शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के आयुक्त का पद एक सप्ताह से खाली चला आ रहा है। सरकार ने पिछले दिनों 21 आईएएस अधिकारियों के तबादले किये थे और उनमें निगम के आयुक्त को जिलाधीश लाहौल- स्पिति भेजा था। उसके बाद से यह पद खाली है। सरकार कोई नियुक्ति इस पद पर नही कर पायी है। चर्चा है कि करीब आधा दर्जन अधिकारी इस पद की दौड़ में हैं एक समय तो यहां तक चर्चा आ गयी थी कि एक आईएफएस अधिकारी पर मुख्यमन्त्री और शहरी विकास मन्त्री जो शिमला के वर्तमान विधायक भी हैं दोनो सहमत हो गये थे। लेकिन इस चर्चित सहमति के बाद भी नियुक्ति न हो पाने से कई सवाल खड़े हो गये हैं। शिमला प्रदेश का सबसे पुराना और बड़ा नगर निगम है। शिमला के नगर निगम को एक तरह से प्रदेश की लघु विधानसभा माना जाता है। यहां पर प्रदेश के हर जिले का ही नही बल्कि देश के हर राज्य का आदमी मिल जायेगा। पर्यटन की दृष्टि से शिमला विश्वस्तरीय स्थलों में गिना जाता है। ब्रिटिश शासन में देश की ग्रीष्मकाल की राजधानी होने के नाते यहां के अनेक स्थलों और भवनों को हैरिटेज का दर्जा हासिल है।
इसी कारण से यहां पर कई लोगों का हित जुड़ा हुआ रहता है। इसी हित का परिणाम है कि यहां के अवैध निमार्णों को नियमित करने के लिये कांग्रेस और भाजपा की सरकारें नौ बार रिटेन्शन पालिसी ला चुकी है। प्रदेश उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक इस स्थिति का कड़ा संज्ञान लेकर सरकार और प्रशासन को गंभीर लताड़ लगा चुका है। एनजीटी तो वाकायदा फैसला सुनाकर शहर के कोर एरिया में निमार्णों पर प्रतिबन्ध लगा चुका है। कोर एरिया के बाहर भी अढ़ाई मंजिल से अधिक का कोई नया निर्माण नही किया जा सकता है। कई हित धारकों के दवाब में सरकार को यह वायदा करना पड़ा था कि वह एनजीटी के फैसलों की अपील सर्वोच्च न्यायालय में करेंगे। लेकिन ऐसा कर नही पायी है। परन्तु एनजीटी के फैसले के वाबजूद नगर निगम क्षेत्र में छः मंजिला निर्माण हो रहे है। सैंकड़ों निर्माणों को इस नाम पर अनुमति दी जा रही है कि इनके नक्शे एनजीटी का फैसला नम्बर 2016 में आने से पहले ही यह नक्शे पास हो चुके थे और अनुमति की सूचना नही दी जा सकी थी। यह सारे निर्माण अढ़ाई मंजिल से अधिक के ही हैं। फिर शिमला स्मार्ट सिटी घोषित हो चुका है। स्मार्ट सिटी के नाम पर सैंकड़ों करोड़ की नयी योजनाएं नियमित की जानी है। कई योजनाएं तो अधिकारीयों की डील से पहले ही बन्द हो चुकी हैं। शहर की सबसे बड़ी पेयजल योजना शहर के रिज से संचालित है इसके जिर्णोद्वार के लिये ही सौ करोड़ की योजना तैयार है। शहर में पार्किंग एक बड़ी समसया है। इसके लिये नगर निगम ने पीपीपी योजना के तहत कुछ पार्किंग स्थलों का निर्माण करवाया था। अब स्मार्ट सिटी के नाम पर इन्ही पार्किंग स्थलों को शायद निगम उन ठेकेदारों से वापिस ले रही है। जिस पर ठेकेदार ने 16 करोड़ खर्च किये हैं उसे 48 करोड़ में वापिस लिया जा रहा है।
स्मार्ट सिटी से अलग शहर में एशियन विकास बैंक के सहयोग से सौंदर्यकरण की योजना चल रही है। इस योजना के तहत शहर में स्थित दोनो चर्चों की रिपेयर के लिये 21 करोड़ खर्च किये जाने थे। इसके लिये प्रक्रिया संबंधी सारी औपचारिकताएं भी पूरी हो गयी थी। इसमें कुछ काम भी शुरू हुआ था। लेकिन क्यों और कैसे बन्द कर दिया गया इसकी कोई जानकारी आज तक बाहर नही आयी है। इसी सौंदर्यकरण की योजना के तहत ही टाऊनहाल की रिपेयर पर करीब दस करोड़ खर्च किये गये हैं। लेकिन रिपेयर के बाद इस बरसात में इसके अन्दर पानी आया है और इसको लेकर वर्तमान और पूर्व मेयर में वाक्युद्ध भी हो चुका है। इस तरह नगर निगम शिमला में स्मार्ट सिटी से लेकर सौंदर्यकरण जैसी कई बड़ी योजनाओं पर अमल होना है। इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि प्रशासनिक दृष्टि से निगम के आयुक्त का पद कितना अहम हो गया है। इसी के साथ भाजपा के ही दो बड़े नेताओं के राजनीतिक हित भी नगर निगम क्षेत्र से जुडे हुए हैं। फिर निगम का जो भी आयुक्त होता है उसकी काम के कारण राजभवन से लेकर उच्च न्यायालय तक बराबर पैठ बन जाती है और सचिवालय तो इन दोनों के बीच ही स्थित है। नगर निगम शिमला के इस राजनीतिक भूगोल के कारण यहां के आयुक्त की नियुक्ति मुख्यमन्त्री और शहरी विकास मन्त्री के लिये भी काफी जटिल हो गयी है। वैसे तो पुलिस थानों, एक्साईज़ और फारैस्ट की चैक पोस्टों और प्रदूषण नियन्त्रण केन्द्रों पर होने वाली नियुक्तियों को लेकर मोलभाव होने के आरोप दबी जुबान में काफी असरे से चर्चा में चले आ रहे हैं। यह काम इस सत्ता के गलियारों से जुड़े दलालों के नाम लगते रहे हैं। इन चर्चाओं को उस समय अधिमान भी मिल जाता है जब किसी चैकिंग गार्ड की वाहन से कुचल कर हत्या कर दी जाती है और हत्यारे पकड़े नही जाते हैं। कई होशियार सिंह इन्साफ के लिये तरस्ते रहते हैं। आज तक नगर निगम शिमला के आयुक्त की नियुक्ति के लिये भी इतना समय लग जाये तो स्वभाविक है कि राजधानी नगर होने के नाते आम आदमी का ध्यान इस ओर जायेगा ही। अनचाहे ही यह चर्चा चल निकलेगी कि कहीं यह पद भी उगाही वाले दायरे में तो नही आ गया है और दलालों का इस पर सीधा दखल हो चुका है क्योंकि जितने काम स्मार्ट सिटी और सौंदर्यकरण के नाम पर होने हैं उनको देखकर इस तरह की आशंकाओं को एकदम आधारहीन भी नही कहा जा सकता है।
शिमला/शैल। हिमाचल भाजपा के वरिष्ठतम पूर्व मुख्यमन्त्री एवम् पूर्व केन्द्रिय मन्त्री शान्ता कुमार क्या अपनी ही पार्टी और उसकी सरकार से आहत महसूस कर रहे हैं? यह सवाल प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में इन दिनों चर्चा में चल रहा है। क्योंकि बीते एक सप्ताह में दो बार इस आशय के ब्यान उनके सामने आये हैं। विवेकानन्द ट्रस्ट उनका ड्रीम प्रौजैक्ट रहा है जिसे इस मुकाम तक पहुंचाने के लिये उन्होनें बहुत परिश्रम किया है और इस परिश्रम की अपनी ही एक अलग दास्तान रही है। क्योंकि एक समय इसी ट्रस्ट के ट्रस्टी रहे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एस.के.आलोक तक ने बगावत कर दी थी। प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर हुई याचिका भी इसी दास्तान का हिस्सा रहा है। कांगड़ा के ही दो बड़े राजनेता विजय मनकोटिया और जी .एस. बाली भी इस ट्रस्ट को लेकर शान्ता कुमार के साथ सीधे टकराव में रह चुके हैं। प्रदेश विधानसभा में भी इस ट्रस्ट को लेकर सवाल उठ चुके हैं। इन सवालों के जवाब में भी बहुत कुछ रिकार्ड पर आ चुका है। इसी ट्रस्ट के परिप्रेक्ष में डा. राजन सुशान्त ने शान्ता कुमार की आय का 1977 में विधानसभा में दिया गया ब्यौरा भी सार्वजनिक करते हुए कई सवाल उछाले थे। स्वभाविक है कि जिस प्रोजैक्ट के लिये इतना सब कुछ सहा गया हो तो जब उस विषय पर प्रदेश उच्च न्यायालय का इस तरह का फैसला आये तब उस पर दर्द और खुशी दोनों एक साथ छलकेंगे ही। ट्रस्ट के मामलें में जो शान्ता कुमार ने अपनी ही पार्टी के लोगों पर अपरोक्ष में उन्हें परेशान करने का आरोप लगाया है उसका असर पार्टी के भीतर दूर तक जायेगा। क्योंकि शान्ता कुमार का प्रदेश की जनता में और राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में अपना एक अलग स्थान है। इस नाते शान्ता कुमार का यह अपरोक्ष आरोप वर्तमान सरकार और संगठन के लिये एक बहुत बड़ा संकेत बन जाता है। क्योंकि उच्च न्यायालय में जयराम सरकार के कार्यकाल में भी प्रशासन की इस याचिका को फैसले तक पहुचानें में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
विवेकानन्द ट्रस्ट के बाद गुड़िया मामले ने उन्हें और आहत किया है। इस मामले में प्रदेश पुलिस से लेकर सीबीआई की जांच तक से शान्ता ने नाराज़गी व्यक्त करते हुए मुख्यमन्त्री को सुझाव दिया है कि वह इसकी नये सिरे से जांच करवाने के लिये एसआईटी का गठन करें। एसआईटी में किस स्तर के कौन लोग हों यह तक सुझाव दिया है। इस मामले में मुख्यमन्त्री ऐसा कर पाते हैं कानून इसकी ईजा़जत देता है या नही और प्रदेश उच्च न्यायालय ऐसा करने की अनुमति देता है या नहीं इसका पता आने वाले समय में ही लगेगा। क्योंकि गुडिया की मां इसमें इन्साफ मांगने के लिये सर्वोच्च न्यायालय गयी थी और सर्वोच्च न्यायालय ने उसे उच्च न्यायालय में जाने के निर्देश दिये थे। इस कारण से यह मामला अब उच्च न्यायालय में है। लेकिन शान्ता कुमार के पत्र से जयराम सरकार निश्चित रूप से कठघरे में आ खड़ी होती है क्योंकि उसे सत्ता मेें तीसरा वर्ष पूरा होने जा रहा है। इन तीन वर्षों में न तो गुडिया और न ही होशियार सिंह मामले में पीड़ित पक्षों को न्याय मिल पाया है। बल्कि आज प्रदेश में हर रोज़ एक बलात्कार होने का रिकार्ड खड़ा हो गया है। इस परिदृश्य में शान्ता का जयराम को पत्र लिखना निश्चित रूप से सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाता है।
लेकिन शान्ता के इस पा के साथ ही पार्टी के उन लोगों को भी बल मिल जाता है जो किसी न किसी कारण सरकार और संगठन से नारा़ज चल रहे हैं। ऐसे लोगों में सबसे पहले डा. राजीव बिन्दल और नरेन्द्र बरागटा के नाम आते हैं। बिन्दल को उन आरोपों पर पद छोड़ना पड़ा या उनसे छुड़वाया गया जिनके साथ उनका कोई सीधा संबंध नही था। फिर विजिलैन्स जांच में भी उनको क्लीन चिट मिल गया लेकिन सम्मान बहाल नहीं हुआ। नरेन्द्र बरागटा मुख्यमन्त्री और पार्टी प्रधान दोनों से यह शिकायत कर चुके हैं कि उनके चुनाव क्षेत्र में एक दूसरे नेता दखल दे रहे हैं। चर्चा है कि इस तरह की शिकायतें कई और विधायकों से भी आनी शुरू हो गयी हैं। कांगड़ा में रमेश धवाला और संगठन मन्त्री पवन राणा का विवाद अभी तक अपनी जगह कायम है। माना जा रहा है कि यह विवाद पवन राणा के प्रभाव को कम करने की रणनीति का परिणाम है। सरवीण चौधरी और इन्दु गोस्वामी मामले भी कांगड़ा की राजनीति को प्रभावित करेगें ही यह तय है। अब अनिल शर्मा ने भी मोर्चा खोल दिया है। पूर्व विधायक गोविन्द राम शर्मा के समर्थक भी अपनी नाराज़गी मुखर कर चुके हैं। प्रशासन किस तर्ज पर चल रहा है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरकार नगर निगम शिमला के आयुक्त का पद ही एक सप्ताह से नहीं भर पायी है। प्रशासन पर इससे बड़ी व्यवहारिक टिप्पणी और कोई नहीं हो सकती है। क्योंकि यह पता ही नहीं चल रहा है कि सरकार में आदेश किसका चल रहा है। इसको लेकर कई तरह की चर्चाएं चल निकली हैं क्योंकि एच ए एस से आई ए एस में आये अधिकारियों को नियुक्तियां देने में ही बहुत वक्त लगा दिया गया और अब आयुक्त का पद भरना ही कठिन हो गया है।
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं कौल सिंह ठाकुर, जीएस बाली, विप्लव ठाकुर और चन्द्र कुमार ने एक संयुक्त पत्रकार वार्ता में जयराम के खिलाफ एक साथ हमला बोलते हुए जलशक्ति तथा स्वास्थ्य विभाग में करोड़ो का घपला होने का आरोप लगाया है। कौल सिंह ठाकुर ने जलशक्ति मन्त्राी मेहन्द्र सिंह ठाकुर के खिलाफ सीधा आरोप लगाते हुए खुलासा किया है कि विभाग में 675 करोड़ बिना कोई टैण्डर प्रक्रिया अपनाते हुए खरीद लिये गये हैं। विभाग में की गयी भर्तीयों पर भी यह आरोप है कि अपने ही चुनाव क्षेत्र के लोगों को रखा गया है। यह भी आरोप है कि महेन्द्र सिंह ने 50 बीघे ज़मीन की खरीद भी की है। महेन्द्र सिंह के खिलाफ लगाये गये इन आरोपों में कितनी मान्यता है यह तो किसी जांच से ही पता चलेगा यदि कारवाई की जाती है तो।
अब तक जिस तरह के मामले सामने आये हैं उनमें महेन्द्र सिंह द्वारा अपने ही क्षेत्रा के लोगों को नौकरी पर रखने के लिये लिखे गये पत्रा रहे हैं। यह पत्रा वायरल भी हो चुके हैं और इन पर किसी तरह का कोई खण्डन भी नही आया है न ही सरकार ने कभी कोई जांच के आदेश दिये हैं। लेकिन अभी हुए विधानसभा के मानसून सत्रा में जिस तरह के सवाल जलशक्ति विभाग को लेकर पूछे गये हैं और उनको लेकर जो जबाव सदन में आये हैं उनसे स्वतः ही इस तरह के सन्देह के संकेत अभर जाते हैं। रेमश धवाला और सुखविन्द्र सुक्खु ने सवाल पूछा था कि प्रदेश में कितने पंप हाऊस का पंपिग तथा लघु मुरम्मत का काम ठेके पर दिया गया है इन कार्यों हेतु कितने कर्मचारियों को ठेकेदारों के माध्यम से रखा गया था। विभाग के अन्दर कितने पंप आपरेटर फिटरज़ और मल्टी पर्पज वर्करज शिमला क्लीनवेज कंपनी के माध्यम से रखे गये हैं। इनका पूरा ब्योरा मांगा गया था और सरकार ने जबाव दिया है कि सूचना एकत्रित की जा रहा है। फिर रेमश धवाला और राकेश सिंघा का प्रश्न था कि गत वर्ष से 31-8- 2020 कितने कर्मचारियों को जलशक्ति विभाग में आॅऊट सोर्स के माध्यम से रखा गया। किस कंपनी के माध्यम से और कितना-कितना वेतन दिया जाता है और इनको नियमित करने की कोई योजना है। इस सवाल का जवाब भी सूचना एकत्रित की जा रही है दिया गया। इसी तरह एक सवाल था कि 31 -7-2020 तक प्रदेश में जल जीवन मिशन के अन्तर्गत कितनी निविदायें स्वीकृत हुई। धवाला ने इसमें पूरा ब्योरा मांगा था लेकिन इसमें भी जवाब सूचना एकत्रित की जा रही है ही आया।
विभाग के खिलाफ बड़ा आरोप बिना टैण्डर के 675 करोड़ के पाईप खरीदने और अपने ही क्षेत्रा के लोगों को नौकरी देने के लगे हैं। इस आश्य के जो सवाल पूछे गये उनमें सूचना एकत्रित की जा रही है कहकर टालने का प्रयास किया गया है। सामान्यतः ऐसा प्रयास सदन में संबन्धित विषय पर विस्तृत बहस से बचने के लिये किया जाता है। क्योंकि बाद में किसी समय ऐसे सवालों की निश्चित सूचना सदन में रख दी जाती है और उस पर कोई बहस नही हो पाती है। अन्यथा हर प्रश्न के लिये इतना पर्याप्त समय रहता है कि विभाग आसानी से सूचना एकत्रित कर सकता है। इसी तरह ज़मीन खरीद के भी जो आरोप कौल सिंह ठाकुर ने लगाये हैं उन्हे भी पिछले दिनों सरवीण चैधरी पर मनकोटिया द्वारा लगाये गये आरोपों पर आयी सरवीण की ही प्रतिक्रियाओं से बल मिल जाता है। ऐसे में जयराम के लिये अपनी सरकार और अपने मन्त्राीयों का बचाव करना एक बड़ी चुनौती बन जायेगा।
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं कौल सिंह ठाकुर, जी एस बाली, चन्द्र कुमार और विपल्व ठाकुर ने पिछले दिनों धर्मशाला में एक संयुक्त पत्रकार वार्ता में जयराम सरकार के खिलाफ हमला बोला है। इसमें जलशक्ति विभाग और स्वास्थ्य पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाये हैं। सरकार के अब तक के कार्यकाल पर कांग्रेस का यह पहला बड़ा और स्टीक हमला है। अब तक कांगे्रस सरकार के खिलाफ रस्म अदायगी से आगे नही बढ़ पायी है। इस समय सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के साथ ही कृषि उपज विधेयक, श्रम कानूनो में संशोधन और अटल टनल से सोनिया गांधी की शिलान्यास पट्टिका का गायब किया जाना तथा जीएसटी के हिस्से के बदले में केन्द्र के ऋण लेने के सुझाव को प्रदेश सरकार द्वारा मान लेना ऐसे मुद्दे हैं जो प्रदेश के हर आदमी को सीधे प्रभावित करते हैं। कृषि उपज विधेयकों के खिलाफ किसान और आम आदमी किस कदर रोष में है इसका अन्दाजा दिल्ली में केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री हर्षवर्धन को जिस आक्रामक किसान विरोध का सामना करना पड़ा है उससे लग जाता है कि विपल्व ठाकुर ने राज्यसभा में जिस तरह से आक्रामकता दिखाई है वह अपने में एक मिसाल बन गयी है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस के बडे नेताओं को मुद्दों की जानकारी भी है और समझ भी। लेकिन जब कांग्रेस की यह आक्रामकता रस्म अदायगी से आगे नही बढ़ पाती है तब यह नेता अपना संगठन का और आम आदमी सबका एक साथ नुकसान कर लेते हैं। अभी कांग्रेस के इन वरिष्ठ नेताओं ने धर्मशाला में संयुक्त पत्रकार वार्ता में सरकार के खिलाफ कारगर हमला बोला है। लेकिन धर्मशाला में आयोजित इस पत्रकार वार्ता में सुधीर शर्मा और जिला अध्यक्ष अजय महाजन तक का शामिल न होना न चाहते हुए भी पार्टी के भीतर की गुटबन्दी को मुखर कर गया। जबकि इस पत्रकार वार्ता में संजय रत्न और केवल सिंह पठानिया आदि कांगड़ा के सभी बड़े नेताओं का शामिल होना बनता था। क्योंकि यह पत्रकार वार्ता उस पत्र के सार्वजनिक होने के बाद हो रही थी जो पत्र सोनिया गांधी को लिखा गया था और उसमें प्रदेश के दो बड़े नेताओं आनन्द शर्मा और कौल सिंह ठाकुर का शािमल होना सामने आ चुका है। बल्कि इस पत्र से पहले कौल सिंह ठाकुर के घर पर कुछ नेताओं का दोपहर के भोज पर इकट्ठे होना भी चर्चा का विषय बन चुका है। भले ही सोनिया गांधी को लिखे पत्र पर कौल सिंह तुरन्त प्रभाव से अपना स्पष्टीकरण दे चुके हैं लेकिन इसके बाद भी स्थिति कोई बड़ी नही बदली है। हालांकि चर्चा तो यहां तक है कि जिस कुलदीप राठौर को अध्यक्ष बनाने के लिये वीरभद्र सिंह और आनन्द शर्मा ने हाथ मिलाया था आज उसी वीरभद्र ने आनन्द शर्मा के रस्मी विरोध का पत्र भी सोनिया गांधी को भिजवाया है। कांग्रेस के कितने नेताओं को लेकर यह चर्चाएं उठती रही है कि वह भाजपा में शामिल हो सकते हैं यह प्रदेश के लोग जानते हैं। इस परिदृश्य में आज की बदली परिस्थितियों में कांग्रेस के नेताओं को सही में व्यवहारिक रूप से एकजुटता का परिचय देना होगा।
इस समय सरकार के खिलाफ मुद्दों की कमी नही है। केन्द्र के हर फैसले का प्रदेश पर असर पड़ रहा है। राज्य सरकार केन्द्र के फैसलों का विरोध नही कर सकती है क्योंकि दोनों जगह एक ही सरकार है। इसलिये जब केन्द्र ने कह दिया कि कर्ज ले लो तो उसे मानना पड़ा। जिन राष्ट्रीय उच्च मार्गों के तोहफे को विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनावों तक में भुनाया गया अब वह तोहफा हवाहवाई निकला तो उस पर भाजपा के पास चुप रहने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है। लोकसभा में प्रदेश कांग्रेस का कोई सदस्य नहीं है इसलिये कांग्रेस नेतृत्व को केन्द्र और राज्य दोेनों की नीतियों पर एक साथ हमला बोलने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं कौल सिंह ठाकुर, जीएस बाली, विप्लव ठाकुर और चन्द्र कुमार ने एक संयुक्त पत्रकार वार्ता में जयराम के खिलाफ एक साथ हमला बोलते हुए जलशक्ति तथा स्वास्थ्य विभाग में करोड़ो का घपला होने का आरोप लगाया है। कौल सिंह ठाकुर ने जलशक्ति मन्त्री मेहन्द्र सिंह ठाकुर के खिलाफ सीधा आरोप लगाते हुए खुलासा किया है कि विभाग में 675 करोड़ बिना कोई टैण्डर प्रक्रिया अपनाते हुए खरीद लिये गये हैं। विभाग में की गयी भर्तीयों पर भी यह आरोप है कि अपने ही चुनाव क्षेत्र के लोगों को रखा गया है। यह भी आरोप है कि महेन्द्र सिंह ने 50 बीघे ज़मीन की खरीद भी की है। महेन्द्र सिंह के खिलाफ लगाये गये इन आरोपों में कितनी मान्यता है यह तो किसी जांच से ही पता चलेगा यदि कारवाई की जाती है तो।
अब तक जिस तरह के मामले सामने आये हैं उनमें महेन्द्र सिंह द्वारा अपने ही क्षेत्र के लोगों को नौकरी पर रखने के लिये लिखे गये पत्र रहे हैं। यह पत्र वायरल भी हो चुके हैं और इन पर किसी तरह का कोई खण्डन भी नही आया है न ही सरकार ने कभी कोई जांच के आदेश दिये हैं। लेकिन अभी हुए विधानसभा के मानसून सत्र में जिस तरह के सवाल जलशक्ति विभाग को लेकर पूछे गये हैं और उनको लेकर जो जबाव सदन में आये हैं उनसे स्वतः ही इस तरह के सन्देह के संकेत अभर जाते हैं। रेमश धवाला और सुखविन्द्र सुक्खु ने सवाल पूछा था कि प्रदेश में कितने पंप हाऊस का पंपिग तथा लघु मुरम्मत का काम ठेके पर दिया गया है इन कार्यों हेतु कितने कर्मचारियों को ठेकेदारों के माध्यम से रखा गया था। विभाग के अन्दर कितने पंप आपरेटर फिटरज़ और मल्टी पर्पज वर्करज शिमला क्लीनवेज कंपनी के माध्यम से रखे गये हैं। इनका पूरा ब्योरा मांगा गया था और सरकार ने जबाव दिया है कि सूचना एकत्रित की जा रहा है। फिर रेमश धवाला और राकेश सिंघा का प्रश्न था कि गत वर्ष से 31-8- 2020 कितने कर्मचारियों को जलशक्ति विभाग में आऊट सोर्स के माध्यम से रखा गया। किस कंपनी के माध्यम से और कितना-कितना वेतन दिया जाता है और इनको नियमित करने की कोई योजना है। इस सवाल का जवाब भी सूचना एकत्रित की जा रही है दिया गया। इसी तरह एक सवाल था कि 31-7-2020 तक प्रदेश में जल जीवन मिशन के अन्तर्गत कितनी निविदायें स्वीकृत हुई। धवाला ने इसमें पूरा ब्योरा मांगा था लेकिन इसमें भी जवाब सूचना एकत्रित की जा रही है ही आया।
विभाग के खिलाफ बड़ा आरोप बिना टैण्डर के 675 करोड़ के पाईप खरीदने और अपने ही क्षेत्र के लोगों को नौकरी देने के लगे हैं। इस आश्य के जो सवाल पूछे गये उनमें सूचना एकत्रित की जा रही है कहकर टालने का प्रयास किया गया है। सामान्यतः ऐसा प्रयास सदन में संबन्धित विषय पर विस्तृत बहस से बचने के लिये किया जाता है। क्योंकि बाद में किसी समय ऐसे सवालों की निश्चित सूचना सदन में रख दी जाती है और उस पर कोई बहस नही हो पाती है। अन्यथा हर प्रश्न के लिये इतना पर्याप्त समय रहता है कि विभाग आसानी से सूचना एकत्रित कर सकता है। इसी तरह ज़मीन खरीद के भी जो आरोप कौल सिंह ठाकुर ने लगाये हैं उन्हे भी पिछले दिनों सरवीण चौधरी पर मनकोटिया द्वारा लगाये गये आरोपों पर आयी सरवीण की ही प्रतिक्रियाओं से बल मिल जाता है। ऐसे में जयराम के लिये अपनी सरकार और अपने मन्त्रीयों का बचाव करना एक बड़ी चुनौती बन जायेगा।