Friday, 19 September 2025
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क्या धर्मशाला स्मार्ट सिटी में ब्लैकलिस्टिड कंपनी को काम दिया जा रहा है

शिमला/शैल। धर्मशाला को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जा रहा है। स्मार्ट सिटी योजना में लाने के लिये ही धर्मशाला को नगर निगम बनाया गया है। इन दिनों धर्मशाला में एलईडी लाईटें लगाने का कार्य किया जा रहा है। इस कार्य के लिये टैण्डर आमन्त्रित किय गये जिनमें चार कंपनीयों ने भाग लिया है। इस प्रक्रिया में सूत्रों के मुताबिक मै. एच पी एल इलैक्ट्रिक एण्ड पावर प्रा. लि. को चयनित किया गया है। चर्चा है कि इस कंपनी को दिल्ली में सरकारी कार्यों के लिये ब्लैकलिस्ट किया गया है। ऐसे में यह सवाल उठने शुरू हो गये हैं कि ऐसी क्या मजबूरी आ गयी है कि एक ब्लैकलिस्टिड कंपनी को काम देने के लिये कहा जा रहा है।

क्या हिमाचल में भी गुजरात घटेगा-विधानसभा चुनाव फरवरी -मार्च में करवाने की अटकलें बढ़ी

नगर निगमों के बाद अब विश्व विद्यालय में हारी भाजपा
नेताओं के पत्रों पर हुए कर्मचारियों के तबादले उच्च न्यायालय ने किये रद्द
किसानों की आय दोगुणी करने का वायदा करने वाली सरकार सब्सिडी का भुगतान ही नहीं कर पायी
शिमला/शैल। प्रदेश में होने वाले चारों उपचुनाव टाल दिये गये हैं। चुनाव आयोग ने यह फैसला राज्य के मुख्य सचिव, स्वास्थ्य सचिव, डीजीपी और मुख्य निर्वाचन अधिकारी से चर्चा करने के बाद लिया है ऐसा इस संद्धर्भ में आये प्रैस नोट में कहा गया है। अब यह उपचुनाव कब होंगे इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है। प्रदेश विधानसभा के लिये चुनाव अगले वर्ष दिसम्बर में कार्यकाल पूर्ण होने के बाद होंगे। इस नाते अभी भी इन चुनावों के लिये सोलह माह का समय बचा है। जबकि उपचुनावों के लिये जो स्थान खाली हुए हैं उनमें फतेहपुर के लिये फरवरी में, मण्डी लोकसभा के लिये मार्च, जुब्बल कोटखाई के लिये जून और अर्की के लिये जुलाई 2022 में क्रमशः एक वर्ष पूरा हो जायेगा। जन प्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 151 A के अनुसार उपचुनाव स्थान खाली होने के छः माह के भीतर करवा लिया जाना अनिवार्य है। यदि शेष कार्यकाल का समय ही एक वर्ष से कम बचा हो तो भारत सरकार के साथ विचार-विमर्श करके चुनाव आयोग ऐसे उपचुनाव को टाल सकता है। लेकिन विधानसभा के तीनों रिक्त स्थानों के लिये डेढ वर्ष से अधिक का समय शेष है और मण्डी लोकसभा के लिये तो तीन वर्ष से अधिक का समय रहता है। इसलिये यह स्पष्ट है कि यह सारे उपचुनाव तो करवाने ही पड़ेंगे क्योंकि एक वर्ष से अधिक समय के लिये टालने का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसा करना एक संवैधानिक संकट को न्यौता देना हो जायेगा। इस समय देशभर में तीन लोकसभा और बत्तीस विधानसभा सीटां के लिये उपचुनाव टाले गये हैं जो आगे करवाना अनिवार्य हो जायेंगे।


अगले वर्ष 2022 में आठ विधानसभाओं और राष्ट्रपति तथा उप राष्ट्रपति के लिये चुनाव होने हैं। चुनावों का यह सिलसिला फरवरी -मार्च 2022 से ही शुरू हो जायेगा और दिसम्बर तक चलता रहेगा। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के लिये फरवरी में चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश के परिणाम पूरे देश की राजनीति को प्रभावित करते हैं। बंगाल चुनावों के बाद भाजपा के चुनावी मनोबल में कमी आई है। अभी पिछले दिनों प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता को लेकर इण्डिया टूडे का एक सर्वे आया है उसमें प्रधानमन्त्री का ग्राफ 66 से लुढक कर 24% तक आ गया है। सी वोटर के सर्वे में कुछ राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बनती बताई गयी है। किसान आन्दोलन पूरे देश की राजनीति को प्रभावित कर रहा है। सरकार इसके प्रभाव से प्रभावित हो रही है इसका ताजा उदाहरण करनाल में सामने आ गया है जहां पांच दिन बाद सरकार को सारी मांगे माननी पड़ गयी है। इसी तेजी से बदलते राजनीतिक परिदृश्य का परिणाम है कि भाजपा ने छः माह के समय में ही अपने मुख्यमन्त्री बदल दिये। उत्तराखण्ड में दो मुख्यमन्त्री बदल दिये। मुख्यमन्त्रीयों के इस बदलाव को यह रणनीति माना जा रहा है कि चुनावों से पहले मुख्यमन्त्री को बदल दो ताकि सारी प्रशासनिक नकारात्मकता मुख्यमन्त्री के साथ ही चर्चा से बाहर हो जाये।
इसी गणित में यदि हिमाचल का आकलन किया जाये तो पिछले दिनों प्रदेश की चार नगर निगमों के लिये हुए चुनावों में भाजपा दोनों में हार गयी थी। 2014 के बाद यह पहली हार है। अब विश्वविद्यालय में मिली हार से यह सामने आ गया है कि कर्मचारियों और अधिकारियों में भाजपा अपना विश्वास खो चुकी है। विश्वविद्यालय में जिस तरह पिछले दिनों हुई नियुक्तियों को लेकर सवाल उठे हैं उसका परिणाम इन चुनावों में सामने आ गया है। अब तो कर्मचारियों के तबादलों में जिस तरह से भाजपा विधायक को और दूसरे नेताओं का बढ़ता दखल उच्च न्यायालय तक जा पहुंचा है उस पर उच्च न्यायालय ने जिस तरह से अपनी नाराज़गी जताई है उससे सरकार को जो झटका लगा है उससे उबरने का कोई अवसर अब सरकार के पास नहीं बचा है। सेब के प्रकरण में जब से यह सामने आया है कि निजक्षेत्र के कोल्ड स्टोर मालिकों पर उत्पादकों के लिये इन स्टोरों में 20% जगह उपलब्ध रखने की शर्त तो लगा दी लेकिन उस शर्त को बागवानों के हितों में न तो कभी प्रचारित किया गया न ही उस पर अमल करवाया गया। 2022 में किसानों की आय दोगुणी करने के दावों के बीच बागवानों को यह सरकार सब्सिडी तक नहीं दे पायी है। बागवानी और कृषि मन्त्री दोनों इस पर चुप हैं इस तरह चुनावी गणित से देखते हुए सरकार के पक्ष में धरातल पर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता जिसका लाभ चुनावों में मिल सके। वैसे भी अब चौथे वर्ष में जाकर चुनाव क्षेत्रों में घोषणाएं की जा रही हैं जिनका चुनावों तक अमली शक्ल ले पाना संभव ही नहीं है। ऐसे में उपचुनावों में सफलता मिलना आसान नहीं है और इनमें असफलता का असर आम चुनावों पर पड़ना तय है। इस पदिश्य में यह माना जा रहा है कि अगले वर्ष होने वाले सारे विधान सभा चुनावों को यूपी के साथ ही फरवरी -मार्च में ही करवा लिया जाये। इस गणित में यह संभावना भी बल पकड़ रही है कि भाजपा कुछ अन्य प्रदेशों में भी गुजरात जैसे फैसले ले सकती है।

जब बैंक लोक पाल के आदेशों की भी अनुपालना न करे तो पीड़ित के पास क्या विकल्प रह जाता है

शिमला/शैल। जब बैंक प्रबन्धन बैकिंग लोकपाल के आदेश की भी अनुपालना करने में टालमटोल करे तब बैंक की ही मिली भगत से ही किसी निर्दोष के खिलाफ रचे गये फ्रॅाड के मामले में पीड़ित को दर- दर की ठोकरें खाने पर मज़दूर कर दिया जाये तो ऐसी व्यवस्था को क्या संज्ञा दी जाये यह सवाल ऊना की रकड़ कालोनी के निवासी और प्रदेश के साहित्यिक जगत के एक चर्चित नाम कुलदीप शर्मा के साथ हुए फ्रॅाड से अब जनता की अदालत तक पहुंच कर सारे संवद्ध पक्षों से जवाब मांग रहा है। यह सवाल उस समय और भी अहम हो जाता है जब प्रधानमंत्री और वित्त मन्त्री आये दिन लोगां को बैंक से कर्ज लेकर अपना काम चलाने की सलाह दें। बैंकों की ज्यादतीयों से पीड़ित कितने लोग आत्म हत्याएं कर चुके हैं इन आंकड़ों को शायद दोहराने की आवश्यकता नहीं है। साहित्यकार अपनी सरलता के कारण किसी की भी तकलीफ पर उसकी मद्द करने के लिये तैयार हो जाता है यह उसका स्वभाविक गुण है। इसी गुण के कारण कुलदीप शर्मा एक शाहिद हुसैन और राकेश पाल के षडयन्त्र का शिकार हो गये क्योंकि इसमें केनरा बैंक का स्थानीय प्रबन्धन भी सक्रिय भागीदारी निभा रहा था और इन सबकी नजऱ कुलदीप की संपत्ति पर थी।
इस संपत्ति को हथियाने के लिये शाहिद और राकेश पाल ने उनके उद्योग पारस होम सप्लाईन्स के नाम आया एक लाख दस हजार डालर का सप्लाई आर्डर दिखाकर इस आर्डर को पूरा करने के लिये बैंक से कर्ज लेने की जरूरत दिखायी और इस कर्ज के लिये कुलदीप से गांरटी देने की मद्द मांगी। केनरा बैंक के प्रबन्धक ने भी इस गारंटी के लिये कुलदीप को पूरी आश्वस्त किया। यह उद्योग CGTSME योजना के तहत जून 2013 में स्थापित हो चुका था और इस कर्ज की आवश्यकता दिसम्बर 2013 में आयी। इसलिये शक करने का कोई कारण सामने नहीं दिखा। कुलदीप इसके लिये तैयार हो गये और संपत्ति के पेपर बैंक को दे दिये गये। लेकिन बाद में शाहिद और राकेश पाल मे बैंक के सहयोग से पारस होम एपलाईन्स के नाम से ही एक और जाली उद्योग इ्रकाई शाहिद की पत्नी के नाम दिखाकर उसको कर्ज दे दिया और उसमें कुलदीप शर्मा की संपत्ति के पेपर प्रयोग कर लिये गये।
जब कुलदीप शर्मा को इस फर्जीवाडे का पता चला तब उन्होंने बैंक, स्थानीय प्रशासन तक से इनकी शिकायत की। पुलिस मे मामला दर्ज करवाया। पुलिस ने मैनेजर को गिरफ्तार तक कर किया लेकिन बैंक ने कुलदीप शर्मा को गांरटी से मुक्त नहीं किया। बैंक के इस आचरण के खिलाफ चण्डीगढ़ स्थित बैंकिग लोकपाल के पास मामला पहुंचा। लोकपाल ने केनरा बैंक को दोषी करार देते हुए कुलदीप को इस गांरटी से मुक्त करने के आदेश सुनाये। बैंक प्रबन्धन ने भी इन आदेशों पर लोकपाल के समक्ष लिखित में सहमति दी है। 16-3-20 को लोकपाल ने यह आदेश पारित किये हैं लेकिन आज तक बैंक प्रबन्धन इसकी अनुपालना नहीं कर रहा है। क्या अराजकता का इससे बड़ा कोई प्रमाण हो सकता है क्या बैंक प्रबन्धन इस तरह पीड़ित को कोई और हताशा का कदम उठाने के लिये बाध्य नही कर रहा है।















स्वर्णिम रथ यात्रा से पहले आया मुकेश अग्निहोत्री का जनता के नाम खुला पत्र

शिमला/शैल। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने प्रदेश की जनता के नाम एक खुला पत्र लिखकर आम आदमी का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है क्योंकि जब संसद से लेकर विधानसभा तक सरकार विपक्ष की बात सुनने को तैयार न हो। संसद में बिना बहस के बिल पास हो जाये और देश के प्रधान न्यायधीश को अपनी चिन्ता सार्वजनिक करनी पड़े तो स्पष्ट हो जाता है कि इस व्यवस्था में आम आदमी और उसके सवालों के लिये कहीं कोई मंच नहीं रह गया है। ऐसे में किसी भी संवदेनशील नेता के लिये जनता के दरबार में गुहार लगाने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं रह जाता है। क्योंकि इसी जनता को अच्छे दिन आने का सपना दिखाकर उसका विश्वास जीतकर यह सरकार सत्ता में आयी थी। सात साल सत्ता भोगने के बाद भी जो सरकार विपक्ष से ही सवाल करे क्या उससे यह नहीं पूछा जाना चाहिये कि क्या उसने सत्ता संभालने पर देश की स्थिति को लेकर कोई श्वेत पत्रा इस जनता के सामने रखा था शायद नहीं। आज अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिये अपने संख्या बल की ताकत पर विपक्ष की आवाज को दबाना ज्यादा देर नहीं चलेगा।
आज जयराम सरकार अनुराग ठाकुर की जन आशीर्वाद यात्रा के बाद स्वर्णिम रथ यात्रा का आयोजन करने जा रही है। पूरे प्रशासन को इस यात्रा की तैयारी पर लगा दिया है। अनुराग ठाकुर की जन आशीर्वाद यात्रा और अब स्वर्णिम रथ यात्रा ऐसे समय में होने जा रही है जब प्रदेश की जनता को कोरोना की तीसरी लहर का डर भी बराबर परोसा जा रहा है। कोरोना के कारण प्रदेश के शैक्षणिक संस्थान पिछले वर्ष मार्च से लेकर अब तक बन्द चले आ रहे हैं। बच्चों और अध्यापकों को मोबाईल पर आश्रित कर दिया गया है। जिस मोबाईल का ऑप्रेशन पैट्रोल पम्पों पर प्रतिबन्धित है और डाक्टर इसके आन्तरिक प्रयोग से बच्चों को बचने की नसीहत देते हैं क्योंकि इससे उनकी ऑंखे प्रभावित होगी लेकिन आज सरकारी आदेश से सबको इस पर आश्रित बना दिया गया है। यदि आने वाले समय में पांच प्रतिशत भी इससे नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं तो क्या एक नयी समस्या को न्योता नहीं दिया जा रहा है। कोरोना का अभी तक कोई ईलाज सामने नहीं आया है। फिर भी लोग ठीक हो रहे हैं क्योंकि उनका अन्य बिमारियों के लिये ही उपचार किया जा रहा है। कोरोना में जितने लोगों की मोत हुई है उसमें सरकार के अपने आंकड़ो के अनुसार ही 80% से अधिक मौतें अन्य बिमारियों से हुई है। जब 24 मार्च 2020 को लाकडाऊन लगाया गया था और उसके कारण सारे अस्पताल भी खाली कर दिये गये थे तब लम्बे समय तक लोग बिना ईलाज के रहे थे। उन लोगों में से कितने कोरोना के कारण अब अपनी जान गंवा चुक हैं इसका कोई अध्ययन आंकड़ा सरकार के पास नहीं है।
कोरोना को लेकर सरकार की समझ अभी यहीं तक पहुंची है कि इसका संक्रमण शादी-ब्याह के समारोहों से फैलता है और राजनीतिक रैलियों से नहीं। यह आम आदमी के सामने आ चुका है कि कोरोना काल में बंदिशों के दौरान राजनीतिक गतिविधियां बराबर जारी रही है। अभी जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान कितने लोग मास्क का प्रयोग कर रहे थे और भीड़ में सोशल डिस्टैंन्सिग की कितनी पालना हो रही थी यह सब जनता के सामने आ चुका है। अब जो रथ यात्रा प्रस्तावित है उसमें भी इसी तरह का आचरण रहेगा यह तय है। ऐसे में जब सरकार किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं है तब जनता को इस सब पर विचार करना होगा। इसी आश्य के साथ नेता प्रतिपक्ष ने प्रदेश की जनता के नाम खुला पत्र लिखकर उसका ध्यान आकर्षित किया है।

बाल यौन शोषण मामले में 636 दिन की देरी से अपील दायर करने पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया 25000 का जुर्माना

जुर्माने की रकम संवद्ध अधिकारियों से वसूलने के निर्देश

शिमला/शैल। जयराम सरकार का प्रशासन कितना संवेदनशील और जिम्मेदार है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बाल यौन शोषण के एक मामले में 636 दिन बाद सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की गयी है। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार की इस तत्परता के लिये उस पर 25000 का जुर्माना लगाते हुए निर्देश दिये हैं कि जुर्माने की यह राशि इस देरी के लिये जिम्मेदार अधिकारियों से वसूली जाये। सर्वोच्च न्यायालय में जब राज्य सरकार ने इस देरी के लिये कोरोना के प्रकोप को कारण बताया तब अदालत ने इन शब्दों में अपनी नाराज़गी व्यक्त की "To say the least, we are shocked at the  conduct of the petitioner-State and the manner of conduct the litigation in such a sensitive matter. There is not even a semblance of  explanation for delay" 

इस मामले में 5-12-2018 को अदालत ने अपराधी के पक्ष में फैसला देते हुए उसे छोड़ दिया था। इसके बाद प्र्रशासन ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करने का फैसला लिया। यह फैसला लेने में योग्य संबद्ध प्रशासन को 636 दिन लग गये। इसमें प्रशासन की गंभीरता का इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि शीर्ष अदालत में इस देरी के लिये प्रदेश मे कोरोना होने का तर्क दिया गया। तर्क देते हुए यह भी भूल गये कि यह फैसला दिसम्बर 2018 में आ गया था और कारोना के कारण लॉकडाऊन 24 मार्च 2020 को लगा था।
ऐसा ही आचरण वन विभाग के मामले में भी सामने आया है। शिमला के कोटी रेंज में 400 से अधिक पेडों के अवैध कटान के मामले में 2018 में उच्च न्यायालय ने संबद्ध लोगों के खिलाफ मामले दर्ज करके कारवाई करने के निर्देश दिये थे जिन पर अब तक कारवाई नहीं हुई और अब उच्च न्यायालय ने इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए जांच अधिकारी को ही निलम्बित करने के आदेश किये हैं। ऊना में भी एक फार्मेसी की दुकान के आवंटन के मामले में हुए घपले में उच्च न्यायालय ने सी. एम.ओ. और एम एस की वित्तिय शक्तियां अगले आदेशों तक छीन ली है। इन मामलों से यह सवाल उठने लगा है कि या तो प्रशासन बेलगाम हो गया है या उस पर अत्यधिक राजनीतिक दबाव है।

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