Thursday, 18 September 2025
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क्या 25000 करोड़ का कर्ज करके 1500 की पैन्शन बांटना सही है

  • कर्ज के इस आरोप पर सरकार की चुप्पी क्यों
  • जब विभाग में आठ पैन्शन योजनाएं चल रही हैं तो नयी की आवश्यकता क्यों?

शिमला/शैल। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में महिलाओं को पन्द्रह पन्द्रह सौ रुपए प्रतिमाह देने की गारन्टी दी थी। यह गारंटी देते हुये यह नहीं बताया गया था कि वह पन्द्रह सौ कब से देने शुरू किये जाएंगे। जब इस गारन्टी पर सवाल उठने शुरू हुये तो इसे लाहौल-स्पीति से लागू कर दिये जाने की घोषणा कर दी गयी। इसी के साथ यह भी कहा गया कि बाकी प्रदेश में भी इसे शीघ्र लागू कर दिया जायेगा। इसी दौरान इस आश्य की अधिसूचना भी जारी कर दी गयी। अधिसूचना के साथ वह फॉर्म जारी किया गया जो पन्द्रह सौ पाने के लिए भरा जाना है। इस फॉर्म में पात्रता के लिये कई सारे राइटर जोड़ दिये गये हैं। इन चुनावों की घोषणा के बाद जब यह फॉर्म भरे जाने लगे तो इसकी चुनाव आयोग में शिकायत हो गयी और यह फॉर्म भरने का काम रुक गया। अब यह चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है कि भाजपा महिलाओं को यह सहायता दिये जाने का विरोध कर रही है। सरकार के पास यह सहायता दिये जाने के लिये संसाधन कहां से आयेंगे? क्या कर्ज लेकर यह सहायता दी जायेगी या आम आदमी पर करांे का बोझ डालकर यह सवाल भी चर्चा में आने लगा है। इन चुनावों में महिला मतदाताओं की संख्या करीब 28 लाख है। इसलिए पन्द्रह सौ रूपये को चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इसी कारण से सरकार की विभिन्न जनकल्याण योजनाओं को समझने की आवश्यकता है।
इस समय जनकल्याण के नाम पर आठ पैन्शन योजनाएं चल रही हैं। यह योजनाएं हैं वृद्धावस्था पैन्शन योजना, दिव्यांग राहत भत्ता, विधवा/परित्यक्ता/एकल नारी पैन्शन, कुष्ठ रोगी पुनर्वास योजना, ट्रांसजैण्डर पैन्शन योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था (बी.पी.एल.) त्रैमासिक वित्तीय सहायता, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पैन्शन योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांगता पैन्शन योजना। इन सारी पैन्शन योजनाओं के लाभार्थीयों की संख्या 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 7,83,917 है। इसी सर्वेक्षण के मुताबिक 15-5-23 से लाहौल-स्पीति में दिये जा रहे 1500 रुपए के लाभार्थियों की संख्या 803 है। इन योजनाओं के तहत एक हजार, ग्यारह सौ पचास और सत्रह सौ रूपये दिये जा रहे हैं। सरकार की इन योजनाओं पर नजर डालने से यह सवाल उभरता है कि इन योजनाओं से कौन सी पात्र महिला छूट गयी होगी जिसे अब पन्द्रह सौ के दायरे में लाया जायेगा। फिर यह भी कहा गया कि सभी की पैन्शन राशि पन्द्रह सौ कर दी जायेगी। इसमें एक हजार या ग्यारह सौ पचास पाने वाले को तो पन्द्रह सौ मिलने से कुछ सहायता बढ़ जायेगी। लेकिन क्या 1700 पाने वाले के दो सौ कम कर दिये जाएंगे यह स्पष्ट नहीं है।
इस समय सरकार पन्द्रह माह के कार्यकाल में 25000 करोड़ का कर्ज ले चुकी है और 6200 करोड़ और लेने जा रहे हैं। यह आरोप भाजपा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल ने लगाया है। डॉ. राजीव बिंदल पहले भी आर.टी.आई. के माध्यम से ली गयी सूचना के आधार पर कर्ज के आंकड़े जारी कर चुके हैं। डॉ. बिंदल द्वारा जारी कर्ज के इन आंकड़ों पर सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि क्या कर्ज लेकर इस तरह की राहत पहुंचाना जायज है? क्योंकि जब कर्ज लेकर राहत बांटी जाती है तब कर्ज के कारण बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी में यह राहत अर्थहीन होकर रह जाती है। इस समय इतना कर्ज लेकर भी सरकार कर्मचारियों के बकाये की ही अदायगी नहीं कर पायी है। इसलिए कर्ज लेकर राहत बांटने के सिद्धांत पर एक सार्वजनिक बहस में फैसला लिया जाना चाहिए। क्योंकि पन्द्रह माह में 25000 करोड़ का कर्ज एक बड़ा आरोप है। सरकार की खामोशी से यह और गंभीर हो जाता है।

कांग्रेस के विद्रोह का केन्द्र हमीरपुर संसदीय क्षेत्र ही क्यों बना?

  • वित्तीय संकट के चलते सरकार अपने खर्चे क्यों कम नहीं कर पायी?
  • जब जलउपकर अधिनियम ही असंवैधानिक है तो उसी के तहत बना आयोग सही कैसे?

शिमला/शैल। कांग्रेस अभी तक धर्मशाला विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव के लिये अपना उम्मीदवार घोषित नहीं कर पायी है। पांच उपचुनाव के लिये जो उम्मीदवार घोषित किये गये हैं उसमें गगरेट और सुजानपुर में भाजपा से कांग्रेस में आये नेताओं को टिकट दिये गये हैं। बडसर, कुटलैहड और लाहौल-स्पीति में ही कांग्रेस के पुराने लोगों पर भरोसा किया गया है। किसकी जीत होगी इसका आकलन अभी करना जल्दबाजी होगी। यह सही है कि उपचुनाव सरकार का भविष्य तय करेंगे। इसलिए अभी यह चर्चा करना प्रासंगिक होगा कि इस समय प्रदेश के बड़े मुद्दे क्या हैं। क्या सरकार और विपक्ष प्रदेश के मुद्दों पर चुनाव लड़ने के लिये तैयार है या फिर इस उप चुनाव के लिये अलग से मुद्दे तैयार किये जायेंगे।
प्रदेश में सुखविंदर सुक्खू के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बने पन्द्रह माह हो गये हैं। जब सरकार ने कार्यभार संभाला था तब प्रदेश की वित्तीय स्थिति श्रीलंका जैसी होने की चेतावनी जारी की गयी थी। प्रदेश में वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप पूर्व की सरकार पर लगाया गया। वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र जारी किया। पिछली सरकार द्वारा अंतिम छः माह में खोले गये हजार के करीब संस्थान बंद कर दिये गये। हमीरपुर स्थित अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड तक भ्रष्टाचार और प्रश्न पत्र बिकने के आरोप पर भंग कर दिया गया। प्रदेश की जनता सरकार के इन फैसलों को जायज मानकर चुप रही। लेकिन जैसे ही सरकार ने मंत्रिमंडल विस्तार से पहले छः मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर दी और करीब डेढ़ दर्जन के करीब ओ.एस.डी. और सलाहकार कैबिनेट रैंक में नियुक्त कर दिये तब सरकार की नीयत और नीति पर सवाल उठने शुरू हुये। कांग्रेस द्वारा विधानसभा चुनावों में दी गई गारंटीयों पर सवाल उठने शुरू हुये। क्योंकि खराब वित्तीय स्थिति में कोई भी व्यक्ति, संस्थान या सरकार अवांच्छित खर्च नहीं बढा़ते। सरकार ने वित्तीय कुप्रबंधन के लिये आज तक किसी को नोटिस तक जारी नहीं किया है। कांग्रेस द्वारा चुनावों में जारी किये गये आरोप पत्र पर कोई कारवाई नहीं हुई है।
इस समय बेरोजगारी प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। पिछले दिनों बिलासपुर में एक युवक द्वारा नौकरी न मिलने पर आत्महत्या कर लेने का मामला सामने आया है। प्रदेश में बेरोजगारों की संख्या युवा वोटरों की संख्या से बढ़ गयी है। सरकार आय के साधन बढ़ाने के लिए परोक्ष/अपरोक्ष में टैक्स लगाने के अतिरिक्त और कुछ सोच नहीं पा रही है। सरकार ने चार हजार करोड़ का राजस्व बढ़ाने के नाम पर बिजली उत्पादन कंपनियों पर जल उपकर लगाने के लिये विधेयक पारित किया और एक जल उपकर आयोग तक स्थापित कर लिया। लेकिन जैसे ही यह मामला उच्च न्यायालय पहुंचा तो अदालत ने जल उपकर अधिनियम को असंवैधानिक करार देकर निरस्त कर दिया। परन्तु सरकार ने इसी अधिनियम के तहत स्थापित हुये आयोग को भंग नहीं किया है। इससे सरकार की नीयत पर अनचाहे ही सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि सरकार ने अपना राजस्व बढ़ाने के लिये हर सेवा और वस्तु का शुल्क बढ़ाया है। परन्तु उसी अनुपात में अपने खर्चों पर लगाम नहीं लगाई है। सरकार एक तरफ राजस्व लोक अदालतें लगाकर लोगों को राजस्व मामलों में राहत देने का दावा कर रही है और दूसरी ओर इसी राजस्व में ई-फाइलिंग, ई-रजिस्ट्रेशन आदि करके हर सेवा पहले से कई गुना महंगी कर दी है।
इस समय व्यवहारिक रूप से आम आदमी को रोजगार से लेकर किसी भी अन्य मामले में भाषणों में घोषित हुई राहतें जमीन पर नहीं मिली है। इस समय चुनावों में उम्मीदवार तलाशने में लग रहे समय से ही यह सवाल उठ गया है कि जब लोकसभा चुनाव होने तो तय ही था तो इसके उम्मीदवारों के लिये इतना समय क्यों लगा दिया गया? क्या इससे यह संदेश नहीं गया कि सरकार और संगठन में सब सही नहीं चल रहा है। इस समय मुख्यमंत्री और उनके सहयोगी बागीयों पर बिकने का आरोप लगाकर उपचुनाव थोपने की जिम्मेदारी उन पर डाल रहे हैं। लेकिन जिस तरह से बागी मुख्यमंत्री के खिलाफ मानहानि के मामले डालकर उन्हें घेरने की रणनीति पर चल रहे हैं उससे सारी बाजी पलटने की संभावना प्रबल होती जा रही है। यह सवाल बड़ा होता जा रहा है कि इस विद्रोह का केंद्र हमीरपुर संसदीय क्षेत्र ही क्यों बना? आम आदमी यह मानने को तैयार नहीं है कि इतने बड़े विद्रोह कि कोई भी पूर्व सूचना सरकार को नहीं हो पायी? जबकि हाईकमान के संज्ञान में यह रोष बराबर रहा है। वरिष्ठ मंत्री चन्द्र कुमार ने जिस तरह से इस संकट के लिये मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को दोषी माना है वह एक और बड़े संकट की आहट माना जा रहा है। आने वाले दिनों में यदि कांग्रेस के संकट की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री पर आ गयी तो इसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे।

डीसी शिमला, सोलन और सिरमौर को लेकर भाजपा की शिकायत चुनाव आयोग में विचाराधीन

  • चुनाव अधिसूचना जारी होने तक फैसला आने की संभावना संदिग्ध
  • प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्य अभियंता प्रवीण गुप्ता के खिलाफ कारवाई से चुनाव कार्यालय का इन्कार

शिमला/शैल। चुनाव के दौरान में आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतें चुनाव आयोग में आना एक स्वभाविक प्रतिक्रिया है। चुनाव के दिनों में सारा प्रशासन कुछ अर्थों में चुनाव आयोग के नियंत्रण में चला जाता है। ताकि चुनाव आयोग प्रशासन की निष्पक्षता सुनिश्चित कर सके। इसीलिए फील्ड में तैनात प्रशासनिक अधिकारियों को लेकर यह आदेश किया जाता है कि जिन अधिकारियों की तैनाती एक स्थान पर तीन वर्ष से अधिक की हो गयी है उन्हें वहां से बदल दिया जाये। चुनाव अधिकारी उसी चुनाव क्षेत्र का मतदाता नहीं होना चाहिये यह भी शायद नियम है। यह भी देखा जाता है कि कौन सा अधिकारी अपनी तैनाती के कारण मतदाता को ज्यादा से ज्यादा प्रभावित कर सकता है। इस समय शिमला सोलन और सिरमौर में तैनात जिलाधीश संयोगवश शिमला लोकसभा क्षेत्र के ही मतदाता हैं। शिमला में तैनात एसपी भी इसी क्षेत्र से मतदाता है। यह मतदाता होने का संज्ञान लेकर प्रदेश भाजपा ने चुनाव आयोग से इनकी शिकायत करके उन्हें यहां से तुरन्त बदलने का आग्रह किया। यह शिकायत एक माह पहले की गई थी। लेकिन इस पर अब तक कोई कारवाई नहीं हो पायी है और न ही भाजपा की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है। जबकि जब यह शिकायत की गई थी तो इस शिकायत की प्रति प्रैस को भी जारी की गयी थी। इस शिकायत के बारे में जब मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यकाल से जानकारी मांगी गई तो बताया गया कि यह शिकायत चुनाव आयोग को भेजी गयी है और वहां विचाराधीन है। चुनाव अधिसूचना जारी होने तक इस बारे में कोई फैसला हो पायेगा या नहीं इसको लेकर मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय कुछ नहीं कह पाया। इसी तरह एक शिकायत चुनाव आयोग को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के बद्दी में तैनात मुख्य अभियंता प्रवीण गुप्ता को लेकर पहुंची थी। आरोप लगाया गया है कि यह अधिकारी लम्बे अरसे से इसी क्षेत्र में तैनात है और प्रभावशाली है। इस पर चुनाव आयोग ने प्रदेश मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय से रिपोर्ट मांगी थी। इस शिकायत पर निर्वाचन कार्यालय ने बताया कि प्रवीण गुप्ता चुनाव के किसी भी कार्य में संबद्ध नहीं है इसलिए उनको लेकर कोई कारवाई नहीं की गयी है।

विधानसभा टिकट आबंटन में अपने ही तर्क में उलझी कांग्रेस

  • चंद्र कुमार के वायर ब्यान ने बढ़ाई कांग्रेस की परेशानी
  • हमीरपुर और कांगड़ा में भाजपा के लिये वाकओवर जैसी स्थिति

शिमला/शैल। कांग्रेस अभी तक प्रदेश के दो लोकसभा क्षेत्रों और तीन विधानसभा क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों का चयन नहीं कर पायी है। इस चयन में हो रही देरी अब कांग्रेस की रणनीति के बजाये उसकी हताशा और भीतरी बिखराव करार दी जाने लगी है। क्योंकि हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से ही मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री आते हैं। हमीरपुर से मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी का नाम भी एक बार उम्मीदवार के रूप में चर्चा में आया और उन्होंने सेेरा विश्राम गृह में चार दिन का प्रवास करके लोगों से मिलकर इस संबंध में फीडबैक भी लिया। इस फीडबैक के बाद कमलेश ठाकुर के नाम की चर्चा वहीं पर रुक गयी। उसके बाद ऊना के पूर्व विधायक सतपाल रायजादा का नाम चर्चा में आया। रायजादा के नाम की चर्चा चल ही रही थी कि इसी बीच उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री और उनकी बेटी डॉ. आस्था अग्निहोत्री दोनों के नाम चर्चा में आ गये। दोनों को अलग-अलग ब्यान देकर इस संभावित उम्मीदवारी से इन्कार करना पड़ा। हमीरपुर सीट को लेकर यहां जो कुछ घटा उससे यही संदेश गया की हमीरपुर में कोई भी बड़ा नेता अनुराग ठाकुर को सही में चुनौती देने में समर्थ नहीं है। जबकि अनुराग ठाकुर राहुल गांधी के खिलाफ सबसे बड़े हमलावर हैं। अनुराग ठाकुर ने कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र को मुस्लिम लीग का घोषणा पत्र करार दिया है। लेकिन सुक्खू और उनका कोई भी मंत्री अनुराग को जवाब देने का साहस नहीं कर पाया। बल्कि कांग्रेस की हमीरपुर में ए और बी टीम चर्चा में आ गई। इससे अनचाहे या संदेश चला गया है कि कांग्रेस हमीरपुर में अनुराग ठाकुर को वाकओवर देना चाहती है।
कांगड़ा में रघुवीर बाली, आशा कुमारी, जगजीवन पाल, केवल सिंह पठानिया के नाम चर्चा में आये। रघुवीर बाली विधानसभा का चुनाव सबसे ज्यादा अंतर से जीते और मुख्यमंत्री के विश्वस्तों में गिने जाते हैं। इसलिए पर्यटन विभाग की जिम्मेदारी कैबिनेट रैंक में संभाल रहे हैं। लेकिन कांगड़ा से लोकसभा का उम्मीदवार होने के लिये वह भी तैयार नहीं हो पाये। इसके लिये राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम एक सार्वजनिक पत्र लिख बैठे। एक संभावित उम्मीदवार के इस तरह के पत्र के राजनीतिक मायने क्या होते हैं इस पर पार्टी में किसी की भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी। इसी बीच कांगड़ा से ही ताल्लुक रखने वाले ओबीसी के बड़े चेहरे और सबसे वरिष्ठ मंत्री चंद्र कुमार का एक ब्यान वायरल होकर बाहर आ गया। इस ब्यान में चंद्र कुमार ने पार्टी के मौजूदा संकट के लिये मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों को बराबर का जिम्मेदार ठहराया है। चुनाव के दौरान वायरल हुये इस ब्यान के राजनीतिक मायने समझे जा सकते हैं। क्योंकि कांग्रेस के बागी और भाजपा भी यही आरोप लगा रहे हैं कि मुख्यमंत्री अपने कुनबे को संभाल कर नहीं रख पाये हैं। इस पृष्ठभूमि में कांगड़ा से कोई सशक्त उम्मीदवार कैसे सामने आ पायेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
यही नहीं तीन विधानसभा क्षेत्रों के लिये कांग्रेस ने जिन उम्मीदवारों की घोषणा की है उन में गगरेट और सुजानपुर में उन लोगों को उम्मीदवार बनाया है जिन्होंने अभी भाजपा छोड़कर कांग्रेस का हाथ पकड़ा है। यदि भाजपा में गये कांग्रेस के बागियों को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है तो कांग्रेस ने भी भाजपा का ही अनुसरण किया। यदि भाजपा में इस पर बगावत हो सकती है तो उसी गणित में कांग्रेस में क्यों नहीं। कुटलैहड से विवेक शर्मा को शायद इसलिये उम्मीदवार बनाया गया कि पिछले चुनाव में भूट्टो के लिए प्रचार करने के बजाये उन्होंने पूरे चुनाव में मुख्यमंत्री के क्षेत्र नादौन में ही काम किया था और कुटलैहड में वोट डालने ही आये थे। इस तरह इन टिकटों के आबंटन में कांग्रेस अपने ही तर्क में खुद फंसकर रह गयी है। माना जा रहा है की बडसर, धर्मशाला और लाहौल स्पीति में इसलिये चयन कठिन हो रहा है कि संगठन से कोई चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हो रहा है।


क्या बाली का पत्र परोक्ष में बागियों के मुद्दों को समर्थन दे गया?

  • पहले स्व. जी.एस.बाली और अब आर.एस.बाली द्वारा रोजगार यात्राएं निकालने से प्रमाणित हो जाता है कि बेरोजगारी प्रदेश का बड़ा मुद्दा है
  • बेरोजगारी की ही बात राजेंद्र राणा और दूसरे बागी कर रहे थे
शिमला/शैल। कांग्रेस अभी तक कांगड़ा और हमीरपुर के लोकसभा क्षेत्र तथा छः विधानसभा उपचुनावों के लिये उम्मीदवारों का चयन नहीं कर पायी है। कांगड़ा से नगरोटा-बगवां के विधायक आर.एस.बाली का नाम भी संभावितों के रूप में मीडिया चर्चा में आया और इसी चर्चा को आधार बनाकर बाली ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम एक पत्र लिख दिया। यह पत्र भी मीडिया में चर्चा में आ गया। बाली ने इस पत्र में पार्टी के लिये उनके योगदान का उल्लेख करते हुये अपने स्व. पिता श्री जी.एस.बाली द्वारा 2012 में बेरोजगार यात्रा शुरू करने का जिक्र उठाया है। दावा किया है कि इसी रोजगार यात्रा से कांग्रेस की प्रदेश में सत्ता में वापसी हुई। इसी रोजगार यात्रा को उन्होंने भी शुरू किया दो माह में लम्बी यात्रा करने के बाद नगरोटा-बगवां में एक विशाल चुनावी रैली में इसका समापन हुआ। बाली ने दावा किया है कि जिन-जिन क्षेत्रों से होकर यह यात्रा गुजरी है वहां पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई है। बाली बेरोजगारी को प्रदेश में एक बड़ा मुद्दा मानते हैं। बाली के मुताबिक इसीलिए सुक्खू सरकार ने पांच लाख युवाओं को रोजगार देने का लक्ष्य रखा है। बाली ने अन्य विकास कार्यों के साथ अपने चुनाव क्षेत्र में पांच हजार युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाने का लक्ष्य रखा है। क्षेत्र के लोगों ने उन्हें भारी मतों से विजयी बनाकर विधायक बनाया है। इसलिये उनकी पहली प्राथमिकता विधानसभा चुनाव क्षेत्र है। उन्हें कोई और जिम्मेदारी सौंपने के लिये क्षेत्र के लोगों की पूर्व अनुमति लेना आवश्यक है। बाली के पत्र से स्पष्ट हो जाता है कि वह अपने तौर पर लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं है। एक विधायक के नाते बाली का यह पत्र लिखना एकदम जायज है।
बाली मानते हैं कि प्रदेश में बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। सुक्खू सरकार ने पांच लाख को रोजगार देने का लक्ष्य रखा है। बाली ने भी पांच हजार को अपने चुनाव क्षेत्र में रोजगार देने का वायदा किया है। बाली इस समय कैबिनेट रैंक में पर्यटन विभाग की जिम्मेदारी संभाले हुये हैं। मुख्यमंत्री के विश्वस्तों में गिने जाते हैं। लेकिन बाली यह नहीं बता पाये हैं कि सरकार के पन्द्रह माह के कार्यकाल में वह और सरकार कितना रोजगार दे पाये हैं। जिस बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर स्व. जी.एस.बाली और फिर आर.एस.बाली ने भी रोजगार यात्राएं निकाली तो उसी मुद्दे पर सुजानपुर के पूर्व विधायक राजेंद्र राणा का चिन्ता उठाना और मुख्यमंत्री से सवाल पूछना कैसे गलत हो सकता है। रोजगार को लेकर विधानसभा सूत्रों में जितने भी विधायकों द्वारा सवाल पूछे गये हैं उनके जो भी जवाब दिये गये हैं उससे स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश की जनता के सामने सच्चाई नहीं रखी जा रही है। शैल विधानसभा में आये प्रश्नों और उनके उत्तरों को पहले ही पाठकों के सामने रख चुका है।
बाली कांगड़ा से लोकसभा के उम्मीदवार बनते हैं या नहीं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन बाली द्वारा रोजगार के मुद्दे का जिक्र करना और अपने विधान सभा क्षेत्र को प्राथमिकता देना कांग्रेस के बागियों के मुद्दे को समर्थन देना बन जाता है। बाली के पत्र से यह स्पष्ट झलकता है कि वह लोकसभा लड़ने के लिये तैयार नहीं है। क्योंकि सरकार की कथित उपलब्धियां भाषणों में तो गिनाई जा सकती हैं परन्तु व्यवहार में नहीं।
                                                        यह है पत्र
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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