट एक बड़े परिवार द्वारा 25 बीघे ज़मीन खरीद का मामला भी चर्चा में आ गया है। कुल मिलाकर आने वाले दिनों में सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठने की संभावनाएं बनती जा रही हैं। इसके अतिरिक्त अभी मन्त्रीमण्डल विस्तार होना है। पार्टी के कई बड़े नेता अभी ताजपोशीयों से वंचित है। जिन ज़िलों को मन्त्रीमण्डल में इस समय स्थान नही मिला हुआ है उनमें अध्यक्ष का अपना ज़िला सिरमौर भी शामिल है। ऐसे में मन्त्रीमण्डल विस्तार में सिरमौर को स्थान मिल पाता है या उसे वहां से पार्टी अध्यक्ष बना दिये जाने के तर्क से छोड़ दिया जाता है यह सुरेश कश्यप के लिये राजनीतिक टैस्ट सिद्ध होगा। इस तरह की विरासत संभाल रहे कश्यप के लिये संगठन और सरकार में तालमेल बिठाये रखना एक चुनौती से कम नही होगा। कश्यप के मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर के साथ बहुत घनिष्ठ संबंध हैं। इन्ही संबंधों के चलते कश्यप को यह जिम्मेदारी मिली है अन्यथा दलित वर्ग में से और भी कई नेता है जो कश्यप से बहुत वरिष्ठ हैं। वोट की राजनीति के गणित से यह सही है कि कश्यप का दलित और पूर्व वायुसेना अधिकारी होना दलितों और पूर्व सैनिकों के लिये एक बड़ा सम्मान है। लेकिन उसी गणित में इन्दु गोस्वामी का बनना इस तरह से रोका जाना पूरे महिला समाज के लिये अपमान का कारक भी हो जाता है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कश्यप कैसे इन चुनौतियों से निपटते हैं।

प्रदेश कांग्रेस के धरने में नही आ पाये सारे विधायक

शिमला/शैल।  कांग्रेस ने आज प्रदेशों के राजभवनों के बाहर ‘‘लोकतन्त्र बचाओ’’ के लिये धरना प्रदर्शन आयोजित किया है। इस धरने के निर्देश राजस्थान के राज्यपाल के व्यवहार पर विरोध प्रदर्शन के लिये दिये गये थे। राजस्थान में जो कुछ घट रहा है उस पर पूरे देश की नजरें लगी हुई हैं क्योंकि राज्यपाल का आचरण लोकतन्त्र के भविष्य के लिये एक महत्वपूर्ण संकेतक होने जा रहा है। इसलिये आज समय की आवश्यकता है कि इस मुद्दे को पूरे विस्तार के साथ देश की जनता के सामने रखा जाये। कांग्रेस को यह जिम्मेदारी निभानी है और इसीलिये धरने प्रदर्शन का कार्यक्रम रखा गया था।
प्रदेश कांग्रेस ने भी अध्यक्ष कुलदीप राठौर की अगुवाई में राजभवन में यह धरना दिया है। इस धरने में करीब साठ कार्यकर्ता और एक विधायक अनिरूद्ध शामिल हुए हैं। यह एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम था और इसमें केवल एक ही विधायक का शामिल होना कई सवाल खडे़ कर जाता है। क्योंकि शिमला जिला से ही नन्दलाल, विक्रमादित्य और मोहन लाल ब्राक्टा भी विधायक हैं। शिमला के अतिरिक्त सोलन और सिरमौर तथा बिलासपुर भी निकट लगते ज़िलें हैं। लेकिन इस आयोजन में यहां के विधायक नही आ पाये। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री भी इसमें नही आ पाये हैं। राजनीतिक विश्लेष्कों के मुताबिक यह प्रदर्शन एक बड़ा शो होना चाहिये था। इसमेें सारे विधायक और राज्य कार्यकारिणी के भी सारे सदस्य शामिल रहते तो इसका एक बड़ा संदेश जनता में जाता। यही नही अभी रोहडू में बाॅलीबाल टूर्नामैन्ट का आयोजन हुआ जिसमें कोरोना के सारे निर्देशों का खुला उल्लघंन हुआ। इस पर कांग्रेस की ओर से कोई प्रतिक्रिया तक नही आयी है जबकि रोहडू से कांग्रेस के ही विधायक चुनकर आये हैं।
प्रदेश कांग्रेस का प्रदर्शन राज्य से जुड़े मुद्दों पर आक्रामक नही रह रहा है। कोरोना के संद्धर्भ में राज्य सरकार आज प्रदेश की जनता से पूछ रही है कि लाॅकडाऊन लगाया जाना चाहिये या नही। यह पूछना सरकार की कोरोना को लेकर बनी नीतियों की असफलता का खुला स्वीकार है लेकिन इस अहम मुद्दे पर प्रदेश कांग्रेस अभी तक चुप बैठी है। वैसे भी प्रदेश कांग्रेस के आचरण से उसके सरकार की बी टीम होने की गंध आने लग गयी है क्योंकि प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर कांग्रेस जयराम सरकार से कोई सवाल नही पूछ रही है। कांग्रेस के आज के धरने से यह सारे सवाल उठ गये हैं कि क्या प्रदेश कांग्रेस इस तरह के रूख से भाजपा का सामना कर पायेगी। क्या आज इस तरह का विपक्ष प्रदेश की जनता के हितों की रक्षा कर पायेगी।

अपंगता प्रमाणपत्रों का उच्च न्यायालय ने लिया कड़ा संज्ञान बंद हो यह कारनामा सरकार को दिये आदेश

शिमला। प्रदेश हाईकोर्ट में मुख्य चिकित्सा अधिकारियों और चिकित्सा अधिकारियों की ओर से जारी किए जाने वाले अपंगता प्रमाणपत्रों पर सवाल उठाते हुए अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य को आदेश दिए है कि वह इस मामले पर गौर कर चार सप्ताह के भीतर जरूरी निर्देश जारी करे।
प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायामूर्ति तिरलोक सिंह चैहान और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने तबादले के एक मामले को निपटाते हुए ये आदेश जारी किए हैं। अदालत ने कहा कि मुख्य चिकित्सा अधिकारियों और चिकित्सा अधिकारियों की ओर से जारी इन अपंगता प्रमाणपत्रों में एक नोट लिखा होता है कि इन प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल अदालती कार्यवाही व किसी तरह के मुआवजे के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
खंडपीठ ने कहा कि ऐसा नोट  जारी करने वाले की मंशा ही ये होती है कि अगर ये पूरी तरह या आशिंक तौर पर झूठा पाया भी जाता है तो डाक्टरों के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होगी। लेकिन अदालत इसे अब मंजूर नहीं करेगी।
खंडपीठ ने कहा कि अब समय आ गया है कि ये तमाम कारनामें बंद हो जाने चाहिए, अन्यथा सरकारी व निजी डाक्टर ऐसे प्रमाणपत्रों को जारी करते रहेंगे जिनका कोई न्यायिक औचित्य नहीं है। ये झूठे व मनगढ़ंत से कम नहीं है व इनका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जा सकता है।
16. However, before parting, it needs to be observed that this Court has come across number of cases wherein Medical Officers including Chief Medical Officers, day-in and day-out, are issuing disability certificates with the note that the same would not be valid for Court cases or for claiming compensations.
17. We really fail to appreciate, comprehend and understand as to under which provision and authority such kinds of certificates are being issued. After all there is a presumption of regularity of official act and, therefore, we would assume that the concerned Medical Officers/CMOs must have examined and thereafter satisfied himself before issuing such certificates.
18. We are further at a complete loss to understand the purpose and object of issuing such certificates. Once a certificate is issued by a Medical Officer, he cannot be permitted to back out from the contents contained in said certificate fearing any prosecution, criminal or contempt of the Courts, once produced in a Court of law, the Court is bound to see whether the Medical Officer has the authority or not to issue such kinds of certificates and in case the contents of same are found to be false in whole or in part, then obviously, the Medical Officer issuing such certificate is liable for penal, departmental or any other action that may be warranted under law. यह मामला एक स्कूल कर्मचारी की ओर से अदालत में दायर याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आया। सरकार ने याचिकाकर्ता का एक स्कूल से दूसरे स्कूल के लिए तबादला कर दिया था व उसने अपनी याचिका के साथ 1994 में जारी 45 फीसद अपंगता का प्रमाणपत्र लगा रखा था। अदालत ने पाया कि ये प्रमाणपत्र मेडिकल बोर्ड की ओर से जारी नहीं किया गया है और इसमें एक नोट भी लिखा हुआ है। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा था कि उसका तबादला डीओ नोट के आधार पर किया गया है और जिस स्कूल में किया गया है वह सड़क से डेढ़ किलोमीटर दूर भी है। इसलिए वह पैदल स्कूल तक नहीं पहुंच सकती। लेकिन शिक्षा विभाग ने अदालत में उक्त कर्मचारी की ओर से किसी दूसरे स्कूल में तबादला कराने के लिए खुद लिए डीओ नोट को अदालत  में पेश कर दिया और कहा कि जिस स्कूल में इसका तबादला किया गया है वहां पार्किग भी है और सड़क भी जाती है।

इस पर खंडपीठ ने कहा कि तबादला करना सरकार का अधिकार है। अगर यह गलत मंशा से नहीं किया गया है तो अदालत को इसमें दखल देने की जरूरत नहीं है। याचिका को खारिज कर दिया लेकिन अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य को चार सप्ताह के भी भीतर अपंगता प्रमाण पत्र जारी करने को लेकर अधिकारियों को जरूरी दिशा निर्देश के आदेश दे दिए।

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