शिमला/शैल। एचपीसीए सोसायटी है या कंपनी यह मामला 2013 से रजिस्ट्रार सोसायटीज़ और प्रदेश उच्च न्यायालय के बीच लंबित चल रहा है। अब तक इसमें पचास पेशीयां लग चुकी है। अभी चार मार्च को भी केस लगा था लेकिन उस दिन भी कोई कारवाई नही हो सकी और अब 29 मई के लिये अगली पेशी लगी है। स्मरणीय है कि इस प्रकरण में एचपीसीए ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। परन्तु दो न्यायधीशों द्वारा मामले की सुनवाई से इन्कार कर देने के बाद एचपीसीए सुप्रीम कोर्ट चली गयी थी। सुप्रीम कोर्ट में सीआरपीसी की धारा 482 के साथ ही ट्रांसफर याचिका भी दायर कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 24-2-14 को इन याचिकाओं का निपटारा करते हुए प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश से आग्रह किया था कि वह इस मामले की स्वयं सुनवाई करके इसका निपटारा करें। उसके बाद फिर नये सिरे सेे यह मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में आया जो अब तक लंबित चल रहा है। इस प्रकरण में जब 7 सितम्बर 2013 को आरसीएस ने एचपीसीए को शो काॅज नोटिस जारी किया था। तब इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी। उच्च न्यायालय ने आरसी एस को निर्देश दिये कि वह इसकी सुनवाई करके अपना फैसला दे लेकिन फैसले पर अमल दस दिन तक रोक दिया जाये ताकि एचपीसीए इसमें अगली कारवाई के लिये उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सके यदि वह चाहे तो। इसी बीच सचिव राजस्व ने एचपीसीए की लीज़ रद्द करने का फरमान 20 अक्तूबर को जारी कर दिया और जिलाधीश कांगड़ा ने आधी रात को ही कब्जा ले लिया जिसे उच्च न्यायालय ने न्यायसंगत नही माना और एचपीसीए को संपतियां वापिस मिल गयी। आरसीएस ने भी 28 अक्तूबर 2013 को इस पर अपना फैसला सुना दिया जिस पर उच्च न्यायालय के निर्देशों के कारण अमल नही हो सका और तब से यह मामला लंबित चल रहा है।
एचपीसीए वीरभद्र के इस शासनकाल में विजिलैन्स के लिये सबसे बडा मुद्दा रहा है और चार मामले इसकेे खिलाफ चल रहे हैं। एक मामले में तो सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट की कारवाई पर स्टे लगा रखा है। एक मामले में प्रदेश उच्च न्यायालय ने एचपीसीए के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इन्कार कर दिया है। लेकिन एचपीसीए के खिलाफ चल रहे मामलों में जब यह फैसला आ जायेगा कि यह सोसायटी है या कंपनी तो सारे मामलों के परिदृश्य पर असर पड़ेगा। यदि सोसायटी से कंपनी बनना सही मान लिया जाता है तो बहुत कुछ राज्य सरकार के हाथ से बाहर हो जाता है। इस समय मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई और ईडी के जो मामले चल रहे हैं उनके लिये मुख्यमन्त्री, प्रेम कुमार धूमल, अनुराग ठाकुर और अरूण जेटली को कोसते आ रहे हैं। वीरभद्र सिंह का मानना है कि उनके खिलाफ यह लोग षडयंत्र रच रहे हैं। दूसरी ओर प्रेम कुमार धूमल के खिलाफ आय से अधिक संपति की जो कथित जांच विजिलैन्स में चल रही है उसको धूमल राजनीतिक प्रतिशोध की कारवाई करार दे रहे हैं हालांकि इस जांच का अभी तक कुछ भी ठोस परिणाम सामने नही आया है। वीरभद्र प्रकरण में जब से ईडी ने दूसरा अटैचमैन्ट आदेश जारी किया है और उनको ऐजैन्सी के सामने पेश होने के सम्मन जारी किये है तब से पूरी भाजपा ने वीरभद्र के त्यागपत्र की मांग बढ़ा दी है बल्कि इसे राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बना दिया है।
वीरभद्र और धूमल के बीच चल रहा वाक्युद्ध कब क्या शक्ल ले लेगा यह कहना कठिन है लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बहुत कुछ एचपीसीए प्रकरण के शुरू होने से हुआ है। इस मामले में विजिलैन्स ने वीरभद्र के कुछ अति विश्वस्त अधिकारियों को खाना बारह में बतौर मुलजिम नामजद कर रखा है। बल्कि अभी एचपीसीए ने जिस एफआईआर कोे रद्द किये जाने की उच्च न्यायालय में गुहार लगायी थी उसमें भी एक आधार यह लिया था कि सरकार ने इस प्रकरण में अपने चहेते अफसरों को पार्टी नही बनाया है। माना जा रहा है कि एचपीसीए का संकेत इन्हीं अधिकारियों की ओर रहा है। ऐसे में यह स्वभाविक है कि यह अधिकारी नही चाहेंगे कि एचपीसीए के मामले किसी भी कारण से आगे बढ़ें।
शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के नये हाऊस का गठन चार जून तक होना है। इसके लिये निगम के चुनाव मई माह मे होने आवश्यक है। इस दिशा में जिला प्रषासन ने इसके लिये ड्राफट मतदाता सूचियां जारी कर दी हैं। ग्याहर अप्रैल को जारी हुई सूचियों पर दस दिन तक आपतियां दर्ज करवा कर इन्हें संशोधित करवाया जा सकता है। ड्राफट मतदाता सूचियों का अभिप्रायः ही यह होता है कि इनमें कुछ त्रुटियां हो सकती हैं। इस नाते इन सूचियों में गल्तीयां होना संभव है। लेकिन जिस पैमाने पर यह कमीयां सामने आयी हैं उससे निश्चित रूप से जिला प्रशासन की कार्य प्रणाली पर सवाल उठना स्वाभाविक है और इस दिशा में भाजपा और वाम दलों सहित समूचे विपक्ष ने इन सूचियों पर आपति उठायी है। क्योंकि भारी संख्या में मतदाताओं के नाम इनमें गायब पाये गये हैं यहां तक की कई मौजूदा पार्षदों तक के नाम गायब हैं। मतदाता सूचियां तैयार करना जिला प्रशासन का काम है और चुनाव करवाना राज्य निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी है। अब इन सूचियों में पायी गयी कमीयों को लेकर महापौर और उपमहापौर ने एक विस्तृत पत्र राज्य चुनाव आयुक्त को भेजा है।
दस दिन के भीतर इन सूचियों पर कितनी आपतियां आती है और उन पर जिला प्रशासन कितना जल्दी कारवाई करके इनको ठीक करता है इसका पता तो आने वाले दिनों में ही लगेगा। लेकिन वामपंथी मेयर और डिटी मेयर ने इसकेे लिये एक माह के अतिरिक्त समय की मांग की है। एक माह के समय की मांग का अर्थ है कि यह चुनाव तय वक्त पर हो पाना संभव नही है और इन्हें आगे सरका दिया जाना चाहिये। पिछले नगर निगम चुनावों के बाद प्रदेश विधानसभा के चुनाव हुए थे। उसके बाद मई 2014 में लोकसभा के चुनाव हुए। हर चुनाव से पहले मतदाता सूचियां संशोधित की जाती हैं। ऐसे में 2014 के बाद कितने नये मतदाता हुए हैं इसका आकलन करना कोई कठिन नही था। यदि 2014 की ही सूची को यथास्थिति जारी कर दिया जाता तो भी इतनी गड़बड़ न होती। लेकिन जो सूची जारी हुई है उसमें पिछले किसी भी चुनाव को आधार नही बनाया गया है। इससे जिला प्रशासन की नीयत और नीति दोनों पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
लेकिन इसी के साथ एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इस बार निगम चुनावों के लिये इसके वार्डों का पुनर्गठन किया गया है। पहले वार्डों की संख्या 25 थी जिसे बढ़ाकर अब 34 कर दिया गया है। इस बढ़ौत्तरी का तर्क यही था कि अब नगर निगम क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या बढ़ गयी है। सूत्रों के मुताबिक प्रत्येक वार्ड में औसतन तीन हजार से साढ़े तीन हजार मतदाताओं की संख्या मानी गयी थी। वार्डों का पुनर्गठन भी जिला प्रशासन और सरकार के बीच विचार विमर्श के बाद किया गया था। इस विचार विमर्श में राज्य चुनाव आयोग को शामिल ही नहीं किया गया था। शिमला नगर निगम की जनसंख्या और क्षेत्रफल चण्डीगढ़ से कहीं कम हैं। लेकिन चण्डीगढ़ नगर निगम में वार्डों की संख्या शिमला से कहीं कम है। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि यहां वार्डों की संख्या क्यों बढ़ायी गयी और इस पर सारे राजनीतिक दलों ने कारगर विरोध क्यों नही किया।
राज्य चुनाव आयोग को भेजा महापौर और उप महापौर का पत्र-
Dear Sh P Mitra ji,
Hope this letter of ours finds you in good mood and health.
We are writing this letter to you both as the elected representatives of the city and as citizens who are completely perturbed the way and manner in which the electoral rolls for Shimla Municipal Corporation elections have been drawn. The rolls are a complete mess. More than half the population have been left out. Not more than 0.5% young voters find space in the rolls. Age group from 18 to 22 are completely missing. Seems no revision of the electoral rolls have been done.
Those who were less than 18 years during the last elections should have been incorporated but since no exercise in this regard has been done, this group is left out. Similarly, there is utter confusion over the boundaries of the wards and incorporation of the voters.
It is quite funny that not one but a large number of elected representatives are missed out and some are finding their place in other wards where they have never stayed in their lifetimes. We have done a cursory exercise, though it is difficult for both of us to go through the entire voter list and would like to present concrete cases from Kaithu, Totu, Majath and Summer hill wards which speaks about the generality of the methodology adopted and the procedure done for preparation of these electoral rolls. And as we have mentioned there is utter chaos and more chaos. Similar trend is found in other wards as well.
It is in this background that we want you to intervene and direct the electoral officer to conduct fresh survey and revision of the electoral rolls in the entire Municipal region. Appropriate time period of not less than one month should be given for this exercise.
Here are the concrete discrepancies: –
In Majath ward which is number 7 and which has been carved out from Totu ward.
23 and 24 Surender Ramola reside in Boileauganj ward and is an employee of Indian Institute of Advanced Studies.
29 to over 50 such numbers all from Boileauganj ward .
69 already mentions the address as Kamna Devi which is in Boileauganj ward.
165 Haneef runs a shop near Boileauganj police station and resides there.
166 Naresh Sharma works in HP High Court resides next to Masjid Boileauganj. Hence wrong admission.
Apparently all the 327 voters in this ward are not from Majath area but from Boileauganj ward. This Majath ward should have more than 2000 voters.
Note: – Hence it is not possible to carve a new ward without conducting door to door exercise which requires ample time . The entire list has to be shifted to another ward.
Summer Hill ward No. 5.
In 5/2 No 93 to 95 all of them reside in Bharari ward.
There are over 5 girls hostel but just one finds place that too very few in number. Hostels like NBH 1,2,3 etc are not included. Similarly hostels like Gargi , Reneka etc are partially included. Surprisingly the list hardly contains voters less than 22 years of age.
Totu ward No 6
6/1 SNo. 9 Sh Bhagwati Prasad Sharma is an advocate in HP High Court and president of the Bar association, resides in Kusumpti ward. Similarly, SNo 10 and 11.
121-123 Kusum Thakur happens to be the councillor in the present MC from Kusumpti ward. She too finds her place in Totu.
34 Dhara Saraswati works in Doordarshan Kendra and has her residence in Main Bazar Kusumpti.
158 KN Gupta died 10 years ago.
SNo 467 to 471, the residents have left long back as their building was demolished .
SNo 485 died long back.
6/2 Sno. 47 , 48 Madan Chauhan from Anji village Chotta Shimla. Quite clearly mentioned in the voter list as well . Still finds place in Totu.
84 , 85 Gaurav Sud , works in SJVNL lives in Vikasnagar.
6/3 SNo 17-33 all the residents are from CHakkar ward though clearly mentioned in the voters list. Still in Totu.
SNo 105-105 from Ghora Chowki from Kachi Ghati ward. Mentioned in the voters list.
108-110 Reside near Tenzin hospital Kusumpti as mentioned in the voters list. Still in Totu.
SNo 115-116 from Government Press colony which is in Chakkar ward, still in Totu.
SNo 152 -153, 194 to 213 all From Majath ward.
246 to 270 all from Majath ward.
SNo 325 Vidya Sagar retired from HPU from Majath ward.
Sno 361 and his family Dr Mast Ram Sharma retired principal from Sanskrit college , prominent Congress leader from Majath ward.
419 Nitya Nand Sharma retired from HPU , Majath ward.
SNo 424 -426 Kailash Verma , prominent journalist , Majath ward.
SNo 671 Nirmala Chauhan present councillor from Totu ward but after delimitation in Majath ward. Still in Totu.
6/4 SNo. Subhash Chand press reported Doordarshan lives in Khalini.
SNo 109 Prakash Chand from Majath ward.
SNo 345 died 10 years ago and SNo 346 , 347 reside in Chandigarh since last 15 years ; press correspondent with The Tribue.
Kaithu ward.
3/1 Prominent missing, Rakesh Singha ex MLA though his wife finds place. Tikender Singh Panwar, deputy Mayor.
In Hotels over 300 workmen who were there in the previous list are missing.
3/2 SNo 26-66 all from Totu ward. Prominent amongst them SNo 41 Dibeshwari Sud, principal of Shishu Shiksha Niketan school Totu. SNo 27 Daleep Kumar brother of the councillor form Totu.
3/4 SNo 53 Pratap Singh Panwar from Chakkar area of Boileauganj ward.
SNo 89-99 Chandla’s of Van Chum computers from Chakkar area.
SNo 119 to 122 leading sports shop owner Amit Sports Totu.
124 Ramesh Chand Xen PWD Totu.
127 Harish Julka works in AG office resides in Lower Totu. In fact, the Radha Swami satsang takes place at his residence.
130 Chiranjee Lal Kashyap former MLA from Kusumpti lives in Totu.
SNo 140 to 174 from Totu ward.
SNo 176 Sanjay Gupta Executive Engineer with PWD Shimla circle lives in Chakkar.
SNo 228 to 255 all from Lower Totu.
Dear Mitra ji, what we have been able to decipher is just a tip of the iceberg lying underneath. There is complete chaos and mess up with the electoral rolls. Hence we request you to intervene immediately so that the mess can be cleared and the onus of correction is not transferred onto the people. This is the job of the electoral officers.
It is in this background that we have written this letter to you for your intervention and direction to the district administration to conduct a fresh revision with ample time so that the spirit of democracy is not curtailed or rubbished by the electoral process. The people should not be led to lead a struggle to ensure that they are legitimately enrolled as voters which is their due and for which the electoral officers are paid from the public money to ensure that the process and procedure is done transparently.
With greetings.
Tikender Singh Panwar
Deputy Mayor
Sanjay Chauhan
Mayor.
Cc:-The Deputy Commissioner, Shimla.
शिमला/शैल। परिवहन मन्त्री जी एस बाली ने लालबत्ती छोड़ने का ऐलान करके एक बार फिर अपने राजनीतिक इरादों को जग जाहिर कर दिया है। इससे पहले बाली ने अपनी संपति की सार्वजनिक घोषणा करके राजनीतिक हल्कों में हलचल पैदा कर दी थी। बेरोजगारी भत्ते के लिये भी बाली ने वीरभद्र पर पूरा राजनीतिक दबाव बनाकर यह फैसला लागू करवाया है यह जगजाहिर है। बाली के वीरभद्र से इस शासनकाल में यदा-कदा मतभेद भी चर्चित होते रहे हैं। इन मतभेदों के चलते कई बार पद त्यागने के मुकाम तक भी बाली जा पहुंचे हैं। बाली के केन्द्रिय परिवहन मन्त्री नितिन गडकरी और दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल के साथ अच्छे रिश्ते होना भी राजनीतिक गलियारों की चर्चा रह चुके हैं। लेकिन इसी के साथ यह भी सच हैं कि वीरभद्र के हर संकट में वह उनके साथ खड़े रहे हैं। जब राजेश धर्माणी ने विद्रोह के स्वर मुखर किये थे और धर्माणी के साथ राकेश कालिया भी शामिल हो गये थे उस समय उठे राजनीतिक तूफान को शांत करने में भी बाली की अहम भूमिका रही है। बल्कि पार्टी के अन्दर जब भी वीरभद्र के लिये राजनीतिक संकट उभरने की नौवत आयी तो उसे टालने में बाली हर बार सबसे आगे रहे हैं। बाली के केन्द्र सरकार के आटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी के साथ भी व्यक्तिगत रिश्ते हैं जबकि वीरभद्र अपने खिलाफ चल रहे मामलों में दिल्ली उच्च न्यायालय तक में रोहतगी और पीठासीन जस्टिस सांघी की रिश्तेदारी को लेकर अदालत पर अविश्वास व्यक्त कर चुके हैं। इस परिदृश्य में बाली के हर राजनीतिक कदम के मायने अपने में गभीर और चर्चा का विषय बन जाते हैं।
इस समय बाली पर अपनी संपति घोषित करने और लाल बत्ती छोड़ने के लिये कोई वैधानिक अनिवार्यता नही थी और न ही पार्टी का कोई ऐसा राजनीतिक फैसला था। लेकिन फिर भी बाली ने यह फैसले लिये क्योंकि अभी पंजाब के मुख्यमन्त्री अमरेन्द्र सिंह ने वीआईपी कल्चर समाप्त करने की दिशा में ऐसा फैसला लिया। बल्कि पंजाब के वित्तमन्त्री मनप्रीत बादल ने तो सरकारी गाड़ी तक का प्रयोग छोड़ दिया है। पंजाब के बाद उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने भी ऐसी ही घोषणा की है। लेकिन हमारे यहां लालबत्ती पाने के लिये वीरभद्र के नजदीकी विधायक संजय रत्न ने जमीन आसमान एक कर दिया। विधायकों को बत्ती देने के लिये कईयों को लाल और नीली बत्तीयां देनी पड़ी है। बाली के संपति घोषित करने के बाद दूसरा कोई राजनेता ऐसा साहस नही कर पाया है। बाली ने अपनी संपति और ऋण दोनों सार्वजनिक किये हैं और इस पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं उठा सका है। जबकि एक समय यही बाली म्यूजिकल बलास्टर और स्की विलेज को लेकर अपने और विरोधीयों के बराबर निशाने पर रह चुके हैं। शान्ता कुमार जैसे नेता भी बाली पर आरोप लगा चुके हैं लेकिन आज बाली के खिलाफ भाजपा तक कोई आरोप नहीं लगा पा रहा है।
इस समय मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई और ईडी के मामले जिस हद तक आगे बढ़ चुके हैं उनके परिदृश्य में यह चर्चा चल पड़ी है कि क्या आने वाले विधानसभा चुनावों के लिये वीरभद्र सिंह ही पार्टी के नेता रहेंगे या फिर किसी नये नेता को सामने लाया जायेगा। यदि किसी कारण से पार्टी को नया नेता तलाशने की नौवत आ जाती है तो उस दिशा में बाली सबसे पहला नाम होंगे यह तय है। मानाजा रहा है कि बाली ने यह घोषणाएं करके अपने को नेतृत्व की पहली पंक्ति में खड़ा कर लिया है। यदि बाली को नजरअन्दाज किया जाता है तो वह इस समय विद्रोह करने की पूरी स्थिति में है। बाली ने यह घोषणाएं करके अपरोक्ष में हाईकमान को अपने इरादे जगजाहिर कर दिये हैं क्योंकि कभी वीरभद्र ने भी हाईकमान पर दबाव बनाकर ही यह कुर्सी हासिल की थी और आज बाली भी उन्हीं के नक्शे कदम पर चल पडे हैं।
शिमला/शैल। प्रदेश उच्च न्यायालय ने एचपीसीए के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इन्कार कर दिया है। इसमें अनुराग ठाकुर भी अभियुक्त नामजद हैं। इसी के साथ धूमल के खिलाफ 2013 से लंबित चली आ रही आय से अधिक सम्पति की शिकायत पर जांच तेज हो गयी है। इस जांच के लिये विजिलैंस की टीम पंजाब में जालन्धर जाकर आ गयी है। जालंधर में धूमल परिवार का तब से कारोबार चला आ रहा है जब हमीरपुर पंजाब का ही भाग हुआ करता था। बल्कि कांगड़ा, ऊना और हमीरपुर के अधिकांश लोगों का पंजाब के विभिन्न शहरों में कारोबार है और बहुत से लोग तो पंजाब में स्थायी तौर पर ही बस गये हैं लेकिन उनका हिमाचल से भी पुश्तैनी रिश्ता बराबर बना हुआ है। इसलिये धूमल और परिवार की पंजाब में संपतियां होना स्वभाविक है। प्रश्न सिर्फ इतना है कि यह संपतियां वैध स्त्रोतों से बनाई गयी है या नहीं। दूसरा प्रश्न है कि 1998 में जब धूमल हिमाचल के मुख्यमन्त्री बने उसके बाद कितनी संपतियां बनाई गयी और वह क्या परिवार की आय से मेल खाती है या नहीं। धूमल ने इस संद्धर्भ में वीरभद्र को खुली चुनौति दी है कि वह विजिलैंस की बजाये सीबी आई से जांच करवा लें। बल्कि एक बार धूमल ने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को भी पत्र लिखकर आग्रह किया था कि इस समय हिमाचल के मुख्यमन्त्री रह चुके तीनों व्यक्ति शान्ता, वीरभद्र और धूमल जिन्दा है इसलिये तीनों की ही सीबीआई से जांच करवा ली जाये। धूमल की इस चुनौति पर शान्ता और वीरभद्र की ओर से कोई प्रतिक्रिया तक नहीं आई थी। धूमल के खिलाफ 2003 में भी कांग्रेस नेताओं आनन्द शर्मा, मोती लाल बोहरा और अमरेन्द्र सिंह ने ऐसे ही आरोप लगाये थे। उस समय बड़ोग में एक पत्रकार वार्ता में आनन्द शर्मा ने ऐसी सम्पतियों की एक लिस्ट भी जारी की थी लेकिन यह आरोपी कभी प्रमाणित नहीं हो पाये।
अब फिर सरकार के एक उप महाधिवक्ता विनय शर्मा की शिकायत पर धूमल के खिलाफ जांच करवाई जा रही है। वीरभद्र जब से आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में सीबीआई और ई डी की जांच झेल रहे हैं तभी से वह इसके लियेे धूमल,अनुराग और जेटली को कोसते आ रहे हैं। वीरभद्र लगातार यह आरोप लगा रहे हैं कि उनके खिलाफ चल रही जांच इनका षडयंत्र है। वीरभद्र धूमल को इस कदर कोस रहें हैं कि वह यहां तक कह रहें हैं कि यदि भाजपा सत्ता में आ गयी तो धूमल इसके मुख्यमन्त्री नही होंगे। वीरभद्र यह भी की रहे हैं कि धूमल पार्टी में भी अलग थलग पड़ते जा रहे हैं। कुल मिलाकर वीरभद्र की प्रतिक्रियाओं से यह स्पष्ट झलक रहा है कि भाजपा में वह धूमल को ही अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वन्दी मानते हैं। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों की नज़र में इस समय धूमल-अनुराग को घेरना वीरभद्र की पहली प्राथमिकता बन चुकी है। क्योंकि यदि वीरभद्र की विजिलैंस धूमल के खिलाफ पुख्ता आधारों पर आय से अधिक संपति का मामला दर्ज कर लेती है तो यह मामला भी समानान्तर रूप से ईडी के पास पंहुच जायेगा जैसे वीरभद्र का अपना मामला पहुंचा हुआ है।
लेकिन धूमल के खिलाफ जब 2003 में अमरेन्द्र सिंह, आनन्द शर्मा और मोतीलाल बोहरा ने आरोप लगाये थे और इन आरोपों पर धूमल ने इन नेताओं के खिलाफ मानहानि का मामला दायर किया था तब अमरेन्द्र सिंह ने तो इसमें बाद में क्षमा याचना कर ली थी। परन्तु आनन्द शर्मा और मोतीलाल बोहरा के खिलाफ यह मामला आगे चला लेकिन अन्त में धूमल इसे अदालत में प्रमाणित नही कर पाये और यह याचिका खारिज हो गयी। इस पर धूमल ने कहा था कि वह उच्च न्यायालय में अपील दायर करेंगे। परन्तु यह अपील आज तक दायर नहीं हुई है। इसी के साथ ए डी जी पी स्व0 वी एस थिंड ने भी धूमल के खिलाफ लोकायुक्त में इसी आश्य की एक याचिका दायर की थी। इस याचिका पर थिंड की मौत के बाद फैसला आया था। इस पर लोकायुक्त ने अपने फैसले में यह कहा है कि इस शिकायत में दर्ज आरोप शिकायत की तिथि से पांच वर्ष पहले के हैं और इस नाते उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर के हैं। इस तरह थिंड के आरोपों पर गुण-दोष के आधार पर फैंसला नहीं आया है। एक तरह से यह आरोप अपनी जगह खडे़ माने जा रहे हैं। अब यदि विजिलैंस सूत्रों की माने तो विजिलैंस इसी आधार पर अपनी जांच को आगे बढ़ा रही है। माना जा रहा है कि विजिलैंस इसी बिन्दु पर कानूनी विशेषज्ञों की राय ले रही है। सूत्रों का यह भी मानना है अब विजिलैंस को जालन्धर से डीपीएस मामले के भी कुछ सूत्र हाथ लगे हैं। लेकिन क्या इन सारे सूत्रों के बाद भी विजिलैंस धूमल के खिलाफ मामला दर्ज कर पायेगी इसको लेकर कुछ हल्कों में संदेह व्यक्त किया जा रहा है। क्योंकि इस समय शान्ता, नड्डा, धूमल से लेकर भाजपा के निचले स्तर के नेताओं नेे भी वीरभद्र सिंह से त्यागपत्र मांगना शुरू कर दिया है बल्कि भाजपा ने वीरभद्र के मामले को पूरे देश में प्रचारित-प्रसारित कर दिया है। सूत्रों का यह भी दावा है कि केन्द्र ने आईबी से भी प्रदेश के राजनीतिक हालात पर रिपोर्ट तलब की है। संभवतः इसी वस्तुस्थिति के कारण राज्यपाल की भूमिका को लेकर भी सवाल उठे हैं। इस समय प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य एकदम अनिश्चितता की ओर बढ़ता नज़र आ रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या विजिलैंस धूमल के खिलाफ मामला दर्ज करने का साहस कर पायेगी।
शिमला/शैल।
वीरभद्र सरकार के वित्त विभाग ने कठिन वित्तिय स्थिति से उभरने के लिये सेवा निवृत कर्मचारियों को जीपीएफ का भुगतान करने की बजाये इस धन को अपने पास बैंक के रूप में जमा रखने की येाजना शुरू की हुई है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक अब तक सेवानिवृत कर्मचारियों का करीब 800 करोड़ से भी अधिक का जीपीएफ सरकार के पास जमा हो चुका है। कर्मचारी अपना जीपीएफ सरकार के पास इसलिए जमा रख रहे हैं कि उनको इस पर बैंक की दर पर ही सरकार ब्याज अदा कर रही है। इसके साथ इन कर्मचारियों को यह भी आश्वस्त किया गया है कि इस धन पर उन्हें कोई आयकर की अदायगी नहीं करनी पडेगी। वैसे जब कोई कर्मचारी सेवानिवृत होता है और उसे उसका जीपीएफ आदि का इकट्ठा भुगतान होता है तब वह इस पैसे को या तो किसी काम मे निवेश कर देता है या फिर बैंक में जमा रखता है। बैंक में जमा रखे पैसे पर जो ब्याज अर्जित होता है उस पर आयकर लागू होता है।
लेकिन सरकार इस पर कोई आयकर अदा नहीं कर रही है। सरकार का तर्क है कि यह कर्मचारियों का जीपीएफ है और इस पर कोई आयकर नही लगता। जबकि कर्मचारी जब तक सरकारी सेवा में रहता है तभी तक उसका जीपीएफ कटता है। सेवानिवृत कर्मचारी का सेवानिवृति के बाद कोई जीपीएफ कटने का प्रश्न ही नहीं उठता है। सेवानिवृति के बाद सरकार इस पैसे पर कर्मचारी को वैसे ही ब्याज दे रही है जैसा कि उसे इस पैसे को किसी बैंक में रखने पर मिलता है। बैंक में रखे पैसे पर मिलने वाला ब्याज आयकर के दायरे में आता है। केन्द्र सरकार आयकर देने वालों का दायरा बढ़ाने के लिये हर संभव प्रयास कर रही है। लेकिन सरकार आज इस पैसे को अपने पास रखकर कर्मचारियों को इस प्रलोभन में रख रही है कि उन्हे इस पर इन्कम टैक्स से छूट मिल जायेगी।
इस सवाल पर सूत्रों के मुताबिक आयकर विभाग और वित विभाग के बीच पत्राचार भी हुआ है। आयकर विभाग ने इसे स्पष्ट रूप से आयकर एक्ट की अवहेलना माना है। माना जा रहा है कि अब तक करीब साठ करोड़ का आयकर विभाग को नहीं मिल पाया है। यह भी संभावना बनी हुई है कि अन्ततः इस पैसे पर कर्मचारियों को आयकर चुकता करना ही पडेगा क्योंकि इस पर आयकर विभाग की नजर बराबर बनी हुई है।