विनित चैाधरी और दीपक सानन ने संयुक्त रूप से कैट में याचिका दायर की है और इसमें कार्मिक विभाग पर मुख्यमन्त्री को गुमराह करने का आरोप लगया गया है। आरोप है कि मुख्य सचिव के चयन के लिये 16 अधिकारियों की जो सूची मुख्यमन्त्री के सामने रखी गयी उससे यह आभास दिया गया कि यह सब अधिकारी अब एक बराबर है। क्योंकि सबको 80,000 का उच्चतम वेतन मिल रहा है। इनमें से किसी को भी मुख्य सचिव बनाया जा सकता है। लेकिन इस सूची में 1982 से लेकर 1985 बैच तक के सभी अधिकारी शामिल थे क्योंकि सबको अतिरिक्त मुख्य सचिव बनाकर 80,000 का वेतन दे दिया गया है। यहां पर यह उल्लेखनीय है कि प्रदेश में मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव के केवल दो ही पद काडर में सृजित है और इनके बराबर दो और पद अतिरिक्त मुख्य सचिव के एक्स के अनुसार मुख्य सचिव का चयन इन्ही चार अधिकारियों में से किया जा सकता है। इन चार पदों के अतिरिक्त ए सी एस के जितने भी पद सृजित किये गये हैं उनके लिये भारत सरकार से पूर्व अनुमति लेनी होती है और यह शुद्ध रूप से अस्थायी होते है तथा केवल दो वर्ष तक के लिये रह सकते हैं। इन अस्थायी पदों को मुख्य सचिव के चयन के दायरे में नहीं लाया जा सकता। इस संद्धर्भ में लाये गये कार्मिक विभाग के नोट को लेकर याचिका में कहा गया है कि That the note artificially expands the list of officers who are eligible to be considered for appointment as Chief Secretary by including officers holding posts of Additional Chief Secretary that have been created in contravention of the IAS Pay Rules and the IAS Cadre Rules and Government of India instructions disallowing creation of posts in the apex grade under the 2nd proviso to Rule 4(2) of the IAS Cadre Rules.
That the note indicates that all 16 officers have been placed in the apex grade after due screening by the screening committee which is factually incorrect because respondent No. 3 Sh VC Pharka along with Respondent no 4, was granted the Chief Secretary's grade without any consideration by the Screening Committee and was, therefore, not eligible for being considered for appointment to the post of Chief Secretary.
That the note fails to draw attention to the fact that recommendation of the Civil Services Board was now mandatory for making any appointment to cadre posts after amendment in the IAS (Cadre Rules) in pursuance of the Supreme Court's judgment in the TSR Subramanian case and consequential amendments in the IAS Cadre Rules.
Two officers of the 1983 batch vizUpmaChawdhry and VidyaChanderPharka were promoted to the Chief Secretary's grade on 04.03.2014 by upgrading two posts of Principal Secretary to the Govt out of which one post was to re-convert to the post of Principal Secretary on 30.4.2015. The apex scale was released without any assessment by the Screening Committee.As per information obtained under RTI, no information about the meeting of the Screening Committee is available with the State Govt.
अब तो सर्वोच्च न्यायालय ने आई ए एस अधिकारियों की पदोन्नति और स्थानान्तरण को लेकर सिविल सर्विस बोर्डे का गठन अनिवार्य कर दिया है। इस बोर्ड की सिफारिशों के बिना यह चयन नही हो सकता। लेकिन फारखा की नियुक्ति के समय यह मामला बोर्ड के सामने लाया ही नही गया बल्कि बोर्ड का गठन ही नहीं किया गया। मुख्यमन्त्री ने फारखा के नाम को इसी आधार पर स्वीकृति दे दी की सब अधिकारी मुख्यसचिव के बराबर ही है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पश्ट कहा हैं कि "What has to be seen for equivalence is the status and the nature and responsibilities of the duties attached to the two posts. Merely giving the salary of one post to the other does not make for equivalence". इस परिदृश्य में फारखा की नियुक्ति को चुनौति देने वाली इस याचिका से प्रदेश के शीर्ष प्रशासन पर गंभीर प्रभाव पड़ने तय हैं।
शिमला/बलदेव शर्मा। वीरभद्र सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर सरकार ने धर्मशाला में रैली आयोजित की थी। इस रैली को कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने संबोधित किया था। यह कार्यक्रम सरकार द्वारा आयोजित किया गया था। लेकिन इस रैली के मंच पर परिवहन मन्त्री जी एस बाली को स्थान नही दिया गया। बाली जब मंच तक आने लगे तो सुरक्षा कर्मी ने उन्हें यह कहकर रोक दिया कि मंच पर बैठने वालों की सूची में उनका नाम शामिल ही नही है। यह सरकारी कार्यक्रम था इसलिये स्वभाविक रूप से मंच पर बैठने वालों की जो सूची तैयार की गयी होगी उसकी जानकारी मुख्यमन्त्राी कार्यालय और मुख्य मन्त्री को ही रही होगी। सूची तैयार होने के बाद इसकी प्रति मंच संचालक को दी जाती है लेकिन मंच संचालक उसमें अन्तिम क्षणों में कोई फेरबदल नहीं कर सकता। इस रैली में मंच संचालक की जिम्मेदारी उद्योग मंत्री मुकेश अग्निहोत्री के पास थी।
स्मरणीय है कि पिछले दिनों जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मण्डी आये थे तब भाजपा ने जो रैली आयोजित की थी उस रैली में मोदी ने जिस भाषा और तर्ज में वीरभद्र के भ्रष्टाचार मामलों का जिक्र किया था उससे सरकार और कांग्रेस दोनो असहज हो उठे थे। उस रैली की प्रतिक्रिया में यह दावा किया गया था कि इसी स्थल पर इससे भी बड़ी रैली का आयोजन करके मोदी और भाजपा को जवाब दिया जायेगा। उसके बाद उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक मण्डी में इस रैली का आयोजन करने का प्रयास किया। मण्डी के बाद ऊना में संभावना तलाश की गयी और अन्त में इसके लिये धर्मशाला तय की गयी। धर्मशाला की रैली को सफल बनाने के लिये कांगड़ा के मन्त्रीयों जी एस बाली, सुधीर शर्मा और सुजान सिंह पठानिया के अतिरिक्त युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह ने विशेष प्रयास किये। विक्रमादित्य सिंह ने हमीरपुर, ऊना और कांगड़ा का विशेष दौरा किया। संभवतः इसी दौरे के परिणाम स्वरूप कई जगहों पर उनके पोस्टर देखे गये। लेकिन रैली के लिये मुख्य मन्त्री और सुधीर शर्मा के पोस्टर ही ज्यादा देखे गये और अन्य मंत्रीयों को इनमें जगह नही मिली। यहां तक कि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुक्खु भी ज्यादा नजर नही आये। मंच पर भाषण का मौका भी मन्त्रीयों में केवल सुधीर को ही मिला। जबकि सूत्रों के मुताबिक रैली के लिये परिवहन प्रबन्धों की सारी जिम्मेदारी बाली ने निभाई है। कांगड़ा की राजनीति में बाली के प्रभाव और स्थान को कम करके नहीं आंका जा सकता। यह उन्होने पंचायती राज सभाओं के चुनावों में पूरी तरह प्रदर्शित कर दिया था। दिल्ली दरबार में बाली ने किस तरह से पुनः अपना स्थान बना लिया यह सब जानते है। इसी स्थान के फलस्वरूप वह रैली के बाद राहुल गांधी का एक कार्यक्रम अपने चुनाव क्षेत्रा नगरोटा में रखवाने -करवाने में सफल रहे। इस कार्यक्रम में भी बाली ने राहुल के सामने मीलों लम्बी लाईनंे लगवाकर अपने जनाधार का सफल परिचय दे दिया। इस कार्यक्रम में भीड़ ने बाली और राहुल के नारे भी लगाये। धर्मशाला की रैली की सफलता का श्रेय अकेेले सुधीर शर्मा को नही जाता है यह सब मानते है। लेकिन व्यवहारिक तौर पर इस रैली को एक तरह से सुधीर और विक्रमादित्य सिंह ने ही हाईजैक कर लिया था। सूत्रों के मुताबिक इस पर न केवल बाली बल्कि कई अन्य नेता भी अन्दर खाते नाराज़ है। बाली को मंच पर न पाकर कांगड़ा के लोगों में हैरानी होना स्वाभाविक है। बाली ने जब सूची में उनका नाम ने होने की शिकायत मुख्यमन्त्री से करके इसकी जांच करने का आग्रह किया तो मुख्यमन्त्री ने बाली के आक्षेप को कोरा झूठ करार दे दिया। जबकि सच तो यह है कि बाली का नाम राहुल के साथ हैलीकाॅप्टर में बैठने वालों की सूची में भी नही था। बाली हवाई अड्डे तक अपनी गाडी में पहुंचे है हालांकि राहुल ने हैलीकाप्टर में उनके बारे में पूछा और थोड़ा इन्तजार भी किया। यह सब आज कांगड़ा में हरेक की चर्चा का विषय है। भाजपा को कांग्रेस की एक जुटता पर हमला करने का मौका मिल गया। हैं बल्कि अब बाली विरोधी नितिन गडकरी के साथ उनके रिश्तों को एक नयी व्याख्या देने लग पड़े हैं। बाली एक ऐसे नेता है जिनकेे रिश्ते दूसरे राजनीतिक दलों के कई बड़े नेताओं के साथ बहुत अच्छे है। इन्ही रिश्तों के कारण कई लोग बाली के अनचाहे विरोधी हो गये हैं। लेकिन राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में यह सवाल बराबर गूंज रहा है कि मुख्यमन्त्री के निकटस्थों ने इस समय राजनीतिक विवाद का यह नया अध्याय क्यों शुरू करवा दिया। इसी का परिणाम है कि बाली जहां भाजपा के आरोप पत्र को खारिज कर रहे है। वहीं पर यह भी मान रहे है कि बेरोजगार युवाओं के साथ किया गया वायदा पूरा नहीं किया गया है। बाली का मंच के साथ ही हैलीकाॅप्टर की सूची से भी नाम गायब होना एक महज संयोग नही माना जा सकता और बाली का यह दर्द कई लोगों को दर्द दे सकता है।
शिमला/बलदेव शर्मा। क्रिकेट प्रशासन में सुधार के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को अमली जामा पहनाने के लिये एक वर्ष ये भी अधिक समय से शीर्ष अदालत में चल रहे मामले में आये फैसले में सर्वोच्च अदालत ने बीसीसीआई के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के को उनके पदों से हटा दिया है। अभी अध्यक्ष के काम काज की जिम्मेदारी वरिष्ठ उपाध्यक्ष ओर सचिव की जिम्मेदारी सयुंक्त सचिव को सौंपी गयी है। बोर्ड का अगला प्रबन्धन किसके पास कैसे रहेगा इसका फैंसला 19 जनवरी को आयेगा। बीसीसीआई विश्व का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है लेकिन इस बोर्ड पर लगभग देश के राजनेताओं का कब्जा है और इसमें सभी राजनीतिक दल बराबर के हिस्सेदार हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि सभी खेलों का प्रबन्धन राजनेताओं के हाथों में पहुंच चुका है। क्रिकेट में खिलाड़ियों की बोली लगती है। इसमें चल रहे सट्टे के खेल पर भी जांच कमेटी बिठानी पड़ी थी। क्रिकेट में फैल ‘‘इस सब कुछ’’ में सुधार कैसे लाया जा सकता है इसके लिये ही लोढ़ा कमेटी का गठन किया गया था। लोढ़ा कमेटी ने इस संद्धर्भ
में इसके प्रबन्धक अधिकारियों की उम्र, कार्यकाल, एक राज्य एक वोट जैसी कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की है। लेकिन बीसीसीआई ने इन सिफारिशों को मानने में अडियल रूख अपना लिया। बीसीसीआई का अडियल रूख जब इसके अध्यक्ष अनुराग के शपथ पत्र के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया तब स्थिति और भी गंभीर हो गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस शपथ पत्र को अदालत की मानहानि करार दिया जिसका परिणाम अध्यक्ष और सचिव की बर्खास्तगी के फैंसले के रूप में सामने आया है।
बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग हमीरपुर सांसद है और नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल के बड़े बेटे हैं। बीसीसीआई तक पहुंचने से पहले अनुराग एचपीसीए के सर्वेसर्वा थे। यह एक संयोग है कि जब धूमल हिमाचल के मुख्यमन्त्री बने उसी दौरान एचपीसीए ने अपना यहां पर विस्तार किया। इस विस्तार के नाम पर एचपीसीए ने प्रदेश में धर्मशाला जैसा स्टेडियम स्थापित किया और अन्य स्थानों पर भी स्टेडियमों की स्थापना की है। लेकिन एचपीसीए का यह विस्तार राजनीति के आईने में धूमल शासन का भ्रष्टाचार बन गया। और आज वीरभद्र सरकार ने एचपीसीए के खिलाफ कई आपराधिक मामले चलाये हुए है। जिन पर ट्रायल कोर्ट से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक से स्टे मिला हुआ है। एचपीसीए को इंगित करके ही वीरभद्र सरकार नया खेल विधेयक लेकर आयी। जो कि राजभवन में स्वीकृति के लिये लंबित पड़ा हुआ है। अनुराग ठाकुर की गिनती केन्द्रिय वित्त मंत्री अरूण जेटली के निकटस्थों में होती है। इसी कारण वीरभद्र अपने खिलाफ चल रहे सीबीआई और ईडी के मामलों को धूमल, जेटली और अनुराग का षडयंत्र करार देते हैस्मरणीय है कि जब सर्वोच्च न्यायालय ने बीसीसीआई के मामले मे फैंसला सुरक्षित किया था और अनुराग के शपथ पत्र पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी तब वीरभद्र ने अनुराग को लेकर जिस तर्ज में अपनी प्रतिक्रिया दी थी उससे स्पष्ट हो जाता है कि अब जब बीसीसीआई को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का फैंसला आ गया तब वीरभद्र और उनकी विजिलैन्स भी एचपीसीए के मामलों में ऐसे ही परिणाम पाने के लिये पूरा - पूरा प्रयास करेंगे।
दूसरी ओर भाजपा के भीतर भी जो लोग धूमल विरोधी माने जाते है वह भी अनुराग के खिलाफ आये इस फैंसले का पूरा - पूरा राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास करेंगे। क्योंकि यही विरोधी खेमा है जिसने नड्डा को भी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदारों के रूप में प्रचारित किया है। कांग्रेस और वीरभद्र भी इस प्रचार को अपनी सुविधानुसार हवा देते रहे हैं। इस परिदृश्य में यह स्वाभाविक है कि वीरभद्र एचपीसीए के मामलों को आगे बढ़ाने का पूरा प्रयास करें। क्योंकि राजनीतिक तौर पर वीरभद्र को जो चुनौती धूमल से है वह नड्डा से नहीं है। ऐसे में बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में धूमल और वीरभद्र दोनो की ओर से ही आक्रामक राजनीति देखने को मिले। क्योंकि जहां अनुराग के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का फैंसला आया है वहीं पर वीरभद्र के खिलाफ भी आयकर अपील ट्रिब्यूनल चण्ड़ीगढ़ और उसके बाद हिमाचल उच्च न्यायालय के फैंसले आये हैं। इन फैसलों को लेकर कौन कितना आक्रामक होता है यह आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा।
शिमला/
अबूंजा सीमेन्ट ने पिछले दिनों कुछ कामगारों को यह कहकर काम से निकाल दिया है कि उनके पास अब काम नही हैं इन कामगारों को निकालने के लिये अपनाई गयी प्रक्रिया में इनके निश्कासन के नोटिस गेट पर चिपका दिये गये थे। उस समय इन कामगारों के निष्कासन पर प्रदेश के श्रम विभाग ने अपने दखल से यह कहकर पल्ला झाड़ लिया था कि सीमेन्ट उ़द्योग केन्द्र के कन्ट्रोल में है इसलिये इसकी समस्याओं के लिये केन्द्र का श्रम विभाग ही जिम्मेदार है। अब इसी सीमेन्ट प्लांट में एक मजदूर पर गर्म लावा गिरने से उसकी मौके पर ही मौत हो गयी और तीन गंभीर रूप से घायल हो गये जिन्हें आईजीएमसी लाया गया। इनमें से एक को तो पीजीाअई चण्डीगढ़ रैफर कर दिया गया है। इस हादसे ने कंपनी के प्लांट के अन्दर के सुरक्षा प्रबन्धों पर गंभीर सवाल खडे कर दिये हैं। लेकिन इतना बड़ा हादसा हो जाने पर प्रशासन का कोई बड़ा अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा है। जबकि केन्द्र और प्रदेश के श्रम विभाग और उ़द्योग विभाग की यह जिम्मेदारी बनती थी कि वह मौके पर आते। यहां तक कि डी सी और एसपी तक मौके पर नहीं आये। पूरा मामला स्थानीय पुलिस और एसडीएम तथा तहसीलदार पर ही छोड़ दिया गया।
इस हादसे में हुई कामगार की मौत के बाद जब कामगार उसकी डेडबांडी लेने गये तो उन्हे वहां जाने से पहले बाघल होटल में कपंनी प्रबन्धन से पहले मिलने के लिये कहा गया। कंपनी पिछले दिनों करीब 80 मजदूरों को काम से निकाल चुकी है और वह सब विरोध कर रहे हंै। यह हादसा उनकी चिन्ताओं का प्रत्यक्ष प्रमाण है। लेकिन इस हादसे को निपटाने के लिये एक जांच कमेटी बना दी गयी। इस कमेटी में मजदूर यूनियन सीटू के अध्यक्ष लच्छी राम, उपप्रधान मुकेश कोषाध्यक्ष देव राज तथा बीएमएस के महासचिव मस्तराम को शामिल किया है। इस जांच के लिये कंपनी के विशेषज्ञ मुबंई से आयेंगे लच्छी राम और देवराज को कंपनी ने निकाला हुआ है। स्थानीय पुलिस ने धारा 336 और 304 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। इस हादसे में सबसे बड़ा तथ्य यह सामने आया है कि लेबर विभाग का सेफ्रटी अफसर कभी भी यहां निरीक्षण के लिये नहीं आया है। जबकि इस अधिकारी की यह जिम्मेदारी होती है कि वह समय-समय पर जाकर सुरक्षा प्रबन्धों का जायजा लेता है और वाकायदा अपनी रिपोर्ट तैयार करता है अब इस अधिकारी के न आने की जिम्म्ेदारी केन्द्र के लेवर विभाग पर आती है या प्रदेश के इस बारें में किसके स्तर पर कोताही हुई है इसको लेकर अभी पुलिस खामोश है।
दूसरी ओर प्रशासन ने 30 साल के मृतक अजय कुमार के मामले को 39 लाख का मुआवजा और कंपनी में ही लगे उसके भाई को पक्की नौकरी तथा मां को पैन्शन देने का समझौता करके 24 घन्टे के भीतर ही मामले को निपटा दिया है। ऐसे में इस प्रकरण में दर्ज मामले पर पुलिस कैसे आगे बढ़ेगी या प्रशासन की तरह वह भी शांत हो जायेगी। इस मामले की जांच केमटी में जो निष्कासित मजदूर लच्छी राम और देव राज सदस्य बनाये गये हैं वह इसकी जांच को कैसे अन्तिम परिणाम तक ले जाते हैं या फिर उन्हें भी पुनः नौकरी मिल जाती है आज यह सारे सवाल चर्चा में हैं। लेकिन इस हादसे से इन बड़े उद्योगों के भीतर के प्रबन्धन और शीर्ष प्रशासन तथा राजनेताओं के साथ क्योंकि यह सब इस पर खामोश रहें है।
शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने राज्यपाल को वीरभद्र सरकार के खिलाफ आरोप पत्र सौंपा है। इस आरोप मुख्यमन्त्री से लेकर मन्त्रीयों, संसदीय सचिवो और विभिन्न निगमों-बार्डो के अध्यक्षों/उपाध्यक्षों और कुछ विधायकों तक के खिलाफ गंभीर आरोप लगाये गये है। इन आरोपों की जांच के लिये राज्यपाल इस आरोप पत्र को सरकार को भेजेेंगे और सरकार पर निर्भर करेगा कि वह कैसे इन आरोपों पर आगे बढ़ती है। लेकिन इस आरोप पत्र में प्रदेश के तीनों विश्वविद्यालयों के खिलाफ भी गंभीर वित्तिय और शैक्षणिक अनियमितताओं के आरोप लगे है। विश्वविद्यालयोें के संद्धर्भ में सरकार के विभागों से स्थिति भिन्न है। इनके लिये राज्यपाल ही सर्वेसर्वा हैं। वह विश्वविद्यालयों को लेकर अपने स्तर पर जांच आदेशित कर सकते हैं बल्कि जांच अधिकारी भीे अपनी पसन्द से नियुक्त कर सकते हैं। इसमें राज्य सरकार कोई हस्ताक्षेप नही कर सकती है। ऐसे विश्वविद्यालयों के खिलाफ लगे आरोपों की प्रमाणिकता और भ्रष्टाचार के प्रति भाजपा की गंभीरता भी राज्यपाल के आदेश से प्रमाणित हो जायेगी।
यह है कुछ आरोप
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में नियमो की अनदेखी कर, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा निर्धारित (NET/SLET/SET) की अनिवार्य शैक्षणिक योग्यताओं (प्रतिलिपी संलग्न-1) का हटा कर तथा माननीय सर्वोच्च न्यायाल के आदेशों (प्रतिलिपी संलग्न-2-5) को छुपा कर एक बहुत बड़ी साजिश के तहत विश्वविद्यालय के हिमालयन एकीकृत अध्ययन संस्थान (IIHS) में चहेतों को जो किसी परियोजना में निर्धारित पारिश्रमिक (Emoluments) पर काम कर रहे थे, को वित अधिकारी यानि एक व्यक्ति की कमेटी की सिफारिशों से सीधे पे-बैंड 15600-39100 में बिना विश्वविद्यालय के अध्यादेश व एक्ट में निर्धारित चयन प्रक्रिया से नियमित कर दिया गया और साथ में नियमितिकरन की तारीख से दो-दो पदोन्नतियां (ए0जी0पी0 7000 व 8000) भी दी गई (प्रतिलिपी संलग्न-4) वित्त संबधित मामलो को कुलपति द्वारा 12(सी) 7 में करना अपने आप ही न्यायसंगत नहीं है और साथ ही टाईम स्केल व एफ0आर0एस0आर0 नियमों के विरूद्ध है और करदाताओं के पैसों का सरेआम दुरूपयोग है। लगता है इस प्रदेश में व इस विश्वविद्यालय में कानून नाम की कोई चीज ही नहीं है।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डा0 राजिन्द्र सिंह चैहान हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में शिक्षक बनने के भी लायक नहीं थे, क्योंकि उनके बी0ए0 में मात्र 42.9 प्रतिशत और एम0ए0 में 50.7 प्रतिशत अंक थे, लेकिन कांग्रेस ने नियमों को ताक पर रखकर उसे पहले आचार्य भी बनाया और सेवानिवृति के बाद विश्वविद्यालय का प्रति कुलपति भी नियुक्त किया, जो एक बहुत बड़ा शैक्षणिक फ्राॅड है। लाखों बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है और करदाताओं के पैसों का सरेआम दुरूपयोग है।
*हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की अगली घटना भी वित्तीय अनियमितताओं से जुड़ी हुई हैं जहां गैर शिक्षक कर्मचारियों, श्री बरयाम सिंह बैंस वव श्री नित्यानंद को सेवानिवृति से पहले फायदा पहुंचाने के लिए उन्हें अल्प समय में नियमों में ढील दे कर तीन-तीन प्रमोशन दी गई। जबकि एस0ओ0 से सहायक कुलसचिव के लिए तीन वर्ष व सहायक कुलसचिव से उप कुलसचिव के लिए दो वर्षों का अंतराल होना आवश्यक था लेकिन एक विचारधारा विशेष के व्यक्तियों को लाखों रूपयों का फायदा देने के लिए भारत सरकार के वित्त व सर्विस नियमों के खिलाफ कुलपति ने विश्वविद्यालय को लाखों रूपयों का घाटा करवाया और करदाताओं के पैसों का दुरूपयोग किया।
*हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की मेहरबानी कुछ और काग्रेसी नेताओं पर ऐसी हुई कि उन्हें ड्राट्समैन से सीधे एस0डी0ओ0 ही बना दिया। घटना विश्वविद्यालय के शिल्पकार शाखा की है जहां नियमों के विरूद्ध श्री नगिन्दर गुप्ता व श्री रतन गुप्ता को ड्राट्समैन से सीधे एस0डी0ओ0 ही बना दिया तथा इसके साथ कुछ और लोगों को भी अनुचित लाभ पहुंचाये गये और इस तरह व्यक्ति विशेषों को फायदा पहुंचाने के लिए विश्वविद्यालय को लाखों का नुकसान कर दिया। सनद रहे कि इस प्रपोजल को वित्त समिति ने इनकार किया था। बावजूद इसके इन्होनें मिल मिला कर इसे कार्यकारिणी परिषद से करवा दिया।
*प्रदेश विश्वविद्यालय ने विभिन्न विभागों में साक्षात्कार प्रक्रिया 2012 में शुरू की लेकिन उन सिफारिशों को 2016 में पूरा किया गया, क्योंकि सरकार बदलने के साथ कांग्रेसियों ने कहा कि अपात्र लोगों को नियुक्ति दी जा रही है और इस संदर्भ में उस वक्त के कुलसचिव डा0 मोहन लाल झारटा ने उच्च न्यायालय में तीन-तीन झूठे हल्फनामे दायर किय गए जिससे विश्वविद्यालय को वकीलों व कोर्ट को लाखों रूपये देने पड़े लेकिन जब कांग्रेसियों ने अपने लोगों को लगाना था जो हालांकि अपात्र थे, तो 2012 व 2016 के सभी साक्षात्कार की सिफारिशों को लागू कर दिया। अगर 2012 की सिफारिशें गलत थी तो वह 2016 में कैसे ठीक हो गई और अगर ठीक थी तो उन्हें 4 वर्षों तक क्यों रोका गया और लाखों रूपये वकीलों व कोर्ट को क्यों दिए गए? और कैसे बाद में गलत भी ठीक हो गए या अपने अपात्र लोगों को लगाने के लिए यह षडयंत्र रचा गया था, यह गहन जांच का विषय है।
*प्रदेश विश्वविद्यालय ने नियमों की परवाह न करते हुए कांग्रेस विचारधाराओं के शिक्षक श्री एन एस बिस्ट जो शैक्षणिक योग्यताएं पूरी नहीं रखते थे (Non PhD) को फायदा पहुंचाने के लिए निदेशक पी आर सी बनाया गया जो नियमों के विपरीत था।
*प्रदेश विश्वविद्यालय ने हर कदम पर वित्तीय अनिमितताओं को बढ़ावा दिया और कानून के विपरीत विशेष विचारधाराओं के लोगों को फायदा पहुंचाने का काम किया। एक और घटना में प्रदेश विश्वविद्यालय ने एक शारीरिक शिक्षा विभाग के कोच डा0 रमेश चैहान को पहले बिना साक्षात्कार के सह-आचार्य नामित किया और बाद में उसे आचार्य एवं निदेशक शारीरिक शिक्षा लगाया गया, जो नियमों के विरूद्ध था।
*प्रदेश विश्वविद्यालय ने विशेष विचारधारा के लोगों को फायदा पहुंचाते हुए टूरिज्म विभाग में काॅन्ट्रैक्ट पर सहायक आचार्य (Ms. Preeti)को वित्तीय नियमो के विरूद्ध तीस हजार प्रति माह का वेतन दिया जबकि बाकि विभागों में यू0जी0सी0 के नियमो के तहत व हिमाचल प्रदेष सरकार की संविदात्मक (Contractual) पाॅलिसी के तहत 21600/- प्रतिमाह की दर से भुगतान किया गया।
*हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य अरूण दिवाकर नाथ वाजपई ने कांग्रेस के डा0 यशवंत सिंह हारटा को शिक्षक लगाने के लिए जानबूझ कर निर्धारित शैक्षणिक योग्यताओं से परे पांच वर्षों का अनुभव लगा दिया जिसका विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू0जी0सी0द्) की शैक्षणिक में कोई जिक्र भी नहीं है।
*हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय ने NAAC की टीम से ठीक पहले विभागों को सफेदी व पेंट करने को कहा गया और बाद में कांग्रेस नेता व ई0सी0 सदस्य श्री हरीश जनारथा के जान पहचान के व्यक्ति को डेढ़ करोड़ का ठेका दिया गया और मोदी रकम की हेराफेरी हुई।
*एक बहुत बड़ी साजिश के तहत विश्वविद्यालय का स्थाई कुलसचिव दो या चार दिन के लिए छुट्टी जाता था और IIHS व अन्य मामलों सम्बन्धित फाइलें विश्वविद्यालय के किसी शिक्षक, जो अस्थाई कुलसचिव नियुक्त किया जाता था, से करवाई जाती थी जबकि नियुक्तियों सम्बन्धी मामले अस्थाई कुलसचिव के अधिकार में नहीं आते, यह एक गहन जांच का विषय है।
* हिमाचल प्रदेश सरकार ने विश्वविद्यालय को रूसा के तहत चार करोड़ रूपये दिए लेकिन कुलपति आचार्य अरूण दिवाकर नाथ वाजपेयी की टीम ने वह पैसा कहां खर्चा इसकी कोई जानकारी नहीं है और अगर वह पैसा नहीं खर्चा तो क्यों नहीं ?क्या यह वित्तीय अनियमिततायें नहीं है?अतः रूसा के तहत आए 4 करोड़ रू0 की उच्च स्तरीय जांच की जाए।
* हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य अरूण दिवाकर नाथ वाजपेयी वे प्रतिकुलपति डा0 राजिन्द्र सिंह चैहान तथा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की कांग्रेसी कार्यकारिणी ने महामहिम राज्यपाल व कुलाधिपति हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय आचार्य देवव्रत जी की गरिमा को भी मिट्टी में मिला दिया जब इन्होनें जीव विज्ञान के आचार्य के मामले में चयन समिति के उपर विश्वविद्यालय की अपनी समिति बना दी। हालांकि विश्वविद्यालय के एक्ट व अध्यादेश में ऐसी किसी भी समिति का कोई प्रबधन नहीं है, क्योंकि चयन सिमति महामहिम राज्यपाल व कुलाधिपति हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय द्वारा मंजूर व सत्यापित की गई होती है और उससे उपर कोई भी समिति गठित करना विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है और इसका मकसद महामहिम राज्यपाल व कुलाधिपति की गरिमा को नीचा दिखाना था।
* हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के मैथ विभाग के डा0 जोगिन्दर सिंह धीमान जिनको चयन समिति ने आचार्य पद के लिए अनुतीर्ण घोषित किया था और नियमों के अनुसार उनका अगला साक्षात्कार आगामी एक वर्ष तक नहीं हो सकता था और इसके साथ उनको ज्वाईनिंग की तारीख से ही प्रभावी माना जाता था लेकिन घोटालों के महाधिपति हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य अरूण दिवाकर नाथ वाजपेयी व प्रतिकुलपति डा0 राजिन्दर सिंह चैहान ने उस कांगे्रसी का 6 महीनों में ही साक्षात्कार करवा दिए और उनको (Retrospective) अतित्लक्षी वरिष्ठता व वित सम्बन्धी फायदे दे दिए गए जिससे लाखों रूपयों का नुकसान विश्वविद्यालय को हुआ। साथ ही व्यक्ति विशेष के लिए 6 महीनों में साक्षात्कार समिति गठित करने में लाखों का बोझ फिर से विश्वविद्यालय को उठाना पड़ा जो करदाताओं के पैसों का फिर से दुरूपयोग था। अगर इसमें तकनीकि कारणों का बहाना लगाया जाता है तो व्यक्ति विशेष की जेब से इसका खर्चा वहन होना चाहिए जिसके लिए स्वयं कुलपति व प्रतिकुलपति जिम्मेवार है।
* एक और घटना के तहत प्रदेश विश्वविद्यालय ने डा0 कमल मनोहर जिसकी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अनुसार अनिवार्य शैक्षणिक योग्यताएं नहीं थी, को पहले राजनीति शास्त्र का आचार्य लगाया और बाद में उसे बिना निर्धारित चयन प्रक्रिया व साक्षात्कार के डा0 दीनदयाल उपाध्याय पीठ पर संयोजक नियुक्त किया गया जो नियमांे के विरूद्ध था। इसी तरह प्रदेश विश्वविद्यालय ने कुछ कांग्रेसी मित्रों को बिना निर्धारित चयन प्रक्रिया व साक्षात्कार के ही सह आचार्य के वेतनमान व पदनाम से अलंकृत कर दिया जिससे विश्वविद्यालय को वित्तीय घाटा सहन करना पड़ा। यह एक गहन जांच का विषय है।
डा0 यशवंत सिंह परमार विश्वविद्यालय
1. पूर्व कुलपति डा0 विजय सिंह ठाकुर जब विश्वविद्यालय के क्षेत्राी अनुसंधान केन्द्र, मशोबरा में वरिष्ठ वैज्ञानिक/प्रमुख वैज्ञानिक के नातम कार्यरत थे, ने यूरोपियन संघ (European Union) द्वारा 2.10 करोड़ रू0 की एक अनुसंधान परियोजना का स्वतंत्र रूप से संचालन 2003 के बाद किया जिसके संदर्भ में कोई भी रिकाॅर्ड विश्वविद्यालय प्रशासन को उपलब्ध नहीं करवा कर सरेआम विश्वविद्यालय के नियम/कानून तथा लोख नियमावली (Act/Statute and Accounts Manual) का उल्लंघन किया है। परियोजना के अंतर्गत मिले विदेश से धन को अपने बैंक खाते में जमा करवाया जोकि विश्वविद्यालय के Comptroller के सरकारी खाते में जाने चाहिए थे। विश्वविद्यालय के नियमित कर्मचारी होने के नाते वह सरकार के सी0सी0एस0 नियम में आते हैं। इस तरह सरेआम इस परियोजना संचालन में सब नियमों को ठेंगा दिखा गया।
2. कुलपति लगने के लिए इन महानुभाव ने अपने विषय में गलत जानकारी उस समय में महामहिम राज्यपाल को देकर कुलपति का गरिमापूर्ण पद प्राप्त किया था जिसमें अपने आप को Post-Doc एवं 10 वर्ष का प्रशासनिक अनुभव बताया था।
विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डा0 विजय सिंह ठाकुर द्वारा विश्वविद्यालय के एन0एस0यू0आई0 के तत्कालीन अध्यक्ष श्री प्रेम प्रकाश को वैज्ञानिक अनाधिकृत रूप से लगाने के लिए ’’वैज्ञानिकों की नियुक्ति के लिए प्रकाशित अधिसूचना’’ में वैज्ञानिक पद के लिए आवेदन की अंतिम तिथि जोकि प्रकाशन नं0 04/2015 दिनांक 17-10-2015 को थी, विश्वविद्यालय अधिसूचना नं0 UHF/Regr. Rectt. 2-04/2015/019929-20079 से दिनांक 21-11-2015 तक बढ़ा दिया ताकि NSUI President श्री प्रेम प्रकाश इसमें आवेदन के लिए पात्रा बन जाए। तत्पश्चात इसी प्रत्याशी को नियुक्त करने के लिए इन्टरव्यू तथा Presentation में इसे 20 में से 19 नम्बर दिए गए। जबकि इसने पी0एच0डी0 की डिग्री पूरी नहीं की थी।दूसरा प्रत्याशी जो पी0एच0डी0 की डिग्री प्राप्त था, को 20 में से 7.5 अंक दिए गए जोकि मा0 उच्चतम न्यायालय की निर्देशना के विरूद्ध है जिसमें किसी भी प्रत्याशी की इंटरव्यू में 50 प्रतिशत से कम अंक नहीं दिए जा सकते। यह बहुत ही गंभीर विषय है जिसकी उच्च स्तरीय जांच हो।
चैधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय
चैधरी सरवन कुमार हि0प्र0कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के पूर्व कुलपति डा0 के0के0 कटोच ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए सी0डी0ए0 फंड से 6 लाख रूपये अवैध रूप से विदेश यात्रा के लिए खर्च किए। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से 13 अगस्त, 2014 को जब सरकार से विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि मण्डल जिसमें स्वयं तत्कालीन कुलपति डा0 के0के0 कटोच, केवल सिंह पठानिया, जो एक कांग्रेसी नेता होने के साथ बोर्ड आॅफ मैनेजमैंट का सदस्य भी हैं और डा0एस0पी0 शर्मा, डायरेक्टर रिसर्च के विदेश दौरे (मंगोलिया) पर जाने की अनुमति मांगी। उस समय पत्रा में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि प्रदेश सरकार व विश्वविद्यालय प्रशासन को इस यात्रा का कोई भी वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा, परन्तु सरकार से अनुमति पत्रा प्राप्त होने के बाद तत्कालीन कुलपति ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए अवैध तरीके से विश्वविद्यालय के सी0डी0ए0 फंड से 6 लाख रूपये इस विदेश यात्रा में जाने के लिए खर्चे गए। इस गबन से प्रतीत होता है कि यह 6 लाख रू0 एक कांग्रेसी नेता श्री केवल सिंह पठानिया, जो विश्वविद्यालय बोर्ड आॅफ मैनेजमैंट का सदस्य भी था, को खुश करने के लिए अवैध रूप से खर्च किए जिसका विश्वविद्यालय के शैक्षणिक कार्यों में कोई भूमिका नहीं थी। तत्कालीन कुलपति द्वारा खर्च किए गए इस पैसे की उच्च स्तरीय जांच की जाए।
फरवरी, 2016 में प्रदेश सरकार कृषि विश्वविद्यालय को 15 करोड़ रू0 की अनुदान राशि दी गई जोकि मंहगाई भत्तों की बकाया राशि, वेतन वृद्धि की बकाया राशि, चिकित्सा प्रतिपूर्ति की बकाया राशि और पदोन्नति की बकाया राशि का भुगतान इत्यादि के लिए स्वीकृत की गई थी, तत्कालीन कुलपति के0के0 कटोच ने अपनी पैंशन की कम्यूटेशन के लिए इस्तेमाल करने की मंशा से 31.12.2015 तक सेवानिवृत हुए सभी कर्मचारियों के पैंशन कम्यूटेशन के लिए उपरोक्त राशि का प्रयोग कर लिया जबकि इस उदेश्य के लिए इस राशि का आबंटन नहीं हुआ था। यह राशि अपने फायदे के लिए इस्तेमाल की गई। प्रदेश सरकार द्वारा स्वीकृत की गई 15 करोड़ रू0 की अनुदान राशि का अवैध रूप से किए गए दुरूपयोग की उच्च स्तरीय जांच की जाए और दोषी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही अमल में लाई जाए।