इस परिदृश्य में यदि दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस के घोषणा पत्रों के कुछ बिंदुओं पर नजर डाली जाये तो स्थिति और स्पष्ट हो जायेगी। दोनों दलों में महिलाओं को लेकर एक जैसी ही बड़ी आर्थिक घोषणाएं कर रखी हैं। कांग्रेस ने हर महिला को एक वर्ष में एक लाख रूपये देने की घोषणा की है। भाजपा ने भी तीन करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाने की घोषणा की है। लेकिन किसी ने भी स्पष्ट नहीं किया है कि संसाधन कैसे जुटाया जायेगा। पिछले दस वर्ष से केंद्र की सत्ता पर भाजपा का कब्जा है। इसलिये सरकार में होने के कारण भाजपा से उसके पुराने वायदों को लेकर सवाल पूछने बनते हैं। भाजपा ने 2014 के चुनाव में देश के हर आदमी के बैंक खाते में पन्द्रह-पन्द्रह लाख आने का वायदा किया था। इस वायदे का आधार विदेशों में भारतीयों के जमा काले धन को वापस लाना बताया गया था। काले धन के लम्बे-लम्बे आंकड़े परोसे गये थे। लेकिन न यह काला धन वापस आया और न ही पन्द्रह लाख बैंक खाते में आये। बल्कि इस दौरान विदेशों में भारतीयों के काले धन का आंकड़ा और बढ़ गया। परिणाम स्वरुप पन्द्रह लाख खाते में आने को चुनावी जुमला कहकर टाल दिया गया। इसलिये कब किसी वायदे को चुनावी जुमला बताकर बात को टाल दिया जाये इसकी संभावना लगातार बनी हुई है।
इसी केंद्र सरकार ने किसान की आय दोगुनी करने का वायदा किया था जो पूरा नहीं हुआ। इसी तरह दो करोड़ नौकरियां देने का वायदा किया गया था। आज देश को तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनाने की बात की जा रही है और इसी के साथ अस्सी करोड लोगों को आगे भी मुफ्त राशन की सुविधा जारी रखने का वायदा किया गया है। क्या यहां यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि जिस देश की आधी से भी अधिक जनसंख्या अपने लिये राशन न जुटा पा रही हो उस देश का आर्थिक शक्ति बनने का दावा कितना भरोसे लायक हो सकता है। राम देश की आस्था है लेकिन राम मंदिर के गिर्द राजनीति को घूमाना कितना सही हो सकता है इसका विचार हरेक को अपने-अपने स्तर पर करना होगा। भाजपा-मोदी के पिछले दस वर्षों के वायदे आज उनकी कसौटी बनेंगे। इसी तरह कांग्रेस के वायदे की परख उसकी राज्य सरकारों की परफॉर्मेंस के आधार पर करनी होगी क्योंकि वह दस वर्ष से केंद्र की सत्ता से बाहर है। आज मोदी-भाजपा ने एक देश एक चुनाव और कामन मतदाता सूची का वायदा किया है। क्या व्यवहारिक रूप से इसका अर्थ एक दल और एक ही नेता का नहीं हो जाता ? आज देश के सर्वाेच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के इक्वीस पूर्व न्यायाधीशों ने सर्वाेच्च न्यायपालिका को कमजोर करने के प्रयासों की ओर मुख्य न्यायाधीश का ध्यान आकर्षित किया है। छः सौ वरिष्ठ वकीलों ने भी इस आशय का पत्र लिखा है। इसलिए आज मतदान करने से पहले इन प्रश्नों के माईने हर नागरिक को तलाशने होंगे और फिर फैसला लेना होगा कि कौन आपके मत का सही हकदार है।