राष्ट्रपति,प्रधान मन्त्री से लेेकर मुख्यमन्त्री तक को भेजी शिकायत
शिमला/शैल। प्रदेश के पर्यटन विकास निगम में हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलन्द करने वाले निगम के पूर्व कर्मचारी नेता ओम प्रकाश गोयल ने एक बार फिर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यन्त्री और शान्ता कुमार आप के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय सिंह तथा प्रदेश संयोजक राजन सुशांत के नाम भेजे पत्रा के माध्यम से नए सिरे से मोर्चा खोल दिया है। इस बार गोयल ने मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव एंवम अतिरिक्त मुख्य सचिव वी सी फारखा को फिर से निशाने पर लिया है। गोयल ने फारखा की ईमानदारी और निष्ठा पर गंभीर आरोप लगाते हुए मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह से आग्रह किया है कि यदि फारखा का मुख्य सचिव पदोन्नत किया जाता है तो वह इस मामले को प्रदेश उच्च न्यायालय में ले जायेंगे और इसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार की होगी। गोयल ने इसी सं(र्भ मे भेजी अपनी पुरानी शिकायतोें का भी मुख्यमन्त्री को स्मरण दिलाया है जिन पर अभी तक वांच्छित कारवाई नही हुई है। गोयल की इस शिकायत के तथ्यों से जहां फारखा के विरोधीयों को उनके खिलाफ एक कारगर हथियार मिल जायेगा वहीं पर वीरभद्र सिंह की भ्रष्टाचार के खिलाफ सारी प्रतिबद्धता भी कसौटी पर लग जायेगी। क्योंकि फारखा वीरभद्र सिंह के विश्वस्त है और इसी नाते वरियता क्रम को नजर अंदाज करके उन्हें मुख्य सचिव बनाने की मंशा रखे हुए है। जबकि वरियता में उपमा चैधरी जैसे अधिकारी भी है जिनके खिलाफ कुछ भी नही है और Outstanding ACR's लिये हुए है।
इस परिदृश्य में गोयल के पत्र को नजर अन्दाज कर पाना आसान नही होगा क्योंकि हर आरोप की पुष्टि में प्रमाणिक दस्तावेज साथ लगाये हुए हैं। गोयल का आरोप है कि वर्ष 2001 से 2002 में जब फारखा पर्यटन निगम प्रबन्धन के प्रबन्ध निदेशक थे तब उन्होने होटल पीटर हाॅफ में अपने मेहमानों को मुफ्रत में ठहरा कर निगम को वित्तिय नुकसान पंहुचाया है। यह मेहमान जून 2002 में ठहरे थे और गोयल ने होटल पीटर हाॅफ के इस संबध में बिल साथ लगाये हैं। जिन पर एम डी के गेस्ट’ स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है। गोयल ने जब इस आश्य की शिकायत निदेशक मण्डल से की थी तब फारखा ने अपने मेहमानों को मुफ्रत में ठहराने से सिरे से ही नकार दिया था। लेकिन गोयल ने 12 मार्च 2015 को लिखे पत्र मे इस आरोप को दस्तावेज लगाकर प्रमाणित कर दिया पर इस पर कारवाई कोई नही हुई।
गोयल का आरोप है कि फारखा के गल्त फैसले के कारण पर्यटन निगम कोे 72 लाख का जुर्माना भरना पड़ा है। फारखा ने मार्च 2002 में निगम के वित्त प्रबन्धक को निर्देश दिये की कर्मचारियों का सी पी एफ प्रोविडैन्ट फण्ड कमीशनर के यहां जमा न करवाया जाये। दो वर्ष तक सी पी एफ जमा न करवाने के मामले में गोयल ने प्रदेश उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका CWP 108/2002 दायर की थी जिसके परिणाम स्वरूप प्रोविडैन्ट फण्ड कमीशनर ने निगम को 72 लाख का दण्ड लगाया।
फारखा पर भारत सरकार में भी झूठेे दस्तावेज फाईल करने का भी आरोप है। यह आरोप निगम के खड़ा पत्थर प्रौजैक्ट को लेकर है। इस प्रौजैक्ट को लेकर 2002 में भारत सरकार के पर्यटन मन्त्रालय में यह दस्तावेज फाईल किये गये यह प्रौजैक्ट पूरी तरह तैयार करके 31-12-2001 को चालू भी कर दिया गया है इन दस्तावेजों में बाकायदा उपयोगिता प्रमाण पत्रा तक फाईल किया गया है। प्रमाण पत्रा और इसके चालू भी कर दिये जाने पर भारत सरकार ने इसकी अन्तिम किश्त 5,66,000 रूपये भी जारी कर दी। भारत सरकार ने राशी प्राप्त करने के लिये भेजे गये दस्तावेजों के मुताबिक खड़ा पत्थर का होटल गिरी गंगा प्रौजैक्ट 31-12-2001 को 39.30 लाख के कुल निवेश के साथ पूरा करके इस्तेमाल में भी ला दिया गया है। भारत सरकार के पैसे से बनी इस संपत्ति के प्रबन्धन का अनुबन्ध भी भारत सरकार के साथ हस्ताक्षरित कर दिया जाता है और किसी को भी इस पर कोई सन्देह नही होता है।
लेकिन जब 24-10-2005 का पर्यटन निगम के निदेशक मण्डल की वीरभद्र सिंह की अध्यक्षता में बैठक होती है तब इस होटल का निर्माण शीघ्र पूरा करने के निर्देशों के साथ इसे न लीज पर देने न बेचने का भी फैसला लिया जाता है। बैठक में इसे अप्रैल 2006 तक पूरा करके पर्यटकों के लिये उपलब्ध करवाने के निर्देश दिये जाते है जिस होटल को भारत सरकार को 39.30 लाख में पूरा हुआ दिखाया जाता है उसी को लेकर 20-02-2006 को प्रौजैक्ट अफसर द्वारा कमीशनर को लिखे पत्रा में कहा जाता है कि इस पर अब तक 84.77 लाख खर्च हो चुका है और शेष बचे काम को पूरा करने के लिये 28,91,703 रूपये की और आवश्यकता होगी । प्रोजैक्ट अफसर के इस पत्र के बाद 31-5-2006 को इसके लिये तीस लाख रूपये और जारी कर दिये जाते हैं। इस तरह यह होटल 25-06-06 को 1,35,84,076 रूपये के निवेश से पूरा करके उद्घाटित कर दिया जाता है। यहां यह सवाल उठता है कि 31-12-2001 को कैसे कह दिया गया कि 39.30 लाख में होटल पूरा करके चालू कर दिया गया है। आगे चलकर यह खर्च कैसे बढ़ गये? इस निमार्ण को लेकर अरसे से सरकार के पास शिकायतें चल रही हैं। फारखा आज अतिरिक्त सचिव पर्यटन हैं और मुख्यमन्त्री के अपने पास विभाग है आज मुख्यमन्त्री के विश्वास के कारण फारखा मुख्य सचिव बन सकते है लेकिन क्या इससे पहले मुख्यमंत्री और फारखा को प्रदेश की जनता के सामने गोयल द्वारा उठाये गये सवालों पर जबाव नही देना चाहिये? या फिर यह जबाव अदालत के माध्यम से ही सामने आयेंगे?
कांग्रेस के राजेन्द्र राणा और हिलोपा प्रमुख महेश्वर सिंह आप के संर्पक में
शिमला/शैल। दिल्ली विधानसभा चुनावों में चुनावी राजनीति का अभूतपूर्व इतिहास रचने के बाद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को राजनीतिक हल्कों में एक विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है। इसमें कोई दो राय नही है। पंजाब में अगले वर्ष जनवरी में चुनाव होने है और वहां पर इस समय आम आदमी पार्टी को एक बड़ी उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है। इसका असर हिमाचल के राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में उठ रही चर्चाओं के रूप में देखा जा सकता हैं। क्योंकि संयोगवश इस समय हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा दोनों का शीर्ष नेतृत्व बराबर के गंभीर आरोपों में घिरा हुआ है। इन आरोपोें का परिणाम इस नेतृत्व के लिये कालान्तर में घातक होगा यह भी तय है। इस राजनीतिक वस्तु स्थिति को ध्यान में रखते हुए दोनों दलों का एक बड़ा वर्ग अपने नेतृत्व से उदासीन भी होता जा रहा है और विकल्प की तलाश में भी है। लेकिन प्रदेश में विकल्प की उम्मीद में नेताओं ने कैसे जनता को पहले धोखा दिया हुआ है उसके परिणामस्वरूप यह वर्ग अभी कोई फैसला लेने से डर भी रहा है।
कांग्रेस-भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस स्थिति को जानता और समझता भी है तथा आम आदमी पार्टी को प्रदेश में कोई बड़ा आकार लेने से पहले ही खत्म भी कर देना चाहता है इस समय आम आदमी पार्टी के नाम पर जो चेहरे प्रदेश की जनता के सामने हैं वह अभी तक कुछ बड़ा नही कर पायेें है। बल्कि इन चेहरों में आपसी एकता भी नही के बराबर है। वैसे ही 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रदेश की चारों सीटों पर चुनाव लडा गया था लेकिन उन चारों में से भी केवल दो ही पार्टी में रह गये हंै और उनमें भी सौहार्द की कमी जगजाहिर है। इसी का परिणाम था कि पिछले दिनों प्रदेश संयोजक राजन सुशांत को त्यागपत्रा देने की पेशकश करनी पडी थी और इसका पटाक्षेप प्रदेश के सह प्रभारीे हर्ष कालरा से यहां की जिम्मेदारी वापिस लेने के साथ हुआ था। पार्टी का केन्द्रिय नेतृत्व इस स्थिति से परिचित है और वह सुन्दर नगर में होने जा रही रैली की सफलता /असफलता का आकलन करने के बाद इस दिशा में फैसला लेगा यह माना जा रहा है।
लेकिन पार्टी के अन्दर इस समय जो लोग हैं वह कुछ बड़ा क्यों नही कर पाये हैं? पार्टी को पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में सफलता क्यों नही मिली? धर्मशाला नगर निगम चुनावों में भी पार्टी कुछ नही कर पायी। यह कुछ ऐसे सवाल है जिनका ईमानदारी से विश्लेष्ण किया जाना आवश्यक है। हिमाचल में अब तक कांग्रेस और भाजपा का ही शासन रहा है दोनों ने ही एक दूसरे के खिलाफ बतौर विपक्ष गंभीर आरोप पत्रा राज्यपाल को सौंपे है लेकिन सत्ता में आने के बाद अपने ही सौंपे आरोप पत्रों पर पर किसी ने भी कोई कारवाई नही की है। आज तो वीरभद्र और धूमल दोनो परिवारों सहित व्यक्तिगत स्तर पर आरोपों से घिरे हुए हैं। इनके आरोपों को पूरी प्रमाणिकता के साथ जनता के सामने रखने की आवश्यकता है लेकिन आम आदमी पार्टी इस जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभा नही पायी है क्योंकि सबके अपने अपने कारण रहे हैं। परन्तु जब तक प्रमाणिक आक्रमकता नही अपनाई जाती है तब तक आम आदमी पार्टी को प्रदेश में विकल्प के रूप में परोसना संभव नही हो पायेगा। अब यह चर्चा है कि पार्टी के ही कुछ लोगों के माध्यम से कांग्रेस के राजन्ेद्र राणा और अनिल कीमटा केन्द्रिय नेतृत्व के संर्पक में चल रहे हंै। कांग्रेस भाजपा की संस्कृति से ओतप्रोत यह लोग आम आदमी पार्टी की संस्कृति से कितना मेल खा पायेंगे इसको लेकर अभी से सवाल उठने लग पडे हैं। हिलोपा प्रमुख महेश्वर सिंह भी आप के संपर्क में माने जा रहे हैं। वैसे पिछले दिनों जब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत हिमाचल दौरे पर थे उस समय महेश्वर सिंह की उनके साथ मुलाकात विशेष चर्चा में रही है। पिछले विधानसभा चुनावों में महेश्वर अपनी जीत के अतिरिक्त और किसी भी सीट पर अपने उम्मीदवारों की जमानत तक नही बचा सके थे। बल्कि उस समय हिलोपा को दुबई स्थित कारोबारी सुदेश अग्रवाल और उनकी समस्त भारत पार्टी से आर्थिक सहयोग भी काफी मिला था। अभी ये लोग पार्टी के दरवाजे पर खडे हैं और माना जा रहा है कि इन लोगों ने आप के केन्द्रीय नेतृत्व को काफी आश्वासन दे रखें हैं।लेकिन प्रदेश के राजनीतिक विश्लेष्कों का यह मानना है कि इन लोगों के आने के बाद वीरभद्र-धूमल ही नही बल्कि कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ भी आप को आक्रामकता निभाना आसान नही रह जायेगा। क्योंकि पूर्व के संबंध ऐसा करने नही देंगे।
शिमला/शैल। अतिरिक्त मुख्य सचिव पर्यटन पिछले वर्ष स्पेन गये थे। उस समय उनकी इस यात्रा को लेकर विभाग ने पूरी गोपनीयता बनाये रखी थी। लेकिन जब हिमाचल भवन दिल्ली से इस यात्रा की चर्चा कुछ राजनीतिक हल्कों में जा पहुंची तो इस पर और भी कई निगाहें केन्द्रित हो गयीं। स्पेन जंहा पर्यटन के लिये जाना जाता है वहीं पर उसकी एक पहचान टैक्स हैवन के रूप में भी है। मुख्यमन्त्री का प्रधान सचिव होने के कारण फारखा के भी दोस्तों दुश्मनों की संख्या कम नही है। इसी परिप्रेक्ष्य में फारखा को अपनी इस यात्रा का मकसद विभाग के रिकार्ड पर लाना पड़ा है। फारखा ने सूचित किया है कि As regards Hostelco exhibition at Barcelona, Spain, It is intimated that the main focus of the exhibition was on range of products and services and latest innovations in equipmet, products and services for the hospitality sector. No other country was touched.
फारखा की इस सूचना पर विभाग में किसी ने गूगल सर्च करके वहां के आयोजन का ऐजैण्डा ही खोज निकाला। गूगल सर्च में जो समाने आया है वह इस प्रकार है HOSTELCO. International Restaurant, Hotel and Community Equipment Exhibition is a 4 days event being held from 23rd October to the 26th October 2016 at the Fira de Barcelona Gran Via in Barcelona, Spain. This event is orgainesd by: Fira de Barcelona and the Federacion Espanola de Asociaciones de Fabricantes de Maquinaria para Hosteleria, Colectividades e Industrias Afines (FELAC) with the collaboration of the Federacion Espanola de Hosteleria (FEHR) In Hostelco you will find all the innovations in the sectors of hospitality, restaurant business and communities.
गूगल सर्च में जो सामने आया है उसके मुताबिक वर्सेलोना में 23 अक्तूबर 2016 से 26 अक्तूबर 2016 को एक चार दिवसीय प्रदर्शनी आयोजित की जानी है। ऐसे में इस प्रदर्शनी में भाग लेना सुनिश्चित करने के लिये करीब एक वर्ष पहले हीवहां जाने की आवश्यकता क्यों पडी? इस प्रदर्शनी में भाग लेने से प्रदेश के पर्यटन को कैसे लाभ पहुंचेगा? फारखा की इस यात्रा के बाद अभी विभाग को पर्यटन में क्या लाभ हासिल हुआ है इसको लेकर कोई कुछ भी कहने को तैयार नही है। फारखा की इस यात्रा को लेकर प्रदेश के प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में कई तरह की चर्चाओं का दौर चल रहा है। वैसे नियमो के अनुसार ऐसी यात्राओं से पहले सरकार का इनका एजैंडा सौंपना और यात्रा के बाद उसका पूरा विस्तरित विवरण सौंपना आवश्यक होता है जो इस यात्रा में नही हुआ है और इसी कारण इस पर अब चर्चाएं शुरू हुई हैं।
शिमला/शैल। सर्वोच्च न्यायालय की सी ई सी के बाद नेशलन ग्रीन ट्रिब्यूनल में पहुंचे कांगड़ा के धर्मशाला स्थित मकलोड़गंज बस स्टैण्ड निर्माण मामलें में अन्ततःट्रिव्यूनल ने 35 लाख का जुर्माना लगाते हुए इस निर्माण को पन्द्रह दिन के भीतर तोड़ने और संवद्ध जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कारवाई करने तथा उनकी जिम्मेदारी तय करने के निर्देश दिये हैं। इन निर्देशों की अनुपालना की जिम्मेदारी मुख्य सचिव को सौंपते हुए कहा है We direct the Chief Secretary to hold an enquiry against the erring officials of HP BSM &DA and fix responsibility ट्रिव्यूनल ने 35 लाख के जुर्माने में 15 लाख निर्माता कंपनी प्रंशाती सूर्य को 10 लाख बस अड्डा प्राधिकरण और पांच लाख प्रदेश सरकार तथा पांच लाख पर्यटन विभाग को लगाया है।
स्मरणीय है कि मकलोड़गंज में पार्किंग सुविधा उपलब्ध करवाने के लिये भारत सरकार ने 12.11.97 को पत्र संख्या 9-373/97-ROC के माध्यम से 930 वर्ग मीटर वन भूमि की स्वीकृति प्रदान की थी। इसके बाद 1.3.2001 को पत्र संख्या 9-559/98-ROC 295 के माध्यम से 4835 वर्ग मीटर वन भूमि पर बस स्टैण्ड निर्माण की स्वीकृति प्रदान की थी। यह दोनो स्वीकृतियां मूलतः पर्यटन विभाग और एस डी एम धर्मशाला के नाम पर थी । लेकिन प्रदेश सरकार ने वर्ष 2006 में पर्यटन विभाग से एनओसी लेकर परिवहन विभाग की बस स्टेैण्ड मैनेजमैन्ट अथाॅर्रिटी को 99 वर्ष की की लीज पर अपने ही स्तर पर दे दिया और राजस्व रिकार्ड में इसका इन्द्राज भी बदल दिया। जबकि भारत सरकार से 12.11.97 और 1.3.2001 को आये पत्रों में स्पष्ट कहा था कि (1) The legal Status of the forest land will remain unchanged the forest land will be restored to the forest department as and when it is no more required (2) The forest land will not be used for any other purpose than that mentioned in the proposal. State Govt. will ensure through State forest department the fulfillment of these conditions. गौरतलब है कि यहां पर पार्किंग स्थल बनाने की योजना 1995-96 से चल रही थी और जब वन भूमिे का उपयोग बदलने की बात उठी थी तो इस पर दो याचिकाएं 202/95 तथा 171-96 धर्मशाला के अतुल भारद्वाज तथा मुंबई पर्यावरण एक्शन गु्रप के नाम से सर्वोच्च न्यायालय में डाली गयी थी और इनके कारण 2004 तक यहां कोई निर्माण कार्य शुरू ही नही हो सका था। 7-11-2000 को राज्य सरकार ने यह निर्माण 1307 के आधार पर करवाने का फैसला लिया और 19-11-2003 को इस आश्य का एक विज्ञापन जारी किया जिसके उत्तर में केवल एक ही आवेदन आया जिसे रद्द कर दिया गया। इसके बाद 13-7- 2004 को नये सिरे से आवदेन मंगवाये गये और 13-10-2004 को HP BSM & DA निदेशक मण्डल की बैठक में में प्रशांती सूर्य को यह कार्य BOT में आवंटित कर दिया। इसका Concession Period 16 वर्ष 7 महीने 15 दिन तय किया गया। इस आंवटन के साथ निर्माण का जो प्लान दिया गया उसके अनुसार इस बहुमंजिला काॅम्लैक्स का एरिया 3680 वर्ग मीटर होना था। इसके नक्शे टीसीपी से स्वीकृत होने थे लेकिन प्रंशाती सूर्य ने इस स्वीकृति के बिना दिसम्बर 2005 में निर्माण कार्य शुरू कर दिया। टी सी पी के पास 4-3-2006 के नक्शे आये इनमें कुछ कमियां थी जिनको दूर करने के लिये टी सी पी ने 28-7-2006, 5-10-2006, 27-11-2006, 4-1-2007 और 19-2-2007 को बस स्टैण्ड प्राधिकरण को पत्रा लिखे जिनका कोई जबाव नही आया निर्माण कार्य चलता रहा। जबकि टी सी पी ने सैक्शन 39 के तहत चार बार नोटिस देकर निर्माण कार्य बन्द करने के आदेश भी दिये। इस पर 13-4-2007 को जिलाधीश कांगड़ा ने निदेशक टी सी पी को पत्रा लिखकर इस निर्माण में कुछ रियायतें देने का आग्रह किया। इस पर 28-4-2007 को यह मामला मन्त्रिामण्डल के सामने आया। आरएफपी के अनुसार कुल निर्मित एरिया 6459 वर्ग मीटर होना था जबकि वास्तव में यह एरिया 13270 वर्ग मीटर हो गया है। टर्मिनल ब्लाक में जहां आरएफपी के मुताबिक दो मंजिले बननी थी वहां छः मंजिले बन गयी है। अनुमानित निर्माण लागत 15 करोड़ में से प्रशांती सूर्य ने आठ करोड़ बैंको से ट्टण लेकर जुटाये हैं जिसकी गांरटी राज्य सरकार ने दी है। सी ई सी ने इसका गंभीर संज्ञान लेते हुए लिखा था कि It has been Stated by M/S Prashanti Surya that it has taken Rs 8 Crores as loan for which state of Himachal Pradesh stands a guarantee. If this statement is correct , it is a very serious Lapse an stern action needs to be taken against the concerned persons for giving guarantee. The RFP document does not provide that the State will stand guarantee for repayment of loan taken by the successful bidder. सी ई सी ने राज्य सरकार से भी उसका पक्ष पूछा था। राज्य सरकार ने कहा है कि The State Government has stated that inadvertently, an error has been committed by using the piece of land measuring 093 hac for the construction of a commercial hotel complex rather than for parking place.
सर्वोच्च न्यायालय की सी ई सी के बाद यह मामला एन जी टी के पास पहुंचा है। एन जी टी ने इसमें 35 लाख जुर्माना लगाने के साथ संवद्ध दोषी अधिकारियों के खिलाफ कारवाई करने के निर्देश दिये हैं। अब सरकार इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में अपील में जायेगी या दोषीयों के खिलाफ कारवाई करेगी इस पर सबकी निगाहें लगी हुई हंै। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय की सी ई सी तो इसमें पहले ही गंभीर संज्ञान ले चुकी है। सी ई सी ने अपनी रिपोर्ट में सरकार को कड़ी फटकार लगायी हुई है। सी ई सी परिवहन फाॅरैस्ट, वित्त, टीसीपी, राजस्व और जिला प्रशासन के खिलाफ कड़ी टिप्पणीयां कर चुकी है जिसके अनुसार सबके खिलाफ आपराधिक मामले बनते हैं। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय से सरकार को राहत की उम्मीद बहुत कम है।
209 करोड़ की रिकवरी को बट्टे खाते में डालने की तैयारी
शिमला/शैल। प्रदेश का जे पी उद्योग समूह क्या एक समानान्तर सत्ता है जिसके आगे सरकारी तन्त्रा एकदम बौना पड़ जाता है। जल विद्युत क्षेत्र और सीमेन्ट क्षेत्र में इस उद्योग समूह का सबसे बड़ा दखल है। इन दोनो ही क्षेत्रों में उद्योग से जुडी ऐसी कोई अनियमितता नही हंै जिसके आरोप इस उद्योग पर न लगे हों और उनके लिये स्थानीय लोगों से लेकर मजदूरों तक ने आन्दोलन न किये हों। यह भी रिकार्ड है कि इस उद्योग की अनियमितताओं को लेकर वामदलों के अतिरिक्त कांगे्रस और भाजपा ने कभी आवाज नहीं उठाई है । बल्कि वीरभद्र शासन के 2003 से 2007 के कार्यकाल में सरकार के खिलाफ राज्यपाल को सौंपे एक आरोप पत्रा में जे.पी. के सीमेन्ट प्लांट को लेकर गंभीर आरोप लगाये थे। जिन पर 2008 में सत्ता संभालने पर जांच का साहस तक नही किया। भाजपा के इसी शासन काल में जे.पी. ने प्रदेश में थर्मल पावर प्लांट का ताना बाना बुना जो प्रदेश उच्च न्यायालय में मामला आने के बाद रूका। उच्च न्यायालय ने इस प्ंलाट का गभीर संज्ञान लेते हुए इस पर एस.आई.टी. गठित की जिसकी रिपोर्ट उच्च न्यायालय में दाखिल हो चुकी है लेकिन उस पर आगे क्या हुआ यह आज तक सामने नहीं आ सका है।
जे.पी. उद्योग 1990 के शांता कुमार के शासन काल में प्रदेश में आया था। शान्ता कुमार सरकार ने उस समय राज्य विद्युत बोर्ड से वसपा परियोजना लेकर इस उद्योग समूह को दी थी। परियोजना देेते समय यह तय हुआ था कि इस पर विद्युत बोर्ड जो भी निवेष कर चुका है उसे यह उद्योग 16% ब्याज सहित बोर्ड को वापिस लौटायेगा। यह परियोजना 2003 से उत्पादन में आ चुकी है लेकिन बोर्ड का पैसा वापिस नही दिया गया है। ब्याज सहित यह रकम 92 करोड़ तक पहुंच गयी थी कैग ने इसको लेकर कई बार सवाल उठाये है लेकिन अन्त में सरकार ने यह कह कर यह पैसा इस उ़द्योग को माफ कर दिया कि यदि यह वसूली कर ली जाती है तो जे.पी. बिजली के रेट बढ़ा देगा। कैग सरकार के इस जबाव से सहमत नही है लेकिन सरकार कैग रिपोर्ट को मानने के लिये ही तैयार नही हैै।इसी तरह 900 मैगावाट की कडछम वांगतू परियोजना के लिये जे. पी. उद्योग के साथ अगस्त 1993 में एमओयू हस्ताक्षरित हुआ। नवम्बर 1999 में आईए(IA) साईन हुआ। मार्च 2003 में भारत सरकार और TEC ने 1000 मैगावाट की तकनीकी स्वीकृति प्रदान कर दी जिसमें 250-250 मैगावाट के चार टरवाईन संचालित होने थे। 6903 करोड़ के निवेश से बनी इस परियोजना ने मार्च 2011 से उत्पादन भी शुरू कर दिया है। लेकिन इस ईमानदार उद्योग समूह ने 250 मैगावाट क्षमता वाली परियोजना के स्थान पर 300 मैगावाट क्षमता के टरवाईन स्थापित करके इस परियोजना की क्षमता 900 मैगावाट से बढ़ाकर 1200 मैगावाट कर ली। लेकिन इसकी जानकारी सरकार को नहीं दी। परन्तु मार्च 2011 में इसकी भनक CEA को लग गयी और उसने प्रदेश सरकार को इसकी जानकारी दे दी। इस सूचना पर प्रदेश सरकार ने जून 2012 मे एक तकनीकी जाच कमेटी गठित कर जिसने जून 2013 में सरकार को सौंपी रिपोर्ट में इस सूचना को सही पाया है। प्रदेश की 2006 की विद्युत नीति के तहत यदि कोई परियोजना अपनी क्षमता बढ़ाती है तो उसे बढ़ी हुई क्षमता के लिये नये सिरे अनुबन्ध साईन करना होगा और बढ़ी हुई क्षमता पर 20 लाख प्रति मैगावाट का अपफ्रन्ट प्रिमियम अदा करना होगा। इसी के साथ फ्री रायल्टी और लोकल एरिया विकास फन्ड भी बढे़गा। इस तरह अब इसकी बढ़ी क्षमता का अपफ्र्रन्ट प्रिमियम 60 करोड़, बढ़ी हुई रायल्टी का 77.73 करोड़ और लोकल एरिया फन्ड का 71.55 करोड़ जे.पी. उद्योग समूह से वसूल किया जाना है। यह कुल रकम 209 .28 करोड़ बनती है जिसकी वसूली का सरकार साहस नही जुटा पा रही है।
क्योंकि इससे पूर्व वसपा की करीब 92 करोड़ की रिकवरी बट्टे खाते में डाली जा चुकी है। अब उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक 209 करोड़ की रिकवरी को भी वसपा में आधार बनाये गये तर्क पर बट्टे खाते में डालने की तैयारी चल रही है। सरकार की नीयत पर इसलिये सन्देह उभर रहा है कि मार्च 2011 में यह सारा घालमेल सरकार के संज्ञान में आ गया था। लेकिन धूमल सरकार ने कारवाई नही की और अब वीरभद्र सरकार को भी सत्ता में आये तीन वर्ष से अधिक का समय हो गया है। जे.पी. के खिलाफ कारवाईे नही हुई है इससे सरकार की मंशा पर सवाल उठने स्वभाविक हैं।