Thursday, 18 September 2025
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कोटखाई प्रकरण में क्यों उठे पुलिस की जांच पर सन्देह

शिमला/शैल। शिमला के कोटखाई क्षेत्र के महासू स्कूल की दसवीं की एक नाबलिग छात्रा से गैंगरेप और फिर हत्या कर दिये जाने के मामले में शुरू हुई पुलिस जांच पर उठे सवालों ने न केवल प्रदेश को हिलाकर रख दिया बल्कि देशभर में कई स्थानों पर इस बलात्कार और हत्या को लेकर लोगों में रोष देखने को मिला है। प्रदेशभर में लोगों ने खुलकर सरकार और व्यवस्था के खिलाफ इस कदर अपना रोष प्रकट किया कि उग्र भीड़ ने कोटखाई पुलिस स्टेशन को आग लगा दी। लोग मालखाने तक पहुंच गये थाने का रिकार्ड और पुलिस गाड़ियां जला दी। तीन पुलिस कर्मी भी घायल हो गये। जनता का एक ही आक्रोश था कि पुलिस इस जघन्य अपराध में रसूखदार लोगों को बचा रही है और निर्दोषों को फंसा रही है। इस कांड का चरम यह हुआ कि पुलिस की कस्टडी में ही एक कथित अभियुक्त की मौत हो गयी और इसके लिये एक अन्य सह अभियुक्त को जिम्मेदार बता दिया गया। इस अभियुक्त की मौत के बाद आई मुख्यमन्त्री की प्रतिक्रिया में भी यह स्वीकारा गया कि मृतक निर्दोष था और वह सरकारी गवाह बनने जा रहा था। मुख्यमन्त्री की प्रतिक्रिया के बाद अब मृतक सूरज की पत्नी ने भी यह ब्यान दिया है कि उसका पति निर्दोष था और उसे लालच देकर फंसाया गया था। मृतक की पत्नी ने दावा किया है कि दो व्यक्ति उसके पति के पास इस उद्देश्य से आये थे और वह उनको पहचानती है। सूत्रों के मुताबिक पुलिस ने इस महिला का सीआरपीसी की धारा 164 के तहत ब्यान भी दर्ज करवा दिया है। पुलिस की जांच पर उठे रहे सन्देह के लिये एक बार फिर पूरे प्रकरण पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है।
बलात्कार और फिर हत्या की शिकार हुई छात्रा जब चार जुलाई को स्कूल से देर शाम तक घर नहीं पहुंची तब घर वालों ने उसकी तलाश शुरू की और पांच तारीख रात नौ बजे के करीब उसके मामा को सूचना दी कि उनकी लड़की घर नहीं पहुंची है। इस सूचना पर लड़की के मामा और उसके भाई ने छः तारीख को पता करना शुरू किया। सुबह 7ः30 बजे हलाईला के जगंलो की तरफ निकले तो एक कुत्ता सड़क से नीचे की ओर भागा तब नीचे खाई पर उनकी नजर पड़ी जहां पर नग्नावस्था में मृतका का शव मिला। तुरन्त इसकी सूचना कोटखाई पुलिस को दी गयी। पुलिस ने मामला दर्ज करके दीप चन्द को जांच का जिम्मा सौंप दिया और निर्देश दिये कि घटना स्थल का बारिकी से निरीक्षण करके मौके पर पाये गये तमाम भौतिक साक्ष्यों को कब्जा में लेकर एसएफएसएल जुन्गा भेजा जाये।
इस तरह छः तारीख को शव मिला और छः को ही पुलिस थाना कोटखाई में मामला दर्ज हुआ और सात तारीख को इसका पोस्टमार्टम हुआ लेकिन एसएफएसएल जुन्गा को फाॅरेन्सिक जांच के लिये 11 तारीख को भेजा गया। जबकि तब तक यह मामला अखबारों में उछल चुका था और दस तारीख को ही इसका प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी संज्ञान ले लिया था। यहां पर पहला सवाल उठता है कि फाॅरेन्सिक जांच के लिये मामला भेजने में इतनी देरी क्यों की गयी? क्या इस दौरान बहुत सारे भौतिक साक्ष्योें के नष्ट हो जाने की संभावना नहीं थी? बारह तारीख को इस मामले में सरकार की ओर से एसआईटी गठित की गयी। एसआईटी गठित किये जाने तक पुलिस ने इस मामले मेें किसी की भी अधिकारिक गिरफ्तारी नही की थी और न ही पुलिस की ओर से ऐसा कोई दावा किया है। जबकि इससे पहले ही चार लोगों के फोटो मुख्यमन्त्री के अधिकारिक फेसबुक पेज पर अपलोड़ हो जाते हैं। यही नही यह फोटो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो जाते है। लेकिन जब पुलिस ने अधिकारिक तौर पर लोगों की गिरफ्तारी दिखायी और वाकयदा पत्रकार वार्ता में इसकी जानकारी दी तब उस जानकारी में इन चार लोगों में से कोई भी नही होता है।
फेसबुक पेज पर आ चुके फोटोज में से एक की भी गिरफ्तारी न होने से लोगों में शक का दूसरा सवाल आ गया। इसके बाद लोगों में रोष भड़का और जितने मुंह उतनी बातों वाली स्थिति बन गयी। जनता के रोष के बाद एक और व्यक्ति आशीष चौहान को पुलिस ने गिरफ्तार किया लेकिन गिरफ्तारी के बाद जब अदालत में पेश किया तो उसके बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। क्योंकि उसके खिलाफ पुलिस रिमांड के लिये कोई पुख्ता आधार नही था। ऐसे में यहां फिर सवाल उठता है कि जब एक ही मामलें में छः लोगों को पकड़ा जाता है और उनमें से पांच का तो पुलिस रिमांड हालिस कर लिया जाता है छटे का नहीं। जब आशीष चौहान के खिलाफ एक दिन के रिमांड लायक भी आधार नही था तो फिर उसे पकड़ा ही क्यों गया? या फिर जानबूझकर उसके खिलाफ मामला ही कमजोर तैयार किया गया यह एक गंभीर चर्चा का विषय बना हुआ है। इसी कड़ी में संदेह का एक सवाल यह उठता है कि पुलिस ने क्राईम स्पाॅट को चिन्हित करने में चार दिन क्यों लगा दिये और इस प्रकरण में प्रयुक्त हुई गाड़ी को तुरन्त अपने कब्जे में क्यों नहीं लिया।
इसी में अब एक अभियुक्त सूरज की पुलिस कस्टडी में हत्या हो जाना और भी कई नये सवाल खड़े कर जाता है। सूरज की हत्या का आरोप राजेन्द्र उर्फ राजू पर लगाया जा रहा है कि राजू और सूरज में किसी चीज को लेेकर झगड़ा होता है और झगड़े में राजू सूरज को मार देता है। यहां यह सवाल खड़ा होता है कि जब एक अपराध के लिये छः लोगों को पकड़ा गया है तो उनमें से किसका कितना दोष है यह सारे साक्ष्यों के निरीक्षण के बाद अदालत को तय करना है। इसमें बहुत संभव है कि राजू का दोष इतना न निकलता जिसके आधार पर उसे प्राण दण्ड या आजीवन कारावास की सजा मिल ही जाती। अब सूरज की पत्नी के पत्र और ब्यान के सामने आने के बाद तो ऐसी संभावना और प्रबल हो जाती है। लेकिन अब तो सूरज की हत्या का सीधा आरोप राजू पर आ रहा है और इससे उसका गुनाह दो गुणा हो जाता है। फिर राजू को पकड़े गये लोगों में से सबसे ज्यादा समझदार माना जा रहा है। ऐसे में वह अपने सिरे सीधे तौर पर एक और गुनाह क्यों लेना चाहेगा। फिर यदि राजू और सूरज में झगड़ा हुआ तो पुलिस के लोग क्या कर रहे थे? क्या सूरज की सुरक्षा उनकी जिम्मेदारी नही थी? पुलिस के तर्क पर यहां भी आसानी से विश्वास कर पाना संभव नही है।
इसी सब मे सन्देह का एक और आधार सामने आ जाता है। जिन चार लोगों के फोटो फेसबुक पर आ गये और वायरल हो गये और फिर फेसबुक से हटा लिये गये उन लोगों ने भी कोटखाई पुलिस स्टेशन में एक लिखित शिकायत दी है। इन लोगों ने भी फोटो वायरल किये जाने के खिलाफ जांच करने और कारवाई करने की मांग की है। इनका कहना है कि इस प्रकरण में इनके फोटो वायरल होने से लोग इन्हे अपराधी मानने लगे है। इससे इन्हे भी अपनी जान का खतरा महसूस हो रहा है। इन चारों ने इक्कठे एक ही शिकायत थानेे में दी है। लेकिन इनकी शिकायत किस तारीख की है इसका कोई जिक्र शिकायत पत्र पर नही है। बल्कि पुलिस थाना में जो इनकी शिकायत को प्राप्त कर रहा है। उसने भी इस पर कोई तारीख नही डाली है। इनकी शिकायत पर अभी तक पुलिस की ओर से भी कोई कारवाई सामने नही आयी है। इससे भी पुलिस जांच पर ही सवाल उठते है। इस प्रकरण में निश्चित रूप से पुलिस को पूरी स्थिति का आकलन करने में भारी चुक हुई है। प्रशासन इसका अनुमान ही नही लगा सका है कि जनता में इनता रोष फैल जायेगा और जनता के दवाब के आगे यह मामला सीबाआई को सौंपना पड़ेगा।

                                       यह है पुलिस द्वारा दर्ज एफ आई आर


                                    जिनके फोटो वायरल हुए थे उनकी शिकायत


कोटखाई प्रकरण में अब सी बी आई पर लगी निगाहें

शिमला/शैल। कोटखाई क्षेत्र में एक दसवीं कक्षा की नाबालिग छात्रा से हुए बलात्कार और फिर हत्या मामलें में सीबीआई ने अपनी जांच शुरू कर दी है। इस प्रकरण में दो अलग-अलग मामले दर्ज किये गये हैं क्योंकि इसी मामले में पकड़े गये एक कथित अभियुक्त सूरज की पुलिस कस्टडी में ही मौत हो चुकी है। इस कारण से ‘गुड़िया’ और सूरज दोनो के मामलों में अलग-अलग प्रकरण दर्ज किये गये हैं। स्मरणीय है कि जब यह मामला मीडिया में चर्चा में आया था तब दस तारीख को ही प्रदेश उच्च न्यायालय ने इसका संज्ञान ले लिया था और 17 तारीख को इसमें सरकार से रिपोर्ट तलब की थी। लेकिन इससे पहले ही पुलिस की जांच पर सवाल उठने लग पडे़ और सरकार को इसमें एक एसआईटी गठित करनी पड़ गयी। एसआईटी द्वारा मामलें की जांच शुुरू करते ही जनता ने फिर पक्षपात के आरोप लगाने शुरू कर दिये। प्रदेश भर में जगह-जगह प्रदर्शन शुरू हो गये। जनक्रोश के दवाब के आगे झुकते हुए 14 तारीख को सरकार ने जनता की मांग पर मामला सीबीआई को देने का फैसला ले लिया। मुख्यमन्त्री ने व्यक्तिगत स्तर पर भी प्रधानमन्त्री को पत्र लिखकर सीबीआई जांच का आग्रह किया। इसी परिदृश्य मेें जब उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिये मामला आया तब अन्तः शीर्ष अदालत ने भी सीबीआई को यह मामला अपने हाथ में लेने के निर्देश दे दिये। उच्च न्यायालय ने दो सप्ताह के बाद मामलें पर कोर्ट में स्टेट्स रिपोर्ट दायर करने के भी निर्देश दिये हैः-In the post lunch session, when the matter was taken up, we were informed by the learned Advocate General that Malkhana of Police Station at Kotkhai, District Shimla, H.P., stands ransacked; some of the files kept in the Police  Station burnt; five vehicles of the police department burnt; Fire Brigade is not allowed by the mob to   enter the area; and three police personnel injured, who stand referred for medical treatment to the respective hospitals. Also, though there is huge public outcry, yet police is exercising restraint in maintaining the law and order situation. It is further submitted that in view of peculiar facts and circumstances, matter warrants investigation to be conducted by the Central Bureau of  Investigation (in short CBI). It is further prayed that necessary orders in that regard be passed. The Chief Secretary to the Government of Himachal Pradesh shall ensure that appropriate action is taken against the erring officials/officers/functionaries of the State, in accordance with law. Within a period of two weeks from today, he shall independently examine the matter and take appropriate action. (vii) The Director General of Police, Himachal Pradesh shall ensure  maintenance of law and order. (viii) Affidavit of the Chief Secretary and status report by the SIT be filed not later than two weeks.जनता ने पुलिस और फिर एसआईटी दोनों की नीयत और नीति पर गंभीर आरोप लगाये हैं। सीधा आरोप लगाया गया है कि असली दोषीयों को बचाने और बेगुनाहों को फसाने का प्रयास किया जा रहा है। बल्कि जब पुलिस कस्टडी में सूरज की हत्या हो गयी तब इस पर मुख्यमन्त्री ने भी अपनी प्रतिक्रिया में मृतक सूरज को बेगुनाह करार देते हुए यह भी कहा था कि मृतक सूरज तो सरकारी गवाह बनने जा रहा था। इसी प्रकरण में जब मृतक सूरज की पत्नी का पत्र और ब्यान सामने आया है तो उससे ये तीन महत्वपूर्ण सवाल आते हैं। पहला है कि इस मामलें के असली दोषीयों को पकड़कर उन्हें कड़ी सजा दिलाना। दूसरा सवाल यह सामने लाने का होगा कि क्या पुलिस ने इस मामलें में कोई पक्षपात किया है या नहीं। यदि हां तो किसके कहने पर और क्यों? तीसरा अहम सवाल है कि पुलिस हिरासत में हुई सूरज की मौत कैसे हुई? क्या उसे पुलिस ने मारा और इल्जाम राजू के सिर लगा दिया। क्योंकि इस संद्धर्भ में भी सवाल उठने शुरू हो गये हैं
सीबीआई को इन सवालों तक पहुंचने में पुलिस और एसआईटी द्वारा की गयी जांच से कितनी सहायता मिलती है और उसे अलग से अपने स्तर पर कितने साक्ष्य नये सिरे से जुटाने पड़ते हैं इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा। यदि सीबीआई की जांच से भी यही प्रमाणित हुआ कि पुलिस और एसआईटी की जांच सही दिशा में ही चल रही थी तो इससे जांच पर सवाल उठाने वालों के अपने खिलाफ ही सवाल उठने शुरू हो जायेंगे। यदि पुलिस की जांच पर उठे सवालों की सीबीआई जांच से थोड़ी भी पृष्टि हुई तो इसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे। क्योंकि प्रदेश उच्च न्यायालय ने मुख्य सचिव को स्पष्ट निर्देश दिये हैं कि इस मामलें में अपने स्तर पर भी जांच करे और दोषी पाये जाने वाले अधिकारियों कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कारवाई करे। निश्चित है कि उच्च न्यायालय का संकेत इस जांच के साथ परोक्ष/अपरोक्ष में जुड़े अधिकारियों/ कर्मचारियों की ओर ही है। क्योंकि कई ऐसे बिन्दु हैं जिनसे जांच की निष्पक्षता सन्देह के घेरे में आती ही है।

मनकोटिया मामले में अकेले पड़ते जा रहे हैं वीरभद्र विक्रमादित्य और आहलूवालिया भी नहीं मना पाये मनकोटिया को

शिमला/शैल। मनकोटिया को जनहित में प्रदेश के पर्यटन विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष पद से हटाना कांग्रेस और विशेषकर वीरभद्र परिवार और उनके निकटस्थ सलाहकारों को आने वाले समय में नुकसान देह साबित हो सकता है। इसका अहसास इन लोगों को मनकोटिया की पहली प्रैस वार्ता से ही समझ आ गया है। क्योंकि उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक मनकोटिया को मनाने की जिम्मेदारी विक्रमादित्य को स्वयं सभालनी पड़ी है। विक्रमादित्य ने इस दिशा में मनकोटिया से संपर्क साधने के लिये एक ही नही चार बार फोन किये। लेकिन जब मनकोटिया ने एक बार भी विक्रमादित्य का फोन नही उठाया तब दिल्ली के एक काॅमन उद्योगपति मित्र से विक्रमादित्य ने आग्रह किया कि वह उससे बात करके
 उसे बात करने के
लिये राजी करे। इस उद्योगपत्ति मित्र/संबधी ने विक्रमादित्य के आग्रह को मानकर मनकोटिया को फोन किया। मनकोटिया ने इस उद्योगपति का फोन आने पर उससे बात कर ली लेकिन जैसे ही उ़द्योगपति ने विक्रमादित्य से एक बार बात करने का आग्रह किया तो मनकोटिया ने इस आग्रह को भी अस्वीकार कर दिया। इस प्रयास के भी असफल रहने के बाद विक्रमादित्य सुभाष आहलूवालिया के पास पहुंचे। आहलूवालिया ने मनकोटिया को फोन किया और लम्बे चौडे आश्वासन देकर विक्रमादित्य से एक बार फोन पर ही बात कर लेने का आग्रह किया। लेकिन मनकोटिया ने यह आग्रह भी स्वीकार नही किया। इसके बाद मनकोटिया लगातार अपनी लाईन बढ़ाते जा रहे है और उन्हें अपने क्षेत्र की जनता से भरपूर सहयोग/समर्थन भी मिलता जा रहा है। यही सहयोग/समर्थन मनकोटिया के सारे विरोधियों को परेशान भी करता जा रहा है।

मनकोटिया को यह समर्थन इसलिये मिल रहा है क्योंकि उनके खिलाफ आज तक भ्रष्टाचार का कोई आरोप नही लगा है। जबकि वीरभद्र और उनका पूरा परिवार आयकर सीबीआई और ईडी के मामलों में बुरी तरह घिरा हुआ है। ईडी में चल रही जांच के तहत दो अटैचमैन्ट आदेश जारी हो चुके है। सहअभियुक्त आनन्द चौहान एक साल से हिरासत में चल रहा है आयकर में वीरभद्र को उच्च न्यायालय से भी राहत नही मिली है। ईडी मामले में भी दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के बाद लगातार भय और दुविधा का मौहाल बनता जा रहा है। इन सारे मामलो में जिस तरह के दस्तावेजी प्रमाण अब तक सामने आ चुके है वह अन्ततः कितने सही या गल्त साबित होते हैं उसका अदालत से अन्तिम फैसला आने में वर्षों लग जायेंगे लेकिन आज यदि यह सबकुछ पब्लिक के सामने आ जाये तो जनता उसे ध्रुव सत्य मान लेगी और जनता का यही मानना वीरभद्र और उनके परिवार के लिये घातक सिद्ध हो जायेगा। फिर इन मामलों के साथ अब तिलक राज का एक और प्रकरण जुड़ गया है। तिलक राज और अशोक राणा को फिलहाल ज़मानत मिलने के आसार नजर नही आ रहे हैं। सुभाष आहलूवालिया का अपना मामला भी अभी तक खत्म नही हुआ है वह ईडी में लंबित चल रहा है। चुनावों के दौरान यदि इन सारे मामलो का पूरा ब्योरा जनता के समाने आ जाता है तो निश्चित है कि इससे अप्रत्याशित राजनीतिक नुकसान हो जायेगा। यदि इस समय वीरभद्र और विक्रमादित्य राजनीतिक बाजी हार जाते हैं तो परिवार के राजनीतिक भविष्य पर ही संकट खड़ा हो जाता है।
इस मामले में वीरभद्र परिवार को भाजपा और उसके नेतृत्व से भले ही कोई खतरा न हो लेकिन इसमें मनकोटिया एक ऐसे हथियार के रूप में समाने आ गया है जिसके अपने पास भी चलने के अतिरिक्त और कोई विकल्प शेष नही रह गया है और जब वह चलेगा तो उससे सामने वाले का गला कटना तय है। कांग्रेस के मंत्री और नेता मनकोटिया की इस स्थिति को भलीभांती समझ गये हैं। इसीलिये अभी तक मनकोटिया मामले में कोई बड़ा नाम वीरभद्र के सहयोग के लिये आगे नही आया है। क्योंकि सबको खतरा है कि जैसे ही कोई मनकोटिया के खिलाफ बोलने का साहस दिखायेगा तो दूसरे ही दिन उसका काला चिट्ठा भी बाहर आ जायेगा। इस कारण से वीरभद्र इस मामले में लगभग अकेले पडते जा रहे हैं। बल्कि दूसरी ओर कुछ नेता मनकोटिया के साथ चलकर वीरभद्र से अपने काम निकलवा रहे हैं। चर्चा है कि जब बाली ने शिमला के आशियाना में मनकोटिया के साथ चाय पी तो दूसरे ही दिन कांगड़ा के एसपी का तबादला हो गया जिसके लिये बाली कई दिनों से प्रयासरत थे। और इसका प्रभाव बाली की प्रैस वार्ता में भी स्पष्ट देखने को मिला जब बाली ने मनकोटिया मामले को यह कह कर समाप्त कर दिया कि ‘‘मनकोटिया को न तो पार्टी में लाते समय उससे पूछा था और न ही अब बाहर करते वक्त पूछा है।’’
मनकोटिया के मामले में कांग्रेस एक ऐसी असमंजस में फंस गयी है जिसमें उसे पार्टी से बाहर करने में ज्यादा नुकसान की संभावना है क्योंकि अभी तो उसने केवल वीरभद्र सिंह के खिलाफ ही मोर्चा खोला हुआ है और बाहर जाने पर दूसरे मन्त्री/नेता भी अटैक के पात्र बन जायेंगे। इस समय मनकोटिया ने वीरभद्र के खिलाफ अैटक की जो लाईन ली है वह एक दम तथ्यों पर आधारित है क्योंकि लोकसभा चुनावों के दौरान तो केवल यही प्रचार हुआ था कि ‘‘वीरभद्र के पेड़ो पर भी पैसे उगते हैं’’ और इस कारण चारों सीटें हार गये थे। अब तो इसमें और बहुत कुछ जुड़ गया है। आज यह प्रचार और आरोप यदि भाजपा की ओर से आयेेंगे तो उसमें भाजपा का भी नुकसान होगा क्योंकि अभी तक केन्द्र की ऐजैन्सीयां ज्यादा परिणाम नही दे सकी हैं। बल्कि दबी जुबान से तो यह चर्चा भी चल पड़ी है कि भाजपा नेतृत्व का ही एक बड़ा वर्ग वीरभद्र की मदद कर रहा है और ऐसे प्रचार के कई ठोस आधार भी उपलब्ध है। इस परिदृश्य में जब मनकोटिया कांग्रेस के अन्दर रह कर ही वीरभद्र के खिलाफ अपना अटैक जारी रखते है तो प्रदेश का कोई भी नेता उनके खिलाफ स्वार्थी होने का आरोप नही लगा पायेगा और हाईकमान को भी इसका संज्ञान लेने पर विवश होना पडेगा।

क्या कांग्रेस की पथ यात्रा भाजपा की रथ यात्रा का जवाब बन पायेेगी सुक्खु-वीरभद्र को देने होगे जनता में उठे सवालों के जबाव

शिमला/शैल। भाजपा की अभी संपन्न हुई रथ यात्रा के जबाब में कांग्रेस ने पथ यात्रा करने का फैसला लिया है। कांग्रेस ने सारे विधान सभा क्षेत्रों में यह यात्रा शुरू करने का फैसला लिया है और इसके समापन पर राहुल गांधी इसे संबोधित करेंगे। प्रदेश की कांग्रेस के पास है और वीरभद्र इसके मुखिया है। ऐसे में स्वभाविक है कि इस यात्रा के माध्यम से अपनी सरकार की उपलब्धियां नेता और कार्यकर्ता जनता के सामने रखेंगें। इस समय प्रदेश की वित्तिय स्थिति इतनी गडबड़ा चुकी है कि प्रदेश कर्जे के ट्रैप में फंस चुका है। कर्ज का ब्याज चुकाने के लिये कर्ज लेने की स्थिति बनी हुई है। केन्द्र का वित्त विभाग इस संबन्ध में सरकार को मार्च 2016 में ही कड़ी चेतावनी जारी कर चुका है। लेकिन सरकार इस चेतावनी को नजर अनदाज करके लगातार कर्ज उठाती जा रही है। वित्तिय जिम्मेदारी और प्रबन्धन अधिनियम के सारे नियमों/मानकों की लगातार उल्लंघना की जा रही है। लेकिन इतना कर्ज उठाने के बाद यह सवाल खड़ा होता जा रहा है कि यह कर्ज खर्च कहां किया जा रहा है। क्योंकि सरकार ने जब से प्रदेश के बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की है तब से सरकार के अपने आंकड़ो के मुताबिक इस भत्ते के लिये 10,500 युवाओं के आवदेन आ चुके है लेकिन अभी तक भत्ते की एक भी किश्त जारी नही की जा सकी है और चुनावों में यह युवा एक महत्वपूर्ण मतदाता वर्ग होगा।
पथ यात्रा के दौरान जब उपलब्धियों का लेखा जोखा रखा जायेगा तो तय है कि इस लेखे को चुनावी वायदों के आईने में तोला जायेगा। सरकार से सवाल पूछा जायेगा कि बतौर विपक्ष उसने तत्कालीन सरकार के खिलाफ जो-जो आरोप लगाये थे और उन आरोपों को लेकर प्रदेश के राज्यपाल से लेकर महामहिम राष्ट्रपति तक को आरोप पत्र सौंपे थे उन आरोपों पर कितनी जांच हुई है और कितने आरोप प्रमाणित हो पाये हंै। क्योंकि जो सरकार सत्ता में आने पर अपने ही लगाये हुए आरोपों पर जांच तक न करवा पायी हो उसके विकास के दावे कितने भरोसे लायक होंगे। क्योंकि जिस एचपीसीए प्रकरण के गिर्द पूरे कार्यकाल में आपकी विजिलैन्स घूमती रही है उसमें अभी तक यही बुनियादी फैसला नही आ पाया है कि एचपीसीए सहकारी सोसायटी है या एक कंपनी। विपक्ष में रहते हुए आये दिन यह आरोप होता था कि ‘‘हिमाचल इज आॅन सेल’’ हर बड़े नेता का यही पहला आरोप होता था कि प्रदेश बेच दिया गया। लेकिन क्या इस पथ यात्रा के दौरान कांग्रेस के नेता प्रदेश की जनता को बता पायेंगे कि हिमाचल बेेचे जाने के कितने मामलें प्रमाणित हो पाये हैं या कितनों में जांच के ही आदेश हो पाये हैं। क्योंकि सोलन और सिरमौर के जिन मामलों को चिहिन्त करके एसपी सोलन ने सरकार को आगामी कारवाई की संस्तुति के लिये पत्र भेजा था उस पर सचिवालय में अगली कारवाई की बजाये एसपी सोलन को ही वहां से बदल दिया गया था। एसपी के पत्र के मुताबिक हजारों बीघों के बेनामी संपत्ति खरीद मामलों की सूची पत्र के साथ संलग्न थी। वह सुची कहां दबी पड़ी है और उस एसपी को क्योंकि अचानक बदल दिया गया था क्या इसकी जानकारी पथ यात्रा में सामने आ पायेगी?
विकास के नाम पर इस कार्यकाल में कितनी जल विद्युत परियोजनाओं के एमओयू हस्ताक्षरित हुए और उनमें कितना निवेश हुआ है क्या इसका आंकडा़ सामने आयेगा? क्या इसका जवाब आयेगा कि ब्रकेल कंपनी के खिलाफ विजिलैन्स के आग्रह पत्र के बावजूद अभी तक एफआईआर क्यों दर्ज नही हो रही है। ऊर्जा निदेशालय इस फाईल को कानून और ऊर्जा विभाग के बीच ही क्यों उलझाए हुए है? सरकार ने जेपी उद्योग को अपनी कुछ ईकाइयां बेचने की अनुमति प्रदान कर दी है। बल्कि नये खरीददार को अलग से प्रदेश के भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत अनुमति लेने से भी छूट प्रदान कर रखी है। यह उद्योग सूमह प्रदेश से अपना कारोबार समेट कर दुबई निवेश करने जा रहा है। क्या सरकार बतायेगी कि उद्योग सूमह को ऐसा करने की नौबत क्यों आयी? इस उ़द्योग समूह पर यहां के वित्तिय संस्थानों और बैंको का कुल कितना ऋणभार है और क्या उसकी जिम्मेदारी नये खरीदार ने स्वीकार कर ली है और सरकार उस पर आश्वस्त है? क्या पथ यात्रा में यह जानकारी सामने आयेगी क्योंकि अन्ततः इसका सीधा प्रभाव प्रदेश की जनता पर पडेगा।
आज प्रदेश के दोनों बडे सहकारी बैंकों में 300 करोड़ के ऋण को लेकर जनता में सन्देह उभरने शुरू हो गये हैं। क्योंकि राज्य सहकारी बैंक जिस जल विद्युत परियोजना को 2008 से लेकर अब तक करीब 100 करोड़ का ऋण दे चुका है बैंक के सूत्रों के मुताबिक अभी तक इस दस मैगावाट की परियोजना के संचालकों का राज्य विद्युुत बोर्ड से बिजली खरीद का एमओयू तक साईन नही हो पाया है। अभी परियोजना के निर्माण का भी आधा ही हिस्सा पूरा हुआ है और शेष पुरा होने में समय लगेगा। ऐसे में जिस दस मैगावाट की परियोजना पर आज ही 100 करोड़ का ऋण हो गया है निश्चित है कि उसके पूरा होने तक यह और बढे़गा और ऐसे में जिसकी उत्पादन तक आने से पहले ही निर्माण लागत इतनी बढ़ जायेगी उसको खरीददार कौन और कैसे मिलेगा? क्योंकि आज ही बिजली बोर्ड अपनी सारी बिजली बेच नही पा रहा है। बल्कि इसी कारण से करीब दो दर्जन सोलर प्रौजेक्टस के साथ बोर्ड एमओयू साईन नही कर पा रहा है। जबकि इसके लिये केन्द्र सरकार उपदान तक दे रही है। इसी तरह कांगडा केन्द्रिय सहकारी बैंक ने एक कंपनी को दो सौ करोड़ का ऋण दे दिया है। इस ऋण की फाईल आरसीएस के स्तर पर अस्वीकार हो चुकी थी क्योंकि यह ऋण नबार्ड के मानकों के अनुरूप नही था। लेकिन राजनीतिक दवाब के कारण इस ऋण फाइल को सहकारिता सचिव को भेजा गया और वहां से इसकी स्वीकृति करवाई गयी। जबकि नियमों के मुताबिक सहकारिता के ऋण की फाइल को स्वीकारने/अस्वीकारने का सचिव का अधिकार क्षेत्र ही नही है। माना जा रहा है कि प्रदेश की जनता का यह 300 करोड़ किसी भी तरह से सुरक्षित नही है।
सरकार के इस कार्यकाल की ऐसी उपलब्धियों के दर्जनों मामलों पूरे दस्तावेजी प्रमाणों के साथ कभी भी प्रदेश की जनता के सामने आ सकते हैं। इसलिये ऐसे सवालों के आईने कांग्रेस की यह पथ यात्रा कितनी कारगर साबित होगी यह सवाल उठना स्वभाविक है।

शिमला ग्रामीण के स्कूलों में भी अध्यापक नहीं

जंगली जानवरों/बन्दरों से भी लोग दुःखी

शिमला/शैल। शिमला ग्रामीण मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह का अपना चुनाव क्षेत्र है आने वाले विधान सभा चुनावों में मुख्यमन्त्री के बेटे विक्रमादित्य के यहां से चुनाव लड़ने की संभावना है। अपने चुनाव क्षेत्र में मुख्यमन्त्री सैंकड़ों करोड़ के विकास कार्यों की घोषनाएं कर चुके  हैं। क्षेत्र के हर दौरे में यहां के लोगों को कुछ न कुछ मिला है। बल्कि जितनी घोषनााएं और शिलान्यास अब तक यहां हो चुकें  हैं उसको लेकर विपक्ष ही नही अपनी ही पार्टी के नेता /मंत्री भी अपने साथ भेदभाव होने के तंज कसते रहते  हैं
लेकिन यहां के विकास कार्यों की जमीनी सच्चाई कुछ और ही है। यहां की पंचायतों पिलिधार, आखरू और जावरी आदि के लोग जंगली जानवरों और बन्दरों से इतने आंतकित है कि खेती बाड़ी छोड़ने को मजबूर होने के कगार पर पहुंच गये  हैं। प्रशासन से कई बार इसकी शिकायत कर चुके  हैं लेकिन आज तक कोई सुनवाई नही हो सकी है। वन मन्त्री भरमौरी सैंकड़ो बन्दरों  को पकडने पर सैंकड़ो खर्च कर चुके हैं। विधानसभा में आये आंकड़ों के अनुसार बन्दर पकडने में  लगा एक-एक आदमी कई-कई करोड़ कमा चुका है। बल्कि निचले क्षेत्र के लोगों को तो यह शिकायत है कि शिमला से पकड कर बन्दर उनके ईलाके में छोडे जा रहे  हैं। परन्तु मुख्यमन्त्री के शिमला ग्रामीण की इन पंचायतों पर यह नजरें ईनायत अब तक नही हो पायी है।
इसी तरह यहां की घैणी पंचायत के लोगों की शिकायत है कि यहां के रा. व. मा. स्कूल घैणी में वर्ष 2016 से शास्त्री और टीजीटी नाॅन मैडिकल के पद खाली चले आ रहे  हैं। इन विषयों को पढ़ाने वाला कोई अध्यापक नही है। यहां पर 28.4.16 वाणिज्य संकाय शुरू करने के आदेश जारी हुए थे। इसके लिये अध्यापकों के दो पद भी सृजित किये गये थे जो अब तक भरे नही गये हैं। बच्चे स्कूल छोड़ने पर विवश हो रहे  हैं। स्कूल प्रबन्धन कमेटी ने 20.3.17 को मुख्यमन्त्री को वाकायदा पत्र लिखकर इस समस्या से अवगत भी करवाया है। परन्तु अभी तक कोई समाधान नही हो सका है। जब मुख्यमन्त्री के अपने चुनाव क्षेत्र की यह स्थिति है तो इससे पूरे प्रदेश का अनुमान लगाया जा सकता है।


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