Thursday, 18 September 2025
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भाजपा में शामिल होने से मिलेगी भ्रष्टाचार से मुक्ति सुखराम परिवार के शामिल होेने से उभरा संदेश

खुलासा


तीनों मामलों में मिल चुकी है सजा.


एच टी एल में है 5 साल की सश्रम कैद और 4 लाख का जुर्माना.


बढ़ती उम्र और बीमारी के नाम पर मिली है ज़मानत.

शिमला/शैल। पूर्व केन्द्रिय संचार मन्त्री पंडित सुखराम वीरभद्र मन्त्रीमण्डल में मन्त्री उनके बेटे अनिल शर्मा और प्रदेश कांग्रेस के सचिव उनके पौत्र आश्रय शर्मा ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया है। कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने का जो तर्क अनिल शर्मा ने दिया है उसके मुताबिक पिछले दिनों जब मण्डी में राहुल गांधी रैली के लिये आये थे उस समय सुखराम की उपेक्षा की गयी उन्हे रैली के लिये आमन्त्रित नहीं किया गया और यहां तक कहा गया कि यदि वह आये तो दूसरे लोग रैली छोड़ कर चले जायेंगे। इस उपेक्षा से आहत होकर परिवार पार्टी छोड़ रहा है। अनिल का यह आरोप कितना सही है यह तो वही जानते हैं और उनके अतिरिक्त इसकी जानकारी पार्टी अध्यक्ष सुक्खु तथा मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह को होगी। लेकिन प्रदेश और मण्डी की जनता के सामने अनिल के बेटे आश्रय शर्मा का वह पत्रकार सम्मेलन अवश्य है जो उन्होने इस रैली से कुछ ही दिन पहले आयोजित किया था। इस सम्मेलन में यह दावा किया गया था कि पार्टी हाईकमान ने उन्हे सिराज से चुनाव लड़ने का सिगनल दे दिया है और वह भाजपा के जयराम ठाकुर के विरूद्ध चुनाव लड़ेंगे और उनके दादा सुखराम इस चुनाव की कमान संभालेंगें। यदि आश्रय का पत्रकार सम्मेलन में किया गया यह दावा सही था तो फिर अब पार्टी छोड़ने का तर्क सही नही हो सकता क्योंकि इस दावे का पार्टी की ओर से कोई खण्डन नहीं किया गया था। यदि यह दावा गलत था तो इससे बड़ी अनुशासनहीनता और पार्टी को अपने खिलाफ कारवाई के लिये उकसाने के अतिरिक्त और कुछ नही हो सकता। इसलिये यही माना जायेगा कि पार्टी छोड़ने के लिये बहाने तलाश किये जा रहे थे। जबकि अनिल शर्मा भाजपा में जाने की चर्चा मीडिया में करीब छः माह से चल रही थी। 

आज सुखराम का पूरा परिवार भाजपा में शामिल हो गया है। स्मरणीय है कि जब पंडित सुखराम को दूर संचार घोटाले में गिरफ्तार किया गया था उस दौरान प्रदेश विधानसभा के सदन के अन्दर जे पी नड्डा और किशन कपूर आदि भाजपा विधायकों ने इस स्कैम का नाट्यरूपान्तरण तक स्टेज कर दिया था गले में नोटों के हार डालकर सदन के अन्दर आ गये थे। सुखराम के दूर संचार घोटाले को भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार का एक बडा मुद्दा बनाया था। सुखराम के खिलाफ सीबीआई ने तीन मामले दर्ज किये थे। हरियाणा की एक कंपनी एचटीएल को 30 करोड़ का ठेका देने के एवज में तीन लाख की रिश्वत लेने का आरोप लगा था। इस मामले में सुखराम के साथ इस कंपनी के चेयरमैन देवेन्द्र चौधरी भी सह अभियुक्त बने थे। चौधरी की मामले की जांच के दौरान ही मौत हो चुकी है। इस मामले में अदालत से सुखराम को पांच साल की सजा और चार लाख के जुर्माने की सजा हो चुकी है। दूसरा मामला हैदराबाद के रामा राव की कंपनी ।Advance Radio Masts को 1.66 करोड़ का सप्लाई आर्डर देने का है। इसमें सुखराम के साथ कंपनी के मालिक रामा राव और दूर संचार विभाग की निदेशक रूनू घोष भी सह अभियुक्त हैं। इस मामले में भी सजा हो चुकी है। तीसरा मामला घर में हुई छापमारी के दौरान मिली 4.25 करोड़ की नकदी को लेकर आय से अधिक संपत्ति का बना। सीबीआई ने 1993 में यह मामले दर्ज किये थे और 1998 में इनमे चार्जशीट फाईल हुई थी। नवम्बर 2011 में ट्रायल कोर्ट से फैसला आया था। जब यह फैसला आया था उस समय नितिन गडकरी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। 19.11.2011 को इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए गडकरी ने कहा था "The way  in which the court has taken the time to punish the guilty is important. The judicial system needs changes otherwise people will loose faith " इसी मामले में सुखराम ने अदालत से यह कहा था कि "As such it is not a case where govt. has lost any money. The CBI allegation was that he took bribe but no financial loss has been caused to the govt. exchequer." कर चुका है। दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुखराम सर्वोच्च न्यायालय गये थे और यह गुहार लगायी थी कि बढ़ती उम्र के चलते उन्हें जेल न भेजा जाये। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें पहले निचली अदालत में आत्मसमर्पण के लिये कहा था। इस पर सुखराम ऐंबुलैन्स में अदालत पहुंचे थे और कोमा में चले जाने तक की स्थिति अदालत में रखी थी। इस समय बढ़ती उम्र और बीमारी के कारण जमानत पर है। यह मामले अब अन्तिम फैसले के कगार पर पहुंचे हुए हैं और माना जा रहा है कि इन मामलों का भी परिवार पर दवाब चल रहा है। 
सुखराम के अतिरिक्त अनिल शर्मा के खिलाफ भी भाजपा ने अपने आरोप पत्र में मण्डी के राजमहल प्रकरण में गंभीर आरोप लगाया हुआ है। यह आरोप पत्र भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती और नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल के हस्ताक्षरों से राज्यपाल को सौंपा गया है। जिसमें यह आरोप है कि ‘‘जिला मण्डी कीे राजमहल जमीन बेनामी सौदे में विधायक/मन्त्री के बैंक खाते से लाखों रूपये श्री संजय कुमार के बैंक खातें में ट्रांसफर हुए। यूं बेनामी सौदा श्री खूब राम के नाम हुआ जिसका सूत्रधार संजय था।’’ आज इन विधानसभा चुनावों के लिये भाजपा जो ‘‘हिमाचल मांगे हिसाब’’ में भ्रष्टाचार के मामलों पर सरकार से हिसाब मांग रही है। क्या उसे आज प्रदेश की जनता के सामने सुखराम और अनिल शर्मा को लेकर अपना आचरण स्पष्ट करना होगा। क्योंकि इससे यह संदेश जा रहा है कि यदि आप भाजपा के सदस्य हैं तो आपका सारा भ्रष्टाचार जन सेवा है। यदि भाजपा से बाहर हैं और उसके विरोध हैं तो यही भ्रष्टाचार का आपका सबसे बड़ा अपराध होगा।

भाजपा में शामिल होने से मिलेगी भ्रष्टाचार से मुक्ति सुखराम परिवार के शामिल होेने से उभरा संदेश

शिमला/शैल। पूर्व केन्द्रिय संचार मन्त्री पंडित सुखराम वीरभद्र मन्त्रीमण्डल में मन्त्री उनके बेटे अनिल शर्मा और प्रदेश कांग्रेस के सचिव उनके पौत्र आश्रय शर्मा ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया है। कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने का जो तर्क अनिल शर्मा ने दिया है उसके मुताबिक पिछले दिनों जब मण्डी में राहुल गांधी रैली के लिये आये थे उस समय सुखराम की उपेक्षा की गयी उन्हे रैली के लिये आमन्त्रित नहीं किया गया और यहां तक कहा गया कि यदि वह आये तो दूसरे लोग रैली छोड़ कर चले जायेंगे। इस उपेक्षा से आहत होकर परिवार पार्टी छोड़ रहा है। अनिल का यह आरोप कितना सही है यह तो वही जानते हैं और उनके अतिरिक्त इसकी जानकारी पार्टी अध्यक्ष सुक्खु तथा मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह को होगी। लेकिन प्रदेश और मण्डी की जनता के सामने अनिल के बेटे आश्रय शर्मा का वह पत्रकार सम्मेलन अवश्य है जो उन्होने इस रैली से कुछ ही दिन पहले आयोजित किया था। इस सम्मेलन में यह दावा किया गया था कि पार्टी हाईकमान ने उन्हे सिराज से चुनाव लड़ने का सिगनल दे दिया है और वह भाजपा के जयराम ठाकुर के विरूद्ध चुनाव लड़ेंगे और उनके दादा सुखराम इस चुनाव की कमान संभालेंगें। यदि आश्रय का पत्रकार सम्मेलन में किया गया यह दावा सही था तो फिर अब पार्टी छोड़ने का तर्क सही नही हो सकता क्योंकि इस दावे का पार्टी की ओर से कोई खण्डन नहीं किया गया था। यदि यह दावा गलत था तो इससे बड़ी अनुशासनहीनता और पार्टी को अपने खिलाफ कारवाई के लिये उकसाने के अतिरिक्त और कुछ नही हो सकता। इसलिये यही माना जायेगा कि पार्टी छोड़ने के लिये बहाने तलाश किये जा रहे थे। जबकि अनिल शर्मा भाजपा में जाने की चर्चा मीडिया में करीब छः माह से चल रही थी।
आज सुखराम का पूरा परिवार भाजपा में शामिल हो गया है। स्मरणीय है कि जब पंडित सुखराम को दूर संचार घोटाले में गिरफ्तार किया गया था उस दौरान प्रदेश विधानसभा के सदन के अन्दर जे पी नड्डा और किशन कपूर आदि भाजपा विधायकों ने इस स्कैम का नाट्यरूपान्तरण तक स्टेज कर दिया था गले में नोटों के हार डालकर सदन के अन्दर आ गये थे। सुखराम के दूर संचार घोटाले को भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार का एक बडा मुद्दा बनाया था। सुखराम के खिलाफ सीबीआई ने तीन मामले दर्ज किये थे। हरियाणा की एक कंपनी एचटीएल को 30 करोड़ का ठेका देने के एवज में तीन लाख की रिश्वत लेने का आरोप लगा था। इस मामले में सुखराम के साथ इस कंपनी के चेयरमैन देवेन्द्र चौधरी भी सह अभियुक्त बने थे। चौधरी की मामले की जांच के दौरान ही मौत हो चुकी है। इस मामले में अदालत से सुखराम को पांच साल की सजा और चार लाख के जुर्माने की सजा हो चुकी है। दूसरा मामला हैदराबाद के रामा राव की कंपनी ।Advance Radio Masts को 1.66 करोड़ का सप्लाई आर्डर देने का है। इसमें सुखराम के साथ कंपनी के मालिक रामा राव और दूर संचार विभाग की निदेशक रूनू घोष भी सह अभियुक्त हैं। इस मामले में भी सजा हो चुकी है। तीसरा मामला घर में हुई छापमारी के दौरान मिली 4.25 करोड़ की नकदी को लेकर आय से अधिक संपत्ति का बना। सीबीआई ने 1993 में यह मामले दर्ज किये थे और 1998 में इनमे चार्जशीट फाईल हुई थी। नवम्बर 2011 में ट्रायल कोर्ट से फैसला आया था। जब यह फैसला आया था उस समय नितिन गडकरी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। 19.11.2011 को इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए गडकरी ने कहा था "The way  in which the court has taken the time to punish the guilty is important. The judicial system needs changes otherwise people will loose faith " इसी मामले में सुखराम ने अदालत से यह कहा था कि "As such it is not a case where govt. has lost any money. The CBI allegation was that he took bribe but no financial loss has been caused to the govt. exchequer." कर चुका है। दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुखराम सर्वोच्च न्यायालय गये थे और यह गुहार लगायी थी कि बढ़ती उम्र के चलते उन्हें जेल न भेजा जाये। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें पहले निचली अदालत में आत्मसमर्पण के लिये कहा था। इस पर सुखराम ऐंबुलैन्स में अदालत पहुंचे थे और कोमा में चले जाने तक की स्थिति अदालत में रखी थी। इस समय बढ़ती उम्र और बीमारी के कारण जमानत पर है। यह मामले अब अन्तिम फैसले के कगार पर पहुंचे हुए हैं और माना जा रहा है कि इन मामलों का भी परिवार पर दवाब चल रहा है।
सुखराम के अतिरिक्त अनिल शर्मा के खिलाफ भी भाजपा ने अपने आरोप पत्र में मण्डी के राजमहल प्रकरण में गंभीर आरोप लगाया हुआ है। यह आरोप पत्र भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती और नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल के हस्ताक्षरों से राज्यपाल को सौंपा गया है। जिसमें यह आरोप है कि ‘‘जिला मण्डी कीे राजमहल जमीन बेनामी सौदे में विधायक/मन्त्री के बैंक खाते से लाखों रूपये श्री संजय कुमार के बैंक खातें में ट्रांसफर हुए। यूं बेनामी सौदा श्री खूब राम के नाम हुआ जिसका सूत्रधार संजय था।’’ आज इन विधानसभा चुनावों के लिये भाजपा जो ‘‘हिमाचल मांगे हिसाब’’ में भ्रष्टाचार के मामलों पर सरकार से हिसाब मांग रही है। क्या उसे आज प्रदेश की जनता के सामने सुखराम और अनिल शर्मा को लेकर अपना आचरण स्पष्ट करना होगा। क्योंकि इससे यह संदेश जा रहा है कि यदि आप भाजपा के सदस्य हैं तो आपका सारा भ्रष्टाचार जन सेवा है। यदि भाजपा से बाहर हैं और उसके विरोध हैं तो यही भ्रष्टाचार का आपका सबसे बड़ा अपराध होगा।

ई डी के 12 अक्तूबर के कथित अटैचमैंट आर्डर से ऐजैन्सी की नीयत और नीति पर उठे सवाल

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह एवम उनके परिवार के खिलाफ चल रहे मनीलाॅडिंग मामले में ईडी ने तीसरी बार संपति अैटच किये जाने के आदेश किये हैं। पहला अटैचमैन्ट आर्डर 23 मार्च 2016 को जारी हुआ था। इसके तहत प्रतिभा सिंह के नाम पर दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में खरीदा गया मकान अटैच हुआ था। इस अैटचमैन्ट के बाद ही एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चौहान को ईडी ने जून 2016 को गिरफ्तार किया था जो अब तक हिरासत में ही चल रहा है। इसके बाद ईडी ने वीरभद्र, प्रतिभा सिंह और अन्य को सम्मन किया था। वीरभद्र और प्रतिभा सिंह ने सम्मन किये जाने को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी। लेकिन इसी बीच ईडी ने 31.3.2017 को दूसरा अटैचमैन्ट आर्डर जारी करके दिल्ली के डेरा मंडी महरौली स्थित फार्म हाऊस को अैटच कर दिया। यह फार्म हाऊस विक्रमादित्य और अपराजिता की कंपनी मैप्पल डैस्टीनेशन और ड्रीम बिल्ड के नाम पर खरीदा गया है। 
इस अटैचमैन्ट के बाद ईडी के सम्मन आदेश को चुनौती देने वाल मामलें मेें दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला आया। सम्मन आदेश को ूwithout jurisdiction and authority कह कर चुनौती दी गयी थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने वीरभद्र की याचिका को अस्वीकार करते हुए तीन जुलाई 2017 को अपने फैसले में यह कहा कि It is clear from the   above discussion that the Prvention of Money- Laundering Act, 2002 is a complete Code which overrides the general criminal law to the exrent of inconsistency.  This law establishes its own enforcement       machinery and other authorities with adjudicatory  powers and jurisdiction. There  is no requirement  in law that an officer empowered by PMLA may not take up investigation of a PMLA offence or may not arrest any person as permitted by its provision without obtaining authorization from the court. Such inhibitions cannot be read into  the law by the court. उच्च न्यायालय के इस फैसलेे के बाद अब 12.10.17 को ईडी की ओर से एक अटैचमैन्ट आर्डर जारी किये जाने की खबर सामने आयी है। इस अैटचमैन्ट आर्डर में प्रतिभा सिह, विक्रमादित्य और अपराजिता की 5.6 करोड़ की और संपति इसी फार्म हाऊस से जुड़ी हुई होने को अटैच किये जाने का दावा किया गया है। वीरभद्र ने इस तीसरे कथित अटैचमैन्ट आर्डर को आधारहीन करार देते हुए आरोप लगाया है कि किसी और की संपति अटैच की गयी है। जिसे शरारतपूर्ण तरीके से वीरभद्र के परिजनों के नाम पर दिखा दिया गया। वीरभद्र ने इसे परिवार को बदनाम करने का प्रयास बताया है। 
स्मरणीय है कि इस मनीलाॅडिंग मामले में गिरफ्तार चल रहे आनन्द चौहान के खिलाफ ईडी ट्रायल कोर्ट में चालान दायर कर चुकी है। आनन्द चौहान वीरभद्र के साथ यह अभियुक्त है। वह मुख्य आरोपी नहीं है। आनन्द चौहान के खिलाफ यह आरोप है कि उनके माध्यम से ली गयी एलआईसी पालिसियां ग्रेटर कैलाश का मकान खरीदने में निवेश हुई है। दिल्ली के डेरा मण्डी मैहरौली में खरीदे गये फार्म हाऊस में वक्कामुल्ला से लिया गया कर्ज निवेशित हुआ है। इसी आधार पर ईडी ने जो अटैचमैन्ट आर्डर 23.3.2016 को जारी किया था उसमें स्पष्ट कहा है कि वक्कामुल्ला से लिये गये कर्ज को लेकर अभी जांच पूरी नही हुई है। इस जांच के पूरा होने के बाद इस मामले में अनुपूरक चालान दायर किया जायेगा। लेकिन यह चालान अब तक दायर नही हुआ है। अब माना जा रहा है कि 31.3.2017 को जारी अटैचमैन्ट आर्डर के साथ ही इस मामले में ईडी की जांच पूरी हो गयी है। आनन्द चौहान के खिलाफ दायर हुए चालान में अगली कारवाई तब तक आगे नही बढ़ सकती है जब तक की उसमें यह अनुपूरक चालान दायर नही हो जाता है। ट्रायल कोर्ट ने ईडी को पिछली बार निर्देश दिये थे कि इस मामले में 31.10.2017 तक अनुपूरक चालान दायर किया जाये। 
अब ईडी को 31 अक्तूबर तक यह चालान दायर करना है। अभी जो अैटचमैन्ट आर्डर प्रचारित हुआ है उसमें वक्कामुल्ला के माध्यम से हुए निवेश का जिक्र आया है। वक्कामुल्ला से वीरभद्र परिवार ने कर्ज लिया है इसे परिवार स्वीकार कर चुका है ईडी के मुताबिक इस कर्ज का निवेश फार्म हाऊस खरीदने में हुआ है और इस नाते यह  Crime Proceed बन जाता है तथा इसी आधार पर इसकी अटैचमैन्ट हुई है। लेकिन जब 23.3.2016 को पहला अटैचमैन्ट आर्डर जारी हुआ था उसके बाद ही आनन्द चौहान की गिरफ्तार हुई थी। परन्तु 31.03.2017 को हुये अटैचमैंट आर्डर के बाद कोई गिरफ्तार नहीं हुई है। इसीलिये अब जो अैटचमैन्ट आर्डर 12 अक्तूबर को जारी हुआ प्रचारित हुआ है जिसे वीरभद्र ने आधारहीन करार दिया है। तो इससे ई डी की नीयत और नीति को लेकर सवाल उठने स्वभाविक है। इस आर्डर के प्रचार से यह सन्देह बन रहा है कि इसमें कहीं ईडी वक्कामुल्ला के खिलाफ आनन्द चौहान जैसी कारवाई की भूमिका तो नहीं बना रहा है। क्योंकि उत्तराखण्ड में भी चुनाव से पूर्व हरीश रावत को ऐजैन्सीयों ने ऐसे ही घेरा था।

कांग्रेस का विकास के सहारे विजय का दावा

शिमला/शैल। वीरभद्र सरकार ‘‘विकास से विजय’’ रैली आयोजित करके पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के समक्ष प्रदेश में हुए विकास की जोे तस्वीर सामने रखी है उससे आश्वस्त और आशान्वित हो करे राहुल ने दावा किया है कि वीरभद्र सातवीं बार प्रदेश के मुख्यमन्त्री बनेेंगे। इस रैली में सरकार नेे इस कार्यकाल में हुए विकास के आंकड़ेे प्रदेश की जनता केे सामने रखे हैं और यह रखनेे के लिये इस रैली के आयोजन पर हुआ सारा खर्चं सरकार ने उठाया है। प्रदेश में विधानसभा चुनावों की घोषणा कभी भी संभावित है ऐसे में इस समय सरकारी खर्च पर अपने विकास की उपलब्धियां जनता के सामने रखना राजनीतिक दृष्टि से कितना सही फैसला सिद्ध होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। क्योंकि 2012 में धूमल भी इसे विकास के नाम पर सत्ता में वापसी के दावे कर रहे थे और उस समय उनके पास विकास के नाम पर मिलेे सौ से अधिक अवार्डों का तमगा भी था लेकिन फिर भी जनता ने उन्हे मौका नही दिया। क्योंकि काग्रेंस ने उनके साथ ‘‘हिमाचल आॅन सेल’’ का ऐसा आरोप चिपका दिया जिसे भले ही सत्ता में आकर कांग्रेस प्रमाणित नही कर पायी है। लेकिन उस समय यह आरोप विकास पर भारी पड़ गया था यह सबकेे सामनेे है। आज कांग्रेस और वीरभद्र सरकार ठीक उसी स्थिति में खड़ी है।
विकास एक ऐसा विषय है जिसेे सवालों के घेरे में खड़ा करना बहुत आसान होता है। जैसेे आज केन्द्र की मोदी सरकार को जुमलों की सरकार करार दिया जाने लग पड़ा है क्योंकि इस सरकार के सारे आर्थिक फैसलें मोदी-जेटली के दावों के बावजूद जनता की नज़र में नुकसान देह साबित हुए हैं और इसी आधार पर राहुल और कांग्रेस मोदी पर हमलावर हो रही है। ठीक इसी तरह आज जब इस विकास के इन आंकड़ो को प्रदेश के बढ़ते कर्ज के आईने में देखा जायेगा तो तस्वीर कुछ अलग ही दिखेगी। यह ठीक है कि आज उद्योग मन्त्री मुकेश अग्निहोत्री के विधानसभा क्षेत्र में विभिन्न विकास कार्यो पर 1656.86 करोड़ का निवेश हुआ है और मुख्यमन्त्री के अपने क्षेत्र शिमला ग्रामीण में हुई 20% घोषणाओं पर करीब 1200 करोड़ का निवेश हुआ है। यह सारा निवेश अमली जामा भी पहन चुका है। विकास के नाम पर यह क्षेत्र आज प्रदेश के माडल हैं लेकिन क्या ऐसा ही निवेश प्रदेश के शेष 66 विधानसभा क्षेत्रों में भी हुआ है यह सवाल आने वाले दिनों में उठेगा। फिर जो संस्थान खोले गये हैं क्या उनमें सुचारू रूप से कार्य करवाने की सुनिश्चितता बन पायी है।  क्योंकि  जब एक संस्थान से कुछ कर्मचारियों को दूसरे संस्थान में बदल कर नये का काम चलाया जाता है तब दोनों में ही कुछ व्यवहारिक कमीयां रह जाती हैं और परिणाम स्वरूप दोनों जगह नाराज़गी उभर आती है। यदि नये खोले संस्थानों में नयी भर्तीयां करके कर्मचारी नियुक्त किये जाएं तब ऐसी नियुक्तियां करने में न तो पूूरा समय उपलब्ध हो पाता है और न ही पूरी प्रक्रिया हो पाती है और ऐसे चयनों पर पक्षपात के आरोप लगनेे स्वभाविक हो जाते हैं। इसलिये आज विकास के दावों पर सरकारों का बनना संदिग्ध हो जाता है। फिर सरकार तो होती ही विकास के लिये है और उस पर लगने वाला पक्षपात का एक भी आरोप सारे दावों की हवा निकाल देता है।
कांग्रेस जहां ‘‘विकास से विजय’’ को सहारा बना रही है वहीं पर भाजपा कांग्रेस से ‘‘हिसाब मांगेेेे हिमाचल’’ के तहत लगातार हमलावर होती जा रही है। भाजपा के इन हमलों का जवाब जब तक कांग्रेस उसी तर्ज में देने को तैयार नही होगी तब तक उसके विकास के दावों का असर हो पाना संभव नही लगता है। भाजपा लम्बे अरसे से कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं पर व्यक्तिगत स्तर पर हमलावर होने की रणनीति पर काम करती आ रही है। वीरभद्र सिंह के अतिरिक्त भाजपा कांग्रेस अध्यक्ष सुक्खु पर भी निशाना साध चुकी है। सुक्खु ने अपने ऊपर लगे आरोपों पर मानहानि का मामला दायर करने का दावा किया था जो आज तक पूरा नही हुआ है। सूत्रों की माने तो अब इस कड़ी में और भी बहुत कुछ जुड़ने वाला है। भाजपा के निशाने पर वन मन्त्री ठाकुर सिंह भरमौरी, उद्योग मन्त्री मुकेश अग्निहोत्री और शहरी विकास मन्त्री सुधीर शर्मा विशेष रूप से रहने वाले हैं। कांग्रेस मण्डी रैली में आक्रामक होने की बजाये रक्षात्मक रही है ऐसे में अब इस पर निगाहें लगी है कि क्या कांग्रेस इसी रक्षात्मक तर्ज पर आगे बढे़गी या आक्रामक होने का साहस दिखायेगी ।

अब सरकार की पूर्व अनुमति के बिना नही हो पायेगी कोई भी सेवा आऊट सोर्स

शिमला/शैल। सरकार द्वारा 1 जुलाई 2017 का आऊटसोर्स कर्मचारियों  को लेकर जारी की गयी नीति के अनुसार अब कोई भी विभाग सरकार की पूर्व अनुमति के बिना कोई भी सेवा आऊटसोर्स नही कर पायेगा। आऊट सोर्स कर्मचारियों के हितों को सुरक्षित करने के लिये वित विभाग द्वारा जारी 2009 के वित्तिय नियमों के तहत मिलने वाले लाभ इन्हे भी सुनिचित किये गये हैं। इसके मुताबिक इन्हें ईएसआई कन्ट्रीव्यूशन और ई.पी.एफ कन्ट्रीव्यूशन के लाभ मिलेंगे। आऊट सोर्स के तहत लगी महिला कर्मीयों को मातृत्व अवकाश की सुविधा भी प्राप्त होगी और यह खर्च संबधित विभाग उठायेगा। यदि आऊटसोर्से पर तैनात कर्मचारी को विभागीय कार्य के लिये तैनाती स्थान से बाहर प्रदेश में किसी स्थान पर भेजा जाता है तो इसके लियेे उसे 130 रू0 प्रतिदिन के हिसाब से यात्रा भत्ता भी मिलेगा। प्रदेश से बाहर जाने पर यह भत्ता 200रू0 प्रतिदिन के हिसाब से मिलेगा। सर्विस प्रोवाईडर इन्हे वेतन का भुगतान बैंक के माध्यम से करेंगे और हर माह की 7 तारीख को इन्हें यह भुगतान सुनिश्चित करेंगे। संबधित विभाग समय-समय पर यह सुनिश्चित करेंगे कि सर्विस प्रोवाईडर द्वारा कर्मचारी को यह लाभ दिये जा रहे हैं या नही।
स्मरणीय है कि इस समय प्रदेश में करीब 35,000 कर्मचारी आऊट सोर्स के माध्यम से विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यह कर्मचारी इन्हें सरकार में नियमित रूप से समायोजित किये जाने की मांग भी कर रहे हैं। क्योंकि जब इन्हें आऊट सोर्से के माध्यम से रखा गया था तब इन्हें यह पूरी जानकारी ही नही रही है कि यह लोग सरकार के कर्मचारी न होकर एक सर्विस प्रोवाईडर ठेकेदार के कर्मचारी हैं। सरकार यह तो सुनिश्चित कर सकती है कि ठेकेदार इनका शोेेषण न करे और इनको समय पर वेतन का भुगतान हो। लेकिन इन्हें सरकार का नियमित कर्मचारी नही बनाया जा सकता और न ही उसकी तर्ज पर अन्य वेतन वृद्धि आदि के लाभ दिये जा सकते हैं। इन कर्मचारियों को अनुबन्ध पर रखे गये कर्मचारियों की तर्ज भी नियमित होने का लाभ नही मिल सकता। लेकिन इसी के साथ यह भी अनिश्चित है कि सर्विस प्रोवाईडर कब तक इन्हें काम पर रख सकता है और  इन्हें  काम से हटाने के लिये क्या शर्ते होंगी। यह भी अनिश्चित है कि संबधित विभाग भी कब तक इनकी सेवाएं आऊटसोर्स के माध्यम से लेता रहेगा।
सरकार ने इन कर्मचारियों केे दवाब में इनके लिये यह पाॅलिसी तो घोषित कर दी हैे लेकिन इसमें यह स्पष्ट नही किया गया है किस तरह की सेवाएं आऊट सोर्स के तहत आयेंगी। आऊटसोर्स प्रोवाईडर पर भी कोई नियम कानून लागू होंगे और वह भी सरकार केेे किसी विभाग में पंजीकृत होगा इसका भी इस नीति में कोई जिक्र नही है क्योंकि सरकार में कर्मचारी भर्ती करने के लिये रोजगार कार्यालयों से लेकर विभिन्न चयन बोर्ड गठित हैं और इनके लिये विज्ञापनों के माध्यम से सार्वजनिक सूचना देकर आवेदन आमन्त्रिात करने की एक तय प्रक्रिया है। यहां तक कि सरकार में होने वाले निर्माण कार्यों के लिये भी टैण्डर आमन्त्रिात करने की प्रक्रिया तय है। यह सारे प्रावधान उपलब्ध होने के वाबजूद सरकार में आऊटसोर्स के माध्यम से ऐसे कर्मचारी भर्ती करने की आवश्यकता क्यों पड़ी इस पर कोई भी कुछ कहने केे लिये तैयार नही है।
आऊट सोर्स प्रोवाईडर को कितना कमीशन मिलेगा इस पर भी पाॅलिसी में कुछ स्पष्ट नही किया गया है। आऊटसोर्स कर्मचारी को कितना वेतन मिलेगा यह भी स्पष्ट नही है पाॅलिसी में सिर्फ यह कहा गया है कि The Government Department will consider increase in the contracted amount payable to the service providers /contractors to enable them to enhance emoluments of staff engaged by them , whenever the State Government increases minimum wages. सरकार द्वारा यह पाॅलिसी लाये जाने के वाबजूद भी आऊट सोर्स कर्मचारियों के सरकार में समायोजित होने की कोईे संभावना नही है। इससे केवल सर्विस प्रोवाईडर को बैठेे बिठाये एक भारी कमीशन पाने का साधन तो दे दिया गया है लेकिन अन्ततः यह इन कर्मचारियों का शुद्ध शोषण ही रह जाता है यह इस पाॅलिसी से भी स्पष्ट हो जाता है क्योंकि कब तक सर्विस प्रोवाईडीे और संबधित विभाग कर्मचारी को अपनी सेवा में रखेंगे यह स्पष्ट नही है। संभवतः सेवा चयन और पदोन्नति नियमों में इस तरह की सेवाओं का कोई प्रावधान ही नही है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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