Friday, 19 September 2025
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क्या किसानों को फिर आन्दोलन करना पड़ेगा

शिमला/शैल। संविधान दिवस के अवसर पर किसानों ने फिर सरकार के खिलाफ धरने देकर विरोध प्रदर्शन किया है और महामहिम राष्ट्रपति को प्रशासन के माध्यम से देश भर में ज्ञापन सौंपा है। इस विरोध और ज्ञापन के माध्यम से सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया गया है। स्मरणीय है कि जब केन्द्र सरकार ने कोविड काल में तीन कृषि कानून पारित किये और उन्हें लागू करने का प्रयास किया था तब इन कानूनों के खिलाफ देशभर में रोष फूट पड़ा था। कानून वापस लेने की मांग पूरे देश में उठ गयी थी। किसानों को आन्दोलन का रास्ता अपनाना पड़ा था। आजाद भारत का यह सबसे बड़ा आन्दोलन रहा है जो एक वर्ष से भी ज्यादा समय तक चला। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इस आन्दोलन पर प्रतिक्रियाएं उभरी हैं। इस आन्दोलन को असफल बनाने के लिए सरकार किस हद तक चली गई थी आज इसे दोहराने की जरूरत नहीं है क्योंकि पूरे देश में वह सब कुछ देखा है। संसद से लेकर सर्वाेच्च न्यायालय तक आन्दोलन की आहट पहुंची है।
इसी परिदृश्य में 9 दिसंबर 2021 को सरकार की ओर से संयुक्त किसान मोर्चा के नाम आये पत्र के आधार पर 11 दिसंबर 2021 को इस आंदोलन को रोक दिया गया। किसानों ने अपने धरने प्रदर्शन उठा लिये। सरकार ने किसानों की मांगे स्वीकार करने का लिखित आश्वासन दिया। लेकिन इस आश्वासन के बाद एक वर्ष से भी अधिक का समय बीत जाने पर भी मांगो की दिशा में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया है। बल्कि सरकार की नीयत पर फिर से सन्देह के बादल छाने लगे हैं। सरकार की नीयत को भांपते हुये किसानों ने संविधान दिवस पर यह ज्ञापन राष्ट्रपति को सौंपा है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में सौंपे गये ज्ञापन को यथास्थिति पाठकों के सामने रखा जा रहा है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

क्या भाजपा कांग्रेस के अन्दर तोड़फोड़ की योजना बना रही है

शिमला/शैल। कांग्रेस प्रदेश में अगली सरकार बनाने जा रही है यह मानना है राजनीतिक विश्लेषकों का।  बल्कि पत्रकारों का वह वर्ग भी ऐसा ही मान रहा है जो मतदान से पहले तक यह लिख रहा था कि भाजपा इस बार जीत का नया रिकॉर्ड स्थापित करेगी। कांग्रेस संगठन और साधनों के स्तर पर भाजपा से जिस कदर कमजोर थी प्रदेश की जनता ने उसी को सामने रखकर कांग्रेस को इतना समर्थन दिया है कि भाजपा का कोई भी प्रयास कांग्रेस को तोड़ नहीं पायेगा। विश्लेषकों की नजर में यह मतदान भाजपा के जुमलों पर उभरे जनाक्रोश पर जनता का कांग्रेस के प्रति एकतरफा समर्थन रहा है। यदि आप या निर्दलीय प्रदेश में एक दो सीट निकाल पाये तो शायद भाजपा को दहाई का आंकड़ा छूना भी कठिन हो जायेगा। लेकिन इसी सबके साथ एक कड़वा सच यह भी है कि भाजपा की केन्द्र में ही सरकार है और 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। इन चुनाव में हिमाचल और गुजरात दोनों जगह भाजपा का चुनाव प्रचार केन्द्रीय नेतृत्व पर केंद्रित हो गया है। उससे इन चुनावों में सीधे प्रधानमन्त्री की अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लग गयी है। गुजरात में प्रधानमन्त्री ने जिस तरह से वहां की जनता के सामने यह रखा कि विपक्ष मेरी औकात को चुनौती दे रहा है उससे यह प्रमाणित होता है कि यह चुनाव प्रधानमन्त्री केन्द्रित हो गया है। गुजरात में जिस तरह से प्रधानमन्त्री और योगी आदित्यनाथ की जनसभाओं में कुर्सियां खाली रहने के वीडियो सामने आ चुके हैं उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वहा भी स्थिति ज्यादा सुखद नहीं है। गुजरात को लेकर यह टिप्पणी हिमाचल के लिये एक स्पष्ट चेतावनी बन जाती है। क्योंकि भाजपा के लिये हिमाचल हारने के मायने बहुत गंभीर हो जाते हैं और कांग्रेस के अंदर किसी भी तरह से तोड़फोड़ करने के अलावा और कोई विकल्प भाजपा के पास नहीं रह जाता है।
इस परिपेक्ष में यदि चुनाव घोषित होने से पहले के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डाली जाये तो मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर के इन बयानों से कि कांग्रेस चुनाव लड़ने लायक ही नहीं बचेगी। भाजपा अपने आरोप पत्र को सीबीआई को भेज देगी। इन्हीं बयानों के बीच कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह का यह ट्वीट आया था कि सीबीआई का स्वागत है। उस समय कांग्रेस के कई नेताओं के नाम मीडिया में उछले थे कि यह लोग भाजपा में जा सकते हैं। पवन काजल और लखविंदर राणा तभी भाजपा में चले गए थे। उसके बाद हर्ष महाजन और मनकोटिया के जाने के कयास और पुख्ता होते जा रहे थे। यदि उस समय विधायक अनिरुद्ध सिंह ने सीधे मुख्यमन्त्री कार्यालय पर ही हमला न बोला होता तो स्थितियां उस समय भी बिगड़ने के कगार पर पहुंच चुकी थी।
लेकिन इसके बाद टिकट आवंटन पर जो स्थितियां दोनों दलों के भीतर उभरी उनमें यह भी चर्चा में आ गया है कि भाजपा ने कांग्रेस के कुछ कमजोर उम्मीदवारों की आर्थिक सहायता की है। कुछ स्थानों पर भाजपा उम्मीदवारों के खिलाफ ही कांग्रेसियों की मदद की गयी है। अभी जिस तरह से मीडिया के कुछ प्रमुख लोगों के साथ मुख्यमन्त्री की बैठक के होने की चर्चा है उसमें सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के अन्दर जीतने के बाद कैसे तोड़फोड़ को अंजाम दिया जा सकता है उसके लिए एक उपयुक्त पृष्ठभूमि तैयार करने की योजना बनाई जा रही है। इस योजना के तहत कांग्रेस के अन्दर मुख्यमन्त्री पद के दावेदारों की लम्बी सूची जन चर्चा में डालने का प्रयास किया जायेगा। ताकि इस पद के दावेदारों की महत्वकांक्षाओं को इतना उभार दे दिया जाये कि स्थितियां मतभेदों से चलकर मनभेदों की स्थिति तक पहुंच जाये। कुछ लोगों के खिलाफ ई.डी.या आयकर की नौबत लाने के लिए पुराने आरोप पत्रों को खंगाला जा रहा है। चर्चा है कि हर्ष महाजन तोड़फोड़ का मास्टर प्लान तैयार करने की योजना पर लग गये हैं। भाजपा की यह योजना कितनी कारगर साबित होती है यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद पता चलेगा। लेकिन इसका पूर्व आकलन कांग्रेस को भविष्य के प्रति सजग और सचेत रहने का एहसास अवश्य करवाता है। क्योंकि केन्द्रिय एजेंसियों के सहारे भाजपा कई राज्यों में सरकारें तोड़ने का प्रयास कर चुकी है।
आज यह चर्चा उठाना इसलिये प्रसांगिक हो जाती है कि पिछले दिनों कांग्रेस के कई नेता दिल्ली में केन्द्रिय नेताओं से मिलने आ चुके हैं। कई तो कुछ संभावित विधायकों को लेकर दिल्ली यात्रा कर चुके हैं। दिल्ली जाने वाले सभी वरिष्ठ नेताओं को संभावित मुख्यमन्त्री का चेहरा करार दिया गया है। यही संभावना आपसी मतभेदों का आधार न बन जाये यह आशंका बराबर बनी हुई है। शायद इसी आशंका के चलते सोनिया गांधी ने कुछ नेताओं को मिलने का समय नहीं दिया है। बल्कि यह सामने आया है कि हाईकमान ने कुछ मानक तय किये हैं जो मुख्यमन्त्री होने के लिये कसौटी बनेंगे। यह सही है कि प्रदेश अध्यक्ष से लेकर नेता प्रतिपक्ष और प्रचार कमेटी के चेयरमैन तक सभी नेता इसके पात्र हैं लेकिन फिर भी यह फैसला विधायकों की आम राय से ही होना चाहिए।

कौन होगा कांग्रेस में मुख्यमंत्री अटकलों का बाजार हुआ गर्म

क्या नेतृत्व की रेस में अहम टकरायेगे?

क्या वरियता को अधिमान मिलेगा?

शिमला/शैल। कौन होगा कांग्रेस में अगला मुख्यमंत्री प्रशासनिक गलियारों से लेकर राजनीतिक दलों के कार्यालयों तक में यह सवाल इन दिनों सबसे अधिक अटकलों का केन्द्र बना हुआ है। क्योंकि प्रशासन के शीर्ष पर बैठे जिन अधिकारियों के पास दिन में दो-दो बार फील्ड से फीडबैक आता है उनके एक बड़े वर्ग ने कांग्रेस के सम्भावित मुख्यमन्त्रीयों के यहां दस्तक देना शुरू कर दिया है। चर्चा है कि जयराम सरकार में जिस अधिकारी ने मुख्य सचिव के पद तक सात अधिकारियों को पहुंचा कर प्रशासनिक स्थिरता की बलि ले ली और मुख्यमन्त्री को इस बारे में सचेत तक होने का अवसर नहीं दिया उसी अधिकारी ने अपने पयादो के साथ यह खेल खेलना शुरू कर दिया है। चर्चा तो यहां तक है कि इनकी हाजिरी का प्रमाण किसी ने फोटो के साथ जयराम को भी भेज दिया। यह फोटो देखकर जयराम ठाकुर की प्रतिक्रिया क्या रही होगी इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। यह एक स्थापित सच है कि जब जहाज डूबने लगता है तो सबसे पहले चूहे उसे छोड़ कर भागना शुरू करते हैं। सत्ता परिवर्तन के यह अच्छे संकेत हैं। लेकिन इन्हीं संकेतों का दूसरा पक्ष उतना ही गंभीर है। क्योंकि भाजपा में इन चुनावों के लिए जयराम से ज्यादा प्रधानमन्त्री, गृह मन्त्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सभी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठाएं दांव पर लगी हुई है। गैर भाजपा शासित कितने राज्यों में ऑपरेशन लोटस चलाकर सरकारें गिराने के प्रयास हो चुके हैं यह पूरा देश जानता है। ऐसे में जहां अभी चुनाव चल रहे हैं उन राज्यों में सत्ता के लिए भाजपा किसी भी हद तक जाने का प्रयास कर सकती हैं इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मतदान और मतगणना के बीच रखा गया लम्बा अन्तराल कई आशंकाओं की ओर संकेत करता है। रामपुर और घुमारवीं में ईवीएम मशीनों को लेकर सामने आई आशंकाओं को यदि कांग्रेस का आधारहीन डर भी मान लिया जाये तो उना में चुनाव आयोग को इन मशीनों की पहरेदारी के लिए स्वयं टैन्ट लगाकर क्यों बैठना पड़ा यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब शायद चुनाव आयोग के पास भी नहीं है।
इस परिदृश्य में जब कांग्रेस के अंदर यह सवाल उठा ही दिया गया है कि उसका मुख्यमन्त्री कौन होगा तब यह भी साथ ही याद रखना होगा कि नेतृत्व का यह सवाल स्वयं प्रधानमन्त्री तक कांग्रेस पर दाग चुके हैं। उससे यह संकेत स्पष्टतः उभरते हैं कि आने वाले दिनों में नेतृत्व के प्रशन को आन्तरिक विरोधाभासों को उभारने का एक बड़ा माध्यम बनाया जाएगा। क्योंकि अभी प्रदेश कांग्रेस में स्थापित नेतृत्व उभरने में समय लगेगा। वर्तमान में कांग्रेस के अन्दर अभी ऐसा कोई बड़ा नाम नहीं है जो अपने चुनाव क्षेत्र से बाहर भी अपना वोट किसी के पक्ष में ट्रांसफर करने की बूकत रखता हो। विश्लेषकों की नजर में इसी के कारण कांग्रेस के दो विधायक और दो कार्यकारी अध्यक्ष पार्टी छोड़कर भाजपा में गये हैं। इसी के साथ एक सच यह भी है कि कांग्रेस को उपचुनाव से लेकर इन आम चुनाव तक स्व. वीरभद्र सिंह के प्रति जनता के प्यार और सहानुभूति का भरपूर लाभ मिला है। प्रतिभा सिंह को इन परिस्थितियों में पार्टी का अध्यक्ष बनाना भी एक सही फैसला रहा है। क्योंकि प्रतिभा सिंह के कारण ही वीरभद्र सिंह के विश्वस्त रहे सेवानिवृत्त अधिकारियों और दूसरे लोगों ने चुनाव के दौरान पार्टी कार्यालय को संभाल लिया। कांग्रेस जो आरोप पत्र नहीं ला पायी थी उसे इन्हीं लोगों ने चुनाव प्रचार के दौरान जनता तक पहुंचाया। भाजपा शायद यह मानकर चल रही थी कि जब उसने नेता प्रतिपक्ष और चुनाव कैंपेन कमेटी के चेयरमैन को प्रधानमन्त्री और गृहमन्त्री की रैलियां रखवाकर उनके चुनाव क्षेत्रों में ही बांध कर रख दिया तो इसका सीधा असर कांग्रेस कार्यालय पर पड़ेगा। लेकिन वीरभद्र के विश्वस्त रहे इन अधिकारियों ने संगठन के पदाधिकारी हुए बिना ही कार्यालय को संभाल कर भाजपा की रणनीति पर ग्रहण लगा दिया। इसी प्रबन्धन के दम पर प्रतिभा सिंह पैंतालीस और विक्रमादित्य, मुकेश और सुक्खु दस-ग्यारह रैलियां विभिन्न क्षेत्रों में कर पाये।
यह सही है कि भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का संगठन बहुत कमजोर था। धनबल में भी कांग्रेस भाजपा के बराबर नहीं थी। लेकिन जनता जिस कदर महंगाई और बेरोजगारी से पीड़ित थी उसके चलते जनता सत्ता परिवर्तन के लिए मन बना चुकी थी। ऐसे में कांग्रेस को जनसमर्थन मिलने जा रहा है वह जनता का रोष पोषित विश्वास है। इस विश्वास को यदि कोई भी मुख्यमन्त्री होने के अहम में कमजोर करने का प्रयास करेगा उसे जनता बर्दाशत नहीं करेगी। स्व. वीरभद्र के प्रति जनता की सहानुभूति का लाभ अब के बाद नहीं मिलेगा। ऐसे में यदि विधायकों के बहुमत को नजरअंदाज करके मुख्यमन्त्री थोपने का प्रयास किया जायेगा तो उसके परिणाम घातक होंगे। क्योंकि कांग्रेस के पास अनुभवी विधायकों की लम्बी लाइन उपलब्ध रहेगी ऐसा माना जा रहा है।

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