शिमला/शैल।
मुख्यसचिव की नियुक्ति में नजर अन्दाज हुए प्रदेश के वरिष्ठ आई ए एस अधिकारियों दीपक सानन और विनित चैाधरी को प्रशासनिक ट्रिब्यूनल चण्डीगढ़ द्वारा दी गयी पहली राहत में यह निर्देश हुए थे कि इन अधिकारियों को मुख्यसचिव वी सी फारखा के प्रशासनिक नियन्त्रण से बाहर करते हुए इन्हें समुचित नियुक्तियां दी जायें। कैट के इन निर्देशों के बाद इन अधिकारियों को प्रिंसिपल एडवाईजर बनाकर इन निर्देशों की अनुपालना कर दी गयी। इसके बाद सानन 31 जनवरी को रिटायर हो गये। इसके बाद जब यह मामला कैट में पुनः सुनवाई के लिये आया तब तक राज्य सरकार ने इसमें पूर्ण जवाब दायर नहीं किया जबकि अन्तरिम जवाब पहले ही दायर कर दिया गया था। अन्तरिम जबाब में राज्य सरकार ने दीपक सानन के खिलाफ चार्जशीट और विनित चैाधरी के खिलाफ सी बी आई में एक पी ई लंबित होने को इनकी नजरअन्दाजी का कारण बताया था। लेकिन संपूर्ण जवाब दायर नही किया गया और कैट ने इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए न केवल राज्य सरकार को फटकार लगायी है बल्कि यहां तक कह दिया है कि यदि अगली तारीख तक यह जवाब न आया तो मुख्य सचिव वी सी फारखा की शक्तियां भी छीन ली जायेंगी। इसी के साथ विनित चैाधरी को तुरन्त प्रभाव से मुख्य सचिव के समकक्ष वेतन भत्ते और अन्य सुविधायें प्रदान की जायें।
जिस तरह के आदेश इस मामले में कैट से आ रहे है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कैट ने इस प्रकरण का कड़ा संज्ञान लिया है। कैट के निर्देशों के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में यह मामला चर्चा का विषय बन गया है। विधानसभा में पूर्व मन्त्री भाजपा विधायक रविन्द्र रवि द्वारा इसका उल्लेख उठाया जाना इसका प्रमाण है। भले ही मुख्यमन्त्री द्वारा इस उल्लेख का कड़ा सज्ञांन लेने के बाद इसे सदन की कारवाई में दर्ज नहीं किया गया है लेकिन इससे इसकी गंभीरता और बढ़ गयी है। माना जा रहा है कि जब सरकार ने अन्तरिम जवाब में सानन और विनित चैाधरी के खिलाफ मामलें लंबित होने का तर्क रखा है तो उसी अनुपात में पर्यटन निगम के पूर्व कर्मचारी नेता गोयल की फारखा के खिलाफ राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमन्त्री और सीबीआई तक को भेजी शिकायतों का संद्धर्भ भी कैट के सामने रखा जा चुका है क्योंकि सीबीआई ने गोयल की शिकायत को विधिवत् प्रदेश की विजिलैन्स को भेज रखा है। इस शिकायत से चैाधरी और फारखा एक ही धरातल पर आ खड़े होते है।
इस परिदृश्य में यह चर्चा उठना स्वाभाविक है कि राज्य सरकार कैट में इस याचिका पर पूरा जवाब क्यों दायर नही कर पा रही है। याचिका में सरकार के खिलाफ ऐसे क्या गंभीर आरोप हैं जिनका जबाब देना कठिन हो रहा है। इस संद्धर्भ में यदि याचिका पर नजर डाली जाये तो उसके मुताबिक प्रदेश में मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव की दो ही काडर पोस्टें है। इनके अनुसार दो एक्स काडर पोस्ट अतिरिक्त मुख्य सचिव के सृजित किये जा सकते हैं। इस तरह मुख्यसचिव और अतिरिक्त मुख्यसचिव के प्रदेश में केवल चार ही काडर पद हो सकते है। राज्य सरकार अपने काम के सुचारू निर्वहन के लिये अतिरिक्त मुख्य सचिव के अन्य पद तो सृजित कर सकती है लेकिन ऐसे पद केवल दो वर्ष के लिये रह सकते हैं और उसके बाद भी इन्हें चलाये रखने के लिये केन्द्र सरकार की अनुमति वांच्छित है और अनुमति के साथ भी केवल अगले तीन वर्ष तक ऐसा किया जा सकता है। लेकिन ऐसे पदों को किसी भी गणित में नियमित काडर करार नहीं दिया जा सकता।
That as already explained in paragraph No. 23, since there is one cadre post of Chief Secretary and one post of Additional Chief Secretary in the State of Himachal Pradesh, therefore, by virtue of powers vested in the State Government, under Rule 9(7) of Pay Rules (supra), two more posts could have been created by the State Govt. in the apex scale. In terms of the said Rules the State Govt. created two ex-cadre posts against the sanctioned strength of State Deputation Reserves vide order, dated 20.08.2007 against which the cadre officers can be posted.
That thus these are the only four posts i.e. two cadre and two ex-cadre posts that are part of the sanctioned strength in accordance with the rules and form part of the State cadre.
That the State Govt., however, has the power to create posts of like nature to cadre posts by virtue of the second proviso to Rule 4(2) of the IAS (Cadre) Rules, 1954, whereby, the State Government may add for a period not exceeding two years and with the approval of the Central Government for a further period not exceeding three years, to a State or Joint Cadre one or more posts carrying duties or responsibilities of a like nature to cadre posts.
That as per Office Memorandum No.11030/4/2012-AIS -II dated 20th January 2015 issued by the Department of Personnel and Training, Govt. of India, clarified in para 3 of the OM ibid that many State Governments have been using the second proviso to Rule 4(2) of IAS Cadre Rules, 1954 for creation of additional ex-cadre posts.The relevant portion of the afore-mentioned OM is reproduced below:
" It is also observed that many State Governments have been using the second provison to Rule 4(2) of IAS Cadre Rules, 1954 for creation of additional ex-cadre posts. The Rule provided that a " State Government concerned may add for a period not exceeding two year [and with the approval of the Central Government for a further period not exceeding three years] to a State or a Joint Cadre one or more posts carrying duties or responsibilities of a like nature to cadre posts". The provision indicates that the temporary posts created may be restricted to one or two posts only. This provision, however, cannot be used for creating a post in the Apex level."
This communication from GOI makes it crystal clear that the temporary posts created may be restricted to one or two posts only. This provision, however, cannot be used for creating a post in the Apex level.
इस वस्तुस्थिति को सामने रखते हुए आज जितने पद इस तरह के सृजित किये जा चुके है उनको चलाये रखने पर भी प्रश्न चिन्ह लग सकता है। पी मित्रा की सेवानिवृति के बाद जब 31-5-16 को फारखा के आदेश हुए थे उस पर प्रोटैस्ट करते हुए चैाधरी 1-6-2016 को 60 दिन के अवकाश पर चले गये थेे। उसके बाद 30-07-16 को मुख्यमन्त्री को इस नजरअन्दाजी पर एक प्रतिवेदन सौंपा गया था। लेकिन आर टी आई में ली गयी जानकरी के मुताबिक यह प्रतिवेदन मुख्यमन्त्री के समक्ष रखने से पहले ही फाईल कर दिया गया। इससे आहत होकर अन्ततः विनित चैाधरी को कैट में दस्तक देनी पड़ी है। अब चैाधरी को फारखा के समकक्ष लाने के निर्देश दिये गये हैं। यदि सरकार उन्हें फारखा के बराबर वेतन भत्ते और अन्य सुविधाएं प्रदान करती है तो इसका अर्थ होगा मुख्यसचिव का एक और पद सृजित करना, जो कि नियमों के मुताबिक संभव नही होगा। बल्कि इस समय प्रिंसिपल एडवाईजर का जो पद दिया गया है वह भी रूल्ज आॅफ विजनैस के तहत परिभाषित नही है। इस तरह यह पूरा मामला बेहद रोचक हो गया है और इसमें जो भी फैसला आयेगा उसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ेगा।
शिमला/शैल। सोलन को नगर निगम बनाने की मांग करते हुए सोलन नगर निगम परिषद् के पूर्व अध्यक्ष कुल राकेश पंत और अन्य कांग्रेस नेताओं नेे 28.12.16 को मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह को पत्र लिखा था। इस पत्रा में मुख्यमन्त्री को स्मरण करवाया है कि जून 2015 को शूलिनि मेले के अवसर पर वीरभद्र सिंह ने स्वयं सोलन को नगर निगम बनाने का आश्वासन दिया था। मुख्यमन्त्री कार्यालय ने यह पत्र आगामी कारवाई के लिये 27 जनवरी 2017 को निदेशक शहरी विकास विभाग को भेज दिया है। सोलन नगर निगम परिषद् भी दो वर्ष पहले इस आश्य का प्रस्ताव पारित करके सरकार को भेज चुकी है। इस समय डा0 धनी राम शांडिल सोलन के विधायक है और वीरभद्र सरकार मे मंत्री है। सोलन कांग्रेस के इन नेताओं ने अब मुख्यमन्त्री को भेजे पत्र की प्रतिलिपि धनीराम शांडिल को भेजकर उनसे सोलन को नगर निगम बनवाने की मांग की है।
स्मरणीय है कि जब धर्मशाला को नगर निगम का दर्जा दिया गया था तो उस समय वहां की आबादी 23 हजार थी। धर्मशाला को नगर निगम बनाने के लिये उसके आस-पास के क्षेत्रों को उसमें मिलाया गया है। जबकि 2011 की जनगणना के मुताबिक सोलन की आबादी उस समय करीब 40 हजार थी जिसका की अब 50 हजा़र तक पहुंचने का अनुमान है सोलन के गिर्द 10 बडे शैक्षणिक संस्थान चल रहेे है और यहां पर प्रतिदिन 20 से 25 हजार के बीच बाहर से लोग आते है। जनसंख्या के आंकड़ो के आधार पर सोलन धर्मशाला से बड़ा है। धर्मशाला नगर निगम बनने के बाद स्मार्ट सिटी की सूची में भी आ गया है। ऐसे में इस समय सोलन को नगर निगम बनाने की जो मांग उठी है उसके राजनीतिक परिणाम दूरगामी होंगे।
इस वर्ष विधानसभा के चुनाव होने है और कांग्रेस को यह चुनाव जीतने के लिये लोगों की जायज़ मांगो को तत्काल प्रभाव से स्वीकार करते हुए उसे अमली शकल देने का प्रयास करना होगा। जब 2015 में मुख्यमंत्राी ने स्वयं सोलन नगर निगम बनाने का आश्वासन दिया था तो आज लोग उस आश्वासन पर अमल चाहेंगे। यदि नगर निगम बनाने का यह आश्वासन पूरा न हुआ तो इसको नुकसान कांग्रेस और धनीराम शांडिल दोनों को चुनावों में होगा यह तय है।
शिमला/शैल। वामपंथियों ने वीरभद्र सिंह सरकार पर साल से ज्यादा समय से शोंगटोंग पाॅवर प्रोजेक्ट से निकाले मजदूरों की बहाली को लेकर हाईकोर्ट व लेबर कोर्ट आदेशों की पालना न करने पर हिमाचल पावर काॅरपोरेशन के कार्यालय में वार्ता के लिए गए वामपंथी नेताओं व कार्यकर्ताओं को गिरफतार कर बसों व थानों में सादी वर्दी में पुलिस वालों से पिटवाने का बेहद संगीन इल्जाम लगाया हैं।
माकपा के प्रदेश सचिवालय सदस्य टिकेंद्र पंवर ने कहा कि ये खतरनाक प्रवृति है। सिविल सोसायटी को इसका संज्ञान लेना चाहिए। उन्होंने सरकार से जानना चाहा कि वो इस तरह की हरकतें कर क्या साबित करना चाहती हैं। टिकेंद्र पंवर बीते रोज हिमाचल पाॅवर कारपोरेशन में गए वामपंथी नेताओं राकेश सिंघा व बाकी कार्यकर्ताओं को अरेस्ट करने व सादी वर्दी में पुलिस के जवानों से इन्हें पिटवाने को लेकर वीरभद्र सिंह सरकार को आगाह कर रहे थे। टिकेंद्र पंवर ने कहा कि माकपा व सीटू इस जंग को गलियों तक ले जाएगी।
उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट व लेबर कोर्ट के आदेशों की अनुपालना नहीं की जा रही है व ये सब सरकार के इशारे के बिना संभव नहीं हैं। इस प्रोजेक्ट में कांग्रेस पार्टी, सरकार व नौकरशाहों का गठजोड़ मजदूरों के हकों पर डाका डाल कर अपनी झोलियां भर रहा है। सरकार की ये मिलीभगत खतरनाक है। टिकेंद्र पंवर ने कहा कि प्रदेश की विभिन्न जेलों में महीनों से बंद 57 मजदूरों की रिहाई का इंतजार कर रहे हैं। आखिर उन्हें जेलों में क्यों रखा गया हैं, उन्होंने अपराध कौन सा किया हैं। कत्ल और रेप के आरापियों को जमानत मिल जाती हैं लेकिन ये महीनों से प्रदेश की अलग-अलग जेलों में पड़े हैं। उनके परिवारों का क्या हो रहा है क्या ये सरकार को मालूम है?
इस मौके पर माकपा सचिवालय के एक अन्य वरिष्ठ सदस्य कुलदीप सिंह तंवर ने कहा कि इस प्रोजेक्ट की 1006 करोड़ की डीपीआर बनी थी जबकि पटेल कंपनी इसकी बोली 1000 करोड़ रुपए लगाकर ठेका हासिल किया था। ऐसे में मजदूरों की मजदूरी पर कट लगाया जा रहा है।
मेयर व माकपा नेता संजय चैहान ने कहा कि बीते रोज पुलिस के दबाव में माकपा व सीटू नेताओं को उठा ले गए। सरकार आंदोलन को कुचलना चाहती हैं। वो इसमें कामयाब नहीं होगी।
उधर सीटू ने इस मसले पर आज डीसी आॅफिस के बाहर प्रदर्शन किया। सीटू नेताओं ने कहा कि श्रम कानूनों को लागू करवाना सरकार का दायित्व है। वहां पर कार्यरत मजदूरों को न तो न्यूनतम वेतन दिया जाता है, न ई. पी. एफ. काटा जाता है और न ही कोई छुट्टी दी जाती है। ई. पी. एफ. आयुक्त व लेबर कमीशनर ने हाई कोर्ट को दिए हलफनामे में कहा है कि कम्पनी में श्रम कानून लागू नहीं हो रहा है। यहां तक कि प्रदेश सरकार की शह पर पटेल कम्पनी और एच. पी. सी. एल. 18 मई 2016 को लेबर कोर्ट व 20 सितम्बर 2016 के हाईकोर्ट के आदेश को भी नहीं मान रहे है। ऐसे में गिरफतार तो इनकी होनी चाहिए।
एच. पी. सी. एल. के समयानुसार जब मजदूर व नेतृत्वकारी साथी बातचीत करने गए तो 5 घंटे तो उनको वहां पर बैठाकर रखा गया व उनसे कोई बातचीत नहीं की गई। मजबूर होकर मजदूरों को प्रदर्शन करना पड़ा।
शिमला/शैल।
प्रदेश में ड्रग्स अपराध हर साल बढ़ते जा रहे है लेकिन इनमें पकडे गये अपराधियों में से केवल 35% को ही सजा मिल पा रही है और शेष 65% अदालत में जाकर छुट जा रहे है। यह खुलासा मुख्य सचिव वीसी फारखा ओर डीजीपी संजय कुमार द्वारा बुलायी गयी सांझी पत्रकार वार्ता में रखे गये आंकड़ो से सामने आया है। इन आंकड़ो के मुताबिक 2016 में 929 मामले दर्ज किये गये हैं जबकि 2015 में यह संख्या 622 और 2014 में 644 थी। ड्रग्स माफिया ने प्रदेश के काॅलिज़ों से लेकर स्कूलों तक पांव पसार लिये है। कुल्लु, चम्बा, कांगडा, ऊना और शिमला में यह अपराध लगातार बढ़ता जा रहा है। शिमला के तो हर थाने में ड्रग्स के मामले दर्ज है। कई विदेशी ड्रग्स के साथ पकड़े गये हैं। 2016 में 377 किलो चरस, 27 किलो अफीम और 90 किलो गांजा बरामद किया गया है। कुल्लु पुलिस ने अभी पिछले दिनों एक नाईजीरिया के नागरिक से डेढ़ किलो हेरोईन और अमेरिका के नागरिक से 126 किलो गांजा, 10 किलो हशीश तेल बरामद किया है।
प्रदेश में इन अपराधोें में विदेशीयों का पकड़ा जाना यह प्रमाणित करता है कि यह विदेशी अपनेे स्थानीय संपर्को के माध्यम से ही इन अपराधों को अंजाम दे रहें है क्योंकि किसी विदेशी के लिये अपने स्थानीय संपर्क के बिना इस तरह के अपराध को अंजाम दे पाना संभव ही नही है। प्रदेश की पुलिस एक लम्बे अरसे से भांग और अफीम के पौधों को उजाड़ने की मुहिम चलाती आ रही है लेकिन इसका कोई बड़ा असर देखने को नहीं मिल रहा है। बल्कि हर साल यह मुहिम एक रस्म अदायगी बनकर रह रही है। चरस, गांजा और अफीम के अतिरिक्त अब नशे के कैपस्यूल और कई तरह की गोलीयां भी दवा विक्रेताओं के पास मिल रही है। मीठे जहर का यह कारोबार लगातर फैलता जा रहा है। इस अपराध के बढ़ते आंकड़ो से इस धारणा को बल मिल रहा है कि जिस अपराध और अपराधी को परोक्ष/अपरोक्ष में सत्ता का संरक्षण प्राप्त होता है वही नही पकड़ा जाता है। इस अपराध में पकडे जाने वाले 65% अपराधीयों को अदालत में सजा न मिल पाना भी इसी धारणा को पुख्ता करता है क्योंकि अपराधी को अदालत में सजा़ दिलाना और उसके लिये पुख्ता साक्ष्य जुटाना पुलिस की जिम्मेदारी है। जब मामले में कुछ कमियां रहेगी तभी अदालत में अपराधी को इसका लाभ मिलेगा और वह छूट जायेगा।
लेकिन अब तक पुलिस इस अपराध से परोक्ष/अपरोक्ष में जुड़े बड़े आकाओं तक नही पहुंच पा रही है। पुलिस को इस तरह का सुराग अब तक नही मिल पाया है। जबकि 2011 में एक पुलिस कर्मी कमल देव ठाकुर ने अपने स्थानान्तरण को लेकर प्रदेश उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी उसमें यह लिखा गया था । As per the record of the police it is revealed that the petitioner had detected about 54 (fifty four cases) of unmasking illegal smuggling of drugs, Liquor, and mafias who were actively involed in this illegal business with the blessing of big bosses at higher echelons.कमल देव को सरकार अपराधिक अन्वेषण में साहसिक भूिमका निभाने के लिये 15 अप्रैल को हिमाचल दिवस के अवसर पर सम्मानित भी कर चुकी है। उसने हमीरपुर में इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया है जिससे कई बड़े लोग उससे अप्रसन्न हो गये थे उसने हमीरपुर के राजनेता पर गंभीर आरोप लगाये है। लेकिन शीर्ष पुलिस प्रशासन ने इस पुलिस कर्मी के माध्यम से उस राजनेता तक पहुंचने का प्रयास करने की बजाये उसे ही प्रताड़ित किया। इसी तरह जुलाई 2014 में ऊना के हरोली थाना क्षेत्रा के तहत एक दवा विक्रेता पर तीन दिन तक पंजाब पुलिस ने छापामारी करके बड़ी मात्रा में मादक पदार्थ पकड़े। हरोली थाना की भूमिका इस मामले में काफी विवादित रही है जिसके कारण पूरा थाना ट्रांसफर किया गया था। इस क्षेत्र के एक युवक की मादक पदार्थो के सेवन के कारण मौत हो गयी थी। स्थानीय लोगों ने इस पर दो दिन भारी प्रदर्शन किया था। लेकिन पुलिस यहां भी स्थानीय संपर्को तक नही पहुंच पायी। शिमला के ठियोग थाना में दर्ज एक एनडीपीएस मामले में एक नेता के साथ जुडे लोगों पर शिकायतकर्ता ने आरोप लगाये हैं। ऐसे बहुत सारे प्रकरण है जिनके माध्यम में एक पुलिस बड़े लोगों तक पहुंच सकती थी लेकिन ऐसा हो नही पा रहा है।
इस परिदृश्य में मुख्यसचिव और डीजीपी ने इस अपराध को लेकर जो चिन्ता ओर गंभीरता दिखाई है उसके तहत सरकार ने भांग व अफीम की खेती को उखाड़ने के लिए एनजीओ, पंचायती राज संस्थाओं और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूूूूरो को शामिल कर बड़ा अभियान चलाने जा रही हैं। नारको सेल में अलग अलग रेंज में तीन डीएसपी तैनात कर दिए हैं इसके अलावा आईजी व डीआईजी के साथ भी डीएसपी तैनात किए जा रहे हैैं। अगर जरूरत पड़ी तो अलग से सेल खोलने का भी इरादा हैं। चुनावी साल में चीफ सेक्रेटरी फारका ने सरकार का इरादा साफ कर दिया हैं। चूंकि इस साल चुनाव होने हैं व विपक्षी पार्टी ड्रग्स के संवेदनशील मसले पर सरकार को न घेर दे इसलिए सरकार ने पहले ही अपने टाॅप बाबू आगे कर दिए हैं। लेकिन इन टाॅप बाबूओं का ज्यादा फोकस भांग व अफीम की खेती तबाह करने में है जबकि प्रदेश में बाकी ड्रग्स पांव फैला चुकी हैं।
शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और पूर्व मुख्यमन्त्री एंवम् नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल के परिवारों में एक लम्बे अन्तराल के बाद फिर से वाक्युद्ध शुरू हो गया है। इस वाक्युद्ध में अन्तिम जीत किसको मिलती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इतना तय है कि अब यह युद्ध निर्णायक मोड़ पर पहुंचने वाला है। वीरभद्र ने इस शासनकाल के पहले ही दिन से धूमल परिवार और धूमल शासन के खिलाफ अपनी सारी ऐजैन्सीयां तैनात कर दी थी। एचपीसीए वीरभद्र की विजिलैन्स का एक मात्रा मुद्दा बन गया था। आधी रात को एचपीसीए की संपत्तियों के खिलाफ जांच अभियान छेडा गया। शिकायतकर्ता को धर्मशाला में ही सरकार ने उप महाधिवक्ता के पद से नवाजा। लेकिन आज तक वीरभद्र और उनकी विजिलैन्स को एक भी मामले में सफलता नही मिल पायी है। बल्कि ए.एन.शर्मा के मामले में सर्वोच्च न्यायालय तक हार का मुहं देखना पडा। अब योग गुरू बाबा रामदेव के मामले में तोे पूरा मन्त्रिमण्डल फजीहत के कगार तक पहुंच गया है।
वीरभद्र ने अवैध फोन टेपिंग प्रकरण में तो यंहा तक आरोप लगाया था कि उनका फोन टेप किया गया है। हर रोज फोन टेपिंग मामले में वीरभद्र दोषियों को सजा दिलाने के दावे करते रहे परन्तु यह सब दावे हवाई सिद्ध हुए। तत्कालीन डीजीपी मिन्हास को कब्र से खोद निकालने के दावे करते रहे लेकिन इन दावों का कोई परिणाम नही निकला। लेकिन इसी दौरान वीरभद्र के खिलाफ यूपीए शासन में ही शुरू हुए मामले को जब प्रशांत भूषण ने दिल्ली उच्च न्यायालय के माध्यम से सीबीआई और ईडी में मामले दर्ज होने के मुकाम पर पहुंचा दिया तो वीरभद्र ने इसे धूमल जेटली और अनुराग का षडयन्त्र करार दे दिया। इन लोगों के खिलाफ मानहानि के दावे तक दायर कर दिये। फिर जेटली के खिलाफ दायर करवाये मामले को खुद ही वापिस ले लिया। इस दौरान धूमल के छोटे बेटे अरूण धूमल ने वीरभद्र के पूरे मामले में अपने स्तर पर इसकी खोज करते हुए मीडिया में दस्तावेजी प्रमाण रखते हुए यह सुनिश्चत किया कि जांच ऐजैन्सीयां इसकी जांच में कोई ढील न अपनाये। आज वीरभद्र के मामले फैसले के कगार पर पहुंचे हुए हैं कभी भी फैसला आने की स्थिति बनी हुई है।
वीरभद्र इस स्थिति से पूरी तरह परिचित हैं। इसी कारण उन्होने एक बार फिर अपनी विजिलैन्स को धूमल के संपति मामले में तेजी लाने के निर्देश दिये हैं। विजिलैन्स ने भी इनकी अनुपालना करते हुए पंजाब सरकार से फिर धूमल संपतियो की सूची मांगी है। स्वाभाविक है कि पंजाब सरकार के संज्ञान में जो भी सपंतियों होंगी उनमें किसी भी तरह की नियमों/कानूनों की अवहेलना नहीं मिलेगी। हिमाचल में स्थित संपतियों को लेकर वीरभद्र का प्रशासन पहले ही विजिलैन्स को क्लीन चिट दे चुका है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि वीरभद्र की विजिलैन्स के पास आज की तारीख में धूमल के खिलाफ ऐसा कुछ भी नही है जिसके आधार पर कोई मामला दर्ज किया जा सके। राजनीतिक तौर धूमल ही वीरभद्र के लिये सबसे बड़ा संकट और चुनौती हैं इसी कारण वीरभद्र ने धूमल को लेकर ब्यान दिया है कि धूमल न तो मुख्यमन्त्री बनेंगे और न ही पार्टी के अध्यक्ष। वीरभद्र धूमल परिवार के खिलाफ जल्द से जल्द कोई भी मामला दर्ज करना चाहते हैं। उधर अरूण धूमल ने भी वीरभद्र की मंशा को भांपते हुए फिर से मोर्चा संभाल लिया है। हमीरपुर के बड़सर में एक युवा सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए अरूण धूमल ने वीरभद्र, प्रतिभा सिंह, विक्रमादित्य, आनन्द चैहान और वक्कामुल्ला को शीघ्र ही तिहाड़ जेले भिजवाने का संकल्प लिया है। अरूण धूमल के इस ब्यान से यह संकेत उभरता है कि अब वीरभद्र के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला कभी भी घोषित हो सकता है।