शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर के अपने चुनावक्षेत्र सिराज के जंजैहली में खुले एसडीएम कार्यालय की अधिसूचना को रद्द किये जाने के आग्रह की आयी याचिका को स्वीकारते हुए प्रदेश उच्च न्यायालय ने 4 जनवरी 2018 को दिये फैसले में सरकार की अधिसूचना को रद्द कर दिया है। अदालत के फैसले से जंजैहली में खुला यह कार्यालय तो बन्द हो गया है लेकिन इस कार्यालय के इस तरह बन्द होने से स्थानीय जनता में रोष फैल गया है। जनता फैसले के विरोध में सड़को पर उत्तर आयी है। विरोध ने एक जनान्दोलन का रूप ले लिया है और जनान्दोलन के संचालन के लोगों ने वाकायदा एक संघर्ष समिति तक का गठन कर लिया है। यह आन्दोलन इतना बढ़ गया है कि लोगों ने मुख्यमन्त्री का पुतला तक जला डाला। सामान्य जनजीवन इस कदर प्रभावित हुआ है कि इसके विरोध में भी एक याचिका उच्च न्यायालय में आ चुकी है जिस पर अदालत को प्रशासन तथा आन्दोलनकारियों को निर्देश देने पड़े हैं कि आन्दोलन से सामान्य जनजीवन प्रभावित नही होना चाहिये। यह मुख्यमन्त्री का अपना चुनावक्षेत्र है और यहीं की संघर्ष समिति से उनकी बातचीत विफल हो चुकी है। इससे आन्दोलन की गंभीरता का अनुमान लगाया जा सकता है। मुख्यमन्त्री इस मामलें के उलझने के लिये प्रशासन द्वारा उच्च न्यायालय में गलत शपथपत्र दायर करने को कारण करार दे चुके है।
उच्च न्यायालय के फैसले से यह अधिसूचना रद्द हुई और अब जयराम सरकार ने इस फैसले के बादे थुनाग में नये सिरे एसडीएम कार्यालय खोले जाने की अधिसूचना जारी कर दी है और यह भी व्यवस्था की है कि एसडीएम महीने में चार दिन जंजैहली बैठकर वहां के लोगों के काम निपटायेंगे। लेकिन सरकार के इस फैसले से भी आन्दोलन समाप्त नही हुआ है क्योंकि अब जंजैहली के लोग थुनाग में आॅफिस खुलने का विरोध कर रहें है पहले थुनाग के लोग विरोध कर रहे थे। इस पृष्ठभूमि को सामने रखते हुए यह जानना बहुत आवश्यक हो जाता है कि पूरा मामला है क्या? साथ ही यह भी समझना आवश्यक है कि मुख्यमन्त्री जो प्रशासन को इसके लिये दोष दे रहे हैं वह कितना सही है और यदि प्रशासन ने उच्च न्यायालय को गुमराह किया है तो फिर इस संवद्ध प्रशासन के खिलाफ अब तक मुख्यमन्त्री कोई कारवाई क्यों नही कर पाये है। क्या संवद्ध प्रशासन को बचाने के लिये कोई मुख्यमन्त्री कार्यालय में बैठकर ही भूमिका अदा कर रहा है।
स्मरणीय है कि जंजैहली में 27.6.2016 को मुख्य सचिव ने एक अधिसूचना जारी करके एसडीएम कार्यालय खोला था। 21.4.2016 को इसी क्षेत्र के छतरी में एक उप तहसील खोली गयी थी ।Annexure P-9 is the Notification dated 27.6.2016, issued by the Chief Secretary to the Government of Himachal Pradesh, whereby a new Sub Division (Civil), known as “Janjehli” is created by reorganizing certain areas of Tehsil Thunag and Tehsil Bali Chowki. Annexure P-10, dated 21.4.2016, is the Notification, creating Sub-Tehsil at Chhatri. In effect, this Court is called upon to adjudicate the action of the State in issuing Annexures P-9 and P-10. यह सब- तहसील और एसडीएम कार्यालय खोले जाने के विरोध में उच्च न्यायालय में एक याचिका CWP 1272 of 2016 दायर हो गयी। यह याचिका ग्राम पंचायत थुनाग द्वारा की गयी थी। इस याचिका में जिला परिषद्, कुछ स्थानीय पंचायतो और व्यापार मण्डल तक के प्रस्ताव थे जिनमे जंजैहली में यह कार्यालय तथा छतरी उप-तहलीस की अधिसूचना को रद्द किये जाने की गुहार लगाई गयी थी। CWP 1272 of 2016 पर उच्च न्यायालय को बताया गया था कि At this point in time, it be only observed that earlier attempt of the State, in taking the aforesaid action, was assailed before the Court, which petition being CWP No.1272 of 2016, titled as Gram Panchayat Thunag v. State of H.P. & others, was disposed of in the following terms, for at that point in time, the Court was assured that no notification stands issued, with regard to the opening of Office of Sub Divisional Officer (Civil) at Janjehli and that question of unilateral decision to open the office does not arise at all: Respondents No.1 to 3 have filed reply. It is apt to reproduce paras 3 & 6 of the reply herein:
“3. In reply to Para No. 3 of the civil writ petition it is submitted that while opening new Govt. Offices at any place all aspects are being kept in mind and no unilateral decision or proposals are being taken. However, it is submitted that no notification has been issued by the Govt. about the functioning of Sub Divisional Office (C) at Janjehli, so far.
4 & 5. …………………… 6. That the contents of Para No. 6 are not admitted. In this context it is submitted that no notification has been passed by the Himachal Pradesh Govt. so far regarding opening of new SDM cum SDO (C) office at Thunag or Janjehli. So the question of unilateral decision to open this office does not arise at all.” इसके बाद 27.6.2017 को जंजैहली में एसडीएम कार्यालय खोले जाने की पुनः अधिसूचना जारी कर दी गयी। मामला फिर अदालत के संज्ञान में आया। इस पर 26.10.2017 को जवाब दायर किया गया और फिर अदालत के सामने सारे तथ्य नही रखे गये। इस पर अदालत ने यह स्पष्ट कहा है कि
One finds that not only the assurance meted out to this Court that no decision on unilateral basis shall be taken by the State, stands breached, but apart from the fact that principles of natural justice stand not complied with, inasmuch as views of the local people were not even considered, to the contrary one finds the record to be conspicuously absent, explaining the public interest involved in taking such action.
13. What is that “public interest” remains shrouded with mystery. Record is not reflective of the same. It may be in the memory of the decision maker, but then, in law, one cannot trace it to the same, for it is the record which must speak and not the person. Resolutions of the Gram Panchayats have not been considered, muchless responded to. There is no application of mind and the decision, it appears has been taken in hot haste, only to achieve certain oblique ends, as alleged by the petitioner. Consciously, we are not dwelling on the political consideration being one of them. However, we are concerned that even otherwise the democratic Will and voice of the people stands ignored and not considered, apart from the fact that the decision is totally illogical and arbitrary.
14. Newly created Sub Division at Janjehli, with its headquarters at the same place, now comprises of 14 Patwar Circles of Tehsil Thunag. What is the justification for doing the same, and that too, when Janjehli is just at a distance of 14 kms from Thunag, remains undisclosed. Most of the population is towards Thunag. Geographically, Thunag is well connected. Even climatically, it is Thunag which is best suited, for during winters Janjehli, quite often, is covered by snow, making things difficult from the viewpoint of administration.
15. Public action has to be exercised in good faith. It cannot be based on extraneous factors and considerations. Arbitrariness cannot be allowed to prevail. It should not be dependent upon whims and caprice of an individual.
16. In view of the peculiar facts and circumstances, we are inclined to interfere in the present writ petition and, as such, quash Notification (Annexure P-9), dated 27.6.2017, regarding creation of Sub Division at Janjehli, District Mandi, Himachal Pradesh; and Notification (Annexure P-10) dated 21.4.2016, regarding creation of new Sub Tehsil at Chhatri, District Mandi, Himchal Pradesh, both issued by the Chief Secretary to the Government of Himachal Pradesh. Present writ petition stands allowed. Pending application(s), if any, stand disposed of.
( Sanjay Karol ),
Acting Chief Justice
(Sandeep Sharma ),
Judge
January 4, 2018(sd)
इस तरह सरकार की गलत ब्यानी अदालत के सामने आ गयी जिस पर अदालत ने 27.6.2017 और 21.4.2016 को जारी हुई दोनों अधिसूचनाएं रद्द कर दी।
अदालत के फैसलें से स्पष्ट हो जाता है कि प्रशासन ने नीयतन उच्च न्यायालय को गुमराह किया है। फैसले से सरकार के सामने भी यह सब कुछ आ चुका है। उच्च न्यायालय में गलत शपथपत्र दायर हुआ है यह स्पष्ट हो चुका है। कानून की थोड़ी सी भी जानकरी रखने वाले जानते है कि अदालत में गलत शपथपत्र दायर करना कितना बड़ा अपराध है। इस अपराध का संज्ञान लेकर संवद्ध लोगों को सज़ा देना मुख्यमन्त्री और उनके कार्यालय की जिम्मेदारी है। लेकिन अभी तक ऐसा हो नही पाया है जबकि इस मामले तो स्वयं मुख्यमन्त्री की साख दाव पर लगी हुई है। मुख्यमन्त्री ने इस प्रकरण पर अब यहां तक कह दिया है कि इसके लिये जो भी जिम्मेदारी होगा उसके खिलाफ कारवाई की जायेगी चाहे वह अपना हो या पराया। मुख्यमन्त्री ने इसमें किन अपनों की ओर संकेत किया है। यह तो स्पष्ट नही किया है लेकिन मुख्यमन्त्री के इस बयान के बाद पूर्व मुख्यमन्त्री और वरिष्ठ भाजपा नेता प्रेम कुमार धूमल का ब्यान आया है कि इस मामलें में उनकी कोई भूमिका नही है। उन्होने खुले शब्दों में कहा है कि सरकार चाहे तो उनकी भूमिका की सीआईडी से जांच करवा ले। धूमल के इस ब्यान से राजनीतिक हल्को में खासकर भाजपा के अन्दर बहुत हड़कंप की स्थिति पैदा हो गयी है। माना जा रहा है कि इस तरह से धूमल और जयराम का टकराव आने वाले समय में सरकार और पार्टी पर भारी पडे़गा।
शिमला/शैल। जयराम सरकार ने हमीरपुर स्थित प्रदेश के अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड में भाजपा के कांगड़ा संसदीय क्षेत्र के संगठन मन्त्री डा. संजीव ठाकुर को बतौर सदस्य नियुक्ति दी है। डा. ठाकुर आरएसएस के एक प्रशिक्षित और समर्पित कार्यकर्ता हैं। ग्वालियर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के एक सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं। संघ के प्रति अपने समर्पण के कारण ही डा. ठाकुर ने एक दिन भी सरकारी नौकरी नही की है और इसी कारण से पार्टी ने उन्हे कांगड़ा संसदीय क्षेत्र के संगठन मन्त्री का दायित्व दिया था। भाजपा में संगठन मन्त्री और अध्यक्ष के पदों की अहमियत एक बराबर रहती है। संगठन मन्त्री पद का कितना प्रभाव होता है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जयराम सरकार को सबसे पहले चारों संसदीय क्षेत्रों के संगठन मन्त्रीयों संजीव कटवाल, पुरूषोत्तम गुलेरिया, शिशु धर्मा और अब डा. संजीव ठाकुर को ताजपोशीयां देनी पड़ी है जबकि अन्य कार्यकर्ताओं के लिये तो यह कह दिया कि अभी ऐसी नियुक्तियों की कोई शीघ्रता नही है।
हर राजनीतिक पार्टी सत्ता में आने पर अपने कार्यकर्ताओं को विभिन्न अदारों में ताजपोशीयां देती हैं और इसमें किसी को कोई एतराज भी नहीं रहता है केवल अपनी पार्टी के अन्दर ही कार्यकर्ताओं में ऐसी ताजपोशी के लिये दौड़ रहती है। इसलिये जब संजीव कटवाल, पुरूषोत्तम गुलेरिया, शिशु धर्मा, धर्मानी और जमवाल तथा डा. पुंडीर की नियुक्ति हुई तो कहीं से भी नियम प्रक्रिया और राजनीतिक नैतिकता को नजरअन्दाज किये जाने के कोई आक्षेप नही उठे लेकिन जब डा. रचना गुप्ता की लोकसेवा आयेाग में नियुक्ति हुई तब पहली बार सरकार के फैसले पर उंगलियां उठीं और अब वैसी ही स्थिति डा. संजीव ठाकुर को इस बोर्ड का सदस्य नियुक्त किये जाने पर उठ खड़ी हुई है। डा. ठाकुर की नियुक्ति को लेकर सरकार की नीयत और नीति पर सवाल क्यों उठ रहे हैं इसके लिये बोर्ड के कार्य और इस नियुक्ति के साथ जो कुछ और घटा उस पर नजर डालना आवश्यक है। स्मरणीय है कि अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड के जिम्मे क्लास थ्री और क्लास फेार के कर्मचारियों की भर्ती करना है। इस चयन की एक लम्बी प्रक्रिया रहती है इसलिये अलग बोर्ड का गठन किया गया था। परीक्षा से लेकर साक्षात्कार तक काफी काम रहता था लेकिन अब केन्द्र सरकार ने इन पदों की भर्ती के लिये परीक्षा और साक्षात्कार दोनो को ही समाप्त कर दिया है। अब यह चयन प्रार्थी की शैक्षणिक योग्यता की मैरिट के आधार पर ही होगा और इस तरह ऐसे चयन में सिफारिश और पक्षपात की संभावनाओं की कोई गुंजाईश ही नहीं रह जाती है। यदि किसी की मैरिट को नजरअन्दाज किया जाता है तो वह इसकी जानकरी आरटीआई में ले सकता है। केन्द्र का यह फैसला प्रदेशों पर भी लागू है। वीरभद्र सरकार इस आश्य के प्रस्ताव तीन बार मन्त्रीमण्डल की बैठकों में लायी थी। परन्तु किन्ही कारणों से यह फैसला टलता रहा। लेकिन अब सरकार ने केन्द्र में इस फैसले पर अमल करते हुए अभी कुछ दिन पहले ही कुछ साक्षात्कार रद्द किये हैं। केन्द्र के इस फैसले पर पूरी तरह अमल होना ही है और इस अमल के बाद हमीरपुर बोर्ड के पास भी कोई बड़ा काम नही बचेगा। बल्कि जो काम शेष रहेगा वह केवल प्रशासनिक स्तर का ही होगा और उसे तो संबधित विभाग अपने स्तर पर ही अच्छे से निपटा लेंगे। इसलिये अब व्यवहारिक रूप से इतने भारी -भरकम बोर्ड की कोई आवश्कता ही नही रह जाती है। लेकिन इस सरकार ने इस व्यवहारिक पक्ष की ओर ध्यान दिये बिना ही इसमें सदस्य की नियुक्ति कर दी।
इसी के साथ इस नियुक्ति से पहले यहां पर वीरभद्र सरकार के समय लगाये गये चेयरमैन प्रो. झारटा को हटाया गया। प्रो. झारटा ने इस नियुक्ति के बाद हिमाचल विश्वविद्यालय से वांच्छित छुट्टी ले रखी थी और विश्वविद्यालय प्रबन्धन ने वाकायदा उन्हे छुट्टी दे रखी थी। लेकिन अब उसी प्रबन्धन ने विश्वविद्यालय में अध्यापकों की कमी होने का तर्क देकर उनकी छुट्टी रद्द करके उन्हे वापिस बुला लिया। लेकिन प्रबन्धन ने जिस बैठक में प्रो. झारटा की छुट्टी रद्द की उसी बैठक में उसी समय प्रो. नड्डा को वैसी ही छुटटी प्रदान कर दी क्योंकि प्रो. नड्डा केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जेपी नड्डा के सगे भाई हैं। प्रो. झारटा से पहले प्रो. एसपी बंसल भी विश्वविद्यालय से ऐसी ही छुटटी पर हैं लेकिन प्रबन्धन ने उनकी छुट्टी रद्द करके उन्हे तो वापिस नही बुलाया। इस तरह डा. संजीव ठाकुर को बोर्ड में नियुक्त करने के लिये पद का प्रबन्ध किया गया। लेकिन इसपर विश्वविद्यालय की अपनी कार्यप्रणाली पर तो ऐसे सवाल उठ खडे़ हुए हैं जो कि एक शैक्षणिक संस्थान के भविष्य के लिये किसी भी गणित से सही नही ठहराये जा सकते क्योंकि विश्वविद्यालय के प्रबन्धन में शीर्ष पर महामहिम राज्यपाल आते हैं और इस तरह के फैसलों की छाया सीधे उन पर पड़ती है।
इसी परिदृश्य में डा. संजीव ठाकुर की बोर्ड में हुई नियुक्ति सरकार के लिये अनचाहे ही एक ऐसा सवाल बन जाती है जिसका कोई भी जवाब नहीं हो सकता है। क्योंकि जिस संस्थान के पास आगे चलकर कोई विशेष काम रहने वाला ही नही है उसमें ऐसे नियुक्ति किये जाने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। क्योंकि बोर्ड के पास पर्याप्त काम रखने का अर्थ होगा कि यह सरकार भी वीरभद्र सरकार की तरह केन्द्र के फैसले पर अमल करने से पीछे हट जाये और इन पदों की भर्तियों में परीक्षा और साक्षात्कार की व्यवस्था को बनाये रखे।
शिमला/शैल। भाजपा ने विधानसभा चुनावों के दौरान जब‘‘हिमाचल मांगे हिसाब’’ जारी किया था तो उसमें एक आरोप यह भी उठाया गया था कि प्रदेश लोक सेवा आयोग में मीरा वालिया की नियुक्ति नियमों के विरूद्ध है। इस नियुक्ति को लेकर एक जनहित याचिका उच्च न्यायालय में उस समय आ चुकी थी। बल्कि इस याचिका में अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर भी सवाल उठाये गये हैं। याचिका में सवाल इसलिये उठाये गये हैं क्योंकि पंजाब लोक सेवा आयोग को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचे एक मामलें में 15 फरवरी 2013 को आये फैसले में स्पष्ट निर्देश दिये गये हैं कि प्रदेशों में लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के आधार क्या होने चाहिये। सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्देश इसलिये जारी किये हैं कि लोक सेवा आयोग राज्यों की शीर्ष प्रशासनिक सेवाओं के लिये पात्र उम्मीदवारों का चयन करता है। इसलिये यह बहुत आवश्यक हो जाता है कि इन संस्थानों में लगने वाले अध्यक्ष/सदस्यों की नियुक्ति के आधार पूरी तरह स्पष्ट और परिभाषित हों। सर्वोच्च न्यायालय का यह 103 पृष्ठों का फैसला न्यायमूर्ति जस्टिस ए.के.पटनायक और जस्टिस मदन वी लोकुर की खण्डपीठ का है।
इस फैसलें में परिभाषित मानकों और प्रक्रिया के आईने में प्रदेश के वर्तमान लोक सेवा आयोग का चयन और गठन एकदम इस फैसलें में तय प्रक्रिया से एकदम भिन्न है। क्योंकि यह फैसला 15 फरवरी 2013 को आ गया था और आज आयोग में अध्यक्ष से लेकर सदस्यों तक सबकी नियुक्तियां इस फैसलें के बाद हुई हैं। स्मरणीय है कि पंजाब लोक सेवा आयोग में लगाये गये अध्यक्ष की नियुक्ति को पंजाब- हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौतीे दी गयी थी तब इस नियुक्ति को उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया था। तब पंजाब सरकार इस फैसलें की अपील में सर्वोच्च न्यायालय गयी और इस पर 15 फरवरी 2013 को फैसला आ गया। भाजपा ने विधानसभा चुनावों के दौरान इसी फैसलें के आधार पर मीरा वालिया की नियुक्ति को नियमों के विरूद्ध करार दिया था। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि यदि मीरा वालिया की नियुक्ति नियमों के विरूद्ध थी तो फिर उसी गणित में डा. रचना गुप्ता की नियुक्ति सही कैसे हो सकती है। यही नहीं सरकार ने यह नियुक्ति करने के लिये पहले वाकायदा दो पद सदस्यों के सृजित किये और एक पर उसी दिन नियुक्ति भी कर दी। डा. रचना गुप्ता के पहले इसी आयोग में पत्राकार के. एस. तोमर अध्यक्ष रह चुके हैं। इसलिये पत्रकार तोमर की नियुक्ति हो या अब रचना गुप्ता की हो । इस पर व्यक्तिगत रूप से किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती और इसी गणित में मीरा वालिया की नियुक्ति से भी आपत्ति का कोई प्रश्न नही हो सकता। यह सभी लोग अपने में योग्य हैं लेकिन इन नियुक्तियों पर सवाल तो भाजपा के हिसाब मांगने से लगे हैं। ऐसे में अब अपने ही लगाये आरोप को नज़रअन्दाज करके की गयी इस नियुक्ति पर तो भाजपा को ही हिसाब देना है।
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला क्या रहा है इसकी जानकारी मुख्यमन्त्री को नही हो सकती यह स्वभाविक और संभव है। लेकिन इस फैसलें की जानकारी मुख्यमन्त्री कार्यालय और शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों को भी नही रही हो ऐसा नहीं माना जा सकता। बल्कि इस मामलें में तो प्रदेश उच्च न्यायालय में पहले से ही एक याचिका लंबित है और उसमें सरकार की ओर से जवाब भी दायर किया गया है। इसलिये यह स्वभाविक है कि जब दो पदों के सृजन का मामला मन्त्रीमण्डल के पास गया होगा तब उच्च न्यायालय में लंबित मामलें की जानकारी भी रिकार्ड पर लायी गयी होगी। ऐसे में यह एक और सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या सरकार ने तथ्यों को नज़र अन्दाज करके पदों के सृजन और फिर नियुक्ति को हरी झण्डी दी या अधिकारियों ने सही स्थिति ही सामने नही रखी। जो भी स्थिति रही हो लेकिन इस पूरे मामलें को जिस तरह से अंजाम दिया गया है उससे सरकार की अपनी ही स्थिति बुरी तरह हास्यस्पद बन गयी है।
शिमला/शैल। जयराम सरकार ने भी यह संकल्प दोहराया है कि वह भ्रष्टाचार कतई बर्दाशत नही करेगी लेकिन इसी के साथ यह भी कहा है कि पिछली सरकार द्वारा राजनीतिक कारणों से बनाये गये मामलों को वापिस भी लेगी। इन मामलों को लेकर पिछले दिनों सचिवालय मे मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सी.ओ.एस. की बैठक भी हो चुकी है और इसमें ऐसे मामलों को शीघ्र वापिस लेने पर बल भी दिया गया। लेकिन क्या विजिलैन्स में दर्ज मामलें और जो मामलें अदालत तक जा पंहुचेे हैं उन्हेे भी वापिस लिया जायेगा। इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी है क्योंकि पुलिस के पास दर्ज सामान्यतः कानून और व्यवस्था से जुड़े मामलों को राजनीतिक आधार करार देकर वापिस लिया जा सकता है लेकिन क्या भ्रष्टाचार को लेकर विजिलैन्स में दर्ज मामलों को भी वापिस लिया जा सकता है। इसको लेकर स्थिति उलझी हुई है।
इस समय विजिलैन्स के पास एचपीसीए और राजीव बिन्दल के मामलें हैं और यह मामलें अदालत में भी पंहुच चुके हैं। बिन्दल के मामलें में तोे गवाहीयां चल रही हैं। उसके बाद बहस और फिर फैसलों की नौबत आ जायेगी। इस मामलें में पिछली बार धूमल सरकार के वक्त में विधानसभा अध्यक्ष से अभियोजन की अनुमति इन्कार करवा कर मामलें को खत्म करने का प्रयास किया गया था जो आगे सफल नहीं हो पाया। लेकिन एच.पी.सी.ए. मामलें में दो अधिकारियों पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सनान और सचिव अजय शर्मा ने सरकार से यह मामलें वापिस लिये जाने का आग्रह किया हुआ है। सरकार इन आग्रहों पर विचार कर रही हैं लेकिन दोनों के मामलें में सरकार की ओर से अभियोजन की अनुमति जारी हो चुकी है। कानून के जानकारों के मुताबिक अभियोजन की अनुमति जारी हो जाने के बाद उसे वापिस लेने का कोई प्रावधान नही है। बल्कि ऐसे आग्रह पर सरकार द्वारा विचार किये जाने को भी मामलें को प्रभावित किये जाने का प्रयास करार दिया जाता है क्योंकि अदालत में मामला पंहुचने के बाद पी पी ही कानून की राय में उसका मास्टर होता है। इस परिदृश्य में सरकार इन मामलों को कैसे वापिस लेती है इस पर सबकी निगाहें लगी हुई है।
दूसरी ओर भाजपा का आरोप पत्र राजभवन में लंबित पड़ा है। इस आरोप पत्र पर भाजपा ने सीबीआई जांच की मांग कर रखी है। इस आरोप पत्र में भाजपा ने स्मार्ट सिटी धर्मशाला को लेकर एक गंभीर आरोप लगा रखा है। भाजपा का आरोप है कि वीरभद्र सरकार ने धर्मशाला को स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलाने के लिये केन्द्र सरकार के पास तोड़-मरोड़ कर बल्कि अलग से गढ़कर तथ्य पेश किये हैं। जिसके आधार पर स्मार्ट सिटी का दर्जा मिला है। यही नहीं नगर निगम धर्मशाला में जो अंडर ग्रांऊड डस्टबिन लगाये गये है। उसमें भी बड़े स्तर पर घपला हुआ है। भाजपा ने धर्मशाला स्मार्ट सिटी और नगर निगम प्रकरण को लेकर जो आरोप लगाये हैं उनकी सी.बी.आई. जांच की मांग कर रखी है। धर्मशाला के विधायक एवम् सिविल सप्लाई मन्त्री किश्न कूपर के लिये यह जांच करवाया जाना प्रतिष्ठा का प्रश्न है।
सूत्रों के मुताबिक अब राजभवन से आर.टी.आई. के तहत इस संद्धर्भ में हुई कारवाई की जानकारी मांगी गयी है। दूसरी ओर यह भी चर्चा चल उठी है कि धर्मशाला स्मार्ट सिटीे या नगर निगम को लेकर वीरभद्र शासन में जो भी फैसले लिये गये हैं उनमें बतौर अतिरिक्त मुख्य सचिव यू.डी. जिस अधिकारी की मुख्य भूमिका रही है वही अधिकारी इस सरकार में भी एक प्रमुख भूमिका में बैठा हुआ है। वैसे यह माना जा रहा है कि भाजपा का यह आरोप भी वैसा ही है जैसा कि लोक सेवा आयोग को लेकर रहा है लेकिन यह आरोप भी अब सरकार पर अपने ही आरोप पत्र के कारण भारी पड़ने जा रहा है।
शिमला/शैल। जयराम सरकार ने सत्ता संभालते हीे जिस तेजी के साथ प्रदेश लोक सेवा आयोग के लिये सदस्यों के दो पदों का सृजन करके एक को तुरन्त प्रभाव से भर भी दिया और दो निगमों में ताजपोशीयां भी कर दी तथा सैंकड़ो के हिसाब से प्रशासनिक अधिकारियों का फेरबदल भी कर दिया उससे लगने लगा था कि यह सरकार इसी रफ्तार से आगे भी अपने काम को अंजाम देती जायेगीं विभिन्न निगमों/बोर्डो में हर सरकार अपने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को राजनीतिक ताजपोशीयां देती है और इसमें किसी को कोई एत्तराज भी नहीं होता है बल्कि जितनी शीघ्रता से यह राजनीतिक ताजपोशीयां हो जाती है उसी अनुपात से कार्यकर्ता भी कामकाज मे जुट जाते है। लेकिन अब यह नियुक्तियां रूक गयी हैं बल्कि मुख्यमन्त्री को यह ब्यान देना पड़ा है कि यह नियुक्तयां करने कीे कोई शीघ्रता नहीं है। जब मुख्यमन्त्री ने यह कहा ठीक उसी दौरान यह सामने आ गया कि पालमपुर में इन्दु गोस्वामीे मुख्यमन्त्री के लिये रखे गयेे भोज के आयोजन में शामिल नही हुई। इस शामिल न होने को लेकर आयोजकों और इन्दु गोस्वामी की ओर से आये स्पष्टीकरणों से यह स्पष्ट हो गया कि पालमपुर भाजपा में सब ठीक नही चल रहा है। इन्दु गोस्वामी के प्रकरण के बाद हमीरपुर के भोरंज में एक आयोजन में सांसद अनुराग ठाकुर ‘‘गो बैक’’ केे नारे लग गये । यह नारे इस बात के लिये लगे कि इस क्षेत्र की एक पेयजल योजना लगबाल्टी का आधा पानी धर्मपुर क्षेत्र को दिया जा रहा है। धर्मपुर सिंचाई एवम् जनस्वास्थ्य मन्त्री महेन्द्र सिंह ठाकुर का क्षेत्र है और यह योजना भी आज की नहीं पुरानी है। अनुराग भी तीसरी बार सांसद बने हैं तो फिर यह विरोध प्रर्दशन आज ही क्यों हुआ?
इस समय पार्टी के विधायकों को लेकर यह चर्चा है कि यह लोगे मन्त्री न बनाये जाने को लेकर नाराज़ चल रहे हैं । इनमें नरेन्द्र बरागटा और रमेश धवाला के नाम प्रमुखता से बाहर भी आ चुकें है। यही नही जोे प्रमुख लोग चुनाव हार गये हैं उनकोे लेकर भी यह सवाल उठ रहें है कि उनको कैसे और कहां ऐडजैस्ट किया जायेगा। क्योंकि इस समय पार्टी के अन्दर धूमल, नड्डा, शान्ता और जयराम बराबर के ध्रुव बन कर चल रहे है। विधायकों का बहुमत धूमल के साथ था यह सर्वविदित हैं इसी बहुमत के कारण केवल धूमल के ही दो लोगों को ताजपोशीयां मिल पायी है। बल्कि अब जयराम नड्डा और शान्ता को को भी बराबर साधने में लग गये है। अभी दिल्ली में नड्डा के आवास पर केन्द्र की प्रतिनियुक्ति पर तैनात हिमाचल के अधिकारियों कोे मिलना इसी कड़ी में गिना जा रहा है। यही नहीे चम्बा दौरे के लिये नड्डा को चण्ड़ीगढ़ से लेना फिर शान्ता को पालमपुर से लेना और वापिस वहीं छोड़ना तथा बीच में अमृतसर तक जाना सब कुछ इसी साधने के आईने में देखा जा रहा है। इस राजनीतिक तालमेल का बिठाये रखने के गणित मेे यह निगमों/बोर्डों की नियुक्तियां अभी और कितनी देर तक लटकी रहती है। इस पर अब सवाल तक उठने लग पड़े है। क्योंकि आने वाले समय में जहां अगलेे वर्ष लोकसभा चुनावों का सामना करना है वहीं पर यह संभावना भी बढ़ती जा रही है कि मोदी ‘‘एक देश एक चुनाव’’ की योजना पर अमल करने में सफल हो जाते है तब तो लोकसभा के साथ ही प्रदेश विधानसभा के चुनाव का भी फिर से सामना करने की नौबत आ जायेगी।
इस परिदृश्य में आज जब प्रदेश सरकार की बागडोर जयराम ठाकुर के हाथ में है तो कल को चुनावों में परिणाम देने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की हो जाती हैं लेकिन यह परिणाम देेने के लिये कार्यकर्ता भी इस उम्मीद में बैठे हैं कि विधायकों/मन्त्रीयों के बाद उन्हें भी सरकार की ओर से निगमो/बोर्डों में नियुक्तियों के माध्यम सेे सम्मान मिल जाना चाहिये। पार्टी के शीर्षे पर बैठे बड़े नेताओं के आपसी बदलते समीकरणों के कारण यदि कार्यकर्ताओं की ताजपोशीयां लम्बे समय तक लंबित रहती है। तो इसका नुकसान सरकार और संगठन को उठाना पड़ेगा स्थिति उस मोड़ तक जा पहुंची है। इसलिये अब संगठन और सरकार इनकी गुथी को सुलझाती है इस पर सबकी निगाहें लगी है।