Friday, 19 September 2025
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क्या भ्रष्टाचार को संरक्षण देना भाजपा की संस्कृति है

शिमला/शैल। क्या भ्रष्टाचार को संरक्षण और इसके खिलाफ आवाज उठाने और सवाल पूछने वालों की आवाज बंद करवाने का प्रयास करना भाजपा सरकारों की संस्कृति है? यह सवाल शांता कुमार द्वारा अपनी आत्मकथा में भ्रष्टाचार की सनसनी खेज खुलासा करने और इसके कारण मंत्री पद छीने जाने के बाद भी भाजपा के पक्ष में चुनाव प्रचार करने से उठ खड़ा हुआ है। क्योंकि जयराम सरकार की स्कूल के बच्चों को सरकार शिक्षा विभाग के माध्यम से हर वर्ष वर्दी देने का काम कर रही है। शिक्षा विभाग ने यह जिम्मेदारी निदेशक प्राईमरी शिक्षा को दी गई है। शिक्षा विभाग के लिए वर्दी खरीद का काम सरकार की नागरिक आपूर्ति निगम करती है। 2015 में वर्दी खरीद में घपला होने के आरोप लगे थे। विधानसभा में इस आशय के सवाल पूछे गए थे। यह सवाल उठने के बाद सरकार ने इस खरीद की जांच करने के आदेश दिए थे। जांच के लिए 2 अतिरिक्त मुख्य सचिवों की अध्यक्षता में दो कमेटियों का गठन हुआ था। एक कमेटी ने 2012-13 में और 2013-14 में खरीद की जांच की और दूसरी ने 14-15 की जांच की। 2012-13 में हुई खरीद में कोई घपला नहीं पाया गया। परंतु 2013-14 की खरीद में गड़बड़ी पाई गई और इसके लिए सप्लायरों पर 1.52 करोड का जुर्माना लगाया गया। 2014-15 की खरीद में भी घपला पाया गया और कमेटी ने इसके लिए 3.88 करोड़ का जुर्माना लगाया। कमेटियों की यह रिपोर्ट आने के बाद सप्लायर आर्बिट्रेशन में चले गए और वहां पर इस आधार पर उनको राहत मिल गई कि वर्दियां सप्लाई हो चुकी हैं और बच्चों ने इस्तेमाल भी कर ली। आर्बिट्रेशन का फैसला 2017 के अंत तक आया। तब चुनावी प्रतिक्रिया भी चल पड़ी थी। इसलिए इस फैसले पर ज्यादा कार्यवाही ना हो सकी। इसी दौरान सरकार बदल गयी। नई सरकार में शिक्षा मंत्री के सामने जब यह मामला आया तब यह पाया गया कि शिक्षा विभाग ने इसमें आर्बिट्रेशन के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने का नागरिक आपूर्ति निगम से आग्रह किया था । क्योंकि यह खरीद टेंडर इसी निगम के माध्यम से जारी हुआ था। इसको उच्च न्यायालय में ले जाने के लिए नागरिक आपूर्ति निगम ही अधिकृत था। शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज ने भी फाइल पर इस मामले को उच्च न्यायालय में ले जाने की संस्तुति की हुई है। नागरिक आपूर्ति निगम ने शिक्षा विभाग के आग्रह को सीधे-सीधे नजरअंदाज कर दिया। नागरिक आपूर्ति निगम ने किसके दबाव में उच्च न्यायालय जाने का साहस नहीं किया यह आज तक रहस्य बना हुआ है। सप्लायरों का पैसा निगम के पास पड़ा हुआ था। जिसे बाद में दे दिया गया। इससे सरकार को करीब 6 करोड़ का नुकसान हुआ है और यह भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का सीधा मामला बनता है।

इसी तरह हाइड्रो कालेज के निर्माण में करीब 10 करोड़ का नुकसान हुआ है। और यह नुकसान भी भारत सरकार के उपक्रम एनपीसीसी के माध्यम से हुआ है। क्योंकि निर्माण के लिए भारत सरकार की एजेंसी का चयन हुआ था। और ठेकेदार आमंत्रित करने का टेंडर इस एजेंसी ने जारी किया। इसमें जो निविदायें आई उनमें न्यूनतम रेट 92 करोड था। परंतु एजेंसी ने काम 103 करोड़ का रेट देने वाले को दे दिया। हिमाचल का तकनीकी विभाग इस पर खामोश रहा। यह तर्क दिया कि भारत सरकार की एजेंसी काम करवा रही है। विभाग यह भूल गया कि पैसा तो हिमाचल सरकार का है। कांग्रेस विधायक रामलाल ठाकुर दो बार सदन में सवाल रख चुके हैं। परंतु यह सवाल लिखित उत्तर तक ही रह गया। सरकार ने अपने स्तर पर इसमें कोई कार्रवाई करना ठीक नहीं समझा। यह दोनों मामले 2018 में इस सरकार के आते ही घट गए थे । इन मामलों में अफसरशाही हावी रही है या राजनीतिक नेतृत्व के भी सहमति रही है इस पर अब तक रहस्य बना हुआ है परंतु करोड़ों का चूना लग गया यह स्पष्ट है।

FY 2013-14







FY 2014-15



 

क्या भाजपा का परिवारवाद बरागटा परिवार तक ही रहेगा या आगे भी बढे़गा

यदि प्रदेश नेतृत्व बरागटा के साथ था तो क्या यह विद्रोह नड्डा और मोदी के खिलाफ है।
क्या सहानुभूति के कवर में सेब का सवाल गौण हो जायेगा।

शिमला/शैल। इस उपचुनाव में भाजपा ने फतेहपुर और जुब्बल कोटखाई में इन लोगों को उम्मीदवार बनाया है जो 2017 के चुनावों में पार्टी के विरोधी थे। इन्हें इस उपचुनाव में अपना प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने यह प्रमाणित कर दिया है कि पार्टी में वरियता का क्या स्थान और सम्मान है। यही नहीं जुब्बल-कोटखाई में स्व. श्री नरेन्द्र बरागटा के बेटे और पार्टी के आईटी सैल के प्रदेश इन्चार्ज चेतन बरागटा को परिवारवाद के नाम पर टिकट नहीं दिया गया। इससे यह सवाल उठना स्वभाविक है कि संगठन में तो परिवार के कई सदस्य एक साथ कई पदों पर सेवाएं दे सकते हैं, जिम्मेदारियां निभा सकते हैं लेकिन संसद या विधानसभा के सदस्य नहीं हो सकते। वैसे स्व. श्री नरेन्द्र बरागटा के निधन के बाद उनके बेटे को टिकट दिया जाना यदि परिवारवाद की परिभाषा में आ जाता है तो क्या कल को यही गणित धूमल, महेन्द्र सिंह और विरेन्द्र कंवर के परिवारों पर भी लागू होगा? यह सवाल भी कुछ हल्कों में उठने लग पड़ा है। क्योंकि इनके बच्चों ने भी पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से राजनीति में प्रवेश कर लिया है। स्वभाविक है कि इनकी अगली मंजिल देर-सवेर विधनसभा और संसद रहेगी ही। क्योंकि जब चेतन बरागटा के टिकट पर तो यह कहा गया कि प्रदेश नेतृत्व तो उनके हक में था परन्तु प्रधानमन्त्री परिवारवाद का आरोप नहीं लगने देना चाहते थे। अब यह परिभाषा इसी उपचुनाव तक रहेगी या आगे भी इस हथियार से कई गले काटे जायेंगे यह देखना दिलचस्प होगा।
चेतन बरागटा ने टिकट न मिलने से नाराज़ होकर आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में ताल ठोक दी है। मण्डल के बहुत सारे पदाधिकारी भी उनके समर्थन में आ गये हैं। पार्टी ने बरागटा को संगठन से निष्कासित भी कर दिया है। परन्तु उनके साथ विद्रोही बने अन्य कार्यकत्ताओं/पदाधिकारियों के खिलाफ अभी कोई बड़ी कारवाई नहीं की गई है। वैसे यदि इस चुनाव में नीलम सरैक को टिकट मिल सकता है तो अगले चुनाव यही टिकट बरागटा या किसी अन्य को मिल जाये तो इसमें कोई हैरानी भी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इस बार के टिकट आवंटन से यही सन्देश संगठन में गया है। वैसे चेतन बरागटा ने जब से यह कहा है कि मुख्यमन्त्रा जय राम ठाकुर से उन्हें कोई शिकायत नहीं है और यदि वह जीत जाते हैं तो जीतने के बाद वह भाजपा के ही साथ रहेंगे तो इससे एक सवाल यह भी उठने लगा है कि क्या वह किसी विशेष रणनीति के तहत चुनाव लड़ रहे हैं। क्योंकि सेब उत्पादक क्षेत्रों में कृषि कानूनों को लेकर बागवानों में भारी रोष है। अदाणी के एक झटके ने पाँच हजार करोड़ की आर्थिकी को हिलाकर रख दिया है। इससे सेब उत्पादक क्षेत्रों में भाजपा को बड़ा झटका लगा है। बल्कि इस झटके ने भाजपा के हाथों मिले पुराने गोलीकाण्ड के जख्मों को फिर से हरा कर दिया है।
बागवान सरकार के कृषि कानूनों से कितने रोष में है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि किसान आन्दोलन के नेता इस उपचुनाव में भाजपा के खिलाफ चुनाव प्रचार करने जा रहे हैं। ऐसे में चेतन बरागटा पिता की मौत से उपजी सहानुभूति में कृषि कानूनों को लेकर सरकार पर उठते सवालों को उठने का मौका ही नहीं आने देने का माहौल अप्रत्यक्षतः खड़ा कर रहे हैं ऐसी चर्चा भी कुछ क्षेत्रों में चल निकली है। क्योकि चेतन बरागटा सहानुभूति के कवर में यदि सरकार पर उठते सवालों का रूख मोड़ने में सफल हो जाते हैं तो इसका सीधा लाभ भाजपा और जयराम सरकार को मिलेगा। इस परिपेक्ष में यदि आने वाले दिनों में बरागटा कृषि कानूनों को लेकर अपना स्टैण्ड स्पष्ट नहीं करते हैं तो उन्हें इस चुनाव में भी जनता भाजपा की ‘ही’ टीम माने लग जायेगी यह तय है।

क्या यह उपचुनाव कृषि कानूनों और मंहगाई के गिर्द केन्द्रित हो पायेंगे

सेब बागवानों के बाद गेहूं और धान उत्पादक भी आये कृषि कानूनों की चपेट में

पावंटा साहिब से लेकर फतेहपुर तक खरीद केंद्रों की व्यवस्था न होने से रोष में किसान

फतेहपुर में भाजपा प्रत्याशी को नहीं आने दिया गांव में

किसानो की आय दो गुनी करने का दावा करने वाली सरकार 2020 की सब्सिडी का भुगतान नहीं कर पायी

विदेशी नस्ल की सस्ती बकरियां देने की योजना पर भी ग्रहण लगने के आसार

शिमला/शैल। प्रदेश में हो रहे उपचुनावों का असर आने वाली राजनीति पर पडे़गा और इससे हर दल प्रभावित होगा यह तय है। ऐसा इसलिए होगा कि यह चुनाव ऐसे समय पर हो रहे हैं जब मंहगाई और बेरोजगारी अपने चरम पर है। ऐसा क्यों है इसके कारणों को लेकर शायद ज्यादा नेता भी स्पष्ट नहीं है लेकिन चुनाव घोषित होने के बाद और उनके बीच भी मंहगाई पर सरकार रोक ना लगा सके तो स्पष्ट हो जाता है कि आने वाले दिनों में यह और भी बढेगी। स्वभाविक है कि जब सरकार को बैड बैंक बनाने की विवश्ता हो गई है तो संकेत और संदेश साफ है कि बैकिंग व्यवस्था कभी भी दम तोड़ सकती है। लोगों के जमा पर लगातार ब्याज कम हो रहा है। जीरो बैलेंस के नाम पर खुले खातों में न्यूनतम बैलेंस डाकघर में 500 और बैंक में 1000 की शर्त बहुत अरसे से लागू हो चुकी है। इस न्यूनतम बैलेंस का खाताधारक को कोई लाभ भी नहीं मिलेगा। बैंकों का एनपीए इतना अधिक हो चुका है कि यदि सारे जमाकर्ता अपना पैसा एक मुश्त वापिस मांग ले तो शायद बैंक ना दे पाये। यह एक ऐसी स्थिति है जिसका हर आदमी पर प्रभाव पडेगा चाहे वह इस बारे में सचेत हो या ना हो। आर्थिकी के इस प्रत्यक्ष पक्ष से भले ही आम आदमी ज्यादा जानकार ना हो पंरतु इसके प्रभाव का सीधा भुक्तभोगी होने के कारण उस पर इसका ज्यादा फर्क नहीं पडेगा कि इसे चुनावी मुद्दा बनाया जा रहा है या नहीं।
इस समय कृषि कानूनों की प्रतिक्रिया से उभरे किसान आंदोलन से हर आदमी प्रभावित है क्योंकि आज भी 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर साधे आधारित है और शेष अप्रत्यक्षतः प्रभावित है। हिमाचल में कृषि कानूनों का पहला दंश उस समय सामने आ गया जब अदाणी के ऐग्रो फ्रैश के एक फैसले से पांच हजार करोड़ का सेब का कारोबार एक दम दहल गया। अदाणी के एक फैसले से सेब उत्पादक से लेकर इसके कारोबारी तक सबने विरोध के स्वर उंचे कर दिये। मुख्यमंत्री और बागवानी मंत्री तक को अन्य व्यवहारिक ब्यान देने पडे़। सेब के बाद धान और गेहूं के उत्पादक किसान पावंटा साहिब से लेकर फतेहपुर तक अब उपचुनाव के दौरान इन कानूनों के दंश का शिकार हुए है क्योंकि खरीद केंद्रों की व्यवस्था जयराम सरकार नहीं कर पायी। खरीद केंद्र न होने को लेकर तो फतेहपुर के किसानों ने वहां के भाजपा प्रत्याशी बलदेव ठाकुर का घेराव करके उन्हें चुनाव प्रचार के लिए गांव में नहीं आने दिया। वहीं से बलदेव ठाकुर को कृषि मंत्री विरेंद्र कंवर और नागरिक आपूर्ति मंत्री राजेंद्र गर्ग से फोन पर बात करनी पड़ी। लेकिन इसका कोई लाभदायक परिणाम नहीं निकल पाया। खरीद केंद्र की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं हो पाई आज भी पांवटा साहिब से लेकर फतेहपुर तक यह समस्या यथास्थिति बनी हुई है। इसलिए जो किसान इन कानूनों का दंश व्यावहारिक रूप से भोग रहा है वह सरकार को समर्थन देने का कैसे फैसला ले पायेगा। जो सरकार 2022 में किसानों की आय दोगुनी करने का दावा करती आयी है वह जब कृषि मंत्रा के अपने चुनाव क्षेत्रा में ही बागवानों को 2020 की सब्सिडी का आज तक भुगतान न कर पायी हो उसके दावों पर कोई कैसे और क्यों विश्वास कर पायेगा। यही नहीं जिन किसानों को उतम विदेशी नस्ल की भेड़ बकरियां सस्ते दामों पर देने का दावा किया गया था और इसके लिए उनका हिस्सा भी ले लिया गया था। उसके मुताबिक यह बकरियां सरकार नहीं दे पायी है। इस योजना के तहत कृषि मंत्री विदेश यात्रा भी कर आये थे। पंरतु आज शायद यह योजना बदलनी पड़ रही है।
इस परिदृश्य में हो रहे इन उपचुनावों में जनता सरकार की किस उपलब्धि के लिये उसे अपना समर्थन देगी यह बड़ा सवाल बना हुआ है। आज भाजपा के हर प्रत्याशी के लिये कृषि कानूनों पर अपना पक्ष स्पष्ट करने की बाध्यता आ खड़ी हुई है। क्योंकि हिमाचल में तो 90 प्रतिशत जनता कृषि और बागवानी पर आश्रित है। यह उपचुनाव अप्रत्यक्ष रूप में कृषि कानूनों पर एक प्रकार से फतबे का काम करेंगे। इसलिये किसान आंदोलन के नेता भी इन पर जनता को जागरूक करने के लिये चुनाव प्रचार में अपनी बात रखने के लिये आ रहे हैं। किसान नेताओं के आने से इस चुनाव के कृषि कानूनों पर केन्द्रित होने की पूरी-पूरी संभावनायें बन गई है।

क्या महेन्द्र सिंह एन जी टी को दिये आश्वासन पर अपने होटल का अवैध निमार्ण गिरा चुके हैं

क्या होटल सीट्रस (CITRUS) पर लगा 20 लाख का जुर्माना अदा हो गया है?
क्या इस होटल का अवैध निमार्ण गिरा दिया गया है?
क्या वन भूमि पर अतिक्रमण के दोषी तीस होटलों से यह भूमि वापिस ले ली गई है?
मुख्यसचिव एन जी टी के आदेशों की अनुपालना क्यों नही करवा पायें है

शिमला/शैल। We direct the Chief Secretary of State of Himachal Pradesh to take appropriate disciplinary action in regard to dereliction of duty and for not maintaining the records and taking action in accordance with law against all the employees, officers and officials who have dealt with this file whether they are in service or have retired and providing undue advantage to Noticees. In the case of retired officers/officials, the action would be taken for reduction in pension as per rules. The employees may be of the Department of Town and Country Planning, the Government of Himachal Pradesh, Department of Tourism, State Pollution Control Board or any other agency of the Government as may be deemed proper by the department. यह आदेश एन जी टी ने 18-12-2017 को पारित किये थे। यह आदेश मंडी की सरकाघाट तहसील के गांव पारछू के निवासी रमेश चंद की याचिका पर पारित किये गये थे। यह याचिका हिमाचल सरकार और उसके पर्यटन, टी सी पी, पी डब्लयू डी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वन विभाग तथा प्रोमिला देवी पत्नी महेन्द्र सिंह ठाकुर, रजत ठाकुर पुत्र महेन्द्र सिंह ठाकुर के खिलाफ दायर की गई थी। आरोप था कि इन्होंने मनाली में मनाली वैली के नाम से एक होटल का निर्माण कर रखा है जिसमें कुछ अवैध निर्माण तथा सरकारी वन भूमि का अतिक्रमण हुआ है। इस मामले की सुनवाई पर महेंन्द्र सिंह जो इस समय प्रदेश के जल शक्ति मंत्री हैं स्वंय हाजिर हुए और उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि वह अवैध निर्माण को गिरा देंगे तथा सरकारी भूमि को लौटा देंगे। अदालत ने उनके आश्वासन को स्वीकार कर लिया। Initially the case related to the hotel constructed by Shri Mahinder Singh Thakur, owner of the Hotel Manali Valley. However, on a subsequent date Mr. Thakur appeared and made a statement that he would demolish the unauthorized construction as well as restore the Government land occupied and take all anti-pollution measures to the satisfaction of the concerned authority. The team headed by S.D.M. ensure compliance and in view of the statement made by Mr. Thakur which was given effect to no further orders were called for and not passed.

महेंन्द्र सरकार के आश्वासन को स्वीकारने के साथ ही एन जी टी ने सरकार से इन बिंदुओं पर भी जवाब मांगा।

1. How many hotels are operating in the city of Kullu, Planning Area, particularly in and around the Manali.
2. Out of them how many hotels have their own STP and other anti-pollution devices installed and how many are operating without obtaining consent of the Himachal Pradesh Pollution Control Board.
3. How many hotels out of them are located or constructed on the forest land.
4. How many cases of unauthorized construction which includes the construction which has been raised without obtaining sanction of the plan, NOC ordeviation or variations by addition of floors by construction of additional rooms beyond the sanction plan.
5. What action the State Government and the Pollution Control Board has taken in that behalf.
6. We direct Town and Country Planning Department and the State of Himachal Pradesh to submit whether any study or data have ever been prepared for the Kullu Planning Area with particularly Manali and its surrounding areas as to its carrying capacity, kind of development that should be permitted and keeping in view the fact that this area falls under Seismic Zone 4 and 5.

होटल मनाली वैली के साथ ही एक होटल सीट्रस (CITRUS) का मामला भी अदालत के सामने आया। इसमें 37 कमरे बनाने की अनुमति लेकर 112 कमरे बना दिये जाने का मामला सामने आया। जब यह सवाल उठा कि इतना अधिक निर्माण कैसे हो गया? संबंधित विभागों के अधिकारी क्या करते रहे? जब संबंधित विभागों ने अपने जवाब दायर किये तो सबके स्टैण्ड अलग-अलग पाये गये। इसी से अदालत को इसमें सभी के मिले हुए होने की गंध आयी और अदालत ने अवैध निर्माण को गिराने के आदेशों के साथ ही इस प्रकरण में 20 लाख का जुर्माना भी लगा दिया। एन जी टी के इस 18-12-2017 के निर्देश के बाद तहसीलदार कुल्लु और फॉरेस्ट रेंज ऑफिसर मनाली ने उपमंडल के होटलों का 2018 में तीन बार निरीक्षण किया और 92 होटलों की एक सूची तैयार की जिसमें 30 के खिलाफ वन भूमि के अतिक्रमण का आरोप है। लेकिन इस सूची में होटल मनाली वैली और होटल सीट्रस का नाम शामिल नहीं है। इसी दौरान एक सूची प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 73 होटलों की बनायी है। जिनके पास Consent to operate नहीं है।

जब एन जी टी के पास यह मामला आया था उसी दौरान प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी इन अवैधताओं का कड़ा संज्ञान लेते हुए इनके बिजली पानी के कनैक्शन काटने के आदेश जारी किये थे। इसमें कुल्लू मनाली में बने 547 होटलों में से 216 के पास आपरेट करने की अनुमति नहीं थी। परमाणु में अवैधताओं के आरोपों पर 44 होटलों का बिजली पानी काटा गया। धर्मशाला में 144 और कसौली में 44 होटलों के खिलाफ कारवाई की गयी। इसी दौरान कसौली कांड घट गया था। इसमें अधिकारियों को नामतः चिन्हित करते हुए शीर्ष अदालत ने इनके खिलाफ कारवाई करने के निर्देश दिये थे। रमेश चंद की याचिका पर अब तक अदालत में सुनवाई चल रही है। इसमें सचिव की ओर से दायर शपथ पत्र में यह तो रिपोर्ट दी गयी है कि मनाली, धर्मशाला और मैकलोडगंज में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने तथा कूड़ा इकट्ठा करने, यातायात और ध्वनि प्रदूषण से निपटने के लिए क्या उपाय किये गये हैं। लेकिन यह नहीं बताया गया है कि 18-12-2017 के निर्देशों पर कितना अमल हुआ है। क्या जल शक्ति मंत्री महेन्द्र सिंह ने अपने होटल का अवैध निर्माण गिरा कर सरकारी भूमि लौटा दी है? क्या होटल सीट्रस पर लगा जुर्माना अदा हो गया है और अवैध निर्माण गिरा दिया गया है? संबंधित विभागों से इस बारे जब पूछा गया तो वह कुछ भी नहीं बता पाये। अदालत के इन निर्देशों की अनुपालना जयराम सरकार को करनी थी क्योंकि निर्देश दिसम्बर 2017 में हुए थे और उसके बाद सरकार बदल गयी थी। आज चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री कांग्रेस को कह रहें हैं कि उनका मुंह न खुलवाओ कांग्रेस मुख्यमंत्री को कह रही है कि वह धमकाना छोड़ दें। ऐसे में आज यह सवाल पूछना ज्यादा प्रसांगिक हो जाता है कि मंत्री द्वारा अदालत को दिये आश्वासन की कितनी अनुपालना हो पायी है। क्योंकि रमेश चन्द इस मामले में सरकार द्वारा कोई कारवाई न किये जाने पर सर्वोच्च न्यायालय में दस्तक देने तक पंहुच गया है।

क्या ‘‘वन रैक वन पैन्शन’’ मुद्दे पर ब्रिगेडियर पूर्व सैनिकों का पक्ष लेंगें या सरकार का

क्या अब ब्रिगेडियर फोर लेन प्रभावितों का विरोध करेंगे?
मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में वन रैंक वन पैन्शन पर लिया यू टर्न
वन रैंक वन पैन्शन की मोदी सरकार द्वारा परिभाषा ही बदल देने पर पूर्व सैनिक अभी तक आन्दोलन पर है
सर्वोच्च न्यायालय में दिये शपथ पत्र में सरकार ने अपने फैसले पर पुनः विचार से किया इन्कार
नेता बने पूर्व सैनिक अधिकारियों पर पूर्व सैनिकों या सरकार का पक्ष लेने की चुनौती

शिमला/शैल। भाजपा ने मण्डी लोकसभा क्षेत्र के संसदीय उपचुनाव के लिये कारगिल युद्ध के हीरो रहे ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर को अपना प्रत्याशी बनाया है। मण्डी क्षेत्र में लम्बे समय से फोर लेन प्रभावितों का मुद्दा चला आ रहा है।ब्रिगेडियर  की छवी के आधार पर इन प्रभावितों ने अपने मुद्दे की कमान इन्हें सौप दी थी।ब्रिगेडियर साहब ने भी शिमला के प्रैस कल्ब में आयोजित एक पत्रकार वार्ता में अपनी टीम के साथ लम्बी लड़ाई का ऐलान कर दिया था। पिछले दिनों जब केन्द्रीय भूतल परिवहन मन्त्री नितिन गडकरी कुल्लु-मनाली की यात्रा पर आये थे और फोरलेन प्रभावितों ने उनसे मिलने का प्रयास किया था तब उन्हे मिलने से रोकने के प्रयासों में स्थिति मुख्यमन्त्री के सुरक्षा कर्मीयों और एस पी कुल्लु के बीच थप्पड़ काण्ड तक घट गया था। आज ब्रिगेडियर खुशाल फोरलेन के मुद्दे को बीच में ही छोड़कर भाजपा की ओर से उपचुनाव में उम्मीदवार हो गये हैं और न तो प्रभावितों को लेकर कुछ बोल पा रहे हैं न ही सरकार से कोई आशवासन ले पा रहे हैं।
इन फोरलेन प्रभावितों से भी ज्यादा प्रभावी ‘‘ वन रैंक वन पैन्शन’’ का मुद्दा जो राष्ट्रीय बन चुका है वह भी ब्रिगेडियर से यह सवाल पूछ रहा है कि इस मुद्दे पर वह पूर्व सैनिकों के साथ है या मोदी सरकार के साथ। क्योंकि पूर्व सैनिक इस मुद्दे को लेकर आज भी आन्दोलन रत हैं। दिल्ली के जन्तर- मन्तर पर इन पूर्व सैनिकों का क्रमिक धरना-प्रदर्शन जारी है। स्मरणीय है कि भूतपूर्व सैनिकों की वन रैंक वन पैन्शन मुद्दे पर डा. मनमोहन सिंह की सरकार 2011 में एक कोशियारी कमेटी का गठन कर दिया था। इस कमेटी ने दिसम्बर 2011 में ही अपनी सिफारशें सरकार को सांपी पूर्व सैनिक उनसे सहमत थे। लेकिन इसी दौरान भाजपा ने भी पूर्व सैनिकों की एक रैली का आयोजन 15 सितम्बर 2013 को रिवाड़ी में कर दिया। इस रैली में घोषणा की गयी यदि केन्द्र में भाजपा की सरकार बनती है तो वह इस पर अमल करेगी 17 फरवरी 2014 को वित्त मन्त्री ने बजट भाषण में यह आश्वासन दिया और 26 फरवरी को रक्षा मन्त्रालय ने भी इसका अनुमोदन कर दिया। लेकिन इसके बाद जब नयी सरकार आ गयी तब 9 जून 2014 को राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी इसका अनुमोदन कर दिया गया। परन्तु इसके बाद 7 नवम्बर 2015 को रक्षा मन्त्रालय ने ‘‘ एक रैंक एक पैन्शन’’ का अर्थ ही बदल दिया यह कोशियारी कमेटी की सिफारशों के एकदम विपरीत था। पूर्व सैनिकों ने इसे मानने से इन्कार कर दिया। इस पर सरकार ने जस्टिस रैड्डी की अध्यक्षता में एक सदस्य कमेटी गठित कर दी। इस कमेटी ने 26 अक्तूबर 2016 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी जिसे पूर्व सैनिकों को उपलब्ध नही करवाया गया। इस पर एक और कमेटी बनाई गयी और उसका परिणाम भी यही रहा।
सरकार ने राष्ट्रपति के अभिभाषण में 9 जून 2014 को दिये आश्वासन पर से भी यू टर्न ले लिया है। पूर्व सैनिक इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत में जा चुके हैं। सरकार से अपने फैसले पर पुनः विचार करने का आग्रह किया गया है। लेकिन सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में दायर किये अपने जबाव में इस फैसले को बदलने से इन्कार कर दिया है। पूर्व सैनिकों में सरकार के जबाव से भारी रोष फैल गया है। हिमाचल में पूर्व सैनिकों का बड़ा प्रभाव है। स्मरणीय है कि जब मोदी सरकार ने पूर्व सैनिकों की पैन्शन में कुछ बदलाव करने की योजना बनाई थी तब उसके खिलाफ भी कांगड़ा के ही पूर्व सैनिक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और पैन्शन बदलाव के मुद्दे पर स्टे हासिल किया था। इस परिदृश्य में जब भाजपा एक पूर्व ब्रिगेडियर को उपचुनावों में प्रत्याशी बनायेगी तो सबसे पहले यह पूर्व सैनिक ही उनसे इस मुद्दे पर सवाल पूछेंगे। जब केन्द्र सरकार ‘‘ एक रैंक एक पैन्शन’’ पर सुप्रीम कोर्ट में यू टर्न ले चुकी है तो क्या ब्रिगेडियर पूर्व सैनिकों के पक्ष में सरकार के खिलाफ खड़े होने का साहस दिखायेंगे? क्या ऐसे में ब्रिगेडियर की उम्मीदवारी पूर्व सैनिकों के लिये अपने ही मुद्दे पर अपने ही पक्ष-विपक्ष में फैसला लेने का संकट नही खड़ा कर देगा?

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