शिमला/शैल। क्या मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर पूरी तरह अफसरशाही के चक्रव्यूह में फंस चुके हैं? यह सवाल पिछले कुछ अरसे से सचिवालय के गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। कहा जा रहा है कि इस सरकार को अधिकारियों का एक ग्र्रुप विशेष ही चला रहा है। इन अधिकारियों की राय मुख्यमन्त्री के घोषित फैसलों पर भी भारी पड़ रही है। इस चर्चा को हवा देने के लिये सबसे पहला उदाहरण बीवरेज कॉरपोरेशन प्रकरण का दिया जा रहा है। धर्मशाला में जयराम मन्त्रीमण्डल की हुई पहली बैठक में बीवरेज प्रकरण पर जांच बिठाने का फैसला लिया गया था। लेकिन उस दिन मन्त्री परिषद के सामने जो ऐजैन्डा रखा गया था उसमें यह विषय ही नही था। कहते हैं कि बैठक खत्म होने के बाद एक अधिकारी ने मुख्यमन्त्री के सामने यह मामला रखा और इस पर जांच का फैसला करवा दिया। लेकिन इस फैसले पर विजिलैन्स अब तक कोई कारवाई नही कर पायी है। शायद अब उस अधिकारी की इसमें रूची नही रह गयी है।
इसके बाद जब दिव्य हिमाचल के शिमला स्थित ब्यूरो प्रमुख की अचानक मौत हो गयी थी तब मुख्यमन्त्री ने मृतक के परिवार को आश्वासन दिया था कि पत्रकार की विधवा को सरकार नौकरी देगी। इसके बारे में कई बार मुख्यमन्त्री इस संबंध में उनको मिलने गये पत्रकारों को भी यह कह चुके हैं कि यह नौकरी दी जायेगी। लेकिन ऐसा अभी तक हो नही सका है। क्योंकि अधिकारी ऐसा नही चाहते हैं और इसीलिये उनके निमय कानून मुख्यमन्त्री की सार्वजनिक घोषणा पर भारी पड़ रहे हैं। यही नही सरकार के निदेशक लोकसंपर्क ने प्रदेश के साप्ताहिक समाचार पत्रों के संपादकां से विभाग में एक बैठक भी की थी। इस बैठक में साप्ताहिक पत्रों की समस्याओं पर विस्तार से चर्चा हुई थी और कहा गया कि एक माह में इस पर अमल हो जायेगा। लेकिन अभी तक ऐसा हो नही पाया है। बल्कि सरकार ने सारे विभागों/निगमों/बोर्डों को पत्र लिखकर यह प्रतिबन्ध लगा दिया है कि उनके स्तर पर कोई विज्ञापन नही दिये जायेंगे। विज्ञापन देने का काम लोक संपर्क विभाग ही करेगा। विभाग कुछ गिने चुने दैनिक पत्रों को ही फीड कर रहे हैं। प्रदेश के साप्ताहिक पत्रों को विज्ञापनों से बाहिर ही कर दिया गया है। ऐसा इसलिये किया गया है ताकि जनता के सामने सरकार की सही तस्वीर रखने वालों को दबाव में लाया जा सके। राजनीति की जानकारी रखने वाला तो कोई ऐसा फैसला ले नही सकता। क्योंकि ऐसे फैसले घातक होते हैं। इस तरह का काम कोई अधिकारी ही कर सकता है। लेकिन यहां पर बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि मुख्यमन्त्री और उनका मीडिया सलाहकार इस संबंध में एकदम अप्रसांगिक हो गये हैं। अफसरशाही के खेल के आगे मौन हो गये हैं।
अफसरशाही कैसे राजनीतिक नेतृत्व पर भारी पड़ रही है इसका सबसे बड़ा प्रमाण दीपक सानन के स्टडीलीव प्रकरण में सामने आया है। सानन ने अपने प्रतिवेदन में स्वयं स्वीकारा है कि स्टडीलीव समाप्त होने के बाद तीन साल का सेवा काल शेष होना चाहिये लेकिन सानन ने ओपी यादव, विनित चौधरी और उपमा चौधरी को दी गयी स्टडीलीव का हवाला देते हुए उसी आधार पर उन्हें स्टडीलीव देने की मांग की। कार्मिक विभाग ने पूरे तर्को के साथ सानन के प्रतिवेदनां पर विस्तृत विचार करते हुए उनके आग्रह को अस्वीकार कर दिया। लेकिन सानन इस अस्वीकार के बाद भी बराबर सरकार को प्रतिवेदन भेजते रहे। अन्ततः यह मामला 1.2.18 को मुख्य सचिव द्वारा मुख्यमन्त्री को भेजा गया। जब यह मामला मुख्यमन्त्री के पास 6.2.18 को आया इस फाईल पर कार्मिक विभाग के सारे तर्क उपलब्ध थे। यही नही वीरभद्र सरकार ने किस आधार पर इसे अस्वीकार किया था यह भी फाईल पर था। बल्कि सानन ने अपने प्रतिवेदन में जिस तरह से चौधरी दम्पत्ति का जिक्र किया है उसी से स्पष्ट हो जाता है कि उन्हें भी स्टडीलीव गलत दी गयी है। लेकिन मुख्यमन्त्री जयराम ने इस पर कोई भी सवाल उठाये बिना ही इस पर दस्तख्त कर दिये। जो मुख्य सचिव ने कहा उसी को यथास्थिति मान लिया। इन्ही प्रकरणों से अब यह चर्चा उठी है कि मुख्यमन्त्री ने सब कुछ अधिकारियों पर छोड़ दिया है। अफसरशाही को दी गयी इस छूट के परिणाम क्या होंगे यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।
शिमला/शैल। जिला शिमला के सांख्यिकीय कार्यालय में तैनात वरिष्ठ सहायक प्रेम ठाकुर ने 21.5.2018 से 13.7.2018 तक मैडिकल सर्टीफिकेट अपने विभाग में सौंपा हैं क्योंकि इस दौरान वह छुट्टी पर थे। यह 55 दिन का मैडिकल सर्टीफिकेट आईजीएमसी के वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक डा.राहुल गुप्ता के हस्ताक्षरों से जारी हुआ है। जब यह मैडिकल विभाग को प्रस्तुत किया गया तभी इसके जाली होने की शिकायत हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के महासचिव द्वारा कर दी गयी। शिकायत आने के बाद विभाग ने अपने स्तर पर जांच करने के बाद पाया कि डा. राहुल गुप्ता आईजीएमसी के वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक के पद पर ही तैनात नही है और यह सर्टीफिकेट जारी करने के लिये अधीकृत हैं। क्योंकि वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक के पद पर डॉ.जनक राज तैनात हैं और यह पद पूरी तरह प्रशासनिक है। जबकि डा. राहुल गुप्ता ने जो बीमारी प्रमाण पत्र में बताई है वह अस्थि विभाग या न्यूरो विभाग से संबधित है और डा. राहुल गुप्ता फॉरेंसिक विभाग में सहायक आचार्य हैं तथा रिकार्ड रूम का कार्य भी देख रहे हैं।
जिला अनुसंधान अधिकारी ने 24 जुलाई 2018 को इस संद्धर्भ में पत्र लिखकर आईजीएमसी के प्रधानाचार्य और अस्थि विभाग से जानकारी हासिल की। इस पर अस्थि विभाग ने 28.7.18 को सूचित किया कि यह प्रमाण पत्र अस्थि विभाग द्वारा जारी नही किया गया है जबकि जो बीमारी बताई गयी है वह अस्थि/न्यूरो विभाग से ताल्लुक रखती है। आईजीएमसी से यह स्पष्टीकरण आने के बाद विभाग ने इसे पूरी तरह धोखाधड़ी का मामला मानते हुए 19.9.2018 को इसी की शिकायत पुलिस अधीक्षक शिमला को कर दी। इस शिकायत में इसी कर्मचारी का एक 26.6.2014 का चिकित्सा प्रति पूर्ति का दावा भी उठाया है। जिसमें आईजीएमसी के हृदय विभाग के एक डॉ. मनीश से ईलाज करवाया बताया गया है। जबकि विभाग में इस नाम का कोई डाक्टर ही तैनात नही है। इस तरह यह चिकित्सा प्रतिपूर्ति का दावा भी धोखाधड़ी माना गया है। विभाग आईजीएमसी से विस्तृत जानकारी जुटाने के बाद ही इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि संबंधित कर्मचारी ने शुद्ध रूप से यह धोखाधड़ी की है और तभी इसकी शिकायत पुलिस अधीक्षक शिमला से की है।
मैडिकल सर्टीफिकेट कितने दिनों तक का किस डॉक्टर द्वारा जारी किया जाता है यह प्रदेश सरकार की 19 जुलाई 2006 की अधिसूचना No HFN-B(A) 12-9/79/(1/N) में पूरी तरह स्पष्ट किया गया है। इसके अनुसार मैडिकल अफसर केवल सात दिन तक का ही सर्टीफिकेट जारी कर सकता है इससे अधिक के लिये बीमार को विशेषज्ञ को रैफर करना होता है। लेकिन इस केस में ऐसा नही किया गया। इससे सवाल पैदा होता है कि क्या डॉक्टरों को इस संबंध में उनके अधिकारों की जानकरी ही नही है। या फिर इसमें कोई बड़े स्तर का घपला चल रहा है। इसी के साथ विजिलैन्स और पुलिस की कारवाई पर भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि विभाग के कर्मचारी संघ की शिकायत पर विजिलैन्स ने 20 जुलाई को शिकायत दर्ज कर ली थी लेकिन इस पर आज तक कोई कारवाई नही हुई है। इसी तरह जिला सांख्यिकी अनुसंधान अधिकारी ने पुलिस अधीक्षक शिमला को 19-9-2018 को वाकायदा पत्र लिखकर अधिकारिक तौर पर यह शिकायत भेजी है परन्तु अभी तक कोई एक्शन सामने नही आया है। इसी बीच आईजीएमसी के वरिष्ठ अधीक्षक जनक राज ने 7-7-2018 को अपनी शक्तियां डा. राहुल गुप्ता को डैलीगेट कर दी हैं। डा. जनक राज अब केवल 10% मामले ही अपने स्तर पर देखेंगे। यह शक्तियां डैलीगेट 7-7-2018 को हाती है यदि सही में हुई हैं तो। लेकिन क्या इससे फॉरेंसिक का डाक्टर अस्थि विभाग का प्रमाण पत्र जारी करने के लिये पात्र हो जाता है? इस पूरे प्रकरण में जिस तरह से सारा घटनाक्रम घटा है उससे स्पष्ट हो जाता है कि यदि इसमें गहनता से जांच होगी तो बहुत कुछ सामने आयेगा।
शिमला/शैल। जयराम सरकार बनने के बाद सहकारी सभाएं ने 6 अप्रैल को कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैक धर्मशाला के अध्यक्ष और बोर्ड को निलंबित करने का नोटिस जारी किया था। इस नोटिस को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी थी। चुनौती दिये जाने के बाद 19 जुलाई को तकनीकि आधार पर इस नोटिस को वापिस ले लिया गया और फिर उसी दिन नया नोटिस जारी कर दिया गया। इसे भी उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी। अब इस पर उच्च न्यायालय का फैसला आ गया है। अदालत ने इस निलंबन को सही पाया है।
अदालत ने अपने फैसले में नाबार्ड की निरीक्षण रिपोर्ट का जिक्र उठाते हुए कहा है कि बैंक ने 90 लोगों को 31 दिसम्बर 2017 जोखिम सीमा से बाहर जाकर कर्ज दिया। इसके अतिरिक्त 119 लोगों को नियमों के बाहर जाकर ऋण दिया गया। सी.ए. की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 से 2017 तक की आडिट रिर्पोटों में कई अनियमितताएं उजागर हुई है। जिसमें बैंक का एन.पी.ए. 11.43 प्रतिशत से बढ़कर 16.25 प्रतिशत होना सामने आया है। रिर्पोट में फ्राड उजागर हुआ है लेकिन इसमें शामिल रकम की वसूली के लिये कोई कदम नही उठाये गये हैं। यही नही आरबीआई के दिशा निर्देशों के खिलाफ जाकर रियल इस्टेट को कर्ज दिया गया है। विधानसभा के पिछले सत्र में इस संबध में पूछे गये एक प्रश्न के उत्तर में एनपीए हुये खातों की पूरी रिपोर्ट सदन के पटल पर आ चुकी है। इसमें भाजपा के कई शीर्ष नेताओं के नाम भी सामने आये हैं। ऐसा भी लगता है कि प्रदेश से बाहर भी ट्टण बांटे गये हैं।
सदन में सहकारी बैंकों के एनपीए की रिपोर्ट आने के बाद सरकार ने कुछ बिन्दुओं पर विजिलैन्स जांच करवाने के लिये विजिलैन्स को पत्रा लिखा था। लेकिन सरकार के इस शिकायत पत्र पर आज तक कोई कारवाई नही हुई है जबकि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार सात दिन के भीतर मामला दर्ज हो जाना चाहिये था। अब जब प्रदेश उच्च न्यायालय ने सरकार के निलंबन के फैसले को सही करार दे दिया है तब यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या अब विजिलैन्स इस पर कारवाई करेगी या नही और करेगी तो कितने समय के भीतर। क्योंकि सूत्रों के मुताबिक मुख्यमन्त्री कार्यालय में बैठे हुए कुछ लोग ऐसा नही चाहते है।
जयराम और सत्ती के लिये खड़ी हुई चुनौती
शिमला/शैल। दस माह के इन्तजार के बाद अन्ततः दस और नेताओं को ताजपोशीयों का उपहार नवरात्रों में नसीब हो गया है। इनमें अकेले गणेश दत्त ही हिमफैड की अध्यक्षता प्राप्त कर पाये हैं और बाकी नौ को उपाध्यक्ष की कुर्सी से हीे संतोष करना पड़ा है। इस ताजपोशी से पहले सरकार बनते ही चारों संसदीय क्षेत्रों के संगठन मंत्री और एक मीडिया सलाहकार को ताजपोशियां मिल गयी थी। उसके बाद तीन महिला नेत्रियां तथा कुछ सेवानिवृत अधिकारियों को भी ऐसे ही सम्मान के साथ नवाजा गया था। बल्कि इनमें एक नेत्री तो इतनी भाग्यशाली रही है कि उन्हे कांग्रेस सरकार में भी ताजपोशी प्राप्त थी और अब फिर हासिल हो गयी है। इसी के साथ दो विधायकों नरेन्द्र बरागटा और रमेश धवाला को भी मन्त्री स्तर का सम्मान हासिल हो गया है। इस तरह जयराम सरकार ने भी अब तब तीन दर्जन से अधिक नेताओं को अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के रूप में सम्मान से नवाजा है। अभी कई महत्वपूर्ण कुर्सीयां खाली हैं और उम्मीद की जा रही है कि उन्हंे भी लोकसभा चुनावों से पूर्व भर दिया जायेगा। क्योंकि पार्टी को फिर से लोकसभा की चारों सीटों पर जीत हासिल करनी है और इसके लिये यदि ताजपोशीयों का आंकड़ा कांग्रेस के आंकड़े से भी बढ़ाना पड़ेगा तो जयराम इसमें भी गुरेज नही करेंगे।
लेकिन क्या इस सबके बावजूद जयराम चारों सीटों पर जीत हालिस कर पायेंगे यह सवाल भी साथ ही खड़ा हो गया है। क्योंकि इन ताजपोशीयों के बाद हमीरपुर के भोरंज और कांगड़ा के इन्दौरा में नाराजगीे के स्वर मुखर होकर पार्टी की चैखट लांघकर सड़क तक आ पहंुचे हैं। मनोहर धीमान से तो पद वापिस लेने तक की मांग रख दी गयी है। फिर जब दो विधायकों बरागटा और ध्वाला को ताजपोशी दे दी गई है तो उसी तर्क पर अन्य विधायकों को इससे वंचित कैसे रखा जा सकेगा। जयराम सिद्धान्त रूप से इतनी ताजपोशीयों के पक्षधर नही रहे हैं यह उन्होने ऊना के बंगाणा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए स्पष्ट कहा था। लेकिन अब जब उन्हे यह ताजपोशीयां देनी पड़ी है तो स्वभाविक है कि यह सब उन्हे भारी राजनीतिक दबाव में करना पड़ा है। पार्टी में किस तरह से आन्तरिक समीकरण उलझ चुकेे हैं इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जहां-जहां जिला परिषदों और ब्लाॅक समीतियों में पासे बदलवा कर सत्ता पर कब्जा करने का प्रयास किया गया वहां पर पूरी तरह सफलता नही मिल पायी है। बंजार में तो जनता ने ही भाजपा के खिलाफ वोट दिया है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि पार्टी में सब कुछ ठीक नही चल रहा है।
इसके अतिरिक्त आने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी के उम्मीदवारों को लेकर भी स्थिति बहुत सहज नही होने वाली है। क्योंकि इस समय पार्टी के शिमला और हमीरपुर के सांसदों के खिलाफ मामले अदालत में चल रहे हैं यदि पार्टी इन लोगों को फिर से उम्मीदवार बनाती है तो सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार इनके मामलों को पार्टी को चुनावों के दौरान पूरी तरह प्रचारित करके मतदाताओं के सामने रखना होगा। ताकि मतदाताओं को इनके खिलाफ चल रहे मामलों की विस्तृत जानकारी मिल सके। इसमें जब ‘‘कैशआॅन कैमरा’’ जैसा आरोप जनता के सामने जायेगा तो उससे निश्चित रूप से पार्टी की छवि पर नकारात्मक असर पड़ेगा। ऐसे में यह चुनाव सरकार को अपनी ही छवि पर लड़ना पड़ेगा। इस परिदृश्य में शिमला और हमीरपुर के वर्तमान सांसदों के स्थान पर नये उम्मीदवार लाने की मांग उठ सकती है। कांगड़ा के सांसद शान्ता कुमार तो पहले ही कह चुक हैं कि वह अगला चुनाव लड़ने के ज्यादा इच्छुक नही हैं। इसी के साथ यह सवाल भी उठेगा कि पार्टी किसी महिला को भी चुनाव में उतारती है या नही और उसके लिये कौन सी सीट रखी जाती है। मण्डी से मुख्यमन्त्री की पत्नी के भी उम्मीदवार होने की चर्चाएं काफी समय से चल निकली है और किसी ने इन अटकलों को खारिज भी नही किया है। लेकिन मण्डी से पंडित सुखराम ने भी उनके पौत्र को टिकट दिये जाने की मांग छेड़ दी है ऐसे में इस बार का लोकसभा चुनाव 2014 की तरह आसान रहने वाला नही है।
2014 के चुनाव में भाजपा ने वीरभद्र सिंह के खिलाफ लगेे आरोपों को खूब भुनाया था। लेकिन इस बार वही आरोप सरकार के गले की फांस बनने वाले हैं। क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार का अपना ही रिकार्ड बहुत अच्छा नही है। केन्द्र की ऐजैन्सी एनपीसीसी ने ही प्रदेश को आठ करोड़ का चूना लगा दिया है। लेकिन संवद्ध तन्त्र इस पर आॅंखे मूंदे बैठा है। जबकि कांग्रेस विधायक राम लाल ठाकुर पूरेे दस्तावेज़ी साक्ष्यों के साथ एक पत्रकार वार्ता में इस आरोप को उछाल चुके हैं। इसी तरह जहां सरकार 118 की जांच करवा रही है वहीं पर स्वयं इसमें नियमों/कानूनांे को अंगूठा दिखा रही है। ऐसे बहुत सारे प्रकरण घट चुके हैं और उनके दस्तावेजी साक्ष्य भी बाहर आ चुके हैं। सरकार और संगठन इन मुद्दों के प्रति पूरी तरह बेखबर होकर चल रहा है। बल्कि आपस में ही उलझा हुआ है और इस उलझन का आलम यहां तक पंहुच गया है कि पिछले दिनों अमितशाह को जयराम और पवन राणा को इक्कठे बैठाकर लम्बा प्रवचन पिलाना पड़ा है।
यह है नई ताजपोशियां
प्रदेश सरकार ने राज्य के विभिन्न बोर्डों व निगमों के लिए एक अध्यक्ष व नौ उपाध्यक्षों की नियुक्ति की है। गणेश दत्त को हिमफैड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। हमीरपुर के विजय अग्निहोत्री को हिमाचल पथ परिवहन निगम के उपाध्यक्ष, ऊना के राम कुमार को एचपीएसआईडीसी का उपाध्यक्ष, पूर्व मंत्री प्रवीण शर्मा को हिमुडा का उपाध्यक्ष, किन्नौर के सूरत नेगी को वन निगम का उपाध्यक्ष, शिमला की रूपा शर्मा को सक्षम गुड़िया बोर्ड का उपाध्यक्ष, कांगड़ा के मनोहर धीमान को जीआईसी का उपाध्यक्ष, सोलन के दर्शन सैनी को हिमाचल जल प्रबन्धन बोर्ड का उपाध्यक्ष, सिरमौर के बलदेव तोमर को हि.प्र. खाद्य एवं आपूर्ति निगम का उपाध्यक्ष तथा कुल्लू के राम सिंह को एचपीएमसी के उपाध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया है।
शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने दावा किया है कि उन्होने केन्द्र से नौ हजार करोड़ की योजनाएं स्वीकृत करवा ली है। इसी दावे के साथ प्रदेश को सैद्धान्तिक तौर पर मिले 70 राष्ट्रीय उच्च मार्गों के लिये भी केन्द्र से प्रदेश को 65000 करोड़ रूपये स्वीकृत होने को एक बड़ी उपलब्धि कहा जा रहा है। मुख्यमन्त्री के इन दावों की ज़मीनी सच्चाई क्या है इसको लेकर नेता प्रतिप़क्ष मुकेश अग्निहोत्री ने सरकार से इन योजनाओं की तफसील के साथ इस संबन्ध में एक श्वेत पत्र जारी करने की मांग की है। मुख्यमन्त्री के इन दावांे पर इसलिये सवाल उठाये जा रहे हैं क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान मण्डी में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए प्रधानमन्त्री मोदी ने भी वीरभद्र सरकार से 72 हजार करोड़ का हिसाब मांगा था। मोदी ने दावा किया था कि उसकी सरकार ने हिमाचल को 72 हजार करोड़ दिये हैं और सरकार बताये उसने यह पैसा कहां खर्च किया है। लेकिन मोदी के इस दावे पर जयराम के बजट भाषण ने प्रश्नचिन्ह लगा दिया जब बजट मे यह कहा गया कि केन्द्र से प्रदेश को करीब 42 हजार करोड़ मिले हैं। आंकड़ो के इस खेल ने विधानसभा चुनाव में जो प्रभाव दिखाना था वह उस समय हो गया और इसके परिणामस्वरूप यहां पर भाजपा की सरकार बन गयी। क्योंकि उस समय इन आंकड़ों को किसी ने चुनौती नही दी थी। परन्तु अब मुकेश ने आंकड़ो की इस बाजीगरी को समझते हुए मुख्यमन्त्री को इस पर श्वेत पत्र जारी करने की चुनौती दे डाली है और जयराम इस चुनौती को स्वीकार नही कर पाये हैं। मुख्यमन्त्री इन आंकड़ो के स्पष्टीकरण में केवल यही कर पाये हंै कि यह योजनाएं सिद्धान्त रूप में स्वीकार हुई हैं और इन्हें अमलीशक्ल लेने में वक्त लगेगा। इसी के साथ मुकेश ने जगत प्रकाश नड्डा को लेकर आये ब्यानांे और समाचारों पर चुटकी लेते हुए जयराम द्वारा की गयी ताजपोशीयों को दवाब का परिणाम कहा है। बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष सुक्खु ने तो दो कदम और आगे जाकर यहां तक कह दिया कि जयराम तो केवल मुखौटा हैं तथा सरकार तो आरएसएस चला रहा है। मुकेश और सुक्खू के ब्यानों पर पलटवार करते हुए जयराम ने इन्हे यह सुझाव दिया है कि वह अपने घर संभाले क्योंकि वहां पर अभी कई लोगों की नेता प्रतिप़क्ष तथा प्रदेश अध्यक्ष होने पर नज़रें लगी हुई हैं। यह सही है कि कांग्रेस में अध्यक्ष को बदले जाने को लेकर इन दिनों अटकलों का बाज़ार बहुत गर्म चल रहा है। कई नाम चर्चा में चल रहे हैं लेकिन इसी के साथ यह भी हकीकत है कि इन दिनों कांग्रेस एक जुट भी होती जा रही है और इस एकजुटता के परिणामस्वरूप आजकल वीरभद्र-सुक्खू के वाक्युद्ध पर भी पूरी तरह विराम लग गया है। इससे यह स्पष्ट संकेत उभर रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पूरी तैयारी और रणनीति के साथ उतरने वाली है।