शिमला/शैल। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने मण्डी रैली में प्रदेश की जनता के सामने यह खुलासा रखा था कि केन्द्र सरकार ने 14वें वित्तायोग के तहत हिमाचल प्रदेश को 72 हजार करोड़ रूपया दिया है। मोदी ने जनता से यह भी आवाहन किया था कि वह सरकार से इस पैसे का हिसाब भी मांगे। उन्होने यह भी कहा था कि केन्द्र सरकार भी इसका हिसाब मांगेगी। मोदी के इस खुलासे पर सरकार में गंभीर प्रतिक्रियाएं देखने को मिली थी। मोदी ने इस खुलासे के बाद मुख्यमन्त्री द्वारा अपनी जनसभाओं में की जा रही घोषणाओं में भी एक बदलाव देखने को मिला था। अब मुख्यमन्त्री जनता को कुछ भी देते हुये ये भी कह रहे हैं कि जो वो दे रहे हैं उसका सही पता तभी चलेगा जब वह बतौर वित्तमन्त्री इस घोषणा से जुड़ी फाईल को देखेंगे। वित्त विभाग ने भी अब घोषणाओं का औचित्य आंकलन करते हुये बहुत सारी घोषणाओं पर यह लिखना शुरू कर दिया है कि इसमें मुख्यमन्त्री की घोषणा के अतिरिक्त और कोई आधार नही बनता। बहुत सारी घोषणाओं पर अब अन्तिम अधिसूचनाएं रोक दी गयी हैं। बल्कि वित्तिय कठिनाईओं को देखते हुए कई संस्थानो को बन्द करने का फैंसला लिया जा रहा है इस संद्धर्भ में पहली कड़ी में 75 से 100 स्कूल बन्द किये जाने का फैंसला कभी भी बाहर आ सकता है।
इस समय सरकार की वित्तिय स्थिति के मुताबिक वर्ष 2002-2003 में जो कुल ऋण दायित्व 13209.47 करोड़ था वह 2014-15 में 35151.60 करोड़ हो गया तथा 2015-16 में 39939 हो गया है। वर्ष 2016-17 के बजट प्रस्तावों के मुताबिक इस वर्ष में 6102.38 करोड़ ऋण लेने का प्रावधान रखा गया है। इन आंकड़ो के मुताबिक इस वर्ष मे 31 मार्च 2017 को कुल कर्ज 46041 करोड़ हो जायेगा। दूसरी ओर केन्द्र सरकार के वित्त विभाग द्वारा प्रदेश सरकार को 29 मार्च 2016 को भेजे गये पत्र के मुताबिक राज्य सरकार अपने जीडीपी का कुल 3% ऋण ले सकती है। इस पत्र के मुताबिक वर्ष 2016-17 के लिए ऋण की तय सीमा 3540 करोड़ है। लेकिन सरकार ने बजट प्रस्तावों में ही 6102 करोड़ ऋण के माध्यम से जुटाने का प्रस्ताव रखा है। ऐसे में भारत सरकार के वित्त मन्त्रालय द्वारा तय ऋण की सीमा 3540 करोड़ और 6102 करोड़ में दिन रात का अन्तर है। सूत्रों के मुताबिक वित्त सचिव ने मुख्यमन्त्री को इस स्थिति से अवगत करवा दिया है और यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वित्त विभाग में और वित्तिय दवाब का प्रबन्धन नही कर पायेगा। क्योंकि सरकार के इस कार्यकाल में ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में सरकार को कोई बड़ा निवेश नही मिल पाया जिससे की जीडीपी में बढ़ौत्तरी हो पाती।
दूसरी ओर अभी सर्वोच्च न्यायालय ने समान कार्य के लिये समान वेतन का फैंसला देते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि गैर रैगुलर कर्मचारियों को रैगुलर कर्मचारियों के बराबर ही वेतन देना होगा। पिछले काफी अरसे से सरकार सारी नयी नियुक्तियां कांट्रैक्ट के आधार पर ही करती आ रही है चाहे ऐसे कर्मचारियों का चयन प्रदेश लोक सेवा आयोग या अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड हमीरपुर के माध्यम से हुआ हो। वर्तमान नीति के अनुसार पांच साल का सेवा काल पूरा करने पर ही कांटै्रक्ट कर्मचारियों को नियमित करने का प्रावधान रखा गया है। लेकिन इस फैसले के तहत हर कर्मचारी को नियुक्ति के पहले दिन से ही रैगुलर के बराबर वेतन देना होगा। रैगुलर और कांटै्रक्ट कर्मचारी के बीच इस समय दस से पन्द्रह हजार वेतन का अन्तर है। सरकार में ऐसे कर्मचारियों की संख्या पचास हजार से अधिक है। इन कर्मचारियों को यदि नियमित के बराबर वेतन न मिला तो यह लोग अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। ऊपर से आगे विधान सभा चुनाव आने हैं और सरकार इन चुनावों को सामने रखकर मन्त्रीमण्डल की हर बैठक में नये पद भरने और सृजित करने के फैंसले लेती जा रही है। चुनावों को लेकर की जा रही सारी घोषणाओं पर अमल करने के लिये वांच्छित वित्तिय संसाधन जुटाने का तरीका ऋण लेने के अतिरिक्त और कोई नही बचता है। ऐसे में भारत सरकार द्वारा तय ऋण सीमा के भीतर रहकर सारे फैसलों पर अमल कर पाना संभव कैसे हो सकेगा। इस सवाल को लेकर वित्त विभाग और मुख्य सचिव क्या रास्ता निकालते है इस पर सबकी निगाहें लगी है।
शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनावों में 50 सीटें जीतने का लक्ष्य घोषित किया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अपनायी गयी रणनीति के तहत ही हिलोपा का भाजपा में विलय हुआ है यह स्पष्ट हो चुका है। क्योंकि इस विलय के बाद ही खुशीराम बालनाहटा, राकेश पठानिया, महन्त राय चौधरी, रूप सिंह ठाकुर और महेश्वर सिंह को कार्यसमिति में शामिल किया गया। कांग्रेस विरोधी वोटों का बंटवारा रोकने के लिये ही यह कदम उठाया गया है। बल्कि अब राजन सुशान्त और महेन्द्र सोफ्त को भी वापिस लाने के लिये संघ के स्तर पर प्रयास किये जाने की चर्चा है। पचास का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये वीरभद्र सरकार के खिलाफ आरोप पत्र लाकर आक्रामकता अपनाने का प्रयास किया जायेगा। वैसे भाजपा का यह आरोप पत्र कितना आक्रामक होगा इसका पता तो 24 दिसम्बर को ही लगेगा जिस दिन यह सौंपा जायेगा। वैसे आरोप पत्रों को लेकर भाजपा की गंभीरता अब विश्वसनीय नही रही है। क्योंकि जब से वीरभद्र ने उनके विरूद्ध चल रही सीबीआई, ईडी और आयकर जांच को भाजपा में धूमल, जेटली और अनुराग ठाकुर का प्रायोजित राजनीतिक उत्पीड़न करार देना प्रचारित किया है तब से भाजपा वीरभद्र के इस प्रकरण पर एक दम मौन हो गयी है। भाजपा के अन्दरूनी सूत्रों के मुताबिक इस मौन का कारण वीरभद्र के मामलों को उछालने से उन्हें सहानुभूति मिलना माना जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक वीरभद्र मामलों पर भाजपा द्वारा करवाये गये सर्वे से सहानुभूति का गणित समाने आया है इतने गंभीर मामलों पर भी सहानुभूति का अर्थ है कि या तो भाजपा को स्वयं ही इन मामलों की पूरी समझ नहीं है या फिर वास्तव में ही यह प्रायोजित राजनीतिक उत्पीड़न ही है। यह दोनों ही स्थितियां भाजपा के लिये घातक हो सकती है। इस परिदृश्य में पचास का लक्ष्य केवल दावा होकर ही रह जाये यह भी हो सकता है। क्योंकि भाजपा अपने पहले सौंपे दोनों आरोप पत्रों को तो स्वयं ही भूल चुकी है फिर जनता के याद रखने का तो सवाल ही नहीं उठता। फिर यह तय है कि इस विधानसभा चुनाव का केन्द्र बिन्दु वीरभद्र के गिर्द ही घुमेगा।
वीरभद्र के संद्धर्भ में भाजपा का बंटवारा जग जाहिर है। शान्ता वीरभद्र एक दूसरे के कितने प्रशसंक है यह किसी से छिपा नही है। केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा भी वीरभद्र के प्रति गंभीरता से आक्रामक नही हो पा रहे हैं। अब जब से नड्डा नेतृत्व की चर्चा में चल रही है तब से धूमल खेमा भी इस दिशा में खामोश हो गया है फिर अनुराग स्वयं ही बीसीसीआई में इतना उलझ गये हैं कि प्रदेश के लिये वह ज्यादा समय ही नही निकाल पा रहें है। धूमल को लेकर पार्टी के ही एक वर्ग ने उन्हें निकट भविष्य में राज्यपाल बनाये जाने की चर्चा फैला दी है। सूत्रों के मुताबिक जब पिछले दिनों एक दलित नेता को राज्यपाल बनाया गया था तब उन्हे बधाई देने पहुंचे एक ग्रुप में हिमाचल के भी एक-दो लोग थे। इन लोगों ने बधाई देने के उस मौके पर धूमल को राज्यपाल बनाने की गुहार लगा दी। यह लोग हरियाणा के खट्टर की तर्ज पर स्वयं को प्रदेश का अगला नेता मानने लग पडे़ हैं। इन लोगों को कभी धूमल ने ही राजनीति में स्थापित होने का अवसर दिया था। आज यह ही धूमल को राज्यपाल बनाने का ताना बुनने में लग गये हैं। इन लोगों का तर्क है कि जब हरियाणा में खट्टर हो सकते हैं तो फिर हिमाचल में भी खट्टर जैसा ही कोई क्यों नही हो सकता। लेकिन हरियाणा और हिमाचल में एक मुल अन्तर है कि हरियाणा में पहली बार भाजपा की सरकार बनी है। जबकि हिमाचल में चार बार सरकार बन चुकी है। भले ही शान्ता कुमार दोनों बार अपना कार्यकाल पूरा न कर पाये हों परन्तु धूमल ने दोनों बार सफलता पूर्वक अपना कार्यकाल पूरा किया है। हालांकि उन्हें दोनो बार अपनों के भी विरोध और विद्रोह का सामना करना पड़ा है।
आज भाजपा केन्द्र में सरकार होने और प्रदेश में वीरभद्र के मुख्यमन्त्री होते हुए भी लोकसभा चुनावों में चारों सीटों पर कब्जा करके थोड़ा प्लस में है। लेकिन यदि चुनावों से पहले किसी को नेता घोषित न किया गया तो स्थिति बहुत सुखद नही रहेंगी। क्योंकि आज प्रदेश में भाजपा का मुकाबला वीरभद्र से होने जा रहा है और कांग्रेस ने अगला चुनाव उन्ही के नेतृत्व में लड़ने की अभी से घोषणा कर रखी है। भाजपा जिस गंभीरता से अगले चुनावों के लिये रणनीति बनाने में लगी हुई है उसमें नेतृत्व के प्रश्न पर उसकी अस्पष्टता उसके सारे प्रयासों पर भारी पड़ सकती है। इस समय नेतृत्व के लिये शान्ता-धूमल के अतिरिक्त नड्डा का नाम भी प्रबल दावोदारों में गिना जा रहा है। इनके अतिरिक्त पूर्व अध्यक्ष सुरेश भारद्वाज और जय राम ठाकुर का नाम भी कुछ हल्कों में चर्चा में है। भाजपा की कोर कमेटी की कसौली में हुई बैठक में भी नेतृत्व का प्रश्न गौण रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह 11 दिसम्बर को हिमाचल आ रहे हैं उस समय नेतृत्व के प्रश्न पर फैसला हो पाता है या नही यह तो उसी समय पता चलेगा। लेकिन यह तय है कि घोषित नेतृत्व के बिना कार्यकर्ताओें को पूरी आक्रामकता में बनाये रखना आसान नहीं होगा।
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने वनभूमि पर हुए अवैध कब्जों का कड़ा संज्ञान लेते हुए इन कब्जों को तुरन्त प्रभाव से छुड़ाने के निर्देश दिये हैं। उच्च न्यायालय ने प्रदेश के वन विभाग के प्रमुख को इसकी व्यक्तिगत स्तर पर निगरानी करने के निर्देश दिये हैं और 15-11-2016 को इस संद्धर्भ में रिपोर्ट तलब की है उच्च न्यायालय के फैंसले और निर्देशों पर हिमालय नीति अभियान ने यह कहकर एजराज उठाया है कि जब तक वन अधिकार कानून के प्रावधानों की अनुपालना नहीं हो जाती है। तब तक नाजायज़ कब्जों को लेकर कारवाई नही की जा सकती। हिमालय नीति अभियान ने सरकार पर भी आरोप लगाया है कि उसने न्यायालय के सामने इस पक्ष को सही तरीके से नहीं रखा है। हिमालय नीति अभियान ने इस संबंध में मुख्यमन्त्री वीरभद्र, केन्द्रिय आदिवासी मन्त्रालय के मन्त्री और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहूल गांधी को भी पत्र लिखा है। हिमालय नीति अभियान ने लिखा है कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने CWPIL No.17/2014 a/w CWP No.3141/2015, COPC No.161/2012 and CWPIL No.9/2015 में दिनांक 18.10.2016 को वन तथा राजस्व भूमि पर दस बीघा से ज्यादा के कब्जे की बेदखली के आदेश जारी किए और अगली सुनवाई जो 15 नवम्बर को होगी तक बेदखली की पूरी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने को कहा। ऐसी जानकारी है कि कोर्ट के दबाव में वन और राजस्व विभाग 1 नवम्बर से वन निवासियों की बेदखली की बड़ी मुहिम चलाने जा रहे हैं जिस बारे में स्थानीय अधिकारियों को निर्देश दिए जा रहे हैं।
उच्च न्यायालय में वन विभाग ने वन भूमि पर कब्जे की निम्न रिर्पोट पेश कीः
राजस्व विभाग ने सभी 12 जिलों में 4299 मुकद्दमों के चलान किए, जिन में 1277 मुकद्दमों पर फैसले हो चुके हैं, जबकि 908 कब्जे के मुकद्दमों की बेदखली की जा चुकी है।
उच्च न्यायालय ने Principal Chief Conservator of Forests, (HoFF) को व्यक्तिगत तौर पर कार्यवाही की निगरानी करने का निर्देश दिया और यह खास कर सुनिश्चित करने को कहा कि शिमला व कुल्लू में वन व सरकारी भूमि पर कबजों की बेदखली का आप ने जो निर्धारित समय का वादा किया है के अन्दर कार्य संम्पन किया जाए। Principal Chief Conservator of Forests, (HoFF), Himachal Pradesh, Conservator of Forests, Shimla, Rampur and Kullu, including all D.F.Os. of Districts Shimla and Kullu को निर्देश जारी किए गए कि वे अगली पेशी दिनांक 15.11. 2016 को प्रश्नों के जबाव देने के लिए व्यक्तिगत तौर पर कोर्ट में उपस्थित रहे।
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने पहले ही Cr.MP(M)No. 1299 of 2008 के आदेश दिनांक 27.02.2016 को दस बिघा से कम के कब्जाधारकों के विरूध FIR दर्ज करने के आदेश दिए हैं जबकि अप्रैल 6, 2015 को CWPIL No.17 of 2014 इसी कोर्ट ने दस बिघे से अधिक के कब्जाधारकों की बेदखली के आदेश जारी किए थे।
इसी आड़ में वन विभाग ने 40 हजार से अधिक सेब व दुसरे फलदार वृक्ष काटे, अधिकतर छोटे किसानों के बगीचे तथा खेती नष्ट की, घर तोडे और बिजली व पानी के कनैक्शन पुरे प्रदेश में काट दिए।
परन्तु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रदेश सरकार के महा अधिवक्ता ने उच्च न्यायालय के यह समक्ष पक्ष नहीं रखा कि वन अधिकार कानून 2006 व सर्वोच्च न्यायालय के नियमगीरी के फैसले के तहत बेदखली पर तब तक अमल नहीं किया जा सकता, जब तक वन अधिकारों की मान्यता और सत्यापन की कार्यवाही पूरी नहीं हो जाती है।
वन तथा राजस्व विभाग द्वारा आदिवासी एवम् अन्य परम्परागत वन निवासियों की वन भूमि से HP& Public Premises & Land ( Eviction & Rent Recovery) Act, 1971 व भू-राजस्व अधिनियम 1954 की धारा 163 के तहत बेदखली की जा रही है। बहुत से लोगों के बिजली व पानी के कनैक्शन काट दिए हैं। ज्यादा तर बेदखलियां उन वन निवासियों की हुई जिन्होंने वर्ष 2002 में दखल/कब्जे के पट्टे के लिए आवेदन किया था।
ऐसे में ज्यादा तर बेदखलियां 13 दिसम्बर 2005 से पहले के दखल/ कब्जों की हुई है। जिस पर लोगों ने रिहायशी घर, खेती, बगीचा, घराट, गौशाला इत्यादी बना रखी है। ये लोग वन अधिकार कानून, 2006 के अंतर्गत आदिवासी एवं अन्य परंपरागत वन निवासी की श्रेणी में आते हैं। बहुत से प्रताडित लोग अनुसुचित जनजाती व जन जातीय श्रेणी से संबन्ध रखते हैं, जिन्हेंScheduled Castes and the Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act,1989- Amendment of section 3 (g)of the principal Act , 31st December 2015 के तहत संरक्षण प्राप्त है, जिसके नियम 14 अप्रैल 2016 से लागू हो चुके हैं।
वन अधिकार कानून, 2006 की धारा 4(5) के तहत वन भूमि से बेदखली तब तक नहीं हो सकती, जब तक वन अधिकार के दावे का सत्यापन और मान्यता की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिनांक 18 अप्रैल 2013WRIT PETITION (CIVIL) NO- 180 OF 2011, Orissa Mining Corporation Ltd-Versus Ministry of Environment & Forest & Others के फैसले में भी आदेश दिया गया है कि जब तक वन अधिकार के दावों का सत्यापन और मान्यता की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक, अनुसूचित जन-जातीय व अन्य परंपरागत वन निवासी की वन भूमि से बेदखली नहीं की जा सकती और न ही वन भूमि का हस्तांतरण किया जा सकता है। कशांग (किन्नौर) की जल विद्युत परियोजना के मुकद्दमे Civil No 8345 Himachal Pradesh Power Corporation Ltd- versus Paryavaran Sanrakshan Samiti, Lippa पर National Green Tribunal ने 4 मई 2016 को ऐसा ही आदेश जारी किया है।
ऐसे में किसी भी राज्य के कानून जैसे भू-राजस्व अधिनियम 1954 की धारा 163 व HP Public Premises & Land (Eviction & Rent Recovery) Act,1971 के तहत वन निवासियों के विरुद्ध तब तक बेदखली की कार्यवाही व नाजायज कब्जा का मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता है, जब तक वन अधिकार के दावे का सत्यापन और मान्यता की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती।
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पिछले दिनों हुई सहायक प्रोफेसरों की नियुक्तियों को लेकर एक महिला ने राष्ट्रीय महिला आयोग को भेजी शिकायत में सनसनी खेज आरोप लगाये हैं। यह शिकायत चर्चा का विषय बन चुकी है। विश्व विद्यालय के एक छात्र संगठन ने इसकी जांच की मांग की है। शिकायतकर्ता महिला का आरोप है कि वह इन नियुक्तियों के लिये स्वंय भी एक उम्मीदवार थी। उसने दावा किया है कि साक्षात्कार के बाद जो मैरिट सूची बनी थी उसमें दूसरे स्थान पर थी लेकिन जब नियुक्ति पत्र जारी हुए तब उसे नज़र अन्दाज करके 39 स्थान पर जो महिला थी उसे नियुक्त दे दी गयी। शिकायत पत्र में नियुक्त हुई महिला के मोबाईल न. भी दिये गये हैं और आरोप लगाया गया है कि इस महिला की एक शीर्ष अधिकारी से लम्बी बात होती रही है। इन कॉल डिटेलज़ की जांच की मांग की गयी है। यह भी दावा किया गया है कि इस महिला की नियुक्ति का दो प्रोफेसरों ने विरोध भी किया था। इन प्रोफेसरों के नाम भी दिये गये हैं। इन प्रोफेसरों से जुड़े सूत्रों के मुताबिक यह लोग भी इस शिकायत में जांच के पक्षधर हैं।
शिकायतकर्ता महिला ने शिकायत में जो अपना पता लिखा है वह प्रमाणिक नहीं है जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि शिकायतकर्ता ने अपनी सही पहचान छुपाने का प्रयास किया है। क्योंकि स्वभाविक है कि रिश्वत और शोषण के आरोप लगाकर अपनी पहचान को सार्वजनिक करना आसान नहीं होता। इसी कारण हम इस पत्र को सार्वजनिक नहीं कर रहें हैं। लेकिन शिकायत में जो तथ्य दिये गये हैं वह किसी भी जांच के लिये एक पुख्ता आधार हैं। मैरिट की अनदेखी की गई है। इस शिकायत के मुताबिक जिस महिला को नियुक्ति दी गयी है वह उसकी पात्र ही नहीं थी। विश्व विद्यालय में इन पदों के लिये 2011, 2012 और 2013 में आवेदनों और साक्षात्कार की प्रक्रिया पूरी हुई थी। लेकिन इसके परिणाम 23 सितम्बर 2016 को घोषित हुये क्योंकि इस सारी प्रक्रिया पर गंभीर आरोप लगते रहे हैं। मामला प्रदेश उच्च न्यायालय तक पहुचा था। शिकायतकर्ता महिला ने भी 2012 में इन्टरव्यू दिया था और उस समय नियुक्ति के प्रति उसे पूरी तरह आश्वस्त किया गया था। इसी कारण वह इस सब के बारे में खामोश बैठी रही लेकिन अब जब परिणाम सामने आया तो उसके धैर्य का बांध टूट गया। शिकायत के मुताबिक उसने रिश्वत के नाम पर दिये हुये पांच लाख वापिस मांगे तो उसे प्रताड़ना मिली। शिकायत में उसने कहा था कि अगर उसे न्याय ना मिला तो वह आत्महत्या कर लेगी।
यह शिकायत पत्र पूरी तरह सार्वजनिक चर्चा में आ चुका है इस पर जांच की मांग उठ गयी है। यह भी आरोप है कि विश्वविद्यालय के इस बड़े को मुख्यमन्त्री का संरक्षण प्राप्त है। ऐसे में इन आरोपों की जांच सरकार के स्तर पर कितनी संभव हो पायेगी? विश्वविद्यालय एक स्वायत संस्था है इसके प्रबंधन पर ही यह आरोप हैं। ऐसे में इसकी जांच करवाने की जिम्मेदारी राज्यपाल पर आ जाती है क्योंकि वही विश्वविद्यालय के चांसलर हैं। इस शिकायत पत्र को एक सोर्स रिपोर्ट मानकर इसकी जांच की जा सकती है। बल्कि उच्च न्यायालय भी इसका स्वतः संज्ञान लेकर जांच आदेशित कर सकता है।
शिमला/ब्यूरो। हिमाचल प्रदेश ने खुला शौच मुक्त राज्य होने का लक्ष्य तय समय सीमा से पांच माह पहले ही पूरा कर लिया है। इसमें देश के बड़े राज्यों में यह मुकाम हासिल करने वाला हिमाचल पहला राज्य बन गया हैै। यह दावा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने होटल पीटर हाफ में इस उपल्क्ष में आयोजित एक समारोह में केन्द्रिय ग्रामीण विकास मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा की मौजूदगी में किया है। सरकार के इस दावे से हिमाचल विश्व बैंक से स्वच्छता प्रौजैक्ट के लिये स्वीकुत नौ हजार करोड़ की सहायता पाने में भी भागीदारी बन गया है यह एलान ग्रामीण विकास मन्त्री तोमर ने किया है।
सरकार की इस तरह की उपलब्धियां प्रशासन द्वारा जुटाये आंकड़ों पर आधारित रहती हैं। खुला शौच मुक्त होने का दावा भी ऐसे ही आंकड़ों के आधार पर किया गया है। लेकिन यह दावा कितना सही है इसका खुलासा जिला परिषद शिमला की हुई बैठक से हो जाता है। इस बैठक में जिला के कोटखाई वार्ड की सदस्य नीलम सरेक ने आरोप लगाया कि उनके वार्ड के एक भी स्कूल मे शौचालयों का निर्माण नही हुआ है और ऐसे में सम्मपूर्ण खुला शौच मुक्त्त का दावा कैसे किया जा सकता है। नीलम के इस आरोप से बैठक में हड़कंप मच गया। तुरन्त जिलाधीश और दूसरे संवद्ध अधिकारियों ने उतेजित सदस्य को शांत करने के लिये यकीन दिलाया कि इन स्कूलों के लिये आज ही धन का आवंटन कर दिया गया है। जिला परिषद की बैठक में जिस तरह से महिला सदस्य ने अपने वार्ड की व्यवाहरिक स्थिति रखी उससे यह सवाल उठता है कि जिला प्रशासन के पास जव यह जानकारी थी कि उस वार्ड के स्कूलों मे अभी शौचालय का निर्माण नही हो पाया है तो उन्होने इसकी जानकारी सरकार को क्यों नही दी। सदस्य के शोर मचाने पर इसके लिये धन आवंटन किया जाता है। यक निर्दलीय सदस्य इस समय भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिये चुनावी चुनौती बनती जा रही है। संभवतः इसी कारण से इसके वार्ड में ऐसा हुआ है। लेकिन इससे पूरे प्रदेश में अन्य स्थानों पर भी अभी तक ऐसी स्थितियां होने की संभावना से इन्कार नही किया जा सकता है।