Thursday, 18 September 2025
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सरकार बनाने में निर्दलीयों की भूमिका रहेगी महत्वपूर्ण

शिमला/शैल। नौ नवम्बर को हुई चुनावी परीक्षा का परिणाम 18 दिसम्बर को आयेगा। यह परिणाम किसके पक्ष में कितना रहेगा और नौ का अंक किसके लिये कितना भाग्यशाली रहेगा यह तो परिणाम आने पर ही पता चलेगा, लेकिन मतदान के बाद जैसेे - जैसे समय आगे बढ़ता गया उसकेे साथ ही कांग्रेस और भाजपा के भीतर चुनाव के दौरान जो कुछ घटा वह सामने आता चला गया। राजनेताओं और राजनैतिक दलों के अतिरिक्त प्रदेश के शीर्ष प्रशासन के अन्दर जो कुछ घटा है वह भी काफी चैंकाने वाला रहा है। वैसे तो नौकरशाही का यह स्वभाविक गुण है कि वह मतदान के बाद आने वाली सरकार किसकी होगी इसके गणित में जुट जाती है। फिर इस गणित के साथ ही वह संभावित सरकार के साथ अपने समीकरण बनाने के जुगाड़ मे लग जाते हैं कोई दिन के उजाले में तो कोई रात के अन्धेरे में होने वाली सरकार के शीर्ष नेताओं के साथे मिलने- जुलनेे के प्रयासों में लग जाते है। शीर्ष नौकरशाही के इस आचरण का कोई ज्सादा बुरा भी नही मानता है क्योंकि असलीे सरकार तो इन्ही लोगों ने चलानी होती है। सत्ता में राजनीतिक चेहरों के बदलने से सरकार के काम काज़ में कोई ज्यादा फर्क नही पड़ता है क्योंकि अधिकांश मन्त्री और विधायक तथा उनके समर्थक रहे लोग तो कर्मचारियों के तबादलों में ही उलझ कर रह जाते हैं। ऐसे में सरकार चलाने में इसी नौकरशाही की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है और मुख्यमन्त्री अपने अतिविश्वस्तों को ही महत्वपूर्ण पदों पर बिठाते हैं। लेकिन जब यह अतिविश्वस्त ही रात के अन्धेरे में भावी मुख्यमन्त्री को मिलने चले जातें हैं तो फिर सारी चर्चाओं का केन्द्र ही बदल जाता है। चर्चा है कि वीरभद्र के विश्वस्त मुख्य सचिव वीसी फारखा एक दिन रात को टैक्सी लेकर प्रेम कुमार धूमल के यहां दस्तक दे आये। यह एक संयोग ही था कि जब फारखा धूमल के यहां पहुंचेे तो एक मण्डी जिले से ताल्लुक रखने वाले पूर्व मन्त्री पहले ही वहां डेरा डाले बैठे थे।
चर्चा है कि फारखा की इस दस्तक के बाद ही वीरभद्र के तीन मन्त्रीयों जीएस बालीे, सुधीर शर्मा और मुकेश अग्निहोत्री ने अपने शिमला स्थित सरकारी आवासों से अपना कुछ सामान भी निजि आवासों में शिफ्रट कर लिया है। यही नही इसी मुलाकात के बाद सरकार द्वारा अदानी के 280 करोड़ वापिस करने के पूर्व में लिये गये फैंसले को फिर से बदलने की चर्चा भी बाहर आ गयीे है। अदानी के संद्धर्भ में पहले फैसला लेने में भी इसी शीर्ष नौकरशाही की भूमिका प्रमुख थी और अब इस फैसलेे को बदलने में भी इसी की भूमिका प्रमुख रही है। शीर्ष नौकरशाही और कुछ वरिष्ठ मन्त्रियों का यह आचरण राजनीति की भाषा में सत्ता के बदलाव का संकेत माना जाता है। लेकिन क्या इस बार यह बदलाव सीधे और सरलता से हो रहा है। इसको लेकर राजनीतिक विश्लेष्कों की राय वरिष्ठ नौकरशाही और राजनेताओं के आचरण से भिन्न है। इस बदलाव का आंकलन करने के लिये पूरे चुनावी अभियान पर नजर दौड़ाने की आवयश्कता है। चुनाव अभियान के शुरू होने से पहले भाजपा का ग्राफ बड़ा ऊंचा था बल्कि उस समय कांग्रेस को लेकर तो यह धारणा बनती जा रही थी कि कांग्रेस तो दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पायेगी, लेकिन आज मतदान तक आते -आते कांग्रेस को न केवल फाईट में ही माना जा रहा है बल्कि उसकी सत्ता में वापसी तक के आंकलन बनाये जा रहे हैं।
कांग्रेस की चर्चा सत्ता में वापसी तक कैसे पंहुच गयी और अचानक भाजपा के खिलाफ क्या खड़ा हो गया यह राजनीतिक विश्लेष्कों के लिये एक रोचक विषय बन गया है। कांग्रेस प्रदेश के भीतर इस दौरान कुछ नया नहीं कर पायी है यह स्पष्ट है लेकिन कांग्रेस के भीतर सुक्खु और वीरभद्र के बीच जो तनाव चल रहा था उससे यह धारणा बनती जा रही थी कि कांग्रेस के अन्दर बडा विघटन हो जायेगा परन्तु यह विघटन हो नही पाया। हालांकि पंड़ित सुखराम के परिवार और स्व. डा. परमार के पौत्र को भाजपा में शामिल करके यह संदेश देने को प्रयास अवश्य किया गया परन्तु पंडित सुखराम को भ्रष्टाचार के मामले में हुई सज़ा का प्रसंग जन चर्चा में आने से यह दांव उल्टा पड़ गया। इसी के साथ भाजपा कार्यकर्ताओं को यह उम्मीद थी कि इस बार पार्टी संघ की विभिन्न ईकाईयों के सक्रिय कार्यकर्ताओं को टिकट देकर चुनाव में उतारेगी। उम्मीद की जा रही थी कि कम से कम एक दर्जन ऐसे नये चेहरों को जगह मिलेगी लेकिन ऐसा हो नही पाया उल्टे कांग्रेस से कुछ लोगों को टिकटे दे दिये गये। इससे भाजपा के बहुत सारे कार्यकर्ताओ में निराशा फैल गयी। यही निराशा आगे चलकर भीतरघात के रूप में सामने आयी जिसकी शिकायतें लगभग हर चुनावक्षेत्र से सामने आयी। इसी के साथ मंहगाई जीएसटी और नोटबंदी ने भी भूमिका निभाई। भाजपा ने अपने चुनाव अभियान में वीरभद्र के भ्रष्टाचार को केन्द्रिय मुद्दा बनाकर उछाला लेकिन जब इस भ्रष्टाचार के खिलाफ केन्द्रीय ऐजैन्सीयों द्वारा वीरभद्र के खिलाफ कोई ठोस कारवाई न कर पाने के सवाल पूछे जाने लगे तो यह दाव भी उल्टा पड़ गया। इन स्थितियों को संभालने के प्रयास में प्रेम कुमार धूमल को नेता घोषित किया गया, लेकिन यह फैंसला इतना देरी से लिया गया कि फैसलेे पर उन लोगों का भीरतघात चर्चा में आ गया जो स्वयं को नेता मानकर चल रहे थे। ऐसे में भाजपा के इन अपने ही फैंसलों के कारण कांग्रेस पूरे मुकाबलेे में अकेले वीरभद्र के दम पर आ खड़ी हुई। आज इस सारे परिदृश्य का निष्पक्ष आंकलन करने पर यह लग रहा है कि किसी भी दल को सरकार बनाने को बहुमत नही मिल पायेगा। निर्दलीय और माकपा के खाते में तीन से पांच सीटें जाने की संभावना है और यही लोग सरकार बनाने में मुख्य भूमिका निभायेंगे।

अगली विधानसभा में भी होंगे दागी विधायक

शिमला/शैल। दागी जन प्रतिनिधियों के आपराधिक मामलों को एक वर्ष के भीतर निपटाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने 12 विशेष अदालतें गठित किये जाने के आदेश किये हैं। केन्द्र सरकार ने इन आदेशों की अनुपालना में अदालत को सूचित किया है कि यह अदालतें गठित किये जाने की प्रक्रिया पूरी कर ली गयी है और इसके लिये वित्त मन्त्रालय ने वांच्छित धन का भी प्रावधान कर दिया है। राज्यों की विधानसभाओं से लेकर संसद तक में आपराधिक छवि के लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस समय लोकसभा में 184 और राज्यसभा में 44 सांसद ऐसे हैं जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं। ऐसे लोगों के मामलों को एक वर्ष के भीतर निपटाने के आदेश सर्वोच्च न्यायालय पहले भी पारित कर चुका है और यहां तक कहा है कि ऐसे मामलों को एक वर्ष के भीतर निपटाने के लिये इनकी सुनवाई दैनिक आधार पर की जाये। यदि किन्हीं कारणों से कोई मामला एक वर्ष के भीतर नहीं निपटाया जा सकता है तो इसके लिये लगने वाले और समय की स्वीकृति संबन्धित उच्च न्यायालय से लिखित में कारण बताकर लेनी होगी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के इन निर्देशों के बावजूद विधायकों/सांसदों के मामले लंबित चले आ रहे हैं और इसी स्थिति को सामने रखकर अब 12 विशेष अदालतें गठित की जा रही हैं।
अब इन विशेष अदालतों के गठन की चर्चा सामने आने से राजनीतिक हल्कों में काफी हलचल मच गयी है। क्योंकि 2012 के विधानसभा चुनावों में जो लोग जीत कर आये हैं उनमें से 14 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलें दर्ज थे। इनमें से पांच के खिलाफ गंभीर मामले थे। आपराधिक मामलों में कांग्रेस के दस, भाजपा के तीन और एक निर्दलीय विधायक लिप्त रहे हैं। इनमें से सात लोगों के खिलाफ तो अदालत में आरोप भी तय हो चुके हैं। विधायकों में विनय कुमार, रविन्द्र रवि, अनिरूद्ध के नाम प्रमुख रहे हैं। वीरभद्र के खिलाफ आय से अधिक संपति का मामला भी तभी से लंबित चला आ रहा है। भाजपा के राजीव बिन्दल का मामला तो दो बार इस दौरान जजों का तबदला हो जाने के कारण आगे नही बढ़ पाया अन्यथा इस मामले में तो फैसला भी आ चुका होता। 2012 के बाद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में आये शपथ पत्रों के मुताबिक सांसद वीरेन्द्र कश्यप और अनुराग ठाकुर के खिलाफ भी आपराधिक मामलें चल रहे हैं। इन विधायकों ने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी 2012 के अपने चुनाव शपथ पत्रों में दी हुई है। लेकिन इनके खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों का निपटारा इन बीते पांच वर्षो में नही हो पाया हैै। अब इनका कार्यकाल भी समाप्त होने जा रहा है।
लेकिन अब जो चुनाव हो रहे हैं जिनका परिणाम 18 दिसम्बर को आयेगा उनमें भी आपराधिक छवि के कितने लोग जीत कर आते हैं और उनके मामलों का आने वाला एक वर्ष में क्या परिणाम रहता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। इस बार 338 लोगों ने चुनाव लड़ा है और इनमें से 61 लोगों ने उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होने की जानकारी अपने शपथ पत्रों में दी हुई है। इनमें सबसे अधिक 23 लोग भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। 10 को कांग्रेस ने टिकट दिये हैं। 16 निर्दलीयों के खिलाफ भी मामलें हैं। 12 लोग अन्य दलों से संबधित हैं। इन आंकड़ो से यह स्पष्ट हो जाता है कि आने वाली विधानसभा में भी आपराधिक छवि के लोग चुनकर आनेे वाले हैं। अब जब इन लोगों के मामलों को निपटाने के लिये विशेष अदालतें गठित की जा रही हैं और एक वर्ष के भीतर इन मामलों का फैसला होना है तो ऐसे में यदि इनमें से कुछ को सज़ा हो जाती है तो निश्चित है कि एक वर्ष के बाद कुछ विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने की स्थिति आ जायेगी।

बीस वर्षो में केवल 13 वर्गमीटर बढ़ा प्रदेश का वनक्षेत्र उच्च न्यायालय में आये हल्फनामें में हुआ खुलासा

वन संरक्षण अधिनियम 1980 की खुली अवहेलना
2183 सड़कों का हुआ निर्माण
मुख्यसचिव को 2 सप्ताह में शपथ पत्र दायर
करने के निर्देश
शिमला/शैल। प्रदेश उच्च न्यायालय कोटखाई के हलाला गांव के अनन्त राम नेगी के नाम से आये एक पत्र को जनहित याचिका करार देते हुए अदालत ने इस पर अतिरिक्त महाधिवक्ता को सरकार का पक्ष जानने और वन विभाग के प्रमुख को जबाबी शपथ पत्र दायर करने के निर्देश दिये। मुख्य न्यायधीश के नाम आये इस पत्र में आरोप लगाये गये थे कि कुछ लोगों ने अवैध पेड़ कटान करकेे वन भूमि पर अपने घरों के लिये सड़क निर्माण कर लिया है। हिमरी पंचायत में गांव थरमाला से बेरटु वाया गुथान बनायी गयी सड़क को लेकर विशेष आरोप था। अनन्त राम नेगी के पत्र के साथ ही अदालत के पास एक और पत्र आया और उसमें एक केशव राम डोगरा पर आरोप था कि उसनेे अपने बागीचे के लियेे पेड़ो का अवैध कटान करकेे सड़क बना ली है। इस पत्र में यहां तक आरोप था कि जिला शिमला में देवदार के 4000 पेड़ों का अवैध कटान करके 400 सड़कों का निर्माण किया गया है।
इन आरोपों की गंभीरता का संज्ञान लेते हुए अदालत ने प्रदेश के वन प्रमुख को शपथपत्र के साथ जवाब दायर करनेे के निर्देश दिये। वन प्रमुख ने अपने जवाब में इन आरोपों का खण्डन करते हुए अदालत को बताया कि वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत वांच्छित अनुमति लेकर ही ऐसे निर्माण किये गये हैं। वन प्रमुख ने अपनेे शपथपत्र में यह भी खुलासा किया कि एक हैक्टेयर भूमि तक केे मामलों में वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत संबंधित डीएफओ सेे अनुमति ली गयी है । शपथपत्र में अदालत को यह भी बताया गया कि जनवरी 2016से 30.6.17 तक डीएफओ ठियोग ने 32 सड़को के निर्माण की अनुमति दी है और इसमें 16.1091 है वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। मुख्य न्यायधीश को आयेे पत्र में यह भी आरोप था कि प्रदेश का वन क्षेत्र कम होता जा रहा है। इस आरोप को नकारतेे हुए वन प्रमुख नेे अदालत को यह बताया कि 2015 के भारत सरकार के वन सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश के वनक्षेत्र में 13 वर्ग मीटर की बढ़ौत्तरी हुई है। While refuting the contention of the letter petitioner that forest cover in the State of Himachal Pradesh is decreasing, Principal Chief Conservator of Forests has stated in his affidavit that there is an increase of 13 sq metres of forest cover in the State of Himachal Pradesh as per Forest Survey of India report, 2015.  पत्र में हिमरी पंचायत के थरमाला-वेरटु वाया गुथान रोड़ को लेकर लगाये गये विशेष आरोप की जांच के निर्देश ठियोग और कोटखाई के रेंज अधिकारियों को दिये गये थे। इस जांच केे बाद अदालत को बताया गया कि संद्धर्भित 2 किलो मीटर सड़क का निर्माण पांच वर्ष पहले से ही हो चुका है और इस निर्माण को लेकर वन अधिनियम के तहत मामला भी दर्ज है। इसी के साथ अदालत को यह भी बताया गया कि थरमाला-वेरटु में 480 मीटर सड़क का निर्माण हुआ है। यह भी बताया गया कि केशव राम ने दस वर्ष पहले ही रास्ते को दो मीटर चैड़ा करकेे वाहन योग्य बना लिया था और इस पर 23.8.17 को मामला भी दर्ज कर लिया गया है। इस जांच में रेंज अधिकारी ने अनन्त राम नेगी का पक्ष जानने के लिये उनसे फोन पर संपर्क किया । इस संर्पक करने पर नेगी ने ऐसा कोई पत्र मुख्य न्यायधीश के नाम लिखने से इन्कार किया है।
भले ही अनन्त राम नेगी ने यह पत्र नही लिखा है लेकिन इस पत्र पर हुई कारवाई के माध्यम सेे जो जवाब अदालत में आया हैं उसमें इन आरोपों को सही पाया गया है। एक जगह पांच साल पहले सड़क बन गयी और दूसरी जगह दस साल पहले। लेकिन इन निर्माणों पर वन विभाग अब मामलें दर्ज कर रहा है। अदालत के सामने आयेे तथ्यों में यह भी आया है कि वनभूमि में अवैध तरीके से 2183 सड़कों का निर्माण हुआ है। As per own calculation of the Forest Department, approximately 2183 roads have been constructed in the State of Himachal Pradesh in violation of the Forest Conservation Act, which is a large number and can not be over looked. अदालत के पास वनभूमि पर हुए अतिक्रमणों और अवैध निर्माणों के मामले पहले से ही विचाराधीन चल रहे हैं। इसलिये इस याचिका को यहीं समाप्त करके अदालत ने सरकार से रिपोर्ट तलब की है कि वनभूमि पर बनी सड़कों कीे अनुमति के लियेे क्या कदम उठाये गये है इसकी विस्तृत जानकारी अदालत में रखी जाये।
इस जनहित याचिका में आरोप था कि वनक्षेत्र कम होता जा रहा है और इसके जवाब में वन प्रमुख ने 2015 की सर्वे रिपोर्टे के आधार पर दावा किया है कि 13 वर्ग मीटर वनक्षेत्र बढ़ा है। वनक्षेत्र की बढ़ौत्तरी के इस दावे पर यदि सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में दर्ज आंकड़ों पर नज़र दौड़ाई जाये तो यह वस्तुस्थिति सामने आती है। 1996-97 की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश का वनक्षेत्रा 36,986 वर्ग किलोमीटर था। उसके बाद 1997- 98 में यह बढ़कर 37,016 हो गया। इसके बाद 1998-99 में 37,033 हो गया और आज 2017 तक यह क्षेत्रा 37,033 ही चला आ रहा है। इसका अर्थ है कि पिछले बीस वर्षो में प्रदेश के वनक्षेत्र में कोई बढ़ौत्तरी नही हुई है। क्योंकि यह आंकड़े विधानसभा पटल पर रखे गये आर्थिक सर्वेक्षणों में दर्ज हैं। 13 वर्ग मीटर वनक्षेत्र बढ़ने का दावा वन प्रमुख उच्च न्यायालय को सौंपे शपथपत्र में कर रहें हैं। प्रदेश में प्रतिवर्ष वन महोत्सव के नाम पर पौधारोपण किया जाता है। पौधारोपण और वन संरक्षण पर हर साल करोड़ो रूपये खर्च किये जाते हैं। लेकिन इस खर्च के बाद जो परिणाम इस तरह से सामने है क्या उस पर सन्तोष व्यक्त किया जा सकता है? क्योंकि दोनो जगह रखे गये आंकड़े आपस में कोई मेल नही खाते हैं। बल्कि इन आंकड़ो को देखते हुए तो अदालत से ही गुहार लगानी पड़ेगी कि वह इस पर भी सरकार और विभाग से जवाब तलबे करे। क्योंकि इन कार्यक्रमों पर आम आदमी का पैसा खर्च हो रहा है।
सड़कों के हुए इस अवैध निर्माण का कड़ा संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय ने मुख्य सचिव को निर्देश दिये हैं कि वह दो सप्ताह के भीतर शपथपत्र दायर करके यह बताएं कि कौन-कौन सी सड़क वन संरक्षण अधिनियम 1980 की अवहेलना करके बनी है और इनकी अनुमति लेने के लिये क्या कदम उठाये गये हैं।

Consequently, in view of discussion made herein above, present petition is disposed of with a direction to the Chief Secretary to the Government of Himachal Pradesh to file his personal affidavit, detailing therein number and names of roads constructed in the State of Himachal Pradesh, in violation of Forest Conservation Act. Chief Secretary may also indicate in his affidavit that what steps have been taken by the State for getting necessary permission from the Ministry of Environment and Forests, Government of India, for regularization of roads constructed in violation of Forest Conservation Act. Needful be done within a period of two weeks from today.

 

अवैधताओं पर आॅंखें बन्द रखने का परिणाम है एनजीटी का फैंसला

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश में टीपीसी एक्ट 1977 में शान्ता कुमार की सरकार के दौरान लागू हो गया था। मार्च 1979 में अन्तरिम डवैल्पमैन्ट प्लान भी अधिसूचित हो गयी थी। उसके बाद 1980 में सरकार बदल गयी और स्व. ठाकुर राम लाल मुख्यमन्त्री बन गये जो अप्रैल 1988 तक रहे। उसके बाद वीरभद्र ने सत्ता संभाली लेकिन फरवरी 1990 में फिर शान्ता के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी और यह सरकार दिसम्बर 1992 तक रही। 1993 में फिर वीरभद्र मुख्यमन्त्री बन गये। इसके बाद से लेकर अब तक धूमल और वीरभद्र में सत्ता केन्द्रित रही। लेकिन अब तक 1979 में जारी हुई अन्तरिम डवैल्पमैन्ट के स्थान पर कोई स्थायी प्लान नही लायी जा सकी है। बल्कि इस अन्तरिम प्लान में ही 18 बार संशोधन हो चुके और अवैध निर्माणों को नियमित करने के लिये 9 बार रिटैन्शन पाॅलिसियां लायी गयी हैं
प्रदेश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में हर रोज़ कोई न कोई निर्माण कार्य चल ही रहा है। लेकिन इस निर्माण से शहरी क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं की आपूर्ति में अब लगातार कठिनाई आती जा रही है। प्रदेश के राजधानी नगर निगम शिमला में लोगों को 24 घन्टे नियमित रूप से पेयजल तक उपलब्ध नही हो पा रहा है। गारवेज हर शहर की प्रमुख समस्या बन चुकी है। आज विकास के नाम पर सड़क निर्माण से लेकर जलविद्युत परियोजनाओं और सीमेंट कारखानों के निमार्ण से हुए लाभ के साथ इससे पर्यावरण का सन्तुलन भी बुरी तरह बिगड़ गया है। आज पूरा प्रदेश प्राकृतिक आपदाओं के मुहाने पर आ खड़ा हुआ है। हर वर्ष लैण्ड स्लाईड फ्लैश फ्लडज़ बादल फटने और भूंकप आदि की घटनाओं में बढ़ौत्तरी हो रही है। इन घटनाओं से हर वर्ष सैंकड़ो करोड़ो के राजस्व का सरकारी और नीज़ि क्षेत्र में नुकसान हो रहा है। यह जान माल का नुकसान चिन्ता का कारण बनता जा रहा है। इस पर प्रदेश उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक चिन्ता व्यक्त कर चुके हैं। यह संकट कितना बड़ा और कितना भयावह हो सकता है इसको लेकर ही अब एनजीटी को इतना सख्त फैसला सुनाना पडा है।
एनजीटी के फैंसले से प्रदेश भर में हड़कंप की स्थिति पैदा हो गयी है। इस फैंसले से सबसे ज्यादा हड़कंप शिमला में मचा है। क्योंकि यहां पर ही सबसे जयादा अवैध निर्माण हुए हैं। इन्ही अवैध निर्माण को नियमित करने के लिये ही रिटैन्शन पाॅलिसियां लायी गयी हैं। लेकिन हर बार पाॅलिसी आने के बाद अवैध निर्माण रूके नही हैं बल्कि और बढ़े हैं क्योंकि यह धारणा बन गयी है कि वोट की राजनीति के चलते हर सत्तारूढ़ सरकार इन्हें नियमित करने के लिये पाॅलिसी लायेगी ही और ऐसा ही हुआ भी है। इसी के चलतेे आज नगर निगम शिमला में भाजपा और कांग्रेस एकजुट होकर एनजीटी के फैंसले का विरोध कर रहे हैं और इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कर रहें हैं। लेकिन इन लोगों की प्रतिक्रियाओं से यह भी स्पष्ट है कि इनमें से किसी ने भी इस पूरेे फैंसले को पढ़ा ही नही है और यदि पढ़ा है तो अपने राजनीतिक स्वार्थों के कारण इसे समझने का नैतिक साहस नही दिखा पा रहें हैं। कैग नेे भी शिमला के अवैध निर्माणों और उससे होने वाले नुकसान को लेकर परफारमैन्स आॅडिट किया है और उसके मुताबिक यह पाया है कि यदि हल्का सा भी भूकंप का झटका आता है तो उससे 83% भवनों को नुकसान पहुचेगा। एनजीटी ने इस आॅडिट रिपोर्ट का भी अपने फैसले में जिक्र किया है। यही नही एनजीटी ने इस समस्या के अध्ययन के लिये एक कमेटी का भी गठन किया था। इस कमेटी के पहले प्रधान सचिव आर.डी.धीमान अध्यक्ष थे। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट एनजीटी को सौंपी थी लेकिन इस रिपोर्ट पर कमेटी के सारेे सदस्यों की एक राय नही थी। इस पर आर.डी.धीमान की जगह तरूण कपूर की अध्यक्षता में नयी कमेटीे बनी और कमेटी ने फिर नयेे सिरे सेे रिपोर्ट सौंपी और एनजीटी ने इस कमेटी की सिफारिशों को अपनेे फैंसलेे में पूरा अधिमान दिया है। एनजीटी का फैंसला सरकार के इन अधिकारियों की रिपोर्ट के बाद आया है। जब एनजीटी ने निर्माणों  पर अन्तरिम रोक लगायी थी उसके बाद राज्य सरकार केन्द्र सरकार के कई विभागों तथा प्राईवेट व्यक्तियों की याचिकाएं अदालत के पास आयी है। इन याचिकायाओं पर सबका पक्ष सुना गया है और तब जाकर एनजीटी नेे यह फैंसला दिया है।
अब जब इस फैंसले को चुनौती देने की बात हो रही है तब यह चुनौती देने के साथ ही सरकार को आम आदमी के सामने यह भी स्पष्ट करना होगा कि जब हम विकास के नाम पर अवैधताओं को राक ही नही सकते तो फिर उसे अपना टीसीपीएक्ट ही निरःस्त कर देना चाहिये।

कर्मचारी नेता विनोद का निलम्बन के बाद गुजारा भत्ता भी बन्द

शिमला/शैल। प्रदेश कर्मचारी परिसंघ के अध्यक्ष एवं बागवानी विभाग में अधीक्षक के पद पर कार्यरत विनोद कुमार को आर्थिक और मानसिक तौर पर प्रताडित करने का आरोप लगाते हुए कर्मचारी नेताओं ने कहा है कि पिछले तीन महीनों से अनुचित तरीके से परिसंघ अध्यक्ष की सेवाओं को निलंबित किए जाने और उन  के वेतन और गुजारा भत्ता रोके जाने वाली कार्रवाई  प्रदेश सरकार और उसके भ्रष्ट अधिकारियों की प्रशासनिक भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है। परिसंघ नेताओं संजय मोगू, कैलाश चौहान, एस.एस. टैगोर ने जारी ब्यान में कहा है कि वर्तमान सरकार में भ्रष्टाचारियों का संरक्षण और भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज उठाने वालों को इस तरह से प्रताड़ित किया जाना वर्तमान सरकार की राजनीतिक और प्रशासनिक असफलता का खुला सबूत है। जहां वित्तीय अनियमितताओं में संलिप्त भ्रष्ट कृत्य करने वाले नियमानुसार दण्डित होने चाहिए वहां इसके विरूद्ध आवाज उठाने वाले अनुचित और गैर-कानूनी तरीके से अपमानित और प्रताड़ित किए जा रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्तमान कांग्रेस सरकार ने परिसंघ अध्यक्ष को तबादलों और निलंबन जैसी कार्रवाईयों से प्रताड़ित किया वहीं सरकार ने अब उनके वेतन और गुजारा भत्ता भी बन्द कर दिया है ।
परिसंघ नेताओं ने विभाग के अधिकारियों पर मै. चेल्सी फूडस, प्लाॅट न.46, इन्डस्ट्रीयल एरिया, संसारपुर कांगड़ा से 5.00 लाख की घूस लेने का आरोप लगाते हुए कहा है कि विभाग के अधिकारियों ने इस कम्पनी को नवम्बर 2015 में पहले 1,94,00,000/- रूपये की अनुदान राशि की जगह 1,99,00,000/- की राशि जारी की, उसमें से 5.00 लाख रू. बडे़ अधिकारियों ने वापिस अपनी जेबों मे डाले। दूसरा घोटाला इन अधिकारियों के कार्यकाल में 41.00 लाख रू. का हुआ जिसमें बागवानी मन्त्राी और प्रधान सचिव (उद्यान) ने अधिकारियों को बचाया तथा यह 41.00 लाख रू. का पूरा घोटाला एक छोटे कर्मचारी के सिर पर डाल दिया । यह दोनों मामलें परिसंघ अध्यक्ष ने बतौर अपनी सरकारी सेवा में शाखा अधीक्षक के समय उजागर करवायें हैं। इसके अतिरिक्त परिसंघ अध्यक्ष की सेवाओं को निलम्बन करने के बाद उन पर विभाग द्वारा तय आरोपों में वर्ष 2016 में एक कम्पनी को अनुदान राशि जारी करने की एवज़ में 2.00 करोड़ रू. कम्पनी से डील का जिक्र किया है जबकि एक कम्पनी को 14.00 करोड़ की सबसिडी जारी करने के एवज़ में 2.00 करोड़ की डील का मामला तत्कालिन निदेशक उद्यान विभाग वर्तमान निदेशक जो उस समय एम.आई.डी.एच के परियोजना निदेशक एवं कार्यकारी निदेशक  और प्रधान सचिव इन तीनों के बीच लेन-देन के बंटवारे का विवाद है, जिसकी सी.बी.आई. जांच होनी चाहिए। चूंकि यह मामला पूर्व में प्रदेश मीडिया की सुर्खियों में रहा है और परिसंघ इन अधिकारियों की सूची सहित इन सभी मामलों को आने वाली सरकार के समक्ष रखेगा। परिसंघ के नेताओं ने कहा है कि भ्रष्टाचार के इन मामलों पर पर्दा डालने के लिए और लोगों का ध्यान इन मुद्दों से हटाने के लिए वर्तमान भ्रष्ट तन्त्र ने परिसंघ अध्यक्ष के वेतन और गुजारा भत्तों को भी रोक दिया है, जिसके विरोध में आचार-संहिता उठने के बाद प्रदेश के कर्मचारी नेता बागवानी निदेशक और प्रधान सचिव (उद्यान) का घेराव किया जायेगा।
वैसे कानून के मुताबिक निलम्बन की सूरत में गुजारा भत्ता संबधित कर्मचारी/अधिकारी को दिया जाना उसका अधिकार है। उद्यान विभाग द्वारा कर्मचारी नेता विनोद कुमार का गुजारा भत्ता भी बन्द कर दिया जाना यह प्रमाणित करता है कि इस कर्मचारी द्वारा लगाये जा रहेआरोपों में कहीं कोई गंभीरता अवश्य है क्योंकि गुजारा भत्ता बन्द करना कानूनन अपराध है।

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