शिमला/शैल। नगर शिमला के चुनाव हो रहे हैं इसके लिये 16 जून को मतदान होगा। इस चुनाव में वामदल, भाजपा और कांग्रेस में त्रिकोणीय मुकाबला होने जा रहा है। यह सभी दल सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। चुनाव उम्मीदवारों की सूची जारी करने में वामदलों ने पहल करके अपने विरोधीयों को इस संद्धर्भ में तो निश्चित रूप से पीछे छोड़ दिया है। नगर निगम में जीत का सेहरा किसके सिर सजता है यह तो 17 जून को चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा लेकिन यह तय है कि इन चुनावों का असर विधानसभा चुनावों पर भी पडे़गा। अभी जब मतदाता सूचियों को लेकर विवाद खड़ा हुआ और राज्य चुनाव आयोग द्वारा इन सूचियों को संशोधित करने के आदेश जारी करने पडे़ तब चुनाव आयोग के इस कदम को भाजपा ने प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी तथा साथ ही राज्यपाल को एक आरोप पत्र भी सौंपा। इस आरोप पत्र में भाजपा ने वामदलों और प्रदेश की कांग्रेस सरकार को खूब घेरा है। अब उच्च न्यायालय के फैसले के बाद यह चुनाव घोषित हो गये है। ऐसे में भाजपा को अपने आरोप पत्र पर जांच और कारवाई करने की मांग का तो शायद ज्यादा समय नही है लेकिन अब अपने ही आरोप पत्र के मुद्दों पर कारवाई करने का भरोसा इसे शिमला की जनता को देना पडे़गा।
पानी शिमला शहर की सबसे बड़ी समस्या है जिसके चलते निगम प्रशासन पूरे शहर को हर रोज एक साथ पानी देने की स्थिति में कभी भी किसी भी सीजन में नहीं रहा है, बल्कि भाजपा शासन के दौरान भी शिमला को पानी लाने के प्रयास में एक बड़ी पाईप लाईन बिछाई थी जिसे आशियाना रेस्तरां के पास से रिज के टैंक से जोड़ा गया था। जिसमें कभी पानी आया ही नहीं। पानी के संद्धर्भ में कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारों की स्थिति एक जैसी ही रही है। पानी के बाद शहर की दूसरी बड़ी समस्या अवैध निमार्णों की है। शहर में 7000 से भी अधिक अवैध निर्माण है। हर सरकार में अवैध निर्माण होते रहे हैं। जिन्हें नियमित करने के लिये हर बार रिटैन्शन पाॅलिसीयां लायी जाती रही है। नौ बार ऐसा हो चुका है इस बार यह मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में लंबित चल रहा है। शहर में फैले पीलिया को लेकर संवद्ध अधिकारियों के खिलाफ कारवाई किये जाने को लेकर भी आज तक मामला उच्च न्यायालय में लंबित चल रहा है। सरकार और निगम प्रशासन इन लोगों के खिलाफ अदालत से हटकर अपने स्तर पर विभागीय कारवाई को अंजाम दे सकते थे लेकिन ऐसा नहीं किया गया है। शहर मे सीवरेज के लिये भी एक समय बड़ा मास्टर प्लान तैयार किया गया था। आऊट सोर्स के नाम पर यह सर्वे एक दिल्ली की कंपनी से करवाया गया था, लेकिन यह सीवरेज प्लान आज तक अमली जामा नही ले पायी है। भाजपा ने निगम क्षेत्र मे हुए भ्रष्टाचार की जांच के लिये राज्यपाल को एक आरोप पत्र सौंप कर नगर की जनता का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है। ऐसे में उजागर किये गये इस भ्रष्टाचार पर सख्त कारवाई की वचनबद्धता क्या भाजपा शिमला की जनता को देगी या यह आरोप पत्र मात्र चुनावी प्रचार का मुद्दा होकर ही रह जायेगा इस पर शिमला की जनता की निगाहें लगी हुई है।
भाजपा ने एशियन विकास बैंक के ऋण से किये जा रहे शिमला के सौंदर्यीकरण पर भी गंभीर सवाल उठाये हैं। निश्चित रूप से सौन्दर्यीकरण के नाम पर इस 260 करोड़ के ऋण का आपराधिक दुरूपयोग हो रहा है। शहर के दोनो चर्चों की रिपेयर के लिये ही 24 करोड़ का अनुबन्ध किया गया है। इस अनुबन्ध का दस्तावेज शैल बहुत पहले ही अपने पाठकों के सामने रख चुका है। भाजपा ने अपने आरोप पत्र में भी इस मुद्दे को उजागर किया है। सौन्दर्यीकरण के इस काम के एक बड़े भाग को जो ठेकेदार अंजाम दे रहा है उसने पिछले दिनों जब प्रधानमन्त्री मोदी शिमला आये थे। भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। उसकी पत्नी ने भी जो कभी शिमला की मेयर रह चुकी है भाजपा की सदस्य बन गयी है। बहुत संभव है कि महिला के नाम पर वह शिमला से विधान सभा के लिये भाजपा की उम्मीदवार हों। इन लोगों के सहयोग से शिमला में सौन्दर्यीकरण के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचर को इन लोगों के माध्यम से और भी विस्तार से जनता के सामने ला सकती है। इस परिदृश्य में क्या भाजपा अपने इस आरोप पत्र पर कारवाई करने की वचनबद्धता शिमला की जनता को दे पायेगी या नही इस पर सबकी निगाहें लगी हुई है।
शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के चुनाव टल गये हैं क्योंकि राज्य चुनाव आयोग ने निगम क्षेत्र की मतदाता सूचियों पर आयी आपत्तियों के बाद इन्हे नये सिरे से संशोधित करके तैयार करने के निर्देश दिये है जिलाधीश शिमला को। मतदाता सूचियों के संशोधन की प्रक्रिया 23 जून तक चलेगी। मतदाता सूचियों पर माकपा, भाजपा और कांग्रेस तीनो दलों के अपने-अपने आरोप रहे हैं बल्कि इन्ही आरोपों को लेकर मामला प्रदेश उच्च न्यायालय तक भी पहुंच गया था। माकपा ने तो अपने ज्ञापन में चुनावों को दो माह आगे करने की भी मांग की थी। अब आयोग द्वारा मतदाता सूचियों के संशोधन के आदेश से चुनावों के टलने पर भाजपा प्रदेश उच्च न्यायालय पहुंच गयी है। उच्च न्यायालय ने इस पर फैसला सुरक्षित रख दिया है।
अब यह फैसला सुरक्षित हो जाने के बाद भाजपा ने नगर निगम क्षेत्र के कुछ मुद्दों को लेकर राज्यपाल को एक आरोप पत्र सौंपा है। इस आरोप पत्र में कांग्रेस सरकार, कांग्रेस पार्टी और माकपा पर तीखा हमला बोला है। आरोप पत्र में लगाये आरोपों को माकपा ने सिरे से खारिज करते हुये इन्हे झूठ का पुलिन्दा कहा है। यह आरोप पत्र अपने में गंभीर है और इन्हे माकपा के नकारने से ही नज़रअन्दाज नही किया जा सकता। लेकिन इन आरोपों को लेकर भाजपा की अपनी नीयत और नीति पर भी सवाल खड़े हो जाते हैं। वर्तमान निगम हाऊस में पार्षदों का बहुमत भाजपा के पास है यदि महापौर और उप-महापौर के लिये सीधे चुनाव न हुए होते तो निगम पर भाजपा का कब्जा होता। भाजपा का पार्षदों में बहुमत होने के साथ ही स्थानीय विधायक भी निगम हाऊस के पदेन सदस्य हैं और वह भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं। लेकिन आज आरोप पत्र में जो आरोप लगाये गये हैं उन पर अब तक भाजपा की चुप्पी ही रही है।
यदि निगम के चुनाव न टलते तो स्वभाविक है कि यह आरोप पत्र भी न आता। आरोप पत्र न आता तो यह आरोप अपनी जगह वैसे ही खत्म हो जाते। क्योंकि उस समय तो चुनाव के मुताबिक काम किया जाता है। ऐसे में आज यह स्वभाविक प्रश्न उठता है कि इन आरोपों को लेकर भाजपा आज तक खामोश क्यों रही है? क्या इनमे भाजपा के भी कुछ लोगों के हित जुड़े हुए थे।
शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुक्खविन्दर सिंह सुक्खु पर हर संभव मंच से लगातार निशाना साधते आ रहें हैं। जो स्थिति सरकार बनने के समय विभिन्न निगमो/बार्डो में हुई ताजपोशीयों को लेकर हुई थी ठीक वैसा ही अब हो रही है। संगठन द्वारा की जा रही हर नियुक्ति पर वीरभद्र की तीखी प्रतिक्रियाएं आती हैं। मुख्यमन्त्री और संगठन के मुखिया के बीच इस तरह की सार्वजनिक निशाने बाजी से सरकार व संगठन की कार्यप्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव पडना स्वभाविक है। निष्पक्ष विश्लेषकों की नजर में इस समय सरकार और संगठन में एक बराबर अराजकता का वतातवरण बना हुआ है। सरकार में जो करीब एक दर्जन लोग सीधे लाभार्थी हैं उनको छोड़कर प्राय हर आदमी सरकार से हताश है संगठन तो आम आदमी के लिये मायने ही नहीं रखता है।
इस परिदृश्य में इन दिनों यह सवाल आम चर्चा में है कि वीरभद्र ऐसा कर क्यों रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि वींरभद्र को जो राय उनके गिर्द बैठे अधिकारियों से मिल रही है वह उसके अनुसार कार्य कर रहे हैं । कुछ लोगों का मानना है कि वीरभद्र पर उनके नाम से बनाये गये एनजीओ के दवाब के कारण ऐसा हो रहा है। चुनाव इसी वर्ष के अन्त तक होने हैं यदि स्थितियां सामान्य रही तो। अन्यथा कुछ भी हो सकता है। ऐसे जो लोग एनजीओ के नाम पर वीरभद्र से जुड़े है उनकी भी इच्छा चुनाव लड़ने की होना स्वभाविक है। लेकिन एनजीओ के सक्रिय कार्यकर्ता होने से ही कांग्रेस के टिकट के लिये उनका दावा पुख्ता नही हो जाता। यदि यह लोग इस बार किसी भी कारण से चुनाव नहीं लड़ पाते हैं तो उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा का अन्त हो जायेगा। बल्कि सूत्रों की माने तो एनजीओ से जुडे़ एक दर्जन नेता तो हर हालत में यह चुनाव लडना चाहते हैं । उनकी यह इच्छा तभी पूरी होती है यदि कांग्रेस उन्हें टिकट दे और यह तभी संभव है यदि पार्टी अध्यक्ष वीरभद्र स्वयं हो जायें या उनका कोई विश्वस्त इस पद पर कब्जा कर पाये। यदि ऐसा नही हो पाता है तो यह एनजीओ ही वीरभद्र के लिये एक बडी समस्या बन जायेगा। क्योंकि एनजीओ के साथ जुडे लोगों को वीरभद्र से ज्यादा विक्रमादित्य का सहारा है। विक्रमादित्य भी चुनाव टिकटों के आंवटन को लेकर समय-समय पर जीतने की संभावना’’ की जो शर्त लगा देते हैं उसके पीछे यही धारणा मानी जा रही है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि यहखेल कब तक चलता रहेगा।
इस समय संगठन चुनावों की प्रक्रिया से गुजर रहा है। संगठन को यह अपने चुनाव चुनाव आयोग के फरमान के कारण करवाने पड़ रहे हैं। यदि राष्ट्रीय स्तर पर यह चुनाव तय समय सीमा के भीतर पूरे नहीं होते हैं तो पार्टी की मान्यता पर संकट आ जायेगा। ऐसे में इस समय वीरभद्र के लिये राजनीतिक विवशता बन गयी है कि या तो वह चुनावों के माध्यम से संगठन पर कब्जा करें या फिर चुनाव टालकर सुक्खु को हटवाने में सफल हो जायें। यदि किन्ही कारणों से यह सब संभव नही हो सका तो वीरभद्र का एनजीओ ही प्रदेश में पार्टी के विघटन का कारण बन जायेगा। पार्टी के सारे वरिष्ठ नेता वीरभद्र की इस नीयत और नीति पर नजर रखे हुए हैं। लेकिन यह भी सब जानते हैं कि चुनावों को वक्त पर पार्टी पर कब्जा करने के लिये वीरभद्र किसी भी हद तक जा सकते हैं जैसा कि उन्होने 2012 के चुनावों से पहले किया था। सुक्ख पर साधे जा रहे निशानों को इसी परिप्रेक्ष में देखा जा रहा है। वैसे इस समय सुक्खु वीरभद्र पर भरी पड़ते जा रहे हैं । माना जा रहा है कि हाईकमान भी वीरभद्र की नीयत और नीति से परिचित हो चुकी है। संभवतः इसी कारण से अंबिका सोनी अब हिमाचल का प्रभार छोड़ने का प्रयास कर रही है।
सीमा वर्मा का मामला चर्चा में
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक पिछले कुछ समय से ‘‘शेडयूल्ड बैंक’’ की श्रेणी में आ गया है और अब वाणिज्यिक ऋण देने का भी अधिकारी हो गया है। बैंक ने 05-05-2017 से हिम ऋण निवारण योजना शुरू कर रखी है। इस योजना के तहत कृषि तथा गैर कृषि क्षेत्र के व्यक्तिगत ऋण, स्वयं सहायता समूह, सयुंक्त देयता समूह, फर्म, पार्टरनशिप फर्मे जिनके खाते 31-3-2011 या इससे पहले ही एनपीए हो गये हो योजना के दायरे में आते हैं। ऐसे कर्जदारों को ओटीएस के तहत बहुत सारी सुविधाएं दी गयी हैं। यह योजना 31.3.2011 को या उससे पहले ही एनपीए हो चुके कर्जदारों पर ही लागू होगी। बैंक 31.3.2011 के बाद ही शेडयूल्ड बैंक की श्रेणी में आया है। जिसका अर्थ है कि तब तक गैर सहकारी क्षेत्र के लिये कमर्शियल लोन बैंक नहीं दे सकता था। यह राज्य बिजली बोर्ड के माध्यम से आईडर फाईनेश्यल सर्विसज चण्डीगढ़ को दिये ऋण के प्रकरण में स्पष्ट हो चुका है। ऐसे में कुछ हल्कों में यह सवाल उठ रहा है कि क्या 31.3.2011 से पहले तक के ऋण धारकों को इस योजना का लाभ दिया जा सकता है। बैंक सूत्रों के मुताबिक कुछ होटलों और हाईडल परियोजनाओं को दिये ऋण एनपीए हो चुके हैं। संभवतः इस योजना को लाने में ऐसे लोगों का भी दवाब रहा है।
इसी कड़ी में न्यू शिमला के सैक्टर दो में एक श्रीमति सीमा वर्मा को दिया लोन भी बैंक के गलियारों में काफी चर्चित हो रहा है। सीमा वर्मा ने न्यू शिमला में मकान बनाने के लिये बैंक की माल रोड शाखा से वर्ष 2000 में कोई दस लाख का ऋण लिया था। सीमा वर्मा ने जो मकान बनाया है वह उसकी अपनी जमीन में न होकर हिमुडा की जमीन पर है। यह 20.6.2015 को एसओ शिमला द्वारा दिये फैसले में स्पष्ट हो चुका है। इस संद्धर्भ में सीमा चैहान के खिलाफ 2013 से ही शिकायतें चल रही थी। विजिलैन्स तक शिकायत गयी थी। राजस्व अधिकारियों द्वारा की गयी डिमारकेशन के समय विजिलैन्स के एक इन्सपैक्टर और एक सब इन्सपैक्टर भी शामिल रहे हैं। हिमुडा के जेई और पटवारी भी डिमारकेशन में शामिल रहे हैं इन सबके ब्यान रिकार्ड पर लगे हैं। एस ओ के फैसले की जानकरी हिमुडा और विजिलैन्स तथा सरकार के राजस्व विभाग को रही है। लेकिन सरकारी तन्त्र के किसी भी कोने से सीमा वर्मा के खिलाफ कोई कारवाई अभी तक अमल में नही लायी गयी है। जबकि न्यू शिमला रैजिडैन्शयल अलाॅटी संगठन ने वाकायदा सरकार को दिये प्रतिवेदन में इस प्लाॅट को रैजिडैन्शयल सोसायटी को रिस्टेार करने की मांग कर रखी है। इस सोसायटी के मुताबिक न्यू शिमला काॅलीनी की जमीन की मालिक हिमुडा नही है। हिमुडा केवल ट्रस्टी है। न्यू शिमला के इस पक्ष पर शैल आने वाले दिनों में खुलासा करेगा।
सीमा वर्मा के इस मकान में वर्ष 2009 से राज्य सहकारी बैंक की ब्रांच भी कार्यरत है। जब इसकी डिमारकेशन की गयी थी उसकी जानकारी इस ब्रांच को रही है और ब्रांच के माध्यम से बैंक के शीर्ष प्रबन्धन को भी रही है। बैंक सूत्रों के मुताबिक सीमा वर्मा को वर्ष 2000 में दिया गया दस लाख का ऋण पहले दिन से ही एनपीए हो गया था। बल्कि इसी कारण से यहां पर बैंक की ब्राच खोलने का प्रबन्ध किया गया है। बैंक इस ब्रांच का करीब 7800 रूपये मासिक किराया दे रहा है। लेकिन इसके बावजूद यह ऋण मूल के तीन गुणा से भी अधिक हो गया है। सूत्रों की माने तो बैंक प्रबन्धन ‘‘हिम ऋण निवारण’’योजना के तहत सीमा वर्मा को बड़ी राहत देने का प्रयास कर रहा है। सीमा वर्मा का मकान उसकी अपनी जमीन पर नही है। इसकी जानकारी बैंक हिमुडा और सरकार सबको है लेकिन किसी भी स्तर पर इस मामले पर कोई कारवाई नहीं हो रही है। चर्चा है कि बैंक के शीर्ष प्रबन्धन का पूरा सहयोग सीमा वर्मा को मिल रहा जिसके चलते कहीं से भी कोई कारवाई नहीं हो रही है। सूत्रों की माने तो इसकी जानकारी प्रदेश उच्च न्यायालय को भी भेज दी गयी है। क्योंकि 2012 में उच्च न्यायालय ने न्यू शिमला काॅलोनी को लेकर आये मामलों में दिये फैसले में हिमुडा की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगाये हैं। सीमा वर्मा जैसे और भी कई मामले चर्चा में आ रहे हैं। माना जा रहा है कि इस ऋण निवारण योजना से बैंक को करोड़ो का नुकासान पंहुचेगा।
शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के वर्तमान हाऊस का कार्यकाल 4 जून को समाप्त हो रहा है। लेकिन 5 जून को नये हाऊस का गठन नहीं हो पायेगा क्योंकि इसके लिये चुनाव ही नही हो पाया है। 5 जून को निगम पर सरकार को प्रशासक बैठाना होगा जो किअगले चुनावों तक रहेगा। लेकिन यह अगले चुनाव कब होंगे इसको लेकर संशय बना हुआ है। हांलाकि इस सद्धर्भ में एक राजु ठाकुर ने प्रदेश उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर कर रखी है। राजनीतिक दल यह चुनाव समय पर न हो पाने के लिये राज्य निर्वाचन आयोग को जिम्मेदार ठहरा रहे हंै। बल्कि जो याचिका दायर हुई उसमें राज्य चुनाव आयुक्त को पद से हटा दिये जाने का भी आग्रह किया गया है। याचिका भाजपा के कार्यकर्ता की ओर से दायर की गयी है। जिसमें चुनाव आयुक्त के खिलाफ कारवाई की मांग की गयी है। राज्य चुनाव आयोग एक स्वतन्त्र संस्था है और एक्ट के मुताबिक उसके खिलाफ ऐसी कारवाई का कोई प्रावधान ही नहीं है फिर भी ऐसी कारवाई की मांग किये जाने से याचिका के राजनीति से प्रेरित होने की गंध आना स्वभाविक है।
किसी भी चुनाव का मूल आधार वोटर लिस्ट होती है। यह वेाटर लिस्ट तैयार करने के लिये चुनाव आयेाग ने जिलाधीश शिमला को बतौर ईआरओ 11.4.2017 को निर्देश दिये। इन निर्देशों पर जिलाधीश शिमला ने 5.5.2017 को नई वोटर लिस्टें नोटिफाई कर दी। यह लिस्टें आने पर प्रतिक्रियांए आयी और इनमें गडबडी होने के आरोप लगे। इन लिस्टों के लिये 1.1.2017को आधार तिथि बनाया गया था। इन लिस्टों के मुताबिक वोटर की संख्या 88167 कही गयी थी। प्रतिक्रियाएं आने के कारण राज्य चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय चुनाव आयोग के शिमला कार्यालय से निगम क्षेत्र के वोटरों की सूची मांगी। यह सूची भी 5.5.2017 को ही मिल गयी और इसमें मतदाताओं की संख्या 85546 आयी इसका आधार भी 1.1.2017 ही था। प्रतिक्रियाएं आने के साथ ही जिलाधीश शिमला के पास 2200 आवोदन फैसले के लिये लंबित पडे थे। इस परिदृश्य में करीब 5000 मतदाताओं का अन्तर सूचियों में सामने आ गया। ऐसे में एक निगम क्षेत्र में 5000 हजार मतदाताओं को नज़र अन्दाज करना पूरे चुनाव की विश्वसनीयता पर ही गंभीर सवाल खड़े कर देता। इस परिदृश्य में राज्य चुनाव आयोग ने इन मतदाता सूचियों को ठीक करने के निर्देश जारी कर दिये जिनके मुताबिक 23 जून तक यह प्रक्रिया पूरी हो जायेगी।
जिलाधीश शिमला ने राष्ट्रीय चुनाव आयोग के साथ अपनी सूचियों में आये अन्तर के कारण निगम क्षेत्र में अब कुछ पंचायत क्षेत्रों के जुड़ जाने को कारण बताया है। स्मरणीय है कि निगम के पिछले चुनाव 2012 में हुये थे और उस समय 25 वार्ड थे जिनमें 80 हजार कुछ वोटर थे। इस बार निगम का क्षेत्रा बढ़ाकर इसके वार्डों की संख्या 34 कर दी गयी है। वार्डों की संख्या बढ़ाये जाने पर किसी भी राजनीतिक दल ने कोई एतराज़ नही उठाया है। 2012 में किसी भी वार्ड में वोटरों की संख्या दो हजार से कम नहीं थी। लेकिन इस बार छः वार्डों भट्ट-कुफर, कंगनाधार, मजाठ, मल्याणा, पटयोग और अप्पर ढ़ली में यह संख्या दो हजार से कम है। अप्पर ढ़ली में तो यह संख्या केवल 814 है। जबकि कुछ वार्डों में यह संख्या 2012 से भी कम है। बालूगंज में 2012 में 4189 वोटर थे और इस बार 2345 हैं। टुटू में पिछली बार 3558 वोटर थे इस बार 2264 है। मल्याणा में पिछली बार 3557 थे जबकि इस बार 1811 हैं। इस तरह वोटर लिस्टों में यह भिन्नता अब भी ठीक हो पाती है या नहीं इसको लेकर संशय बरकरार है। 2012 में 25 वार्ड़ों में जब 80,000 से अधिक वोटर थे तो इस बार कुछ पंचायत क्षेत्रों के मिलने और वार्ड़ों की संख्या 34 हो जाने से वोटरों का बढ़ना तो स्वभाविक है लेकिन एक ही तिथि 1.1.2017 को दो संस्थाओं की गिनती में इतना अन्तर कैसे हो सकता है इस सवाल का जवाब अब नयी संशोधित लिस्टों के आने से ही स्पष्ट हो पायेगा।
मतदाता सूचियों पर सबसे पहली प्रतिक्रिया सी पी एम की ओर से आयी थी और उसने इनमें संशोधन की मांग करते हुए चुनाव दो माह के लिये आगे कर देने का आग्रह किया था। अब संशोधित लिस्टे आने के बाद यह दल संतुष्ट हो पायेंगे या फिर किसी बहाने से चुनाव आगे टल जायेंगे इसका खुलासा तो जून अन्त में ही हो पायेगा।