क्या दूसरे दलों में तोड़ फोड़ से ही हो जायेगी सत्ता में वापसी
धूमल समर्थकों की नाराजगी का क्या होगा परिणाम
शिमला/शैल।क्या भाजपा कांग्रेस और दूसरे राजनीतिक दलों में तोड़फोड़ करके ही सत्ता में वापसी कर पायेगी? क्या मुख्यमंत्री द्वारा चुनावों से पहले हर विधानसभा क्षेत्र में की जा रही करोड़ों की घोषणाओं से ही जनता प्रभावित हो जायेगी? ऐसे कई सवाल हैं जो इस समय चर्चा और आकलन का विषय बनते जा रहे हैं क्योंकि प्रदेश के सबसे बड़े जिले कांगड़ा में देहरा से निर्दलीय विधायक होशियार सिंह और कांगड़ा से कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष विधायक पवन काजल को भाजपा में शामिल करवा दिया। इन दोनों के शामिल होने के बाद यह सामने आया है कि इतने बड़े राजनीतिक फैसले से पहले न तो वहां के मण्डलों से और न ही जिला संगठन को इस बारे में विश्वास में लिया गया। उल्टे यह सामने आया कि यह धूमल खेमे को हाशिये पर धकेलने का एक सुनियोजित प्रयास है। इससे पूर्व मंत्री रविन्द्र रवि जो देहरा से सीधे प्रभावित हो रहे थे उनकी नाराजगी एकदम बाहर आ गयी। वह किस्सा फिर एक राजनीतिक मुद्दा बनकर चर्चा का विषय बन गया जो वक्त के साथ शान्त हो चुका था। स्वास्थ्य विभाग की वर्किंग को लेकर जो खुला पत्र किसी कार्यकर्ता ने पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार के नाम लिखा था उसमें उठाये मुद्दों की जांच करने की बजाय उस पत्र के लेखक को खोजने में सरकार की एजैन्सियां व्यस्त हो गयी। यह तलाश रविन्द्र रवि के खिलाफ मामला दर्ज करने तथा उनका मोबाइल जब्त करने के साथ रुकी। लेकिन यह जांच इस पड़ाव से आज तक आगे नहीं बढ़ी है। अदालत में चालान कब दायर होगा यह शायद जांच एजैन्सी को भी पता नहीं है। लेकिन इस प्रकरण से जो राजनीतिक ज्वाला सुलगी है वह राजनीतिक हवा के हर झोंके से तेज होती जा रही है। रविन्द्र रवि की नाराजगी खुलकर सामने आ गयी है। रवि के इन सारे प्रयासों को उनके राजनीतिक वजूद को खत्म करने का षडयन्त्र करार दिया है। रविन्द्र रवि के साथ ही जोगिन्दर नगर के पूर्व मंत्री गुलाब सिंह निर्दलीय विधायक प्रकाश राणा के भाजपा में आने से प्रभावित हुये हैं। इन प्रयासों को धूमल को राजनीतिक नुकसान पहुंचाने के षडयन्त्र के रूप में देखा जा रहा है। इससे धूमल समर्थकों में नाराजगी होना स्वभाविक है। इसी नाराजगी का परिणाम है कि सुजानपुर में राज्यसभा सांसद इन्दु गोस्वामी धूमल को भारी बहुमत से विजयी बनाने की अपील कर गयी। हमीरपुर में बाकायदा पत्रकार वार्ता में दर्जी भाई ने यह ऐलान कर दिया है कि यदि धूमल को पार्टी हमीरपुर से चुनाव नहीं लड़वाती है तो वह हर हालत में निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। इस प्रकरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि धूमल समर्थकों का रोष इस बार चुनावों में पार्टी पर भारी पड़ेगा। कांगड़ा में पवन काजल के आने का स्वागत नहीं हुआ है। इसका सीधा प्रभाव धर्मशाला सीट पर भी पड़ रहा है। धर्मशाला में मौजूदा विधायक का टिकट काटे जाने की चर्चाओं के बीच संघ भाजपा के आधा दर्जन से ज्यादा उम्मीदवार टिकट की दौड़ में सामने आ गये हैं। इसी के साथ ग्रामीण विकास विभाग द्वारा पूरे जिले का बजट केवल सुलह विधानसभा क्षेत्र में ही दे दिया गया जाना भी अब चर्चा का विषय बनता जा रहा है इसी परिपेक्ष में आज मुख्यमंत्री द्वारा की जा रही चुनाव पूर्ण घोषणाओं पर भी सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि 31 मार्च 2019 को आयी कैग रिपोर्ट में सरकार को नये पूंजीगत कार्यों की अनुमति पर सीलिंग लगाने का निर्देश दिया गया था। यह निर्देश 14वें वित्त आयोग की सिफारिश पर दिये गये थे। कैग रिपोर्ट में कहा है कि (i) To Provide for the statutory flexible limits on fiscal deficit. (ii) To Provide a statutory ceiling on the sanction of new capital works to an appropriate multiple of the annual budget provision.
लेकिन इन निर्देशों के अनुपालन में 2019-20 में शिक्षा के बजट में 1.39% की कटौती कर दी गयी और प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना में लोकसभा चुनाव के परिदृश्य में सितम्बर 2019 तक 2541.43 करोड़ के ऋण बांट दिये गये। 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण में इसे सरकार की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में दिखाया गया है। सभी बैंक शाखाओं को यह ऋण देने के निर्देश दिये गये थे। लेकिन इस ऋण सुविधा का कितने लाभार्थियों ने सही उपयोग किया है इसमें से कितना ऋण अब तक वापस आ गया है इसकी कोई सूची अब तक जारी नहीं हो पायी है। क्या यह जनता के पैसे का सही उपयोग है यह सवाल उठना शुरू हो गया है।
यह है आर्थिक सर्वेक्षण में दर्ज उपलब्धि
पहले आनन्द फिर रामलाल ठाकुर और अब प्रतिभा सिंह के ब्यानों से उठी चर्चा
शिमला/शैल। पिछले कुछ अरसे से प्रदेश कांग्रेस के कुछ बड़े नेता भाजपा और जयराम सरकार पर हमलावर होने के बजाये अपने संगठन पर ही ज्यादा हमलावर होते नजर आ रहे हैं। यह सिलसिला बड़े नेता आनन्द शर्मा से शुरू होकर रामलाल ठाकुर से होते हुए प्रदेश अध्यक्ष सांसद प्रतिभा सिंह तक पहुंच गया है। आनन्द शर्मा ने चुनाव कमेटी की अध्यक्षता से यह कहकर त्यागपत्र दे दिया कि उन्हें उचित मान सम्मान नहीं दिया जा रहा है। इस आश्य का पत्र सीधे सोनिया गांधी को भेजा दिया। लेकिन आनन्द के त्यागपत्र पर संगठन में कोई बड़ी हलचल नहीं हुई क्योंकि वह बहुत पहले ही जी-23 समूह के बड़े नेता के रूप में चिन्हित हो चुके थे। आनन्द के बाद रामलाल ठाकुर ने पार्टी के उपाध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। यह त्यागपत्र देते हुए जो सवाल उन्होंने अब सार्वजनिक रूप से संगठन पर उठाये हैं उन पर वह अब तक चुप क्यों थे। जब अपराधिक छवि के लोग संगठन में महत्वपूर्ण होते जा रहे थे तब वह खामोश क्यों थे। क्योंकि अब जब उन्हीं के उठाये हुये प्रश्न उन्हीं से पूछे जाएंगे तब क्या उत्तर देंगे? यह सवाल उठने के बाद भी वह किस नैतिकता से संगठन में बने हुए हैं इसका जवाब शायद वह न दे पायें। क्योंकि गलत समय पर यह सवाल उठाये गये हैं। जबकि इसी दौरान जब कार्यकारी अध्यक्ष पवन काजल और विधायक लखविंदर राणा पार्टी छोड़ कर गये थे तब यह सवाल पार्टी के भीतर उठाने का एक अच्छा अवसर था। इस समय सार्वजनिक रूप से यह सवाल उठाना संगठन को मजबूत करने की बजाये कमजोर करने का ज्यादा प्रयास माना जायेगा।
लेकिन अब जो साक्षातकार दी प्रिंट में प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह का सामने आया है उससे प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में एक तरह से भूचाल की स्थिति खड़ी कर दी है। क्योंकि इस साक्षातकार के सामने आने के बाद प्रतिभा सिंह ने जो खण्डन जारी किया है उसके प्रत्युत्तर में दी प्रिंट ने पूरी स्क्रिप्ट का यूटयूब पर वीडियो जारी कर दिया हैै जिसे लाखों लोगों ने देख लिया है। इस साक्षातकार के सामने आने से यह सन्देह बन जाता है कि या तो प्रतिभा सिंह आज के राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य का सही में आकलन ही नहीं कर पायी है या फिर वह किसी राजनीतिक डर के साये में चल रही है। क्योंकि पिछले दिनों जब विक्रमादित्य सिंह ने सीबीआई को लेकर ट्वीट किया था उस समय यह सन्देश उभरा था कि आने वाले दिनों में हिमाचल में केंद्रीय जांच एजैन्सियों का दखल देखने को मिल सकता हैै। अब जब ऊना में रेत खनन माफिया के खिलाफ ईडी ने छापेमारी को अंजाम दिया है उससे यह आशंका का एकदम सही ठहरती है। क्योंकि ऊना में अवैध खनन का मामला शीर्ष अदालत तक पहुंचा हुआ है। इस पर अदालती जांच तक हो चुकी है। लेकिन उस समय ईडी ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। संभव है कि अब चुनावी वक्त में इस छापेमारी की आंच कुछ राजनेताओं तक भी पहुंचे। ऐसे में राजनेताओं को इस तरह की स्थिति के लिये हर समय तैयार रहना होगा। लेकिन जिस तरह के ब्यान वरिष्ठ नेताओं के आने शुरू हो गये हैं उससे बहुत सारे सवाल उठने शुरू हो गये हैं।
इस सरकार के खिलाफ पूरे कार्यकाल में सदन के बाहर कोई बड़ी आक्रमकता देखने को नहीं मिली है। सरकार पर सवाल उठाने के बजाय कांग्रेस के नेता अपने अध्यक्ष बदलने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करते रहे हैं। सदन में तो चर्चा रही कि यह सरकार सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाली सरकार के रूप में जानी जायेगी। लेकिन इस चर्चा को आम आदमी तक पहुंचाने के लिये कोई काम नहीं किया गया। आज चुनाव के वक्त तक जो संगठन सरकार के खिलाफ कोई आरोप पत्र न ला पाये उसकी नीयत के बारे में आम आदमी में सवाल उठने स्वाभाविक हैं। क्योंकि जब कांग्रेस ने आरोप पत्र बनाने के लिए कमेटी गठित की और आरोप पत्र जारी करने की तारीख तक घोषित कर दी थी तब मुख्यमंत्री ने भाजपा द्वारा कांग्रेस सरकार के खिलाफ सौंपे आरोप पत्र की जांच सीबीआई को सौंपने की बात की थी। मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद आज तक कांग्रेस का आरोप तक चर्चा से बाहर है। जबकि इस सरकार के खिलाफ तो पहले वर्ष से ही पत्र बम आने शुरू हो गये थे जयराम सरकार के आधे मंत्री परोक्ष अपरोक्ष में इन बमों के साये में हैं। सरकार का शीर्ष प्रशासन गंभीर सवालों के घेरे में चल रहा है। जिस सरकार में यह सारा कुछ रिकॉर्ड पर चल रहा हो उसका मुख्य विपक्षी दल इस तरह के अन्तः विरोधों का शिकार हो जाये तो निश्चित रूप से आम आदमी पर इस पर भ्रमित होगा ही।
निशा सिंह के पत्र और मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया से उठी चर्चा
जब मुख्यमंत्री से न्याय न मिले तो क्या राज्यपाल से दखल की गुहार लगाना अपराध है
जब सरकार केंद्र और अपने ही निर्देशों की अनदेखी करें तो क्या विकल्प रह जाता है?
शिमला/शैल। जब मुख्यमन्त्री को सार्वजनिक रूप से अधिकारियों को अपनी सीमा में रहने के लिये कहना पड़े और मुख्य सचिव से भी वरिष्ठ अधिकारी को प्रदेश के राज्यपाल से दखल देने की गुहार लगानी पड़ जाये तो यह प्रमाणित हो जाता है कि प्रशासन के शीर्ष पर हालात बहुत ही विस्फोटक बन चुके हैं। ऐसा विस्फोट चुनावी बेला में राजनीतिक नेतृत्व के लिये कितना घातक हो सकता है इसका अंदाजा लगा पाना भी आसान नहीं होगा। क्योंकि जब वरिष्ठ अधिकारियों को भी राजनीतिक नेतृत्व से न्याय न मिल सके तो उसका सन्देश प्रशासन के सबसे अंतिम पायदान और जनता तक सुखद नहीं होता है। ऐसा तब होता है जब राजनीतिक नेतृत्व किन्ही कारणों से एक वर्ग विशेष से ही घिर कर रह जाता है और दस्तावेजी परमाणों को भी नजरअन्दाज करके एक पक्षीय राय बना लेता है। आईएएस सेवा देश की शीर्षस्थ सेवा है और इसके शीर्ष पर पहुंचे अधिकारियों का भी अपना एक मान सम्मान होता है। यही अधिकारी होते हैं जिन्हें नियमों कानूनों की जानकारी राजनीतिक नेतृत्व से निश्चित तौर पर अधिक होती है। कई बार जो अधिकारी किन्ही कारणों से राजनीतिक नेतृत्व से ज्यादा नजदीक हो जाते हैं वह अपने स्वार्थों से प्रभावित होकर राजनीतिक नेतृत्व को गुमराह करने में सफल हो जाते हैं। ऐसा करने के लिये नेतृत्व के सामने नियमों कानूनों की सही और पूरी जानकारी नही रखी जाती है और नेतृत्व में यह क्षमता नही रह जाती है कि वह अपने स्तर पर सही तथा निष्पक्ष जानकारी जुटा सके। ऐसी स्थिति में जब ऐसे प्रशासनिक अधिकारी अपने स्वार्थों के कारण अपने वरिष्ठों का भी अहित करने पर आमदा हो जाते हैं तब प्रशासन के शीर्ष पर हालात ऐसे विस्फोटक हो जाते हैं। इस समय जयराम ठाकुर का शीर्ष प्रशासन शायद इसी दौर से गुजर रहा है। मुख्यमंत्री को नियमों कानूनों की सही जानकारी ही नहीं दी जा रही है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि नियमों कानूनों की अनुपालना ही नहीं होने दी जा रही है। क्योंकि इससे नुकसान प्रशासनिक नेतृत्व की बजाये राजनीतिक नेतृत्व का होता है। अभी लोक सेवा आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों का शपथ ग्रहण समारोह जिस तरह से रुका उसके छिंटे प्रशासन पर न पढ़कर राजनीतिक नेतृत्व पर पड़े। इसके बाद यही फजीहत पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र के मुख्य सुरक्षा अधिकारी रह चुके पदम ठाकुर की पुनर्नियुक्ति के मामले में हुई। क्योंकि इन्हीं पदम ठाकुर के खिलाफ भाजपा के आरोप पत्र में गंभीर आरोप लगे हुए हैं। इस वस्तुस्थिति की मुख्यमंत्री को जानकारी भी थी या नहीं यह सब गौण हो गया और नेतृत्व की फजीहत बड़ा मुद्दा बनकर चर्चित हो गयी।
ठीक आज यही स्थिति निशा सिंह के वायरल हुए पत्र के बाद उभरी है। क्योंकि जब मुख्यमंत्री को लिखे पत्र का भी सही से जवाब न आये तो इतने बड़े अधिकारी के पास राज्यपाल से मामले में दखल देने की गुहार लगाने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं रह जाता है। इस समय प्रशासन के शीर्ष पर जिस तरह की विस्फोटक स्थिति बनी हुयी है उसका एक ही कारण है कि कुछ लोगों को अनुचित लाभ देने के लिये उन नियमों/निर्देशों की अनुपालना तक नहीं हो रही है जो सर्वाेच्च न्यायालय के प्रशासन तक पर लागू हैं। यहां तक चर्चाएं बाहर आ रही हैं कि यूपीएससी में फेल होने को भी योग्यता बना दिया गया है। निश्चित तौर पर ऐसा न तो मुख्यमंत्री की जानकारी में होगा और न ही उनके निर्देशों से हुआ होगा। लेकिन यह सब उन्हीं के कार्यकाल में नियमों को संशोधित करके अंजाम दिया गया है तो निश्चित रूप से उन्हीं के नाम लगेगा। ऐसे में यदि अभी भी जयराम प्रशासन केंद्र सरकार और अपने निर्देशों की अनुपालन नहीं कर पाता है तो पूरी स्थिति विस्फोटक हो जायेगी। उसमें कुछ भी बचना संभव नहीं रह पायेगा।
राज्य सरकार के निर्देश जिनकी अनुपालना नही हुई
भारत सरकार के निर्देश जिनकी अनुपालना नही हुई
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