Friday, 19 September 2025
Blue Red Green
Home देश

ShareThis for Joomla!

क्या मुख्यमन्त्री को गुमराह किया जा रहा है या सलाहकारों को सही में जानकारी ही नही है

केन्द्रीय विश्वविद्यालय प्रकरण में

शिमला/शैल। केन्द्रिय विश्वविद्यालय के निर्माण में हो रही देरी पर जब केन्द्रिय वित्त राज्य मन्त्री हमीरपुर से लोकसभा सांसद अनुराग ठाकुर ने देहरा के डाडासिवा में एक जनसभा में मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर की मौजूदगी में चिन्ता जताई और इसके लिये प्रदेश के प्रशासनिक तन्त्र को जिम्मेदार ठहराते हुए इस तन्त्र पर पकड़ मजबूत करने का सुझाव दिया तो यह सारा मुद्दा एकदम सियासी रंग ले गया। मुख्यमन्त्री ने इसे सार्वजनिक मंच से उठाये जाने को पसन्द नही किया और यहां तक कह दिया कि शायद सांसद तकनीकी पेचीदगीयों को नही समझते हैं। मुख्यमन्त्री के बाद देहरा के निर्दलीय विधायक होशियार सिंह ने तो वाकायदा एक पत्रकार वार्ता करके इस पर कई सवाल कर दिये और वित्त मन्त्री से तुरन्त इसके लिये पैसे जारी करने को कहा ताकि इस पर शीघ्र कार्य शुरू किया जा सके। निर्दलीय विधायक के बाद तो राजस्व मन्त्री महेन्द्र सिंह ठाकुर ने एक प्रैस नोट जारी करके इस विश्वविद्यालय को लेकर हुए सारे पत्रचार का ब्योरा जारी करते हुए यह खुलासा भी प्रदेश की जनता के सामने रख दिया कि केन्द्रिय विश्वविद्यालय के अतिरिक्त तीस प्रोजैक्ट भी केन्द्र के पास अनुमोदन के लिये काफी अरसे से लंबित पड़े हुए हैं। इसी में महेन्द्र सिंह ने यह भी जोड़ दिया कि 2010-11 में प्रदेश से जो प्रस्ताव केन्द्र को भेजा गया था उसी में गलती हो गयी थी। स्मरणीय है प्रदेश में 2010-11 में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी।
मेहन्द्र सिंह के प्रैस नोट के मुताबिक भारत सरकार ने केन्द्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के दो परिसर स्थापित करने के लिए स्वीकृति दी है, जिनमें तहसील धर्मशाला में उत्तरी परिसर जदरांगल और देहरा में दक्षिणी परिसर शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि दक्षिणी परिसर देहरा के निर्माण के लिए प्रदेश सरकार ने 34.55 हेक्टेयर सरकारी भूमि 2010 में ही केन्द्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश के नाम स्थानांतरित कर दी थी, जिसका इंतकाल भी 2010 में हो गया था।
उन्होंने बताया कि इसके अलावा 81.79 हेक्टेयर वन भूमि को उपयोगकर्ता एजेंसी (यूजर एजेंसी) निदेशक उच्चतर शिक्षा, हिमाचल प्रदेश के नाम वन संरक्षण अधिनियम के तहत परिवर्तित (डाईवर्जन) करने की मंजूरी 11 दिसम्बर, 2018 को प्राप्त हुई थी, लेकिन इसमें यह शर्त लगाई गई थी कि जिस भूमि को परिवर्तित करने की मंजूरी प्रदान की गई है, वह किसी भी स्थिति में बिना केंद्र सरकार के अनुमोदन से किसी अन्य एजेंसी, विभाग या किसी अन्य व्यक्ति के नाम स्थानांतरित नहीं की जा सकती। ऐसी परिवर्तित वन भूमि की विधिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा।
इस मामले और कुछ अन्य मामलों को राजस्व विभाग के आग्रह पर वन विभाग ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार से आवश्यक स्पष्टीकरण के लिए 22 अप्रैल, 2019 को आग्रह किया था, कि क्या परिवर्तित वन भूमि को उपयोगकर्ता एजेंसी के नाम इंतकाल के माध्यम से स्थानांतरित किया जा सकता है या नहीं। राजस्व विभाग ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार से यह आग्रह भी किया था कि क्या परिवर्तित वन भूमि के कब्जे के लिए क्या कागजात माल (राजस्व अभिलेख) में इंद्राज किया जा सकता है या नहीं।
इस पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 30 जुलाई, 2019 को पत्र के माध्यम से स्पष्ट किया था कि वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत जो वन भूमि परिवर्तित की जाती है, उसकी विधिक स्थिति वन भूमि ही रहेगी। ऐसी परिवर्तित भूमि इंतकाल के माध्यम से उपयोगकर्ता एजेंसी या उपयोगकर्ता विभाग के नाम कागजात माल में राजस्व विभाग द्वारा स्थानांतरित नहीं की जा सकती।
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार के स्पष्टीकरण के अनुसार केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के साथ-साथ अन्य 30 मामलों में अभी तक भी परिवर्तित वन भूमि का इंतकाल संबंधित उपयोगकर्ता एजेंसी के नाम नहीं दिया जा सका है।
उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार केंद्रीय विश्वविद्यालय व अन्य सभी विकासात्मक परियोजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत कार्यवाही करते हुए मंजूरी के लिए आवश्यक कदम उठा रही है, किंतु वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के स्पष्टीकरण के दृष्टिगत केंद्रीय विश्वविद्यालय और कई अन्य महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं का काम शुरू करने में देरी हो रही है।
राजस्व मंत्री ने स्पष्ट किया कि प्रदेश सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए वन भूमि को परिवर्तित करने में त्वरित कार्यवाही की है। इसके लिए आवश्यक अनुमोदन भी 11 दिसम्बर, 2018 को जारी कर दिया था तथा ग्रीन कवर प्लान के अंतर्गत पांच करोड़ 60 लाख रुपये भी नवम्बर, 2018 में कैम्पा हेड में जमा करवा दिए थे। यह राशि पहले जमा की गई राशि 17 करोड़ 27 लाख 53 हजार रुपये के अतिरिक्त थी।
सरकार के प्रैस वक्तव्य के अनुसार 11 दिसम्बर 2018 को वन भूमि को डाईवर्ट करने की अनुमति प्राप्त हो गयी थी। इस अनुमति के बाद कैंपा के तहत 5.60 करोड़ रूपये भी इसके लिये जमा करवा दिये गये थे। यहां यह सवाल उठता है कि जब दिसम्बर 2018 में ही यह वन भूमि हिमाचल उच्चतर शिक्षा विभाग को बतौर यूज़र ऐजैन्सी मिल गयी थी तब इसे केन्द्रिय विश्वविद्यालय के नाम बतौर यूज़र ऐजैन्सी बदलने में इतना समय क्यों लगा। जबकि एफ सी ए अधिनियम के चैप्टर पांच में एक यूज़र ऐजैन्सी से दूसरी यजूर ऐजैन्सी के नाम बदलने की प्रक्रिया का पूरा खुलासा किया गया है। इसके अनुसार उच्चतर शिक्षा निदेशालय की ओर से अपने एन ओ सी के साथ आवेदन जाना था। इस आवेदन के साथ एक लाख रूपये की फीस जमा होनी थी। यह प्रक्रिया पूरी करने में क्या प्रदेश सरकार को दो वर्ष का समय लगाना चाहिये? क्या सरकार को इस प्रक्रिया की जानकारी ही नही थी? क्या सरकार जानबूझ कर इस मामले को लटकाना चाहती थी? 2010-11 में जब इस आश्य का प्रस्ताव उच्चतर शिक्षा विभाग की ओर से भेजा गया था तो उसमें क्या गलत हो गया था? वन भूमि की मलकीयत नही बदलती है यह एक स्थापित नियम है और सरकार में इसे सभी जानते हैं। वन भूमि का उपयोग गैर वन कार्यों के लिये बदलने की भी एक स्थापित प्रक्रिया है। एक बार उपयोग बदलने की अनुमति मिलने के बाद उसकी यूज़र ऐजैन्सी बदलने की प्रक्रिया तो और भी सरल है। ऐसे में केन्द्रिय विश्वविद्यालय के इस मामले में इतना समय लगा दिया जाना निश्चित रूप से कई सवाल खड़े करता है। जिनमें सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह हो जाता है कि क्या मुख्यमन्त्री के सलाहकार जानबूझकर उन्हे गुमराह कर रहे हैं या सही में उन्हें नियमों /कानूनों की जानकारी ही नही है।

यह है यूज़र ऐजैन्सी बदलने की प्रक्रिया 

Transfer/Re-diversion

Any forest land diverted for a non-forest use with prior approval of GOl under FCA shall be used by the User Agency for the purpose for which it has been diverted.
However, transfer of user agency for same purpose, or re-diversion for another purpose by same or another user agency may be considered on following basis:
5.1 Transfer of User Agency:
The following procedure shall be followed:
(a) An application from the concerned State/Union Territory Government along with an undertaking from the new user agency shall be submitted.
(b) The undertaking shall state that the new user agency will abide by all conditions on which diversion of forest land was approved in favour of the previous user agency.
(c) Transfer of User Agency can be considered by the Central Government (MoEF&CC) for same use and on same conditions.
(d) The Central Government shall levy a transfer fee, to discourage middle men from processing applications and then selling it to other, @10% of NPV or Rs. 100,000 whichever is less.
(e) The transfer fee will not be applicable to change of UA associated with change in legal heir, and wind power generation projects involving of transfers
(f) However, in case the transfer is from a Central Government Department/Central Government Undertaking (CPSU) to a User Agency other than Central Government Department /CPSU, the proposal will be examined by the Central Government afresh, and transfer can be agreed to with additional conditions so as to ensure that special concessions given to Central Government Department/CPSU while granting the approval are not extended to the new User Agency
5.2 Change of the name of UA without any change in shareholding pattern
When change in the name of user agency without any change in its shareholding pattern becomes necessary, permission of the Central Government would be required. The State Govt., shall submit following documents within three months:
(a) no-objection certificate for such change by the State Government.
(b) A certified copy of fresh certificate of incorporation consequent upon change of name issued by the Registrar of Companies
(c) An explanatory statement from the user agency for such change.
Similarly, when change in the name of user agency due to inheritance (change in legal heirs) becomes necessary, permission of the Central Government would be required. For this purpose, the State Government, within three months from the date of issue of legal heir certificate shall submit documents as specified in para (b) and (c) above.
a. Transfer of leases - Wind Energy projects
For transfer of leases from the developer i.e. the User Agency to investors /power producers, State Government shall submit following details:
1. User Agency shall submit duly filled up prescribed form given at Annexure-3 to the Nodal Officer (FC) of the concerned State/UT.
2. A copy of the application will also be marked to the MoEF&CC.
3. The Nodal Officer will examine the particulars furnished by the UA in 45 days of the date of subm ission of the application and forward it to the State/UT Government.
4. The State/UT Government, or an Officer authorized by will forward its
recommendation within 45 days to the Central Government. If decision is not
communicated by the State/UT Government on the proposal within the expiry of a period of 90 days i.e. from the date of submission of the proposal, action, as considered appropriate will be initiated by the Central Government.

सरकार और संगठन के लिये आसान नही होगा आने वाला समय

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश भाजपा के प्रभारी और सह प्रभारी दोनों बदल दिये गये हैं। हिमाचल ही नही बल्कि अन्य राज्यों के प्रभारी भी बदले गये हैं। इस नाते हिमाचल के संद्धर्भ में इस बदलाव को अलग से देखने आंकने की कोई ज्यादा आवश्यकता नही बनती है। लेकिन प्रदेेश भाजपा के अन्दर जो कुछ पिछले कुछ असरे से घट रहा है उस परिदृश्य में यह बदलाव महत्वपूर्ण हो जाता है। क्योंकि हाईकमान सबसे पहले और सबसे ज्यादा अधिमान राज्य के बारे में प्रभारी की रिपोर्ट को ही देता है। कई बार प्रभारी हाईकमान के सामने बहुत सारी चीजों को आने ही नही देते हैं क्योंकि वह ज्यादातर सरकार से प्रभावित रहते हैं। सरकार के कारण बहुत सारे कार्यकर्ता तो प्रभारी तक पहुुच ही नही पाते है। प्रभारी सभी कार्यकर्ताओं को जान ही नही पाते हैं। भाजपा के पिछले प्रभारी मंगल पंाडे की इस संद्धर्भ में बहुत सारी स्वभाविक सीमाएं रही हैं क्योंकि वह स्वयं बिहार के रहने वाले थे इस नाते हिमाचल के सभी लोगों को समझना-जानना उनके लिये संभव था ही नही। फिर वह प्रभारी के साथ-साथ बिहार में मन्त्री भी थे। इस परिप्रेक्ष में अब जो प्रभारी अविनाश राय खन्ना लगाये गये हैं वह हिमाचल के बारे में सारी जानकारी रखते हैं क्योंकि पंजाब से ताल्लुक रखते हैं। गडशंकर एकदम ऊना से लगा क्षेत्र है। 1966 तक तो आज का आधा हिमाचल पंजाब ही था। इस कारण खन्ना एक ऐसे प्रभारी सिद्ध होंगे जो राज्य सरकार की फीडबैक पर निर्भर नही करेंगे। यही स्थिति सह प्रभारी टण्डन की है क्योंकि वह चण्डीगढ से हैं। इस परिप्रेक्ष में यह बदलाव महत्वपूर्ण हो जाता है। प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेताओं शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल को प्रभारी और सह प्रभारी बहुत अरसे से व्यक्तिगत स्तर पर जानते है। संभवतः इसी कारण से भाजपा के भीतर इन नियुक्तियोें के बाद एक हलचल शुरू हो गयी है। कई कयास लगने शुरू हो गये हैं इस हलचल का आधार यह माना जा रहा है कि जब प्रभारियों की नियुक्तियों को दिल्ली में अन्तिम रूप दिया जा रहा था उस समय केन्द्रिय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर प्रदेश के दौरे पर थे। उन्हंे यह दौरा बीच में ही छोड़कर दिल्ली बुला लिया गया। उनके कार्यक्रमों को यहां पर संासद किश्न कपूर ने पूरा किया। अनुराग के दिल्ली वापिस जाने के बाद प्रभारियों का यह फैसला आया और उसके बाद उन्हंे जम्मू कश्मीर के निकाय चुनावों के लिये प्रभारी भी नियुक्त कर दिया गया। आने वाले दिनों में केन्द्रिय मन्त्रीमण्डल में भी फेरबदल होने जा रहा है। इस फेरबदल में अनुराग के प्रभावित होने की भी अटकले हैं हिमाचल में सरकार को तीन वर्ष हो गये है। हिमाचल में हर चुनाव में सरकार बदल जाती है यह इतिहास रहा है। इस बार सरकार लम्बे अरसे से विवादों में चल रही है यह विवाद भी अपने ही लोगों के कारण रहे हैं। सरकार और उसके मन्त्रीयों की कारगुजारियों को लेकर कई गुमनाम पत्र अपने ही कार्यकर्ता लिख चुके हैं। एक पत्र पर हुई हलचल का परिणाम है अपने ही पूर्व मन्त्री के खिलाफ एफआईआर बाद में इसी प्रंसग में निदेशक स्वास्थ के खिलाफ मामला बना और गिरफ्तारी हुई। स्वास्थ्य मन्त्री बदला, विधानसभा अध्यक्ष बदला और फिर पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी गयी। संगठन में नये अध्यक्ष के आने के बाद कई स्थानों पर संगठन की ईकाईयों में फेरबदल हुआ। सरवीण चैधरी, रमेश धवाला, पवन राणा, राजीव बिन्दल, महेन्द्र सिंह और नरेन्द्र बरागटा सबके सब अपने-अपने में मुद्दा बने हुए हंै। सोलन में पार्टी कार्यालय के लिये ली गयी ज़मीन में जो घपला हुआ है उससे यह सन्देश गया है कि जो पार्टी अपने ही घर में घपला कर सकती है वह अन्य जगहों पर क्या कुछ करती होगी। स्वभाविक है कि जिस सरकार के साये तले इतना सब कुछ घट जाये उसके सत्ता मेें वापसी करने को लेकर सोचना भी दूर की बात हो जाती है। सरकार किन लोगों के प्रभाव में काम कर रही है यह अब एक सामान्य जन चर्चा बन चुकी है लेकिन शायद पार्टी हाईकमान ही इस जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ रही है।
संभव है कि पूर्व प्रभारी हिमाचल का आकलन भी बिहार के आईने से ही करते रहे हैं इसीलिये इस सब पर ध्यान नही दिया गया। माना जा रहा है कि नये प्रभारी इस सब कुछ को तुरन्त प्रभाव से हाईकमान के संज्ञान में लायंेगे। क्योंकि हिमाचल के सन्द्धर्भ में यह जो कुछ घट चुका है बहुत मायने रखता है। अब तो अदालत तक ने सात विभागों के खिलाफ कड़ी कारवाई करने की अनुशंसा कर दी है। इसी के साथ प्रदेश लोक सेवा आयोग में नयी नियुक्तियों से पहले नये नियम बनाने और प्रक्रिया तय करने का मामला भी इस सरकार के लिये एक परीक्षा से कम नही होने वाला है हर आदमी की निगाहें इस ओर लगी हुई हैं।

स्वास्थ्य विभाग की खरीद पर उठते सवालों का स्पष्टीकरण केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग से क्यों

शिमला/शैल। पूर्व स्वास्थ्य मन्त्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ठाकुर कौल सिंह ने प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में कोरोना काल के दौरान की गयी खरीददारीयों में बड़ा घोटाला होने का आरोप लगाया है। कांग्रेस नेताओं जीएस बाली, चन्द्र कुमार और विपल्व ठाकुर के साथ एक संयुक्त पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए यह आरोप लगाया कि विभाग ने 514 रूपये का आक्सीजन मीटर 29506 रूपये का मास्क 16 और 9000 का आक्सीजन गैस सिलैण्डर 15700 रूपये में खरीद कर घोटाला किया गया है। आरोप लगाया गया 15 आईटमों की खरीद में ही 24,49000 रूपये का घपला किया गया है। विभाग में हुई कुल खरीददारीयों में उसे 4 करोड़ का घपला होने का आरोप है। आक्सीजन गैस पाईप लाईन सिलैण्डर सप्लाई करने और उन्हें लगाने की पूरी प्रक्रिया का काम केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग द्वारा किया गया है। मैडिकल से संबंधित इन आईटमों के मानदण्ड और मानक क्या थे और सप्लाई किये गये उपकरण इन मानको पर पूरे उतरते हैं या नहीं इसको लेकर कोई खुलासा पत्राकार वार्ता में नही किया गया है। यह खरीद कोरोना काल में की गयी जब पूरे देश में लाॅकडाऊन चल रहा था और यातायात के सारे साधन बन्द थे। हालात की इसी गंभीरता को ध्यान मे रखते हुए दवाईयोें और उपकरणों की खरीद के लिये प्रदेश के वित्त विभाग ने खरीद नियमों में भी आवश्यक बदलाव कर दिये थे। नियमों के बदलाव के परिदृश्य में स्वास्थ्य विभाग की खरीद सवालों के घेरे से बाहर हो जाती है। लेकिन विधान सभा के मानसून सत्र में जब विधायक लखविन्दर राणा, राम लाल ठाकुर और रमेश धवाला ने यह सवाल पूछा कि गत तीन वर्षों में 31-1-2020 तक किस किस फर्म से कितनी कितनी धनराशी की दवाईयां और उपकरण खरीदे गये और सरकार द्वारा रोगियों को जो मुफ्त दवाईयां उपलब्ध करवाई जा रही हैं उनके सैंपल फेल हुए हैं। यह जानकारी सदन में रखने की बजाये जबाव दिया गया कि सूचना एकत्रित की जा रही है। यह सवाल कोविड से पहले की खरीद पर था और विभाग पर बहुत पहले ही इस संबंध में सवाल उठने शुरू हो गये थे। ऐसे में जब जबाव में यह कहा जायेगा कि सूचना एकत्रित की जा रही है तो निश्चित रूप से इस सन्देह को बल मिलेगा कि कुछ छुपाया जा रहा है। अब जब कांग्रेस नेताओं ने विभाग की खरीद पर सवाल उठाये हैं तो उस पर केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियन्ता विद्युत केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग लौंग बुड शिमला की ओर से जारी किया गया है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि इन मानको के उपकरण मांगे गये थे और बोली दाता को किन मानदण्डांे पर पूरा उतरना था। यह स्पष्ट किया गया है कि इस खरीद के लिये पहले 16-5-2020 को ई-निविदायें आमन्त्रित की गयी लेकिन कोई आवेदन नही आया। इस कारण 23-5-2020 को फिर ई निविदायें आमन्त्रित की गयीं और चार निविदायें आयी। पूरी प्रक्रिया अपनाते हुए न्यूनतम बोली दाता को खरीद का आर्डर दिया गया। पूरी प्रक्रिया एकदम पारदर्शी और न्यूनतम बोलीदाता सारे मानकों को पूरा करता है इसलिये खरीद पर सवाल उठाना तथ्यहीन और गलत है।
यह स्पष्टीकरण केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियन्ता (विद्युत) द्वारा जारी किया गया है। इससे यह आभास होता है कि यह निविदायें प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने नहीं बल्कि केन्द्रिय लोक निर्माण ने आमन्त्रित की थी। यहां यह सवाल उठता है कि क्या स्वास्थ्य विभाग ने इसके लिये खरीद ऐजैन्सी केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग को बना रखा था? यदि ऐसा था तो यह कब किया गया? जो स्पष्टीकरण आया है उसके मुताबिक चार बोलीदाता थे लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि क्या केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग भी एक बोलीदाता था। यह भी स्पष्ट नहीं है कि यह केन्द्रिय लोकनिर्माण विभाग यह उपकरण स्वयं बनाता है? क्या वह ऐसे उपकरणों की गुणवता जांचने के विशेषज्ञ हैं। केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग ने किस अधिकार से यह स्पष्टीकरण जारी किया है यह स्पष्ट नहीं हो पाया है। बल्कि इससे अनचाहे ही यह मामला और उलझ जाता है। क्योंकि खरीद पर आरोप तो कीमतों को लेकर लगाये गये हैं और स्पष्टीकरण प्रक्रिया को लेकर दिया गया है।

More Articles...

  1. कंगना रणौत पर हिमाचल भाजपा अब चुप क्यों
  2. अटल टनल से सोनिया गांधी की शिलान्यास पट्टिका गायब होने पर भड़की कांग्रेस पुलिस में दी शिकायत
  3. शान्ता-धूमल को उद्घाटन समारोह में न आने के निर्देश देना-किसी तूफान का पूर्व संकेत तो नही
  4. विज्ञापनो की जानकारी न देकर विभाग की कार्य प्रणाली पर उठे सवाल
  5. क्या स्वास्थ्य सेवाएं सरकार की प्राथमिकता नही है
  6. क्या प्रदेश कांग्रेस संगठन में भी बदलाव आयेगा
  7. केन्द्र सरकार ने खर्चे कम करने के लिये नौकरीयों पर लगाया प्रतिबन्ध क्या जयराम सरकार भी ऐसा करेगी
  8. कोरोना पर चर्चा में विपक्ष और सत्तापक्ष की जीत में जनता की फिर हार
  9. प्रदेश के तीस मानवाधिकार संगठनों ने दी आवाज हम अगर नहीं उठे तो...
  10. पत्र प्रकरण पर आनन्द शर्मा माफी मांगे उपाध्यक्ष खाची के ब्यान से गरमायी कांग्रेस की सियासत
  11. जज पर आरोप लगाने का मामला पहुंचा उच्च न्यायालय
  12. घातक होगा भ्रष्टाचार के मामलों में दोहरे मापदण्ड अपनाना तीनों अधिकारियों के मामलों में बेचने वाले भूमि हीन हो गये हैं भूमिहीन होने के कारण ही अनुराग- अरूण मामले में विजिलैन्स की कैन्सेलेशन रिपोर्ट अस्वीकार हो चुकी हैं
  13. क्या केन्द्र के निर्देशों की उल्लंघना पर राज्य सरकारों को दंडित किया जायेगा
  14. क्या 118 की इन अनुमतियों को रद्द कर पायेगी सरकार
  15. क्या तीसरे दल प्रदेश में स्थान बना पायेंगे
  16. अनुराग ठाकुर और अरूण धूमल के ज़मीन खरीद मामले में अदालत ने लौटाई विजिलैन्स की कैन्सेलेशन रिपोर्ट
  17. कांगड़ा-धर्मशाला क्षेत्र में भू माफिया सक्रिय मनकोटिया ने लिखा पत्र
  18. बाॅस फार्मा उद्योग प्रकरण में प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड की नीयत और नीति पर उठे सवाल भारत सरकार प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग और स्वयं अपने ही अनुमति पत्रों को नही मान रहा
  19. चुनौती पूर्ण होगा सुरेश कश्यप को यह विरासत संभालना
  20. प्रदेश कांग्रेस के धरने में नही आ पाये सारे विधायक

Subcategories

  • लीगल
  • सोशल मूवमेंट
  • आपदा
  • पोलिटिकल

    The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.

  • शिक्षा

    We search the whole countryside for the best fruit growers.

    You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.  
    Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page.  That user will be able to edit his or her page.

    This illustrates the use of the Edit Own permission.

  • पर्यावरण

Facebook



  Search