बाली सहित राजेश धर्माणी, राकेश कालिया, रवि ठाकुर रहे गैर हाजिर निर्दलीय मनोहर धीमान भी नही आये
शिमला/शैल। प्रदेश कांगे्रस के कुछ मन्त्रियों/विधायकों एवम् अन्य नेताओं को कांग्रेस से निकाल कर भाजपा में शामिल करवाने का प्रयास किया जा रहा है। पिछले दिनों यह आरोप लगाया है प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष और मुख्यमन्त्री के बेटे विक्रमादित्य सिंह ने। विक्रमादित्य के मुताबिक यह खेल केन्द्रिय मन्त्री चैाधरी विरेन्द्र सिंह रच रहे हैं। स्मरणीय है कि विरेन्द्र सिंह जब प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी थे तब उनके रिश्ते वीरभद्र सिंह से कोई ज्यादा अच्छे नहीं थे। विक्रमादित्य के इस आरोप के साथ ही प्रदेश के कुछ मन्त्रियों/विधायकों के नाम इस संद्धर्भ में अखबारों में भी उछले थे। जिसका किसी ने भी खण्डन नहीं किया था।
इसके अतिरिक्त जब सीबीआई ने आय से अधिक संपत्ति मामलें में ट्रायल कोर्ट में चालान दायर किया और ईडी ने महरौली स्थित फार्म हाऊस को लेकर दूसरा अटैचमैन्ट आदेश जारी किया तथा वीरभद्र सिंह को पूछताछ के लिये बुलाया उस दौरान अचानक एक राजनीतिक अनिश्चितता का वातावरण बढ़ गया था। उस समय वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस हाईकमान से भी बैठक की थी। इस बैठक में राजनीतिक परिथितियों पर चर्चा होने के साथ ही हाईकमान ने वीरभद्र सिंह को सारे हालात का स्वयं आकलन करने का परामर्श दिया था। इस दौरान वीरभद्र सिंह के अतिरिक्त बृज बुटेल, जीएस बाली, कौल सिंह ठाकुर और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह ने भी अलग-अलग हाईकमान से भेंट की थी। सूत्रों के मुताबिक इन बैठकों में हुए विचार-विमर्श के परिणाम स्वरूप ही वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाने का फैसला लिया था। वीरभद्र सिंह के खिलाफ चल रहें सीबीआई और ईडी मामलों की गंभीरता/अनिश्चितता आज भी यथास्थिति बनी हुई है। इस परिदृश्य में हुई कांग्रेस विधायक दल की बैठक का आकलन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
इस बैठक में जीएस बाली, राजेश धर्माणी, राकेश कालिया और रवि ठाकुर का गैर हाजिर रहना महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि यह सभी लोग कभी न कभी अपने विरोध को मुखर कर चुके हैं। संभवतः इस पृष्ठभूमि को समाने रखते हुए इस बैठक में बाली को लेकर सीधी चर्चा हुई। बाली को लेकर यह आरोप लगा कि उनका एक पैर कांग्रेस और एक पैर भाजपा में है और उन्हे स्पष्ट करना चाहिए कि वह कांग्रेस में है या भाजपा में। बाली के अतिरिक्त और किसी नेता के खिलाफ यह आरोप लगने का अर्थ है कि अब बाली को इस संबध में सर्वाजनिक तौर पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। यदि बाली के खिलाफ लगने वाला यह आरोप सही नही है तो फिर बाली को अपने विरोधियों के साथ खुलकर लड़ाई लड़नी होगी। बाली के साथ ही सुक्खु को लेकर भी इस बैठक में सवाल उठे है और संगठन पर अकर्मण्यता के गंभीर आरोप लगे हैं। वैसे सुक्खु और वीरभद्र में संगठन को लेकर पिछले कुछ असरे से रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं। संगठन के विभिन्न पदाधिकारियों को लेकर वीरभद्र कई बार खुला हमला कर चुके हैं। वीरभद्र का हर समय यह प्रयास चल रहा है कि सुक्खु के स्थान पर कोई नया ही व्यक्ति प्रदेश का अध्यक्ष बने। इसी कारण संगठन के अभी घोषित हुए चुनावों को भी टालने के लिये विधायक दल की बैठक में कुछ लोगों ने आवाज उठायी जबकि संगठन के यह चुनाव अब चुनाव आयोग के निर्देशों पर करवाने पड़ रहे हैं जिन्हें टालना संभव नही हो सकता।
इस परिदृश्य में यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है, जो लोग इस बैठक से गैर हाजिर रहे हैं यदि वह कल को वास्तव में ही पार्टी से बाहर जाने का मन बना लेते हैं तो तुरन्त प्रभाव से सरकार संकट में आ जाती है। बाली पर जिस तरह से सीधा हमला किया गया है उससे यह संकेत भी उभरता है कि पार्टी के भीतर बैठा एक वर्ग बाली को कांग्रेस से बाहर निकालने की रणनीति पर चल रहा है भले ही इसकी कीमत सरकार के नुकसान के रूप में ही क्यों न चुकानी पड़े। यह तय है कि इस बैठक मे जो कुछ घटा है उसके परिणामस्वरूप अब एक जुटता के सारे दावे अर्थहीन हो जाते हैं और यह स्थिति अन्ततः विधानसभा भंग होने तक पहुंच जायेगी।
सुभाष आहलूवालिया फिर आये ईडी के निशाने पर
शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया की पत्नी मीरा वालिया ने प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्य के रूप में पदभार संभाल लिया है। मीरा वालिया इससे पूर्व राजकीय कन्या माहविद्यालय शिमला की प्रिसिंपल के पद से सेवा निवृत होने के बाद शिक्षा के लिये गठित रैगुलेटरी कमीशन की सदस्य थी। अब सरकार ने रैगुलेटरी कमीशन से उनका त्यागपत्र स्वीकार करके लोक सेवा आयोग का सदस्य लगाया है। चर्चा है कि मीरा वालिया की नियुक्ति की फाईल राज्यपाल से करूक्षेत्र में साईन करवायी गयी और इसमें राज्यपाल के सलाहकार डा. शशीकांत ने भी पूरा योगदान दिया है, लेकिन भाजपा ने मीरा के पदभार संभालते ही उनकी नियुक्ति पर सवाल उठा दिये है। भाजपा नेताओं राजीव भारद्वाज, अजय राणा, राम सिंह और हिमांशु मिश्रा ने एक प्रैस ब्यान जारी करके इस नियुक्ति पर एतराज उठाया है। भाजपा नेताओं ने यह एतराज भाजपा शासन के दौरान आहलूवालिया दंपति के खिलाफ बने आये से अधिक संपत्ति मामले को लेकर उठाये हैं। स्मरणीय है कि इस मामले में इनका नार्कोटैस्ट तक करवाने की नौबत आ गयी थी, बल्कि मीरा वालिया को अपने बच्चों से मिलने के लिये विदेश नहीं जाने दिया गया था। उन्हें एयरपोर्ट से वापिस आना पड़ा था। मीरा वालिया के खिलाफ सरकारी नौकरी में रहते हुए एमवे कंपनी के लिये भी काम करने का आरोप लगा था और इस संबन्ध में कंपनी के साथ उनका अन्य सहयोगी के साथ एक फोटो भी चर्चित हुआ था।
आय से अधिक संपत्ति मामले में जांच ऐजैन्सी ने सीए राजीव सूद की रिपोर्ट भी हासिल की थी। राजीव सूद ने अपनी रिपोर्ट में 70 लाख की संपत्ति आय से अधिक पायी थी। यह मामला भाजपा सरकार के जाने के बाद वीरभद्र सरकार में केन्द्र सरकार द्वारा अनुमति न दिये जाने के कारण समाप्त हुआ था, लेकिन वीरभद्र सरकार आने के बाद इस संद्धर्भ में एक शिकायत भारत सरकार द्वारा काले धन को लेकर गठित एसआईटी के सदस्य सचिव एमएल मीणा तक पंहुच गयी थी। वहां से यह शिकायत ईडी के शिमला स्थित कार्यालय में पहुंची। इस पर ईडी ने सुभाष आहलूवालिया को तलब किया था, लेकिन उस समय ईडी के शिमला कार्यालय में प्रदेश पुलिस का ही एक अधिकारी सहायक निदेशक नियुक्त था। जैसे ही ईडी ने आहलूवालिया के खिलाफ कारवाई शुरू की। प्रदेश सरकार ने तुरन्त प्रभाव से उस अधिकारी को डैपुटेशन खत्म करके उसे वापिस बुला लिया। उस समय यह मामला प्रदेश विधानसभा में चर्चित हुआ था। भाजपा ने इस पर चार दिन तक सदन नही चलने दिया था इस परिदृश्य में उस अधिकारी के प्रदेश में वापिस आने के साथ ही यह मामला एक तरह से दब गया था। अब स्वभाविक है कि अब जब सरकार ने मीरा वालिया को इतनी बड़ी नियुक्ति दे दी तो भाजपा को यह मामला उठाने का फिर से मौका मिल गया और उसने इस दिशा में कदम उठा लिया।
दूसरी ओर ईडी के उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक सुभाष आहलूवालिया के मामले पर ऐजैन्सी पुनः से सक्रिय हो गयी है। सूत्रों के मुताबिक ईडी ने चण्डीगढ़ और दिल्ली में आहलूवालिया परिवार के कुछ निकटस्थों से लम्बी पूछताछ इन दिनों की है, जबकि चण्डीगढ़ का व्यक्ति तो इस परिवार से अपने कारोबारी रिश्ते भी समाप्त कर चुका है, लेकिन इसके वाबजूद ईडी ने इनसे लम्बी पूछताछ की है। इसमें कुछ लोगों के ब्यान भी रिकार्ड किये गये हैं। शिकायत में पन्द्रह बैंक खातों की सूची सौंपी गयी है। सूत्रों के मुताबिक इन खातों से जुड़ी जानकारी ईडी हासिल कर चुकी है। सूत्रों के मुताबिक सुभाष आहलूवालिया और उनकी पत्नी मीरा वालिया को कभी भी तलब किया जा सकता है। इसमें जेपी उद्योग समूह तक भी शिकायत के तार जा रहें है और इस उद्योग के अधिकारियों से भी पूछताछ की जा सकती है।
शैल/शिमला। विधानसभा पटल पर रखी कैग रिपोर्ट खुलासे के मुताबिक वन विभाग की चपत लगी है। वन महकमे के मन्त्री ठाकुर सिंह भरमौरी और वन निगम के उपाध्यक्ष केवल सिंह पठानियां दोनो ही मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के अति विश्वस्त माने जाते है। इसी कारण पठानिया का दखल विभाग मे भी विशेष चर्चा का विषय बना हुआ है। कैग रिपोर्ट के परिणामों के आधार पर संबधित अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला तक दर्ज किया जा सकता है ऐसा एग्रो पैकेजिंग कारपोरेशन के केस में हो भी चुका हैं लेकिन आज विभाग और निगम का राजनीतिक नेतृत्व मुख्यमन्त्री के खास लाडलों के पास है इसलिये इस तरह का कड़ा कदम नही उठाया जायेगा यह तय है। फिर भी कैग का खुलासा पाठकों के सामने रखा जा रहा है।
वनों के उत्पादन, प्रबन्धन और संरक्षण की जिम्मेदारी वन विभाग के पास है। लेकिन वन उपज के दोहन की जिम्मेदारी वन विभाग के पास है। वन उपज के दोहन के लिये संबधित वन क्षेत्र को एक तय समय सीमा तक निगम को लीज पर दिया जाता है। वन उपज के दोहन के लिये पेड़ कटान आदि हर चीज के रेट निर्धारित करने के लिये एक प्राईसिंग कमेटी बनी हुई है। मई 2011 में इस कमेटी ने तय किया था कि वन उपज के लिये प्रदेश के हर कोने में एक समान रेट लागू होंगे। 1991 में विभाग ने यह निर्देश जारी किये थे कि जो वनभूमि गैर वन उपयोग के लिये आवंटित की जायेगी उस पर पाये जाने वाले वृक्षों की कीमत संबधित ऐजैन्सी से ली जायेगी। 2004 में ब्लाॅक अधिकारियों और रंज अधिकारियों को पीसीसीएफ की ओर से निर्देश जारी किये गये थे कि अपने - अपने क्षेत्र का नियमित दौरा करें और यदि किसी तरह का कोई अवैध कटान सामने आता है तो उसकी तुरन्त रिपोर्ट करके अगली कारवाई को अन्जाम दें। ऐसे मामलों में पुलिस में भी समानान्तर कारवाई करके एफआई आर दर्ज करने का भी प्रावधान है। अवैध कटान आदि के मामलों में जब्त की गयी लकड़ी को तुरन्त सुपुर्ददारी में लेकर उसकी सुरक्षा करना और फिर उसकी निलामी आदि का प्रबन्ध करना फॅारेस्ट एक्ट 1951 की धारा 52 में पहले से ही दर्ज है।
इस तरह प्रबन्धन की जिम्मेदारी है कि राॅयल्टी की उगाही या उसके आकलन के कारण विभाग को राजस्व का नुकसान न हो। राॅयल्टी के साथ ही यह भी सुनिश्चित करना प्रबन्धन की जिम्मेदारी होती है कि यदि लीज अवधि के अन्दर काम पूरा नही हो सका है और उसके लिये समय अवधि बढ़ाई गयी है। उसके लियेे फीस ली जानी होती है। जब्त की गयी लकडी़ की समय अवधि बढ़ाई गयी है तो उसके लिये बढी हुई फीस ली जानी होती है। जब्त की गयी लकड़ी की समय पर निलामी सुनिश्चित करना, यह सब कुछ विभाग के प्रशासकीय दायित्वों का एक बहुत अहम भाग है। विभाग के शीर्ष प्रबन्धन और राजनीतिक नेतृत्व की यह जिम्मेदारी है कि वह देखे कि विभाग के कर्मचारी/अधिकारी इन दायित्वों को ईमानदारी से निभा रहे है या नहीं जब यह दायित्व नहीं निभाने के कारण सरकारी राजस्व को हानि पहुंचाई जाती है और उसके लिये किसी को भी जिम्मेदार नही ठहराया जाता है तब उस स्थिति को जंगल राज की संज्ञा दी जाती है इस जंगल राज के कारण आनी, बिलासपुर, देहरा , किन्नौर, करसोग, मण्डी, नाचन, रेणुकाजी, सिराज, शिमला, सोलन और ठियोग मण्डलों में जब्त की गई लकड़ी की निलामी न किये जाने के कारण अब 6.94 करोड़ के राजस्व का नुकसान हो चुका है। विभाग ने 2011 से 2015 के बीच वन विभाग को 57488.75 घन मीटर लकड़ी की निकासी का काम सौंपा। इसमें विभाग की 2011 की प्राईसिंग कमेटी के अनुसार रायल्टी का आकलन न करने के कारण 8.30 करोड़ के राजस्व की हानि हुई है। गैर वन उपयोग के लिये किन्नौर में 20 मैगवाट के राओरा हाईड्रो पावर को दी गयी जमीन पर खडे 536 पेड़ो की कीमत प्रौजेक्ट से न वसूलने के कारण 32.50 लाभ का नुकसान हुआ है। इसी तरह ई- सी भवन शिमला, छोटा शिमला कार पार्किंग निर्माण और लोक निर्माण विभाग को एवर सन्नी, गोलचा - भौंट सकड़ निर्माण और भूमि के एवज में यूजर ऐजैन्सी से 50.70 लाख नही वसूले गये। सिराज में 2008 एक्सटैंशन फीस नही वसूली। इसी तरह चुराह में 91 पेड़ो के अवैध कटान की कोई डैमेज रिपोर्ट तक नही काटी गयी और न ही कोई एफआईआर दर्ज करवायी गयी। इससे करीब एक लाख का नुकसान हुआ। इन मामलों का कैग ने गंभीर संज्ञान लिया है लेकिन सरकार के स्तर पर कहीं कोई कारवाई नहीं है।
उच्च न्यायालय में लग चुकी है अब तक 50 पेशीयां
शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के एल आई सी एजैन्ट आनन्द चैाहान पिछली नौ जुलाई से मनीलाॅंडरिंग मामले में जेल में है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनकी जमानत याचिका अस्वीकार कर दी है। आनन्द चैाहान वीरभद्र सिंह के आय से अधिक सम्पत्ति और मनीलाॅंडरिंग में दर्ज मामलों में सहअभियुक्त हैं। आय से अधिक सम्पत्ति मामले में सी बी आई अपनी जांच पूरी करके चालान ट्रायल कोर्ट में दायर चुकी है क्योंकि इस मामले में दर्ज एफ आई आर को रद्द करने की गुहार को दिल्ली उच्च न्यायालय रद्द कर चुका है। ई डी इस मामले में दूसरा अटैचमैन्ट आर्डर जारी करने के बाद वीरभद्र से भी पूछताछ कर चुकी है। इस सारे प्रकरण में अब तक केवल आनन्द चैाहान की ही गिरफतारी हुई है और उनकी जमानत याचिका तक खारिज हो चुकी है। आनन्द के पास जमानत के लिये केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही दस्तक देने का विकल्प बचा है। ऐसे में अब यह सवाल उठना शुरू हो गया है कि यह सारा मामला कहीं आनन्द चैाहान की मुर्खता का ही प्रमाण तो नहीं है जिसके कारण वीरभद्र और अन्य सभी जांच की आंच झेल रहे हैं।
इसे समझने के लिये इस पूरे प्रकरण में आनन्द की भूमिका को तथ्यों के आधार पर परखना आवश्यक हो जाता है।
आनन्द चैाहान का वीरभद्र सिंह के बागीचे के प्रबन्धन का एमओयू 15.6.2008 को हस्ताक्षरित है। आनन्द चैाहान ने आयकर विभाग के चण्डीगढ स्थित अपील अभीकरण में वर्ष 2009-10, 2010-11 और 2011-12 के आयकर आकलनों को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की थी। इन याचिकाओं पर 1-12-16 2-12-2016 को सुनावाई हुई और 8.12.2016 को फैसला आया है जिसमें अपील अभीकरण ने आनन्द चैाहान की याचिकाओं को अस्वीकार कर दिया है। इन याचिकाओं के माध्यम से जो तथ्य सामने हैं उन्हे समझने से यह स्पष्ट हो जाता है कि ईडी में मनीलाॅड्रिंग प्रकरण के तहत हिरासत झेल रहे चैाहान को जमानत क्यों नहीं मिल पा रही है। चैाहान वीरभद्र सिंह के सीबीआई और ईडी मामलों में सह अभियुक्त है। चैहान एलआईसी के ऐजैन्ट हैं बल्कि उनकी पत्नी भी एलआईसी की ऐजैन्ट हैं। इस नाते यह माना जाता है कि उन्हें एलआईसी में किये जा रहे निवेश और उसके परिणाम स्वरूप आयकर विभाग द्वारा आय आकलन के लिये अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का पूरा ज्ञान होगा ही। वीरभद्र परिवार के सदस्यों के नाम आनन्द चैाहान के माध्यम से ही एलआईसी पाॅलिसियां ली गयी है और इन्ही पाॅलिसियों के आधार पर वीरभद्र परिवार अपने विरूद्ध सीबीआई और ईडी की जांच झेल रहे हैं।
आनन्द चैाहान ने वर्ष 2009-10 के लिये 1,83,700 रूपये की आयकर रिटर्न दायर की है जिसे विभाग ने 2.24 लाख पाकर पड़ताल के लिये 15.7.2011 को नोटिस जारी किया क्योंकि विभाग को चैाहान के पीएनबी संजौली शाखा और एचडीएफसी बैंक में खाते होने की जानकारी मिली थी जिसका रिटर्न में कोई जिक्र नहीं था। विभाग के नोटिस के जबाव में 20.10.2011 को कहा कि यह बैंक खाता परिवार का संयुक्त खाता है जिसमें कृषि आय और कमीशन आदि का हिसाब है। लेकिन फिर 22.11.2011 को सूचित किया कि इस खाते मंे वीरभद्र सिंह के बागीचे की आय का हिसाब है और वह बागीचे प्रबन्धक हैं तथा इस आश्य का 15.6.2008 का हस्ताक्षरित एमओयू है इस एमओयू की फोटो कापी विभाग को दी और यह यह कहा कि मूल प्रति खो गयी है। सीबीआई और ईडी को भी फोटो कापी ही दी गयी है। इस फोटो कापी की प्रमाणिकता जांचने के लिये आयकर अधिकारी ने वीरभद्र सिंह का कोई ब्यान तक नही लिया है। इस एमओयू में प्रयुक्त स्टांप पेपरों पर आनन्द का नाम कटिंग करके डाला गया है रजिस्ट्र में भी कटिंग की गयी है। पीएनबी के खाते में चैाहान के नाम पर 1.04 करोड़ जमा है। एचडीएफसी में पांच लाख 20.11.2008 को जमा होते हैं और चैाहान इन्हे एक साधराम द्वारा एलआईसी पाॅलिसी के लिये दिये गये बताता है। चैाहान 26.11.2008 को एलआईसी के नाम चैक काटता है। लेकिन जांच में साधराम के नाम से कोई पाॅलिसी ही नही निकलती है। जबकि वीरभद्र सिंह के नाम दस लाख की पाॅलिसी का फार्म 18.6.2008 को भरा जाता है इसी दौरान युनिवर्सल एप्पल 1.6.2008 और 13.6.2008 को पांच-पांच लाख चैाहान को देता है जिसे वीरभद्र के बागीचे की आय बताया जाता है। एलआईसी के लिये चैक भी दस लाख का ही दिया जाता है। यहां पर सवाल उठता है कि जब आनन्द के साथ एमओयू ही 15.6.2008 को साईन होता है। तो फिर 1.6.2008 और 13.6.2008 को वीरभद्र के नाम से यूनिवर्सल एप्पल चैाहान को पेमैन्ट क्यों और कैसे कर रहा है। एमओयू का दावा चैहान करता है। स्टांप पेपर वह लेता है लेकिन आयकर विभाग इस पर वीरभद्र से क्यों नही पूछता है। इसका कोई कारण नही बताया जाता है। वर्ष 21010-11 के लिये चैाहान 3,40,080 रूपये की रिटर्न भरता है जबकि उसके बैंक खाते में 2,12,72,500रूपये जमा होते हैं। उसके पास 1.4.2009 को 1.03 करोड़ कैश इन हैण्ड होता है। इसी वर्ष में वह 3.84 करोड़ वीरभद्र परिवार के नाम पर एलआईसी में निवेश करता है। वीरभद्र के साथ हुए कथित एमओयू के अनुसार बागीचे की सारी उपज की सेल करना उसकी जिम्मेदारी है और वह यूनिवर्सल एप्पल को यह सेब बेचता भी है। परन्तु सेल के लिये बिल आनन्द की बजाये यूनिवर्सल एप्पल काटता है। जबकि कायदे से यह बिल आनन्द को काटने चाहिए थे। 12.8.2009 को 3540 क्रमांक का बिल काटा जाता है। इसमें 310 बाक्स 900 रूपये प्रति बाक्स और 105 बाक्स 550 रूपये प्रति बाक्स दिखाये जाते हैं। इसके बाद 19.8.2009 को क्रमांक 1989 का बिल काटा जाता है। जिसमें 403 बाक्स 1780 रूपये प्रति बाक्स दिखाये जाते हैं। जांच में यह भी सामने आता है कि चैाहान के पास 2.91 करोड़ छःमाह, 2.41 करोड़ दो माह और 1.41 करोड़ 25 दिन के लिये कैश इन हैण्ड रहता है। जबकि एमओयू की शर्त के मुताबिक इस पैसे का तुरन्त निवेश हो जाना चाहिए था परन्तु ऐसा हुआ नही है। इसी दौरान आनन्द चैाहान एलआईसी के विकास अधिकारी मेघ राज शर्मा के खाते में 49.50 लाख जमा करना बताता है। जबकि बाद में यह रकम एक करोड़ निकलती है।
वर्ष 2011-12 के लिये आनन्द चैाहान 2,65,690 रूपये की रिटर्न भरता है। जबकि उसके खाते में 1.35 करोड़ जमा होते हैं जिनमें से 1.30 करोड़ वह एलआईसी को ट्रांसफर करता है। इसी तरह यूनिवर्सल एप्पल 1.5.2010 से 8.5.2010 के बीच आनन्द को एक करोड एडवांस देना बताता है लेकिन उसके रिकार्ड में इसकी कोई एंट्री ही नही मिलती है। आनन्द चैाहान ने वीरभद्र परिवार के नाम जो 15 एलआईसी पाॅलिसियां ली हैं वह 27.3.2010, 28.05.2010 और 31.12.2010 की हैं सबमें एकमुश्त पैसा जमा हुआ है।
इन सारे तथ्यों को सामने रखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि आनन्द चैाहान ने हर वर्ष अपनी आयकर रिटर्न भरते हुए अपनी पूरी आय का खुलासा नही किया है। तीनों वर्षो की रिटर्न के मुताबिक इस अवधि में वह अपनी आय करीब आठ लाख दिखाता है जबकि उसके खातों में करीब पांच करोड़ जमा होते हैं। बागीचे के प्रबन्धन का सारा खर्च वह करता है। इस खर्च के नाम पर 31.10.2010 को एक ही दिन वह पैकिंग के लिये 6,06,831/- कीटनाशक दवाईयों के 3,25,631/- और लेवर के लिये 3,50,000 रूपये खर्च करता है। आयकर अधिकारी जांच के लियेे उसकी रिटर्न पर उसको नोटिस जारी करता है जिस पर वह अन्ततः यह कहता है कि उसके खातों में जमा सारा पैसा वीरभद्र के बागीचे की आय है। इस आश्य के एमओयू की फोटो कापी पेश करता है मूल प्रति गुम होने की बात करता है। परन्तु इस एमओयू की प्रमाणिकता के लिये विभाग वीरभद्र से नही पूछता है आनन्द चैाहान ने अपनी आयकर रिटर्न गलत क्यों भरी? जब उसके खातों में पैसा था और वह उसका निवेश भी कर रहा था। ईडी सूत्रों के मुताबिक इसका कोई सन्तोषजनक उत्तर न दे पाने के कारण ही उसको जमानत नही मिल पा रही है।
23 प्रजातियों के वृक्षों के काटने /गिराने पर लगा प्रतिबन्ध हटा
24 प्रजातियों की वन उपज के ट्रांजिट परमिट पर मिली छूट
शिमला/शैल। हिमाचल सरकार ने प्रदेश के किसानों/ भू-मालिकों को एक बडी राहत देते हुए निजि भूमि से 23 प्रजातियों के वृक्षों को काटने/गिराने पर लगे प्रतिबन्ध को हटा लिया है। इसी के साथ 24 प्रजातियों के वृक्षों की वन उपज पर ट्रांजिट पास पर लगी छूट को भी तुरन्त प्रभाव से हटा लिया है। यह आदेश भू परिक्षण अधिनियम 1978 के तहत जारी किये गये हैं। सरकार के इस फैसले से प्रदेश के हजारों भू-मालिकों को एक बड़ी राहत मिली है। भू-मालिकों की निजि भूमि पर इन प्रजातियों के वृक्ष होते हैं लेकिन इनके काटने पर प्रतिबन्ध होने के कारण मालिकों को इनका लाभ
नही मिल पा रहा था। यह वृक्ष भवन निमार्ण कार्यों में प्रयुक्त होते हैं। इस नाते इनकी बाजार में भी मांग रहती है। इनमें से अधिकांश की वन उपज भू-मालिकों के लिये कैश क्राप की तरह लाभदायक सिद्ध हो सकती है। लेकिन इस उपज को बाजार में ले जाने के लिये ट्रांजिट परमिट नहीं मिल पाता था जिसके कारण भू-मालिक इस लाभ से वांच्छित रह जाते थे।
इस समय प्रदेश में अवैध काटन और वनभूमि पर अतिक्रमण की दो बड़ी समस्याएं चल रही है। सरकार ने छोटे भू-मालिकों को अतिक्रमण के मामलों में एक सीमा तक राहत देने की योजना बनाई है। इसके लिये प्रदेश उच्च न्यायालय से भी आग्रह कर रखा है। अतिक्रमणों को नियमित करने के लिये वर्ष 2002 में एक पाॅलिसी बनाई गयी थी जिस पर आज तक अमल नही हो पाया है। लेकिन भू-मालिक इससे भी ज्यादा इस बात से परेशान थे कि उनको अपनी ही जमीन से पेड़ काटने की अनुमति नही थी। अपनी वन उपज को बाजार तक नही ले जा पा रहे थे। अपनी ही जमीन से पेड़ काटने पर अवैध कटान के आरोपी हो जाते थे। अब यह प्रतिबन्ध हटने से भू-मालिकों को एक बहुत ही बड़ी राहत मिली है। इस वर्ष प्रदेश विधानसभा के चुनाव होने है इस नाते सरकार के इस फैसले से चुनावी परिदृश्य पर भी असर पड़ने की पूरी संभावना है।
यह है प्रजातियां जिन पर से प्रतिबन्ध हटाया गया है
काला सिरिस/ओई/सिरिस, कचनार/ करयाल, सफेदा, किमू/ चिमू/शहतूत/तूत/ मलबैरी, पाॅपलर, भारतीय विलो/बीयूंश,बैम्बू, क्लमस/लाठी बांस/मग्गर/धरेंच/ बांस, जापानी शहतूत/पेपर मलबैरी, पेइक/कोई/कोश/ कुनिश/न्यून, खिड़क/खड़की, दरेक बकिन, फगूडा/फेगुडा/त्यामल/ तिमला/ तिरमल/अंजीरी/कलस्टर फिग/ गुलर, तून, जामुन, टीक/ सगुन/सागवान, अर्जुन, सेमल/ शलमाटास, बिहूल/बेयूल/भिमल/ भियूनल/धमन, पाजा/ पदम, कामला/रैनी/रोहण/रोहिन /सिन्दूरी, आम (वन्य प्रजाति) रिष्टक/रीठा/डोडे, बान,(अधिकतम पांच वृक्ष घरेलु उपयोग हेतु) को काटने पर से प्रतिबन्ध हटा दिया गया है। तथा 24 प्रजातियों की वन उपज के अभिवहन पास ट्रांजिट परमिट पर छुट दी गई है जिनमें काला सिरिस/ओई/सिरिस, कचनार/ करयाल, सफेदा, किमू/चिमू/ शहतूत/ तूत/मलबैरी, पाॅपलर, भारतीय विलो/ बीयूंश, बैम्बू, क्लमस/लाठी बांस/मग्गर/ धरेंच/बांस, कुठ (सासोरिया कोस्टस/लापा) का निर्यात तथापि वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अपेक्षा पूर्ण करने के अध्यधीन होगा, काला जीरा, जापानी शहतूत/पेपर मलबैरी, पेइक/कोई /कोश / कुनिश/नयून, खिडक/ खडकी, दरेक/ बकिन, फगूडा/ फेगुडा/त्यामल/तिमला/तिरमल/ अंजीरी/कलस्टर फिग/गुलर, तून, जामुन, टीक/सगुन/सागवान, अर्जुन, सेमल/शलमाटास, बिहूल/ बेयूल/ भिमल/ भियूनल/ धमन, पाजा/पदम, कामला/रैनी/रोहण/ रोहिन/ सिन्दूरी, आम (वन्य प्रजाति) रिष्टक/रीठा/डोडे, के अभिवहन पास पर छूट दी गई है।