Friday, 19 September 2025
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मण्डी के नाचन में ठाकुर जयराम के दलित मन्त्री को नही मिली मन्दिर प्रवेश की अनुमति

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश के मन्त्री डाॅ राजीव सैजल को मण्डी के नाचन के एक मन्दिर में प्रवेश नही करने दिया गया है। मन्त्री को मन्दिर में प्रवेश करने से प्रबन्धकों और कारदारों ने रोका है। राजीव सैजल स्वयं सामाजिक न्याय एवम् अधिकारिता मन्त्री तथा दलित समाज से आते हैं। मण्डी मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर का गृह जिला है और  उन्ही के जिलें में उन्ही के मन्त्री को मन्दिर में प्रवेश नही करने दिया गया है। मण्डी में ही पिछले  दिनों एक मन्दिर के प्रबन्धकों और कारदारों ने एक महिला के साथ दुव्र्यवहार किया था जिसका उच्च न्यायालय ने कड़ा संज्ञान लेते हुए दोषीयों के खिलाफ कड़ी कारवाई के निर्देश दिये थे। इन्ही निर्देशों के परिणामस्वरूप पुलिस हरकत में आयी और दोषीयों  को हिरासत में लिया गया। लेकिन यह सब होने के बावजूद भी जब सरकार के मन्त्री को दलित होने के नाते मन्दिर में प्रवेश की अनुमति नही दी गया तो इससे पूरी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं।
मन्त्री ने अपने साथ हुए इस व्यवहार की जानकारी  प्रदेश विधानसभा के एक दिन के लिये बलाये गये विशेष सत्र के दौरान स्वयं सदन में रखी है। मन्त्री द्वारा इस घटना की जानकारी सदन में रखने के बाबजूद सरकार द्वारा इस संबंध में कोई कारवाई करने के प्रयास सामने नही आये हंै। प्रदेश के दलित समाज में इस व्यवहार को लेकर रोष देखने को मिला है। दलित समाज  के सक्रिय कार्यकर्ता कर्म चन्द भाटिया ने इस संबंध में प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीष को पत्र लिख कर उचित कारवाई की मांग की है। भाटिया ने आरोप लगाया है सरकार के दबाव के चलते पुलिस ऐसे मामलों में प्रकरण तक दर्ज नही कर पाती है। पूर्व में दलित उत्पीड़न के कई मामलों में पुलिस की कारवाई सवालों के घेरे में रही है। ऐसे में अब सरकार के मन्त्री के साथ ही हुए इस व्यवहार के बाद पूरे प्रदेश की निगाहें सरकार के रूख और पुलिस की कारवाई पर लग गयी हैं।

दलित कार्यकर्ता भाटिया ने उच्च न्यायालय को लिखा पत्र

सेवा में,
                   सम्मानीय मुख्य न्यायाधीश ,

                  हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय,

                 शिमला हिमाचल प्रदेश,


बिषय:- हिमाचल प्रदेश के समाजिक एवं न्याय अधिकारिता मंत्री श्री राजीव सैहजल को अपने ही प्रदेश के मंडी जिला के तहत नाचन विधानसभा क्षेत्र के एक प्रसिद्ध मंदिर में मंदिर प्रबंधन व कारदारों द्वारा प्रवेश नहीं देने को लेकर,प्रदेश के बुलाए गए दिनांक 07/01/2020 मंगलवार को विशेष विधानसभा सत्र में मंत्री द्वारा दिए गए बयान मामले को उजागर करने को लेकर न्यायाधीश गण पीठ से समाज जन हित जातीय हित व समानता समतामूलक समाज हित में हस्तक्षेप एवं असंवैधानिक कृत्य को लेकर उचित कानूनी न्याय संगत कारवाई का आग्रह।     
   मान्यवर जी,        
             सामाजिक कार्यकर्ता माननीय उच्च न्यायालय एवं एवं न्यायाधीश गण पीठ का ध्यान इस गंभीर संवेदनशील विषय की ओर दिलवाना चाहता है। इस पत्र से पहले भी प्राथी समाज हित के मामलों को लेकर कई मर्तबा समय-समय पर लिख पत्र लिख न्यायलय को भेजता रहा है,जिन पर न्यायलय ने न्याय प्रदान किया है जिसके लिए मैं न्यायालय का तहे दिल से आभारी हूं।
      यह की हिमाचल प्रदेश के समाजिक एवं न्याय अधिकारिता मंत्री राजीव सैहजल जी ने प्रदेश सरकार के द्वारा दिनांक 07/01/2020 को बुलाऐ गए विशेष विधानसभा सत्र मे अपनी आप बीती बात रखी,विधानसभा का ध्यान दिलवाया की मैं मंत्री हिमाचल के मंडी जिला के नाचन विधानसभा क्षेत्र के विधायक विनोद कुमार के साथ नाचन विधानसभा क्षेत्र के एक प्रसिद्ध मंदिर में गया लेकिन मुझे मंत्री को मंदिर प्रबंधन व मंदिर का कारदारों द्वारा प्रवेश ही नहीं दिया गया क्योंकि मंत्री राजीव सैजल अनुसूचित जाति वर्ग से सबंध रखते हैं। मंत्री जी का यह बयान विधानसभा के रिकॉर्ड में दर्ज हुआ है और प्रदेश के दिनांक08/01/2020 के  सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ है।
इस प्रकरण का प्रभाव समस्त अनुसूचित जाति समाज के लोगों पर गहरे रूप से पड़ा है।  
      उच्च न्यायालय उच्च न्यायालय एवं न्यायधीश गण पीठ के समक्ष लाना चाहता हूं कि अनुसूचित जाति वर्ग से संबंधित मंत्री श्री राजीव सैजल श्री विनोद कुमार विधायक के साथ ही जब जाति आधार पर मंदिर प्रबंधन व मंदिर कार द्वारा द्वारा इस तरह का बर्ताव किया गया तो अन्य अनुसूचित जाति समाज के लोगों के साथ किस तरह का अमानवीय अपमानजनक जातीय व्यवहार किया जाता होगा। इस घटनाक्रम से अनुमान लगाया जा सकता है कि संवैधानिक व्यवस्था के आधुनिकता युग में मंदिर प्रबंधन व मंदिर के कारदारों देव समाज के लोगों द्वारा किस तरह  देवी देवताओं के नाम इनकी आड़ में अनुसूचित जाति वर्गों इस समाज के लोगों के लिए कैसी व्यवस्थाएं मनगढ़ंत प्रथाएं जातिय आधार थौंपी गई परंपराएं कायम की गईं हैं। ऐसी परंपराऐं हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी दूरदराज के सभी क्षेत्रों में आज भी कायम है जो कि समानता समतामूलक सभ्य समाज की स्थापना के लिए गंभीर चिंता का विषय है,जातीय आधार पर इस तरह की भेदभाव छुआछूत पर आधारित कार्यवाही मामला है जो कि समाज के लोगों उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचा अपमानित करता मनोबल को बुरी तरह प्रभावित करता है समाजिक प्रशासनिक धार्मिक आपसी भाईचारा व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा है ऐसी ऐसी असंवैधानिक कार्रवाई को लेकर बिशेष अनुसूचित जाति बर्गों को निशाने पर रख अपमानित करने को लेकर भी बढ़ावा नहीं दिया जा सकता ऐसी घटनाओं के सामने आना बहुत ही पीड़ादायक हैं।यह कि जब मंत्री महोदय से ये घटनाक्रम घटित हुआ तो उनके साथ जो सरकारी प्रशासनिक प्रदेश व जिला स्तर के आलाधिकारी रहे,उन्होंने क्यों नहीं उस वक्त तुरंत कारवाई की और मंत्री राजीव सैहजल ने एफआईआर आरोपियों के खिलाफ दर्ज करवाई।
              यह कि माननीय उच्च न्यायालय एवं  न्यायाधीशगण पीठ से से आग्रह है कि हिमाचल प्रदेश के धार्मिक स्थलों में मंदिरों मे मनमाने कायदे कानून नियम मंदिर कारदारों द्वारा देव समाज के लोगों मंदिर प्रबंधन मंदिर कारदारों द्वारा थौंप मंदिर प्रवेश पर लगाई गई रोक की अनुसूचित जाति के लोगों के प्रवेश से देवी देवता नाराज हो कर आक्रोश मे आ जाता और खोट दोष लगता है।इस बारे भी कार्रवाई करने को लेकर आशा करते हैं राज्य सरकार के हस्तक्षेप के चलते मामले दबाव के चलते दर्ज ही नहीं किए जाते हैं।
 
अत:- माननीय माननीय उच्च न्यायालय एवं मंत्री एवं विधायक विनोद कुमार सहित अन्य स्तरों के सभी मामलों में उचित न्याय संगत कार्रवाई का विनम्र आग्रह करते हैं।
       इस आश्य से सबंधित समाचार पत्र के मूल पत्र की फोटो स्टेट प्रति सलंग्न पत्र है।।
         दिनांक  /01/2020    

                           सेवक

                     करम चंद भाटिया,
          सामाजिक कार्यकर्ता,नजदीक जिलाधीश कार्यालय लोअर बाजार शिमला,पिन171001,हिमाचल प्रदेश।


प्रदेश में प्रतिदिन एक महिला से हो रहा बलात्कारःमुकेश

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार को प्रदेश में सुशासन के लिये सर्वश्रेष्ठ आंका गया है। जयराम सरकार को लेकर हुआ यह आकलन तथ्य के आईने में कितना सही उतरता है इसको लेकर नेता प्रतिपक्ष अग्निहोत्री ने अग्निपथ में अपनी प्रतिक्रिया जारी की है। यह प्रतिक्रिया विधानसभा के धर्मशाला में हुए शीतकालीन सत्र के दौरान आये आंकड़ों पर आधारित है। स्मरणीय है कि इसी सत्र के समापन पर मुख्यमन्त्री द्वारा आयोजित रात्रि भोज में पक्ष और विपक्ष का नाच गाना भी बहुत चर्चित रहा है। इसी सबको लेकर मुकेश अग्निहोत्री ने यह प्रतिक्रिया व्यक्त की है। हिमाचल प्रदेश के समाचार पत्रों में एक साथ दो मामले पढ़ने को मिले। खबर थी कि हिमाचल प्रदेश में महिलाओं से दुष्कर्म व उत्पीड़न के मामले बढ़े। बताया गया कि जब से जयराम सरकार बनी देवभूमि में 703 बलात्कार (रेप) हुए। यह खबर विपक्ष के सोजन्य से नही अलबत्ता पुलिस प्रमुख की सालाना प्रेसवार्ता से आई। यह आँकड़ा हिमाचल को झकझोरने बाला है क्योंकि आँकड़ा बता रहा है की इस शांत और सुरम्य प्रदेश में रोजाना एक बहन- बेटी की आबरू से खिलवाड़ हो रहा है। आलम यह है कि सन 2018 में 345 रेप हुए और तुलनात्मक 2019 में 358 रेप हुए। इसी तरह महिला क्रूरता के दो सालों में 412 मामले पेश आए और छेड़छाड़ के 1013 मामलों की पुष्टि पुलिस ने की है। ‘‘बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ’’ के अभियानों के बीच यह देव भूमि की तस्वीर है।

उधर मुख्यमंत्री के हवाले से दूसरी खबर में एलान हुआ कि ‘‘यह जयराम की नाटी है डलती रहेगी’’। दलील दी गई कि मुख्यमंत्री ने विपक्ष पर हमला बोला कि ‘‘किसी को तकलीफ है तो होती रहे’’। यानी ‘‘में तो नाचूँगी’’।। खैर हमारा सरोकार तो उन तीन हजार से ज्यादा महिलाओं से है जिन्हें इस देवभूमि में तकलीफ हुई। हमें और कोई तकलीफ नही। काबिले जिक्र है कि हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकार माफिया राज समाप्त करने के दावों पर आई थी। जिस में सबसे प्रमुख गुड़िया प्रकरण था जिस गुड़िया को अभी तक न्याय नही मिला और उसके माँ-बाप न्याय के लिए भटक रहे हैं। कभी गुड़िया हेल्प लाइन आई तो कभी गुड़िया बोर्ड बना कर राजनीतिक ताजपोशियाँ हुई। उसी देव भूमि में सरकाघाट में अस्सी वर्षीया महिला के साथ क्रूरता का प्रकरण भी सामने है, ऊना में हाल ही में एक महिला को नग्न अवस्था में मार कर पेड़ पर लटका दिया गया। ऐसे अनेकों मामले हैं जिनका उल्लेख फिर करेंगे। 
लेकिन मसला तो माफिया पर कहर बरपाने का था आज एक साल में साढ़े आठ किलो से अधिक चिट्टा प्रदेश में पकड़ा है इस पकड़ की तुलना में प्रदेश में कितनी खपत हुई उसका अध्ययन भी हो जाना चाहिए अब तो दो सालों से सत्ता पर आप का कब्जा है। खनन माफिया पर विधानसभा में हंगामे के बाद कोई करवाई ना होना जाहिर करता है कि या तो सरकार व प्रशासन हद दर्जे का सवेंदनहीन है या फिर मामला गड़बड़ है। बहरहाल आप का कहना है कि पाँच साल नाटियाँ पड़ेगी और उससे आगे भी। पाँच साल नाटियां आप डाल सकते हैं आगे का फैसला तो जनता करेगी। यूँ जश्नो-नाटियों पर करोड़ों फूंकने जैसी कोई बात नही है। धर्मशाला विधान सभा सत्र के दौरान रात्रि भोज के मेजबान आप थे। नाटियाँ आपने और आपके विधायकों ने डाली, बदनाम विपक्ष भी साथ लगते कर दिया जबकि विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस का कोई विधायक नही नाचा। उसी की सफाई आप लगातार दे रहे हैं। किसी को ‘‘नाटी किंग’’ कहलाना है या ‘‘विकास पुरुष’’ यह समय बताएगा। मगर प्रदेश में बीते दो साल में 703 रेप और 168 कत्ल हमारी नजर में बेहद चिंताजनक है।

 

क्या प्रशासन निगम हाऊस को गुमराह कर रहा है या पार्षद प्रशासन पर दबाव डाल रहे है उच्च न्यायालय के आदेशों से उठी चर्चा

शिमला/शैल। नगर निगम शिमला की संपदा शाखा के अधीक्षक की पदोन्नति पर प्रदेश उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। यह रोक इसलिये लगाई गयी क्योंकि इसी अधीक्षक एवम कुछ अन्य के खिलाफ अदालत ने एक जांच के आदेश दिये हैं। स्वभाविक है कि यदि इस जांच में यह अधीक्षक दोषी पाये जाते हैं तो उनके खिलाफ दण्डात्मक कारवाई होगी क्योंकि संवद्ध मामला भ्रष्टाचार के साथ ही निगम की कार्य प्रणाली पर भी गंभीर सवाल उठता है। इस मामले की जांच से यह सामने आयेगा कि यह भ्रष्टाचार संपदा शाखा के लोगों की ही मिली भगत से हो गया या इसमें कुछ बड़ों की भी भागीदारी रही है। खलिणी की पार्किंग से जुड़े इस मामले की जांच रिपोर्ट अभी आनी है। लेकिन यह जांच रिपोर्ट आने से पहले ही अधीक्षक को पदोन्नति देना और इसके लिये मामले को निगम के हाऊस की बैठक में ले जाना तथा हाऊस द्वारा इस पदोन्नति को सुनिश्चित बनाने के लिये संवद्ध नियमों में भी कुछ बदलाव करने की संस्तुति कर देना अपने में कई गंभीर सवाल खड़े कर जाता है।
निगम के हाऊस में पदोन्नति के ऐसे मामलों को ले जाना जहां संवद्ध व्यक्ति के खिलाफ अदालत ने ही जांच करने के आदेश दिये हांे यह सवाल उठाता है कि क्या प्रशासन पर इनके लिये हाऊस के ही कुछ पार्षदों का दवाब था या प्रशासन हाऊस की मुहर लगवाकर पदोन्नति को अंजाम देना चाहता था। अदालत द्वारा किसी के खिलाफ कोई जांच के आदेश देना या किसी मामले में फैसला देना ऐसे विषय होते हैं शायद उन पर हाऊस का कोई अधिकार क्षेत्र नही रह जाता है। ऐसे मामलों में राज्य की विधानसभा या संसद तक भी दखल नही देती है। जनप्रतिनिधियों का काम तो जनता से जुड़े विकास कार्यों को आगे बढ़ाना प्रशासन द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार को रोकना या प्रशासन द्वारा किसी के साथ की जा रही ज्यादती को रोकना और संवद्ध व्यक्ति को न्याय दिलाने से होता है। क्योंकि अदालती मामलों को अदालती प्रक्रिया से ही निपटाया जाता है। यदि अदालत का जांच आदेश देना सही नही था तो उसे अदालती प्रक्रिया के तहत चुनौती दी जा सकती थी लेकिन इस तरह अदालती आदेश को अंगूठा दिखाकर संवद्ध व्यक्ति को लाभ देने का प्रयास करना तो एक तरह से अदालत की अवमानना करना ही हो जाता है।
नगर निगम में अदालत के फैसलों को दर किनार करते हुए लोगों को उत्पीड़ित करना एक सामान्य प्रथा बनता जा रहा है। एक मामले में नगर निगम अपनी ही अदालत के नवम्बर 2016 में आये फैसले पर आज तक अमल नही कर रहा है। संवद्ध व्यक्ति को मानसिक परेशानी पहंुचाने के लिये निगम के हाऊस का कवर लिया जा रहा है और हाऊस भी फैसले पर एक कमेटी का गठन कर देता है जबकि कानूनन ऐसा नही किया जा सकता। क्योंकि अदालत के फैसले की अपील तो की जा सकती है लेकिन उस पर अपनी कमेटी नही बिठाई जा सकती है। लेकिन मेयर यह कमेटी बिठाती है और इसके पार्षद सदस्य अदालत के फैसले को नजरअन्दाज करके संवद्ध व्यक्ति को परेशान करने के लिये अपना अलग फरमान जारी कर देते हैं। ऐसे कई मामले हैं जहां यह देखने में आया है कि निगम के पार्षद/मेयर कानून की जानकारी न रखते हुए किसी को पदोन्नति का तोहफा तो फिर किसी को मानसिक प्रताड़ना का शिकार बना रहे हैं। क्योंकि तीन वर्षों तक अदालत के फैसले पर किसी न किसी बहाने अमल नही किया जायेगा तो इससे बड़ी प्रताड़ना और क्या हो सकती है।
जहां निगम प्रशासन और हाऊस इस तरह से कानून/अदालत को अंगूठा दिखाने के कारनामे कर रहा है वहीं पर निगम में हुए करोड़ों के घपले पर आंखे मूंदे बैठा है। निगम के आन्तरिक आडिट के मुताबिक वर्ष 2015-16 से निगम में 15,90,43,190/- रूपये का घपला हुआ है जिस पर आज तक निगम के हाऊस ने कोई संज्ञान नही लिया है। बल्कि इसी आडिट रिपोर्ट के मुताबिक 31-12-16 को 48,27,62,231/- के विभिन्न अनुदान बिना खर्चे पड़े थे। इससे निगम और उसका प्रबन्धन विकास के प्रति कितना प्रतिबद्ध है इसका पता चलता है। आडिट रिपोर्ट में साफ कहा गया है।

जब लीज मनी सबसे एक मुश्त ली गयी तो फिर अवधि अलग-अलग क्यों प्रदेश से बाहर के 54 लोगों को मिली 95 वर्ष के पट्टे पर सरकारी भूमि

 

शिमला/शैल। जयराम सरकार ने उद्योग लगाने या दुकान चलाने के लिये अब तक 140 लोगों को सरकारी भूमि लीज पर दी है। इसमें बिलासपुर-15, चम्बा-8, हमीरपुर-5, कांगड़ा- 27, मण्डी-1, शिमला-7, सिरमौर-2, सोलन-21 और ऊना में 61 लोगों को यह लीज मिली है। इन 140 लोगों में से 54 लोग हिमाचल से बाहर के हैं। हिमाचल से बाहर के लोगों को यह लीज 95 वर्ष के लिये दी गयी है। जबकि हिमाचल से ताल्लुक रखने वाले नौ लोगों को यह लीज 45 वर्ष के लिये है। शिमला में दो लोगों ने जूट बैग बनाने के लिये जमीन ली है इन्हे 80 वर्ष 11 महीने की लीज है। हमीरपुर में पांच लोगों को जमीन दी गयी है और यह सभी लोग हमीरपुर से ताल्लुक रखते हैं लेकिन इनकी लीज अवधि 45 वर्ष है जबकि मण्डी में केवल एक आदमी को जमीन दी गयी है परन्तु उसकी लीज अवधि 95 वर्ष है। प्राईवेट सैक्टर में लगने वाली हाईड्रो परियोजनाओं को 40 वर्ष के पट्टे पर जमीने दी गयी है।
जिन 140 लोगों को सरकारी भूमि दी गयी है उन सभी ने या तो छोटा बड़ा उ़द्योग लगाने के लिये जमीन ली है या फिर दुकान चलाने के लिये, लेकिन कुछ को 45 वर्ष तो कुछ को 80 वर्ष 11 महीने और 95 वर्ष के लिये लीज़ दी गयी हैं इस तरह से लीज़ अवधि अलग- अलग होने से यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या सरकार ने अगल-अलग स्थानों के लिये लीज़ नियम अलग- अलग बना रखे हैं? स्वभाविक है कि जिस व्यक्ति को 95 वर्ष की लीज़ दी गयी है यह उसके अपने लाईफ टाईम से तो अधिक का ही समय है। जिसका उपयोग उसके वंशज भी करेंगे। लेकिन जिन लोगों को उद्योग के नाम पर ही 45 वर्ष के लिये ज़मीन दी गयी है क्या उनके वारिसों से 45 वर्ष बाद यह जमीन छीन ली जायेगी? यह सवाल इसलिये उठ रहे हैं क्योंकि लीज़ मनी सबसे एकमुश्त इकट्ठी ले ली गयी है। केवल सिरमौर के पांवटा में एनवायरमैंट लि. द्वारा स्थापित किये जा रहे सीईटीपी से एक रूपया प्रतिमाह टोकन लीज़ फीस ली जा रही है। शेष सभी से चाहे उद्योग या दुकान के लिये सरकारी भूमि ली गयी है सबसे इकट्ठी ही लीज़ मनी वसूल कर ली है।
ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि जब लीज़ मनी एकमुश्त ले ली गयी है तो फिर लीज़ अवधि अलग-अलग क्यों? क्या इससे निवेशकों पर असर नही पड़ेगा? क्या सब सरकार की किसी नीति के तहत किया गया है या संबंधित अधिकारियों ने अपने स्तर पर ही ऐसा कर दिया है क्योंकि सरकारी भूमि पर इस तरह से अलग -अलग नियम होना सामान्य समझ से परे है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

दो साल बाद पता लगा 45 करोड़ के दुरूपयोग का

शिमला/शैल। जयराम सरकार के सत्ता में दो वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। इस अवसर पर सरकार एक बड़ी रैली का आयोजन करने जा रही है। इसी रैली में सरकार अबतक की अपनी बड़ी उपलब्धियों का ब्योरा जनता के सामने रखेगी। यह ब्यौरा रखना सरकार का हक और दायित्व दोनो ही हैं लेकिन इसका आकलन प्रदेश की जनता करेगी कि हकीकत में उसके पास कितना और क्या पहुंचा है। क्योंकि सत्ता में बैठी हर सरकार को यही लगता है कि जो कुछ उसने किया है वही सही और आवश्यक था। आज कांग्रेस के शासनकाल में स्थापित और विकसित किये गये औद्यौगिक क्षेत्रों पर खर्च किये गये 45 करोड़ रूपये मुख्यमन्त्री की नजर में एकदम धन का दुरूपयोग रहा है। जिसकी जांच किया जाना आवश्यक है। लेकिन इतने बड़े धन के दुरूपयोग का पता मुख्यमन्त्री को दो वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के बाद सीएजी की रिपोर्ट से चल पाया है। उन्हें इस दुरूपयोग की जानकारी उन अधिकारियों से नही मिल पायी है जो अधिकारी इसके लिये जिम्मेदार रहे हैं। जिस वित्त सचिव के हाथों इस पैसे की स्वीकृति दी गयी है वह इस सरकार में आज मुख्य सचिव हैं और सेवानिवृति के बाद रेरा के सर्वेसर्वा होने जा रहे हैं। सरकार की कार्यप्रणाली की जानकरी रखने वाले जानते हैं कि सरकार में पैसे के उपयोग और दुरूपयोग की बड़ी जिम्मेदारी वित्त विभाग की ही रहती है। ऐसे में जब मुख्यमन्त्री इस जांच की बात कर रहे हैं तो स्वभाविक रूप से यह सवाल तो उठेगा ही कि क्या इन संवंद्ध अधिकारियों तक भी यह जांच पहुंचेगी या नही। क्योंकि मुख्यमन्त्री ने इस जांच की बात ऐसे समय में की है जब इन्वैस्टर मीट को लेकर विपक्ष पहले ही सरकार पर हमलावर हो चुका है।
सरकार की उपलब्धियों का आकलन हमेशा वित्तिय स्थिति के आईने में ही किया जाता है। यहां सरकार की स्थिति लगभग हर माह कर्ज लेने वाली रही है। कर्ज लेकर काम चालाना कोई अपराध नही है लेकिन जब कर्ज लेकर घी पीने वाली कहावत को अन्जाम दिया जाता है  तो स्थिति वैसी ही हो जाती है जो सीएजी ने इस 45 करोड़ के दुरूपयोग को लेकर की है। जब इन्वैस्टर मीट पर केन्द्र के 12 करोड़ को खर्च किये जाने का तर्क यह जायज ठहराने के लिये दिया जाता है कि यह पैसा प्रदेश सरकार का तो नही था। तब यह तर्क अपने में ही हास्यस्पद हो जाता है। इन्वैस्टर मीट सरकार का अब तक का सबसे बड़ा काम कर रहा है क्योंकि पूरा शीर्ष प्रशासन इसी के प्रबन्धन में व्यस्त रहा है। लेकिन जब इसी निवेश जुटाने के जुगाड़ में पर्यटन की सरकारी सपंतियों को निजि क्षेत्र को देने की योजना का खुलासा सामने आया तब सरकार एकदम इस पर बैकफुट पर आ गयी। पर्यटन सचिव को हटाकर पूरे मामले की जांच मुख्य सचिव से करवाने की घोषणा की गयी। लेकिन इस जांच का सच विधानसभा सत्र में आये सवाल के जवाब में सामने आया है। जब जवाब में यह 16 होटलों को लीज आऊट करने की बात दुर्भावपूर्ण मंशा से नही की गयी थी। संभव है औद्य़ौगिक क्षेत्रों के लिये हुए खर्च की जांच में भी ऐसी मंशा सामने आये।
आज दो वर्ष पूरे होने पर इस तथ्य को कैसे नजरअन्दाज किया जा सकता है कि इसी अवधि में भ्रष्टाचार के आरोप लगते हुए कई पत्रा सोशल मीडिया में वायरल होकर सामने आये हैं। इन्ही वायरल पत्रों की शिकायत पुलिस में पहुंची। पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और जांच में भाजपा के ही एक पूर्व मन्त्री का मोबाईल फोन कब्जे में लिया गया। इस फोन की फारैन्सिक जांच रिपोर्ट आने के बाद बड़ा बवाल उठा लेकिन अन्त में सबकुछ दब गया। लेकिन क्या जनता इसको आसानी से भूल पायेगी शायद नही। विकास के नाम पर जिन राष्ट्रीय राज मार्गों को एक बड़ी उपलब्धि के रूप में जनता को परोसा गया था। वह अभी भी सिन्द्धात रूप की स्वीकृति से आगे नही बढ़ पाये हैं। बल्कि आज इस सबके लिये केन्द्र से चौदह हजार करोड़ मांगे गये हैं। शिक्षा के क्षेत्र में आयी प्रदेश उच्च न्यायालय की टिप्पणी से सारा खुलासा हो जाता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में केन्द्र की आयुष्मान भारत योजना से अवश्य कुछ लोगों को लाभ मिला है लेकिन प्रदेश सरकार चिकित्सा सहायता के नाम पर अब तक 208 लोगों को करीब दो करोड़ ही दे पायी है।
प्रशासन के नाम पर सरकार की बड़ी उपलब्धि अधिकारियों के आवश्यकता से अधिक तबादले रहे हैं इन तबादलों के परिणामस्वरूप कुछ अधिकारियों के गिर्द ही सरकार केन्द्रित होकर रह गयी है जबकि कुछ लगभग खाली बैठने जैसी स्थिति में पहुंच गये हैं इसी सबका परिणाम रहा है कि एक अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर की महिला अधिकारी मन्त्रीमण्डल की बैठक में रोने तक के हालात पैदा हो गये। नगर निगम में आयुक्त के साथ हुए अभद्रता के व्यवहार को लेकर मामला पुलिस तक पहुंच गया। अदालत के फैसलों पर वर्षों तक अमल नही हो रहा है। भ्रष्टाचार का आलम यह है कि न्यूनतम निविदा को छोड़कर अधिक दर वाले को काम दिया जा रहा है। बिलासपुर में निर्माणाधीन चल रहे हाईड्रो कालिज में इसी निविदा प्रकरण में आठ करोड़ का घपला कर दिया गया है। लेकिन इसकी जांच का जोखिम नही उठाया जा रहा है। ऐसे कई उदाहरण है।

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