शिमला/शैल। छः असंतुष्ट नेताओं और तीन निर्दलीय विधायकों ने पहली बार एक साथ संयुक्त ब्यान जारी करके मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू पर जबरदस्त हमला बोला है। इन नेताओं राजेंद्र राणा, सुधीर शर्मा, इंद्र दत्त लखनपाल, रवि ठाकुर, देवेंद्र भुट्टो, चैतन्य शर्मा, होशियार सिंह, आशीष शर्मा और के.एल.ठाकुर ने कहा है कि मुख्यमंत्री को दूसरों पर कीचड़ उछालने से पहले अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए कि मौजूदा स्थिति के लिए असली गुनहगार कौन है और किसने यह स्थितियां पैदा की।
इन नेताओं ने कहा कि एक तरफ मुख्यमंत्री बार-बार उनसे किसी भी सूरत में समझौता कर लेने की एप्रोच कर रहे हैं और दूसरी तरफ नागों और भेड़ों से उनकी तुलना कर रहे हैं, जिससे उनकी मानसिक स्थिति का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों की भेड़ बकरियों से तुलना करना हिमाचल की गौरवपूर्ण संस्कृति के खिलाफ है। इन नेताओं ने कहा कि कोई भी व्यक्ति हर चीज से समझौता कर सकता है लेकिन स्वाभिमान से समझौता कतई नहीं कर सकता और वे स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रहे हैं।
इन नेताओं ने संयुक्त ब्यान में कटाक्ष करते हुये यह भी पूछा है कि अगर मुख्यमंत्री इतने ही पाक साफ हैं तो उन्हें प्रदेश की जनता को यह हकीकत भी बतानी चाहिये कि वह चंडीगढ़ के अपने आधिकारिक दौरे के दौरान हिमाचल भवन में बने सीएम सूट में रुकने की बजाये फाइव स्टार होटल में क्यों रुकते थे और सिक्योरिटी वालों को भी आगे पीछे क्यों कर देते थे। इसके पीछे मुख्यमंत्री का क्या एजेंडा और क्या राज रहता था। यह राज प्रदेश की जनता को भी मालूम होना चाहिए। परदे के पीछे वह क्या खेल खेलते थे, इसकी जानकारी जनता को देने का नैतिक साहस भी उन्हें दिखाना चाहिए।
इन नेताओं ने कहा कि सरकार विधायकों के समर्थन से चलती है लेकिन मुख्यमंत्री सुक्खू अपनी मित्र मंडली को तरजीह देकर चुने हुए विधायकों को पिछले सवा साल से जलील कर रहे थे। जिन लोगों ने विधानसभा क्षेत्र में चुनावों में हमारा खुलकर विरोध किया था, उन्हें मुख्यमंत्री अपने सरआंखों पर बिठाकर हमें हर पल नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें ओहदों से नवाजा जा रहा था। उनकी मित्र मंडली विधायकों के ऊपर हावी हो रही थी और मुख्यमंत्री से बार-बार इस बारे आग्रह भी किया गया था लेकिन वे तानाशाह की तरह रवैया अपनाए रहे। इन नेताओं ने कहा कि चुने हुये विधायक अगर जनता के काम नहीं करेंगे तो वह जनता के बीच कैसे जाएंगे।
इन नेताओं ने कहा कि प्रदेश की जनता यह भी भलीभांति जानती है कि ‘कैबिनेट रैंक प्राप्त मित्र’ इस सरकार में क्या गुल खिला रहे हैं और कितनी लूट मचा रखी है। साथ ही इन नेताओं ने मुख्यमंत्री से यह भी सवाल किया है कि प्रदेश में सरकार के गठन में उनके इन मित्रों का क्या योगदान है, यह भी जनता को बताया जाना चाहिए और जनता के खजाने से इन पर कितने पैसे लुटाये जा रहे हैं, यह हकीकत भी जनता के सामने रखनी चाहिए। इन नेताओं ने करारा तंज करते हुये कहा कि जनता के चुने हुए विधायकों को नजरअन्दाज करके मित्रों को खुली छूट देने, रेवड़ियों की तरह उन्हें कैबिनेट रैंक से नवाजने और विधायकों को जलील करने को ही क्या व्यवस्था परिवर्तन कहा जाता है?
उन्होंने कहा कि हिमाचल के स्वाभिमान से किसी भी सूरत में समझौता नहीं किया जा सकता और मुख्यमंत्री को प्रदेश की जनता को यह भी बताना होगा कि जो व्यक्ति हिमाचल प्रदेश के हितों के खिलाफ हमेशा लड़ता रहा हो, उसे पार्टी का टिकट देकर राज्यसभा में भेजने के पीछे क्या मंशा थी और क्या मजबूरी थी।
इन नेताओं ने कहा कि इस सरकार में जो लोग स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रहे हैं, उनमें से 9 तो खुलकर बाहर आ गये हैं लेकिन कुछ तो मंत्री और विधायक होने के बावजूद सुक्खू की सरकार में घुटन महसूस कर रहे हैं। व्यवस्था परिवर्तन वाली इस सरकार में स्थिति ऐसी हो गयी ही है कि मंत्रिमंडल की बैठकों से भी मंत्री रोते हुये बाहर आ रहे हैं। इसके पीछे उनकी क्या मजबूरी है, यह वही बेहतर बता सकते हैं।
इन नेताओं ने कहा कि अपने भाषणों में आरोप लगाने से सच्चाई छुपने वाली नहीं है और मुख्यमंत्री को प्रदेश की जनता को यह भी साफ-साफ बताना चाहिये कि ऐसी परिस्थितियां पैदा होने के पीछे असली गुनहगार मुख्यमंत्री खुद हैं या हाईकमान है या कोई और है।
इन नेताओं ने कहा कि पूरे देश में कांग्रेस ताश के पत्तों की तरह बिखर रही है लेकिन रस्सी जल गयी पर बल नहीं गया वाली कहावत भी कांग्रेस नेतृत्व पर ही चरितार्थ होती है।
शिमला/शैल। राज्यसभा में हारने के बाद सरकार सदन के पटल पर गिरने के कगार पर पहुंच गयी थी। इसलिये 27 फरवरी को राज्यसभा चुनाव के बाद बजट का पारण 29 तारीख को होना था और 28 फरवरी को कटौती प्रस्तावों के दौरान सरकार गिरने की संभावना बलवती हो गयी थी। इससे बचने के लिये 28 फरवरी को भाजपा के 15 विधायकों को निलंबित करके उसी दिन बजट पास करवाकर सत्रावसान कर दिया गया। इसी के साथ 28 फरवरी को ही कांग्रेस के छः बागियों की दल बदल कानून के तहत सदन से सदस्यता समाप्त कर दी गयी। ऐसा करने से कांग्रेस की संख्या 34 रह गयी और विधानसभा की सीटें भी 62 रह गयी। ऐसे में 62 के सदन में जहां कांग्रेस की संख्या 34 रह गयी वहीं पर भाजपा के पास 25 और 3 निर्दलीयों के साथ सरकार के विरोधियों की संख्या 28 हो गयी। ऐसे में न्यायालय में कांग्रेस के छः निष्कासितों को राहत मिल जाती है तो फिर 68 के सदन में कांग्रेस और विरोधी 34-34 पर पहुंच जाते हैं। लेकिन सरकार चलाने के लिए 35 का आंकड़ा चाहिये। इस गणित में कांग्रेस अल्पमत में आ जाती है।
इस स्थिति से बचने के लिये अब भाजपा के भी सात विधायकों को विशेषाधिकार हनन के तहत नोटिस जारी करके उनकी भी सदस्यता रद्द करने की चाल चल दी गयी है। इसी के साथ फील्ड में कांग्रेस के बागियों और तीन निर्दलीयों को खिलाफ रोष प्रदर्शन उनके होर्डिंग पर कालिख पोतने आदि की गतिविधियां शुरू हो गयी हैं। भाजपा अध्यक्ष डॉ. बिंदल ने तो यहां तक आरोप लगाया है इन नौ विधायकों के खिलाफ पुलिस और प्रशासन का डंडा चलाने का काम शुरू हो गया है। उनके घरों पर छापे मारना उनके बिजनेस आउटलेट्स पर छापे मारने का काम शुरू हो गया है। उनके घरों के रास्ते रोकना उनको डराना धमकाना उनसे जुड़े लोगों पर कारवाइयां करके प्रदेश में भय का वातावरण पैदा किया जा रहा है। बिंदल और जयराम ने इसकी घोर निंदा करके सरकार पर आरोप लगाया है कि सुक्खू सरकार अल्पमत में आने के कारण इस तरह के हथकण्डों पर उतर आयी है। भाजपा नेताओं ने स्पष्ट कहा है कि यह सब सहन नहीं किया जायेगा।
विश्लेषको के मुतबिक जो कुछ प्रदेश में घट रहा है ऐसा कभी नहीं हुआ है। यदि यह स्थिति ऐसे ही बढ़ती रही तो इसका अंतिम परिणाम राष्ट्रपति शासन ही होगा। क्योंकि जिस तरह से विधानसभा अध्यक्षों का आचरण विभिन्न राज्यों में सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच चुका है तो हिमाचल को भी उसी गिनती में शामिल होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
शिमला/शैल। हिमाचल का राजनीतिक संकट कांग्रेस प्रत्याशी की राज्यसभा चुनाव में हार से शुरू हुआ है। इस हार के बाद यह सवाल जबाव मांग रहा है कि इसके लिये जिम्मेदार कौन है। स्मरणीय है कि जब सुक्खू प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे और स्व.वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री थे कांग्रेस पार्टी कुछ चुनाव हार गयी थी। उस हार पर बतौर पार्टी अध्यक्ष सुक्खू ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुये इसके लिये सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया था। सुक्खू का यह ब्यान वायरल होकर सामने आ चुका है। तब भी सरकार और संगठन में आज ही की तरह मतभेद थे। इसलिये चुनावी हार के लिये पहली जिम्मेदारी सरकार की ही रहती है। वर्तमान संकट के लिये भी पहली जम्मेदारी मुख्यमंत्री की ही बनती है। क्योंकि सरकार के कार्यों का ही प्रतिफल चुनावी हार जीत होता है। सुक्खू सरकार के गठन से लेकर आज तक के सरकार के कार्यों, फैसलों और योजनाओं का आकलन किया जाये तो सरकार के पक्ष में कुछ नहीं जाता। आगामी लोकसभा चुनाव के लिये हाईकमान द्वारा करवाये गये सर्वेक्षण में भी यही सामने आया था कि पार्टी चारों लोकसभा सीटें हार रही है। सरकार और संगठन में मतभेद मंत्रिमण्डल में क्षेत्रीय असन्तुलन तथा वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का सरकार में समायोजन न होने की शिकायतें लगातार हाईकमान के पास पहुंचती रही लेकिन न तो हाईकमान ने इसका गंभीर संज्ञान लिया और न ही मुख्यमंत्री ने। मुख्यमंत्री अपने मित्रों की ही ताजपोशीयों में लगे रहे और जमीनी हकीकत से दूर होते चले गये।
राजनीतिक स्थितियों का समय-समय पर आकलन करना सरकार में सीआईडी का काम होता है। सरकार के बाहर यह काम मीडिया का होता है। उसमें सरकार का सूचना एवं जनसंपर्क विभाग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह विभाग प्रिंट और न्यूज़ चैनलों तथा सोशल मीडिया रिपोर्टों का आकलन करके उसे सरकार के पास रखता है। लेकिन सुक्खू सरकार ने उन पत्रकारों को अपना दुश्मन मान लिया जो पूरे दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ लिख रहे थे। व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर चाटुकारों से घिर कर रह गये और आज सरकार जाने के कगार पर पहुंच गयी। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से चार कांग्रेस के विधायक और एक निर्दलीय भाजपा के पक्ष में वोट डाल गये और सरकार के तन्त्र को इसकी पूर्ण जानकारी ही नहीं हो पायी। शैल ने इस क्रॉसवोटिंग के बारे में समय रहते लिख दिया था। ऐसे में इस हार के लिये मुख्यमंत्री के एक दर्जन से ज्यादा सलाहकार और सरकारी तन्त्र ही जिम्मेदार है। आज तो चर्चा यहां तक पहुंच गयी है कि या तो इन लोगों की निष्ठाएं संदिग्ध हैं या फिर इनमें योग्यता की कमी है। अन्यथा यह संकट इतना बड़ा नहीं था और न ही है जिसका हल न निकल सके।
इस समय सरकार टूटने के कगार पर पहुंच चुकी है। छः विधायकों के निष्कासन ने इस पर मोहर लगा दी है। क्योंकि यदि निष्कासन का फैसला अदालत में पलट जाता है तो यह बागियों की पहली जीत है और उसके बाद नेतृत्व परिवर्तन का सवाल और गंभीर हो जायेगा। अन्यथा इन निष्कासितों की सीटों पर लोकसभा चुनाव के साथ चुनाव हो जायेंगे। इन चुनावों में कांग्रेस फिर यह छः सीटें जीत जायेगी इसकी वर्तमान परिदृश्य में कोई भी संभावना नही है। यह सीटें भाजपा के पक्ष में जायेंगी और फिर दोनों साईड 34-34 की स्थिति होगी। जबकि सरकार बनाने के लिये 35 की संख्या चाहिये। इसमें स्पीकर को मतदान का अधिकार नहीं होता। उस स्थिति में कांग्रेस की संख्या 33 ही रह जायेगी और तब भी सुक्खू सरकार सत्ता में नही रह पायेगी।