Thursday, 18 September 2025
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भाजपा पर भारी पड़ सकती है वीरभद्र के भ्रष्टाचार पर अतिकेन्द्रियता

शिमला/शैल। भाजपा की प्रदेश से लेकर केन्द्र तक की सारी लीडरशीप इस विधानसभा चुनाव में मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनके परिवार के खिलाफ सीबीआई और ईडी में चल रहे मामलों को एक प्रमुख मुद्दा बनाकर चल रही है। भाजपा के हर छोटे-बडे नेता की जनसभा और पत्रकार वार्ताएं वीरभद्र के भ्रष्टाचार से शुरू हो रही है। लेकिन इसी के साथ यह भी कहते हैं कि वीरभद्र के खिलाफ उनकी सरकार में नही बनाये गये बल्कि यूपीए सरकार के समय से चले आ रहे है। परन्तु वीरभद्र इन मामलों को जेटली, प्रेम कुमार धूमल और अनुराग ठाकुर का एक षडयंत्र करार देते रहे है। इस षडयंत्र के लिये वह तर्क देते हैं कि यूपीए शासनकाल में सीबीआई ने जो प्रारम्भिक जांच की थी उसमें उन्हे क्लीन चिट मिल चुकी है। लेकिन भाजपा सरकार ने इस क्लीन चिट को नजर अन्दाज करके उनके खिलाफ नये सिरे से जांच करवाई की। जिसके परिणामस्वरूप यह मामले खड़े हुए हैं। इस परिदृश्य में यदि वीरभद्र के मामले की पड़ताल की जाये तो यह सामने आता है कि सीबीआई ने उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला खड़ा किया है। सीबीआई इस मामले में अपनी जांच पूरी करके चालान ट्रायल कोर्ट में डाल चुकी है। इस मामले में दर्ज हुई एफआईआर को रद्द करने की गुहार वीरभद्र सिंह दिल्ली उच्च न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कर चुके हैं परन्तु दोनों अदालतें उनके आग्रह को अस्वीकार कर चुकी है। सीबीआई द्वारा बनाये गये आय से अधिक मामले को ईडी मनीलाड्रिंग मानकर जांच कर रही है। मनीलाॅड्रिंग प्रकरण में ईडी दो अैटचमैन्ट आदेश जारी करके परिवार की चल-अचल संपत्ति को अैटच कर चुकी है। इस मामले में पहले अटैचमैन्ट आदेश के बाद ईडी वीरभद्र के एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चैहान को गिरफ्तार कर चुकी है। आनन्द चौहान जून 2016 से हिरासत में है। आनन्द की गिरफ्तारी पहले जारी हुए अटैचमैन्ट आर्डर में ईडी ने कहा कि इस मामले में वक्कामुल्ला को लेकर अभी जांच पूरी नही हुई और इसे शीघ्र ही पूरी करके अनुपूरक चालान दायर किया जायेगा। यह वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर के प्रंसग को लेकर ईडी अभी तक अपनी शेष जांच पूरी नही कर सका है। इसी कारण से अनुपूरक चालान दायर नही हो पाया है और कोई गिरफ्तारी भी नही हो पायी है। लेकिन इसी के कारण आनन्द चौहान के चालान पर भी आगे कारवाई नही बढ़ पायी है। ईडी में दर्ज मामले को भी रद्द करवाने की गुहार वीरभद्र सिंह दिल्ली उच्च न्यायालय से लगा चुके हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय इस गुहार को अस्वीकार करके ईडी को हर तरह की कारवाई के लिये स्वतन्त्र कर चुका है। लेकिन ईडी की ओर से अगली कारवाई नही की जा रही है। ईडी के इस आचरण पर केन्द्रिय मन्त्री अरूण जेटली और रविशंकर प्रसाद तथा भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. संबित पात्रा तक कुछ नहीं कह पाये हैं।
यही नहीं वीरभद्र सिंह के प्रधान निजि सचिव और सरकार के मीडिया सलाहकार सुभाष आहलूवालिया के मामले में शिमला स्थित ईडी कार्यालय ने उनको नोटिस जारी करके तलब किया था। तब शिमला मे तैनात ईडी के सहायक निदेशक का वीरभद्र सरकार ने अचानक उनका डैपुटेशन कैन्सिल करने की कारवाई शुरू कर दी थी और अन्त में उस सहायक निदेशक को हिमाचल पुिलस में वापिस आना पड़ा था। उस समय भाजपा ने सहायक निदेशक को सरकार द्वारा वापिस बुलाये जाने के मामले पर भाजपा ने प्रदेश विधानसभा में जमकर हंगामा किया था। तीन दिन तक सदन की कारवाई को बाधित रखा था। आहलूवालिया के खिलाफ गंभीर आरोपों की शिकायत ईडी के पास पहुंची हुई थी। करीब सौ करोड़ की मनीलाॅड्रिग के आरोप उस शिकायत मे थे, लेकिन ईडी के किसी भी नोटिस पर आहलूवालिया के ऐजैन्सी में पहुंचने की खबर नही है। उस शिकायत पर ईडी में क्या कारवाई हुई इसकी आज तक किसी को जानकारी नही है। लेकिन इस मुद्दे पर सदन को तीन दिन तक बाधित रखने वाली प्रदेश भाजपा और ईडी भी आज तक एकदम चुप है। जो भाजपा वीरभद्र के मामले को हर रोज मुद्दा बनाकर उछाल रही है। वह आज आहलूवालिया के मामले पर चुप क्यों है। भाजपा की चुप्पी से ज्यादा तो ईडी की खामोशी सवालों में है। बल्कि अब तो यह चर्चा उठती जा रही है कि हिमाचल की एचपीसीए को लेकर जो आपराधिक मामले प्रदेश भाजपा नेताओं के खिलाफ आज अदालत तक पहुंच चुके है और इन नेताओं को भी ज़मानते लेनी पड़ी है उसमें एक मामलें में आहलूवालिया समेत वीरभद्र कार्यालय के दो अधिकारी भी चालान में खाना 12 में बतौर अभियुक्त नामत़द है। चर्चा है कि इनके खाना 12 में बतौर अभियुक्त नामज़द होने के कारण ही एचपीसीए के खिलाफ चल रहे मामले आगे नही बढे हैं और बदले में ईडी इनके मामलों में चुप होकर बैठी है।
स्मरणीय है कि सीबी आई के दो पूर्व निदेशकों के खिलाफ जांच चल रही है एक निदेशक के खिलाफ तो यह आरोप है कि उसे ई डी हिरासत में चल रहे मीट विक्रेता मोईन कुरैशी के माध्यम से कुछ लोगों के मामलों को दबाने के लिये करोड़ो की रिश्वत मिली है। मोईन कुरैशी के प्रदेश के किन लोगों के साथ क्या रिश्ते हैं इसे बहुत लोग जानते हैं। इसीलिये जब वीरभद्र सिंह और सुभाष आहलूवालिया के मामलें में ईडी तो चुप बैठी हुई है। भाजपा आहलूवालिया के मामले को नजरअन्दाज कर रही है और वीरभद्र के मामले को हर रोज मुद्दा बना रही है तो यह स्वभाविक सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हो रहा हैं वैसे तो भाजपा के लिये एक परेशानी वाला यह सवाल भी खड़ा है कि जहां वीरभद्र ज़मानत पर हैं वहीं पर धूमल, अनुराग, राजीव बिन्दल और वीरेन्द्र कश्यप आदि भाजपा के नेता भी ज़मानत पर हैं। इस परिदृश्य में भाजपा द्वारा वीरभद्र के मामले को रोज उठाना जबकि ईडी एकदम शान्त बैठी है इससे स्वभाविक रूप से यह संकेत उभरता है कि भाजपा केन्द्र की एजैन्सीयों के नाम से अपने राजनीतिक विरोधीयों को भ्रष्टाचारी प्रचारित करके राजनीतिक ब्लैकमेलिंग कर रही है। क्योंकि सीबीआई का चालान तो ट्रायल कोर्ट में पहुंच चुका है। और उसका फैसला आने में लम्बा समय लगेगा। फैसले से पहलेे ही इसमे फतवा देना शुद्ध राजनीति है। ईडीे की तो अभी जांच भी पूरी नही हुई है यह ईडी ने आनन्द चौहान की गिरफ्तारी में स्वयं स्वीकार किया है। बल्कि इसके बाद ही चर्चा उठी थी कि ईडी वीरभद्र के खिलाफ कोई ठोस मामला बना नही पा रही है। उल्टे ईडी की फज़ीहत हो रही है कि सहअभियुक्त तो जेल में है और मुख्यअभियुक्त बाहर है। ईडी वित्त मन्त्रालय के अधीन है। और इसीलिये वित्त मन्त्री अरूण जेटली एक कानूनविद होने के बावजूद इस संद्धर्भ में पूछे गये सवालों का केई स्पष्ट उत्तर नही दे पाये हैं।

अब गुड़िया मामले पर उठी राजनीति किसको प्रभावित करेगी

शिमला/शैल। बहुचर्चित और विवादित कोटखाई क्षेत्र के गुड़िया रेप और हत्या कांड में शिमला पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गये कथित अभियुक्तों के खिलाफ 90 दिन के भीतर ट्रायल कोर्ट में चालान दायर न हो पाने के कारण इन अभियुक्तों को अदालत से ज़मानत मिल चुकी है। स्मरणीय है कि इसी कांड में गिरफ्तार हुए एक अभियुक्त सूरज की पुलिस कस्टडी में हत्या हो जाने पर इसी गुड़िया मामले की जांच के लिये गठित हुई पूरी एसआईटी टीम भी हिरासत में चल रही है। इस टीम की ज़मानत याचिका को अब फिर कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया है। स्मरणीय है कि जब यह कांड घटा था और इस पर मीडिया में चर्चा उठी थी तब इस चर्चा का स्वतः संज्ञान लेते हुए प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस मामले को अपने पास ले लिया था। उच्च न्यायालय द्वारा संज्ञान लिये जाने के बाद इसकी जांच के लिये सरकार नेे एक एसआईअी आईजी ज़हूर जैदी की अध्यक्षता में गठित कर दी थी। लेकिन इस एसआईटी की कार्यप्रणाली को लेकर लोगों में रोष और अविश्वास फैल गया है। जनता ने गुड़िया को इन्साफ दिलाने के लिये एक गुड़िया न्याय मंच का गठन कर लिया। इस मंच केे बैनर तले जो जनाक्रोश फूटा उससे प्रदेश दहल उठा था। बल्कि देश के कई भागों में भी इसको लेकर धरना-प्रदर्शन हुए। लोगों ने ठियोग और कोटखाई पुलिस थानों के बाहर इतना उग्र प्रदर्शन किया कि पुलिस थाने को आग तक लगा दी गयी। इस आग में थाने के मालखाने से रिकार्ड लाकर लोगों ने उसे आग की भेंट कर दिया।
जनता मे फैले जनाक्रोश का संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय और सरकार ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। जब सीबीआई ने यह मामला अपने हाथ में लिया तब गुड़िया के रेप और हत्या को लेकर छः लोगों को एसआईटी गिरफ्रतार कर चुकी थीं लेकिन इस गिरफ्तारी को लेकर यह आरोप लगे थे कि इसमें असली अपराधीयों को छोड़कर बेगुनाहों को पकड़ा गया है। इसी आरोप पर जनाक्रोश भड़का था और इसी बीच पुलिस कस्टडी में एक अभियुक्त की हत्या हो गयी। सीबीआई के सामने दो मामले खड़े थे। एक था गुड़िया के रेप और हत्या का मामला, दूसरा था पुलिस कस्टडी में कथित अभियुक्त सूरज की हत्या। सूरज की हत्या को एसआईटी ने अभियुक्तों के बीच हुए झगड़े का परिणाम कहा था। लेकिन जनता ने इस हत्या को भी असली अपराधियों को बचाने का प्रयास करार दिया था। सीबीआई ने भी अन्ततः इस हत्या के लिये एसआईटी टीम को जिम्मेदार मानते हुए गिरफ्तार कर लिया।
प्रदेश उच्च न्यायालय हर पखवाड़ेे के बाद सीबीआई से स्टेटस रिपोर्ट तलब कर रहा है। हर बार स्टेटस रिपोर्ट दायर होने से पहले समाचार छपते रहे हैं कि सीबीआई को बड़ी सफलता हाथ लग गयी है, बड़ा खुलासा होने वाला है। लेकिन हर स्टेटस रिपोर्ट पर उच्च न्यायालय की नाराज़गी सामने आती रही है। गुडिया प्रकरण में जिन लोगों को पकड़ा गया था सीबीआई उनका नार्को टैस्ट भी करवा चुकी है और इस टैस्ट के बाद भी कोई ठोस प्रमाण पकडे़ गये अभियुक्तो के खिलाफ जब सीबीआई नहीं जुटा पायी तो 90 दिन के भीतर चालान दायर नही हो पाया और परिणामस्वरूप इनको ज़मानत मिल गयी।
अब सीबीआई को उच्च न्यायालय ने 30 नवम्बर तक एसआईटी के खिलाफ चालान दायर करने को कहा है और गुड़िया मामले में दिसम्बर में फिर रिपोर्ट दायर करने के निर्देश दिये है। सूत्रों के मुताबिक सीबीआई ने एसआईटी के सदस्यों के खिलाफ चालान दायर करने के लिये सरकार से अभियोजन की अनुमति मांग रखी है। कानून के जानकारों के मुताबिक कस्टोडियल डैथ में सीआरपीसी की धारा 197 के तहत सरकार की अनुमति की आवश्यकता नही होती है। कस्टोडियल डैथ में सीधे सवाल है कि या तो सूरज की अभियुक्तों के आपसी झगड़े में मौत हो गयी है, या फिर उसे नीयतन किसी को बचाने के लियेे मारा गया है। यदि उसकी मौत आपसी झगडे़ में हुई है तो उसके लिये पूरी एसआईटी को जिम्मेदार नही ठहराया जा सकता। यदि सूरज को नीयतन किसी को बचाने के लिये मारा गया है तो यह सच्चाई बाहर आने में समय नही लगना चाहिये। लेकिन अभी तक कुछ भी सामने नही आ पाया है, बल्कि अब यह सन्देह होता जा रहा है कि सीबीआई के हाथ अब तक कुछ भी ठोस नही लगा है। एसआईटी की गिरफ्तारी को भी 90 दिन होने वाले है। यदि 90 दिन के भीतर यह चालान दायर नही हो पाया तो इन लोगों को भी अदालत द्वारा ज़मानत देने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नही रह जायेगा।
गुडिया प्रकरण से एक समय प्रदेश की राजनीति में भुचाल खड़ा हो गया था। विपक्ष के हाथ एक बड़ा मुद्दा लग गया था। भाजपा का हर नेता इस पर वीरभद्र सरकार को घेर रहा था लेकिन अब सीबीआई की असफलता से भाजपा के लिये इस मुद्दे का उठाना संभव नही रह गया है। बल्कि पुलिस थाना को आग लगाने और रिकार्ड जलाने के लिये जिन लोगों के खिलाफ मामले दर्ज हुए हैं और अब तक कारवाई नही हुई है, क्या भाजपा सत्ता में आने पर इन लोगों के खिलाफ कारवाई करेगी या नही यह सवाल अब भाजपा से पूछा जाने लगा है।

विक्रमादित्य की संपत्ति 84 करोड़ कैसे हो गयी, भाजपा ने पूछा सवाल

शिमला/शैल। मुख्यन्त्री वीरभद्र सिंह के बेटे और प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण विधान क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। इस चुनाव के लिये उन्होने जो शपथ पत्र दायर किया है उसमें अपनी चल- अचल संपति 84 करोड़ दिखा रखी है। यह 84 करोड़ संपत्ति दिखाने पर भाजपा ने वीरभद्र सिंह और विक्रमादित्य से सवाल पूछा है कि इतनी संपत्ति पांच वर्षों में उन्होने कैसे अर्जित कर ली। फिर इसी शपथ पत्र में विक्रमादित्य ने वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर से 84 लाख का कर्ज लिया भी दिखाया है। इस कर्ज पर भी भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. पात्रा ने सवाल पूछा है कि जब विक्रमादित्य के पिता मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनकी माता पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह के पास करोड़ो रूपया कैश- इन- हैंड था तो उन्हे यह कर्ज लेने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी। डा. पात्रा ने विक्रमादित्य और वक्कामुल्ला की कंपनीयों केे व्यापारिक रिश्तों पर गंभीर सवाल उठाये हैं।
विक्रमादित्य की संपति पर यह सवाल इसलिये उठाये गये कि जब वीरभद्र सिंह ने 17.10.12 को विधानसभा चुनाव लडते हुए जो शपथ पत्र दायर किया था उसें विक्रमादित्य को अपनेे पर आश्रित दिखाया था। उस समय विक्रमादित्य के नाम करीब 1.5 करोड़ की संपति दिखायी गयी है। 2012 तक विक्रमादित्य कोई आयकर रिर्टन भी दायर नही करते थे। उसके बाद विक्रमादित्य ने अपनी कंपनी के नाम महरौली में जो फार्म हाऊस गड्डे परिवार से 1.20 करोड में खरीदा था उसके लिये उन्हें 90 लाख वीरभद्र सिंह ने दिये थे। 30 लाख उन्होने अपने साधनों से दिये थे। लेकिन सीबीआई और ईडी की जांच में यह खुलासा हुआ है कि यह तीस लाख भी दो कंपनीयों से 15- 15 लाख के चैकों के माध्यम से आया है। इन कंपनीयों की वैद्धता पर भी ईडी ने सवाल उठाये हैं और इसी कारण से फार्म हाऊस की अटैचमैन्ट केे आदेश हुए है।
यही नही ईडी के अटैचमैन्ट आदेश में हुए खुलासे के मुताबिक 19 नवम्बर 2011 से 25 नवम्बर के बीच वक्कामुल्ला की तीन कंपनीयों से विक्रमादित्य के स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया के खाते में 25.11.11 को दो करोड़ रूपये आते हैं और फिर 10.01.12. को विक्रमादित्य की कंपनीे मैप्पल डैस्टीनेशन से 50 लाख वक्कामुल्ला को दे दिये जाते है। 11.1.12 को इसी कंपनी से वक्कामुल्ला की कंपनी तारिणी सुगर को 1.50 करोड़ दे दिये जाते हैं। वीरभद्र से विक्रमादित्य को 90 लाख 2.8.11 को मिलते है और विक्रमादित्य 4.8.11 को 45-45 लाख सुनीता गड्डे और पिचेश्वर गड्डे के खातों में जमा करवाते हैं। लेकिन इसके बाद नवम्बर 2011 में पहले वक्कामुल्ला दो करोड़ विक्रमादित्य को देते हैं फिर 10 जनवरी को 2012 को विक्रमादित्य की कंपनी दो करोड़ वक्कामुल्ला और उसकी कंपनी को देते हैं। संभवतः इसी लेन देन के आधार पर विक्रमादित्य और वक्कामुल्ला के रिश्तों पर सवाल उठाये जा रहे हैं। इसी कारण से विक्रमादित्य की संपति के 84 करोड़ हो जाने पर सवाल उठ रहे है।

यदि भाजपा को मिला बहुमत तो नड्डा या जयराम में से होगा कोई मुख्यमंत्री

शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने इन चुनावों के लिये अभी तक यह घोषित नही किया है कि यदि उसे चुनावों में बहुमत हासिल होता है तो उसका मुख्यमन्त्री कौन होगा। भाजपा ने जो सूची अपने उम्मीदवारों की जारी की है उसमें 21 नये चेहरों को शामिल किया गया है। चार वर्तमान विधायकों बी. के. चौहान, अनिल धीमान, रिखी राम कौण्डल और गोबिन्द शर्मा को टिकट नही दिया गया है। कांग्रेस से आये अनिल शर्मा को टिकट दे दिया गया है। अनिल के साथ ही उनके पिता पर्व संचार मंत्री पंडित सुखराम और बेटेे आश्रय शर्मा को भी भाजपा में शामिल कर लिया गया है। पंडित सुखराम को दूरसंचार घोटालेे में सजा हो चुकी है और उन्हेे सर्वोच्च न्यायालय से बढ़ती आयु और बिमारी के आधार पर ज़मानत मिली हुई है यह सभी जानते हैं। भाजपा ने पूर्व सांसद सुरश चन्देल और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष खीमी राम को टिकट नही दिया है। 21 नये चेहरों को चुनावों मैदान में उतारा गया है पूर्व सांसद राजन सुशान्त को पार्टी में शामिल नही किया गया है। ऐसे में सुरेश चन्देल, राजन सुशान्त और पंडित सुखराम को लेकर भाजपा के तीन अलग- अलग स्टैण्ड भी सामने आ गये हैं। क्योंकि जिस अनिल शर्मा के खिलाफ भाजपा अपने ही आरोप पत्र में आरोप लगा चुकी है उसे टिकट देने के बाद सुरेश चन्देल को इन्कार करना और सुशान्त को पार्टी में शामिल तक नही करना भाजपा के नीतिगत आन्तरिक विरोधाभासों का एक प्रमाण बन जाता है जो भाजपा के अन्य दलों से भिन्न होने के दावों को एकदम नकार देता है। इस परिदृश्य में पार्टी के कुछ हल्कों में रोष और विद्रोह का उभरना स्वभाविक है। यह विद्रोह उभर चुका है इसे भाजपा कितना शांत कर पाती है इसका पता तो नामांकन वापिस लेने के अन्तिम दिन के बाद ही लग पायेगा। बहरहाल इस पर सबकी निगाहें लगी हैं।
पार्टी ने यह चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़नेे का दावा किया है। मुख्यमन्त्री के लियेे जो दो नाम पवन राणा और अजय जम्वाल एक अरसेे तक सोशल मीडिया की सुर्खियों में छाये रहे हैं उन्हे पार्टी ने चुनाव में उतारा ही नही है इसका अर्थ है कि चुने गये विधायकों में से हीे किसी को मुख्यमन्त्री पद से नवाज़ा जायेगा। लेकिन टिकट वितरण के दौरान जिस तरह का ध्रुवीकरण उभरा है उसमें केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा को लेकर भी यह संकेत उभरे हैं कि वह प्रदेश के अगलेे मुख्यमन्त्री हो सकते हैं। लेकिन अभी नड्डा का जो एक साक्षात्कार छपा है उसमें नड्डा ने यह कहा है कि मुख्यमन्त्री उस व्यक्ति को बनाया जायेगा जो कि अगले पन्द्रह वर्षों तक इस जिम्मेदारी को निभायेगा। नड्डा इस गणित में स्वयं पूरी तरह फिट बैठतेे हंै इसमें कोई दो राय नही है। लेकिन इस साक्षात्कार के साथ ही नड्डा का जय राम ठाकुर के चुनाव क्षेत्र से भी एक ब्यान आया है। जय राम के पक्ष में बोलते हुए नड्डा ने जंजैहली की जनता को स्पष्ट कहा है कि चुनाव जीतने के बाद उन्हेे एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जायेगी। जयराम धूमल मन्त्रीमण्डल में मन्त्री तो पहले रह ही चुकेे हैं। ऐसे में अब बड़ी जिम्मेदारी सौपने के संकेत से साफ सन्देश जाता है कि जय राम को अगला मुख्यमन्त्री बनाया जाने का फैसला भाजपा हाईकमान लगभग ले चुकी है। जय राम नड्डा के साक्षात्कार में छपे मानक पर भी पूरे उतरते हैं। फिर नड्डा स्वयं इस समय हाईकमान का एक हिस्सा हैं। चुनाव प्रचार में नड्डा को पार्टी पूरे संसाधनों से लैसे करने जा रही है। एक चैपर हर समय उनकेे लिये उपलब्ध रहेगा। इससे यह और स्पष्ट हो जायेगा कि भाजपा को बहुमत मिलनेे की सूरत में नड्डा और जयराम में से ही कोई अगला मुख्यमन्त्री होगा।
नड्डा का ब्यान और उनका सामने आया साक्षात्कार पार्टी के अन्य लोगों पर कितना और क्या असर डालता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन यह तय है कि उनका यह ब्यान एक चर्चा का मुद्दा जरूर बन जायेगा। वैसे भाजपा के लिये जो स्थितियां नगर निगम शिमला के चुनावों से पूर्व थी वह निगम चुनावों के परिणाम आने के बाद निश्चित रूप से बदली हैं। फिर अभी पंजाब के लोकसभा उपचुनाव में भाजपा करीब दो लाख मतो से हारी है। हार के इतने बडे़ अन्तर से स्पष्ट हो जाता है कि अब मोदी के दावों पर जनता में विश्वास की कमी पनपती जा रही है। फिर भाजपा अब सुखराम के पार्टी में शामिल होने से वीरभद्र के भ्रष्टाचार पर खुलकर हमला नही कर पायेगी। क्योंकि सुखराम ने जो अपनी सफाई में यह कहा है कि उनके यहां मिला पैसा कांग्रेस पार्टी का था और वीरभद्र ने सीताराम केसरी के माध्यम से उनके घर रखवाया यह अब गले नही उतरता है। क्योंकि सुखराम को तीनों मामलों में सजा हो चुकी है और इस सजा को दिल्ली उच्च न्यायालय कनर्फम कर चुका है। फिर सुखराम जो आज कह रहे हैं वह उन्होनेे इन मामलों की सुनवाई के दौरान किसी भी अदालत के सामने नही कहा है। यही नही जब विकास कांग्रेस भंग होनेे के बाद वह कांगे्रस में शामिल हुए थे तो जिस कांग्रेस नेे उनके खिलाफ इतना बड़ा षडयंत्र रचा उसमें वह किस नैतिकता केे आधार पर शामिल हुए थे। आज इतने अरसे बाद उन्हे यह क्यों याद आया। सुखराम के इस तर्क से तो जो आरोप वह वीरभद्र पर ब्लैक मेलिंग का लगा रहे हैं वह स्वयं उसी में घिर जाते हैं। क्योंकि इतना समय चुप रह कर क्या वह सत्ता का लाभ नही ले रहे थे।

सुभाष आहलूवालिया के खिलाफ चुनाव आयोग में पहुंची शिकायत जनारथा और राकेश ढिंड़ोरा ने दिये त्याग पत्र

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के सचिवालय में कार्यरत ओ एस डी त्रिलोक जनारथा और राकेश ढिंड़ोरा ने अपने-अपने पदों से त्यागपत्र दे दिया है। क्योंकि त्रिलोक जनारथा मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और राकेश ढिंड़ोरा मुख्यमन्त्री के बेटे विक्रमादित्य सिंह के अधिकारिक चुनाव ऐजैन्ट बन गये हैं। चुनाव ऐजैन्ट बनने केे लियेे रिटर्निंग अफसर के पास चुनाव प्रत्याशी द्वारा एक फार्म भरकर अपने चुनाव ऐजैन्ट की जानकारी देनी होती है और इस फार्म पर ऐजैन्ट को भी हस्ताक्षर करने होतेे हैं। इसलिये जब इन अधिकारियों ने चुनाव ऐजैन्ट होना स्वीकार लिया तो फिर यह सरकार में बतौर ओ एस डी काम नही कर सकते थे। कानून की इस बाध्यता के चलते विपक्ष के शोर मचाने-शिकायत करने से पहले ही पद त्याग दिये।
स्मरणीय है कि त्रिलोक जनारथा पूर्व में वीरभद्र सिंह के प्रधान निजि सचिव भी रह चुके हैं। रोहडू से ताल्लुक रखने वाले जनारथा वीरभद्र के विश्वस्तों में गिने जाते हैं। इसलिये वीरभद्र ने इन्हें सेवानिवृति के बाद भी अपने साथ रखा हुआ है। राकेश ढिंड़ोरा एच ए एस इसी वर्ष सेवा निवृत हुए थे। वह मुख्यमन्त्री सचिवालय में वीरभद्र के चुनाव क्षेत्रा शिमला ग्रामीण के सारे कार्य देख रहे थे और इस नातेे पूरे चुनाव क्षेत्र की उन्हे जानकारी हो गयी थी। फिर ढिंड़ोरा नालागढ़ के एक प्रतिष्ठत स्वतन्त्रता सैनानी और राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखतेे हैं। बल्कि इस बार वह नालागढ़ से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ना चाह रहे थे और इसके लिये उन्होने पार्टी से आवेदन भी कर रखा था। लेकिन अब जब वीरभद्र और विक्रमादित्य दोनों ने ही चुनाव लड़ने का फैसला लिया तब शिमला ग्रामीण में चुनाव ऐजैन्ट की जिम्मेदारी संभालने के लिये उनसे उपयुक्त और कोई नही था। विक्रमादित्य के लिये यह जिम्मेदारी निभाने के लिये ढिंडोरा ने स्वयं चुनाव लड़ने का फैसला छोड़ दिया।
स्मरणीय है कि मुख्यमन्त्री के सचिवालय पर विपक्ष हर समय यह आरोप लगाता रहा है कि यह कार्यालय सेवानिवृत अधिकारियों की शरण स्थली बना हुआ है। संयोगवश मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया , प्रधान सचिव टीजी नेगी, ओ एस डी राकेश शर्मा सभी सेवानिवृत अधिकारी हैं। इनके अतिरिक्त अमित पाल सिंह, भी मुख्यमन्त्री के ओ एस डी हैं लेकिन इनमें से किसी ने भी अपने पदों से त्यागपत्र नही दिया है। इस चुनाव में मुख्यमन्त्री का सचिवालय विपक्ष के विशेष निशाने पर रहने वाला है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि मुख्यमन्त्री कार्यालय की कार्यप्रणाली के कारण भी बहुत लोगों में रोश पैदा हुआ है। भाजपा के ‘‘हिमाचल मांगे हिसाब’’ में मुख्य सचिव से लेकर प्रधान निजि सचिव और सुरक्षा अधिकारी तक विशेष निशाने पर रहे है। ऐसे में वीरभद्र के यह विश्वस्त किस तरह की रणनीति अपनाकर विपक्ष को चुनाव में मात देते हैं इस पर सबकी निगाहें लगी हैं। क्योकि मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव का कार्य देख रहेे सुभाष आहलूवालिया की नियुक्ति अभी भी सरकार के मीडिया सलाहकार के रूप में चल रही है। लेकिन आहलूवालिया सरकार के मीडिया सलाहकार का काम देखने की बजाये मुख्यमन्त्री के निजि सचिव का कार्य कर रहे है।
स्मरणीय है कि आहलूवालिया 2011 में सेवानिवृत हुए थे और 2012 में कांग्रेस की सरकार आते ही मीडिया सलाहकार के रूप में पुनः नियुक्ति मिल गयी थी। इस तरह मुख्यमन्त्री के विश्वस्त होने के नाते बतौर मीडिया सलाहकार उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठने स्वभाविक है । इसी आधार पर चुनाव आयोग के आदेश से लोक संपर्क विभाग के निदेशक आर एस नेगी को हटना पड़ा है। अब भाजपा ने आहलूवालिया की शिकायत चुनाव आयोग को भेज दी है। माना जा रहा कि आहलूवालिया को भी उनके पद से त्यागपत्र देना ही पडे़गा।

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