शिमला/शैल। हिमाचल सरकार का कर्जभार पिछले कुछ वर्षों से तय सीमा से बढ़ता जा रहा है और केन्द्र सरकार के वित्त विभाग ने भी इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए 29 मार्च 2016 को प्रदेश के प्रधान सचिव वित्त को पत्र लिखा था। वित्त विभाग के निदेशक द्वारा जारी इस पत्र में वित्तिय वर्ष 2016-17 के लिये राज्य की कर्ज की सीमा 3540 करोड़ आंकी गयी थी। इसमें स्पष्ट कहा गया था कि The State may Please ensure adherence with this ceiling while assessing resources for its annual Plan for 2016-17 and also ensure that the States incremental borrowings remain with in this ceiling during 2016-17. The ceiling covers all sources of borrowings including open Market Borrowings, negotiated loans from financial institutions, National Small Saving Fund loans, central Government loans including EAP's, other liabilities arising out of public account transfers under small savings, Provident funds, Reserve Funds, Deposits , etc., as reflected in statement 6 of the State's Finance Accounts. Further, in case the outstanding balances in Cash Credit Limits (CCL) Accounts for Food procurement operations, if any, by the State at the end of the financial year exceeds the opening balances at the beginning of the year, the net increase shall be considered against the borrowing space of the State for the year 2016-17, However, the additional borrowing limits proposed under UDAY to take over DISCOMs liabilities by participating States would be beyond the prescribed by the FFC and not to be counted against the Fiscal deficit limits of respective States as per decision taken.
केन्द्र का यह पत्र 29 मार्च को आया था लेकिन 10 मार्च 2016 को सदन में वित्तिय वर्ष 2016-17 के जो बजट दस्तावेज रखे गये थे उनमें 2016-17 के संशोधित अनुमानों में इसी वर्ष का कुल कर्जभार जीडीपी का 33.96% बताया गया है। बल्कि 31 मार्च को वित्तिय वर्ष के बन्द होने से पहले भी 2400 करोड़ का कर्ज लिया गया था। वर्ष 2017 चुनावी वर्ष था और दिसम्बर में ही सरकार बदल गयी थी। जयराम ठाकुर मुख्यमन्त्री बन गये थे। जयराम ने जब सदन में अपना पहला बजट भाषण रखा था तब उसमें पूर्व की वीरभद्र सरकार पर यह आरोप लगाया था कि वीरभद्र के इस शासनकाल में 18787 करोड़ का अतिरिक्त कर्ज लिया गया है। कर्ज के आंकड़े रखते हुए जयराम ने सदन को बताया था कि जब 2007 में धूमल सरकार ने सत्ता संभाली थी तब प्रदेश का कर्जभार 19977 करोड़ था जो कि 2012 में सत्ता छोड़ते समय 27598 करोड़ था लेकिन वीरभद्र के शासनकाल में 18 दिसम्बर 2017 को यह कर्ज बढ़कर 46385 करोड़ हो गया था। बजट दस्तावेजों में 31 मार्च 2018 को यह कुल कर्ज 47906.21 करोड़ दिखाया गया है इसके बाद 2018 - 19 मेें मुख्यमंत्री के ही बजट भाषण के अनुसार 4546 करोड़ का ऋण लिया गया है जिसका अर्थ है कि 31 मार्च 2019 को यह कर्जभार 52 हजार करोड़ से ऊपर चला जायेगा। 2017-18 की कैग रिपोर्ट अभी तक सदन में नही आयी है। इस रिपोर्ट में ही प्रदेश की वित्तिय स्थिति का सही खुलासा सामने आयेगा। इसके बाद चालू वित्तिय वर्ष में ऋणों की स्थिति पर विधानसभा के मानसून सत्र में आये जगत सिंह नेगी, राजेन्द्र राणा, मुकेश अग्निहोत्री और रामलाल ठाकुर के सवालों के जवाब में आयी जानकारी के मुताबिक जयराम सरकार अबतक 11329.85 करोड़ का ऋण ले चुकी है। जिसमें से 6600 से अधिक का ऋण अभी वापिस नही किया गया है।
ऋणों की इस तफसील से हटकर एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हर बजट में दिखायी जाने वाली पूंजीगत प्राप्तियां भी ऋण ही होती हैं और बजट दस्तावेज में इसे सकल ऋण ही दिखाया जाता है यह पूंजीगत प्राप्तियां वर्ष 2017-18 में 6592.12 करोड़ और 2018-19 में 7730.20 तथा 2019-20 में 8330.75 करोड़ दिखायी गयी है। यह सारा ऋण किन साधनों से लिया गया है और इसमें कितना वापिस हो पाया है इसके बारे में स्थिति बहुत साफ नही है। भारत सरकार ने जो पत्र मार्च 2016में प्रदेश सरकार को भेजा है उसके मुताबिक प्रदेश सरकार तय सीमा से कहीं अधिक ऋण ले चुकी है और आगे ऋण लेने पर और कड़ी पाबंदी लग सकती है। भारत सरकार ने इस संबंध में राज्य सरकार से पूरी विस्तृत जानकारी तलब की है। प्रदेश का वित्त विभाग इस बारे में कुछ भी कहने से बच रहा है। वित्त विभाग के सूत्रों के अनुसार वित्तिय स्थिति बड़े ही नाजुक मोड़ पर पहुंच चुकी है शायद भारत सरकार से केन्द्र पोषित योजनाओं में भी वांच्छित आर्थिक सहायता नही मिल पा रही है। दूसरी ओर आलम यह है कि मुख्यमन्त्री के पहले बजट भाषण में उनके नाम से तीस योजनाएं घोषित की गयीं और दूसरे बजट में सोलह योजनाएं घोषित हैं लेकिन इनमें से कितनी योजनाओं पर अमल हो पाया है और भारत सरकार के पत्र के अनुसार क्या कदम उठाये गये हैं इस पर कोई भी कुछ कहने की स्थिति में नही हैं।
यह है केन्द्र का पत्र
कर्ज के कुछ आंकडे
शिमला/शैल। प्रदेश मन्त्रीमंडल में मन्त्रीयों के दो खाली चले आ रहे पदों को भरना मुख्यमन्त्री के लिये कठिन होता जा रहा है बल्कि यह कहना ज्यादा संगत होगा कि इन पदों को भरने के साथ ही राजनीतिक बिस्फोट की संभावनाएं एकदम बढ़ जायेंगी। राजनीतिक विश्लेष्कों का मानना है कि एक समय जब धूमल सरकार के खिलाफ कुछ लोगों ने शान्ता कुमार के अपरोक्ष नेतृत्व में मोर्चा खोला था और आरोपों का एक लम्बा-चौड़ा ज्ञापन तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को सौंपा था ठीक आज उसी तर्ज पर जयराम सरकार के खिलाफ तैयारियां चल पड़ी हैं। इन तैयारियों को हवा वायरल हुए उस पत्र की पुलिस जांच से मिली है जो किसी ने कथित रूप से शान्ता कुमार को लिखा था और उसमें कुछ मन्त्रीयों के खिलाफ आरोप लगाये गये थे। यह पत्र जब वायरल हो गया और अखबारों की खबर भी बन गया तब इस पत्र को लेकर पुलिस में शिकायत दर्ज हुई। इस शिकायत की जांच पूर्व मन्त्री रविन्द्र रवि तक पहुंच गयी तथा पुलिस ने उनका मोबाईल फोन कब्जे में ले लिया। इस फोन की जांच के बाद अब यह कहा जा रहा है कि यह रविन्द्र रवि के कहने पर वायरल किया गया था। पुलिस ने दावा किया है कि इस जांच के बाद वह शीघ्र ही इस मामले में चालान दायर करने जा रही है। पुलिस की ओर से यह जानकारी बाहर आने के बाद रविन्द्र रवि ने अपनी प्रतिक्रिया में यह मामला सीबीआई को सौंपे जाने की मांग करते हुए यह पड़ताल किये जाने की भी मांग की है कि यह पत्र लिखा किसने है इसका भी पता लगाया जाना चाहिये। इसके बाद रविन्द्र रवि की पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार से भी मुलाकात हुई है। रवि और धूमल के मिलने को भी इसी संद्धर्भ में देखा जा रहा है। इससे पहले कांगड़ा में अनुराग के साथ किश्न कपूर और इन्दु गोस्वामी का मिलना भी राजनीतिक संद्धर्भो में ही देखा जा रहा है। यह मिलना धर्मशाला में हुई इन्वैस्टर मीट के बाद हुआ है और इस मीट में अनुराग ठाकुर, किश्न कपूर और प्रेम कुमार धूमल की भूमिकाएं नहीं के बराबर रही हैं। बल्कि इस मीट में अपने सत्र को संबोधित करते हुए अपरोक्ष इसके आयोजको को अपनी नाराज़गी भी बड़े शब्दों में सामने रख दी थी। उस सत्र में मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव संजय कुण्डु मौजूद थे और अनुराग का इंगित भी शायद उन्हीं की ओर था क्योंकि मीट के प्रबन्धन में प्रधान सचिव की भूमिका अग्रणी कही जा रही है। इस मीट से पहले ही जयराम के खेलमन्त्री गोविन्द ठाकुर और अनुराग ठाकुर में क्रिकेट स्टेडियमों को लेकर जिस तरह की ब्यानबाजी रही है उसके परिणाम भी राजनीतिक समीकरणों की ओर ही ईशारा करते हैं गोविन्द ठाकुर और मुख्यमन्त्री के रिश्ते तो इसी से सामने आ जाते हैं जब मानसून सत्र में घाटे में चल रही एचआरटीसी द्वारा मुख्यमन्त्री को गाड़ी भेंट किये जाने की चर्चाएं चली थी। मुख्यमन्त्री अधिकारियों के दवाब में चल रहे हैं यह आरोप वरिष्ठ नेता महेश्वर सिंह भी एक ब्यान में लगा चुके हैं। यही नहीं पिछले कुछ अरसे से मण्डी में एक वर्ग आरटीआई के माध्यम से आईपीएच मन्त्री मेहन्द्र सिंह ठाकुर को लेकर भी कई आरोप उछाल चुका है जिनमें यह कहा गया है कि महेन्द्र सिंह मुख्यमन्त्री के चुनाव क्षेत्र सिराज और अपने चुनावक्षेत्र धर्मपुर में ही भेदभाव की राजनीति कर रहे हैं। इन्ही आरोपों में एक आरोप 45 लाख रूपया अब तक खाने आदि पर ही खर्च कर देने का लगाया गया है।
अब जिस तरह से इस वायरल पत्र को लेकर चल रही जांच में रवि केन्द्रित होते जा रहे हैं निश्चित रूप से उसका परिणाम राजनीतिक विस्फोटक ही होगा। इस पत्र में जो आरोप लगाये गये हैं वह कितने प्रमाणिक हैं यह तो किसी जांच से ही पता चलेगा जो अब तक हुई नहीं है। लेकिन इन आरोपों से हटकर जहां पैसे के दुरूपयोग के दस्तावेजी आरोप सामने हैं लेकिन फिर भी उन आरोपों की जांच न हो तो स्वभाविक है कि इससे कुछ लोगों की ओर अंगुलियां उठेंगी ही। इनमें बिलासपुर में बन रहे हाइड्रो कालिज के निर्माण के लिये आमन्त्रित टैण्डर में 92 करोड़ के रेट को छोड़कर 100 करोड़ का रेट देने वाले को काम आबंटित कर दिया गया और इस तरह टैण्डर आबंटन में ही आठ करोड़ का घपला कर दिया गया। यह आठ करोड़ किसकी जेब में जायेगा इसको लेकर कई चर्चाएं चल रही हैं लेकिन इसमें जांच करवाने की बात नहीं की जा रही है। इसी तरह राजकुमार राजेन्द्र सिंह बनाम एसजेवीएनएल मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर अमल नही हो रहा है जबकि यह फैसला सितम्बर 2018 में आ चुका था और इसमें दो माह के भीतर अमल होना था। राज्य में बन रहे तीन मेडिकल कालेजों का निर्माण लोक निर्माण विभाग को छोड़कर केन्द्रिय सरकार की ऐजैन्सीयों को बिना टैण्डर आमन्त्रित किये ही दे दिया गया है। केन्द्रिय ऐजैन्सीयों में किस तरह का भ्रष्टाचार व्याप्त है इसका पता एनपीसीसी से चल जाता है भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते यह ऐजैन्सी सीबाआई के शिकंजे में है और इसे भंग करके इसका विलय एनवीसीसी में कर दिया गया है। हाईड्रो कालिज का निर्माण इसी एनपीसीसी को दिया गया था। ऐसे दर्जनों मामले है जहां राज्य सरकार के पैसे का खुला दुरूपयोग हो रहा है लेकिन जांच करने का साहस नही किया जा रहा है। एशियन विकास बैंक द्वारा सौंदर्यकरण के नाम पर शिमला के दोनों चर्चों को दिया गया करीब 21 करोड़ रूपया कहां गया है इसकी आज तक कोई जानकारी सामने नही है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनो में भ्रष्टाचार के यह मामले राजनीतिक विस्फोट में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे। सूत्रों की माने तो संगठन चुनावों के बाद पार्टी के अन्दर चल रही खेमेबाजी खुलकर सामने आ जायेगी और भ्रष्टाचार इस लड़ाई में केन्द्रिय बिन्दु होगा।
शिमला/शैल। प्रदेश लोक सेवा आयोग की सदस्य डा. रचना गुप्ता भी धर्मशाला में आयोजित इन्वैस्टर मीट मे मौजूद थी ऐसा सोशल मीडिया में वायरल हुए एक फोटोग्राफ के माध्यम से सामने आया है। इस मीट में देश-विदेश के वह उद्योगपति भाग ले रहे थे जो हिमाचल प्रदेश में निवेश के ईच्छुक हैं। सभी ने अपने-अपने प्रस्तावित उद्योग के प्रस्ताव सरकारी तन्त्र के सामने रखे और उसके बाद दोनों ओर से इस आश्य के समझौता ज्ञापन भी हस्ताक्षरित किये गये।
इस आयोजन का उद्घाटन प्रधानमन्त्री ने किया था। इसलिये इसमें शामिल होने वाला हर व्यक्ति सुरक्षा कारणों से इसमें विधिवत् रूप से भागीदार के तौर पर पंजीकृत था। इस पंजीकरण का एक कारण यह भी था कि इसमें भाग लेने वाले हर व्यक्ति के ठहरने, खाने का प्रबन्ध आयोजकों की ओर से किया गया था। लेकिन इस आयोजन में उद्योगों को लेकर कोई सैमीनार आदि जैसा कुछ भी कार्यक्रम नही था जिसमें उद्योगों के विभिन्न पक्षों को लेकर कोई विशेषज्ञों के पत्र पढे़ जाते या उनके संबोधन होते। ऐसे में इस आयोजन में लोकसेवा आयोग की सदस्य का शामिल होना सभी के लिये जिज्ञासा का विषय होना स्वभाविक था इसी जिज्ञासा के परिणामस्वरूप एक देवाशीष भट्टाचार्य ने डा. रचना गुप्ता की उपस्थिति को लेकर प्रदेश के राज्यपाल को यह शिकायत भेजी है।
शिमला/शैल। जयराम सरकार की इन्वैस्टर मीट के परिणाम कितने और कब व्यवहारिक रूप से जमीन पर सामने आते हैं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन इसके प्रबन्धन पर हुए खर्च को लेकर कांग्रेस नेता एवम पूर्व मन्त्री जी एस बाली ने सरकार से श्वेतपत्र जारी किये जाने की मांग कर दी है। क्योंकि इस मीट में भाग लेने वाले हर व्यक्ति के ठहरने, खाने और आने जाने का प्रबन्ध सरकार की ओर से किया था। हिमाचल के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ है कि उद्योगपतियों को प्रदेश में निवेश करने का आमन्त्रण इस तर्ज पर दिया गया है। इस सरकार से पहले की सरकारों ने भी निवेश आमन्त्रित करने के लिये देश के विभिन्न भागों में रोड शो किये हैं। लेकिन उनमें सरकारी तन्त्र के कुछ लोग ही वहां जाकर उद्योगपतियों से मुलाकात करके उन्हें आमन्त्रित करते थे।
इस बार सरकार ने जिस ताम -झाम के साथ यह आयोजन किया है उसकी ओर प्रदेश के हर आदमी का ध्यान गया है। क्योंकि इस आयोजन के आस पास ही सरकार ने वैट बढ़ाकर पैट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाये और फिर एक ही झटके में रसोई गैस के दाम 77 रूपये बढ़ा दिये। सरकार को अपने खर्चे चलाने के लिये हर माह कर्ज लेना पड़ रहा है यह अब तक कि रिपोर्टों से सामने आता रहा है ऐसे में हजारों की संख्या में उद्योगपतियों और मीडिया को सरकारी खर्च पर बुलाने से सवाल तो उठने स्वभाविक हैं क्योंकि इस मीट की तैयारियों का जिम्मा एक कंपनी को दिया गया था और पांच हजार प्रतिदिन के किराये पर एलईडी टीवी लिये जा रहे थे। जो कि छः दिन तक चलने थे। प्रतिनिधियों के बैठने के लिये सोफा सैट तीन हजार किराये पर लिये जा रहे थे। इन्वैटर मीट स्थल पर ही 100 टी वी लगने थे। अकेले आईपीएच विभाग को ही कंपनी ने 20 लाख का बिल पाईपों का दिया हुआ है। दिलचस्प बात तो यह है कि उद्योग विभाग ने वाकायदा सरकार से इस कंपनी को लेकर सरकार से अनुमति तक ले रखी है। चर्चा है कि जब मुख्यमन्त्री के संज्ञान में यह सबकुछ आया तब उन्होंने अधिकारियों को इस पर लताड़ भी लगायी है। लेकिन इस लताड़ के बाद यह खर्चे रूक पाये हैं इसको लेकर कोई भी संवद्ध अधिकारी कुछ भी कहने को तैयार नही है। माना जा रहा है कि इसी कंपनी की भूमिका को लेकर जीएस बाली ने खर्चो पर श्वेतपत्रा की मांग की है।
क्या प्रदेश भाजपा विस्फोट की ओर बढ़ रही है इन्वैस्टर मीट और संगठन चुनावों से उभरे संकेत
शिमला/शैल। इस सयम भाजपा संगठन के चुनावों के दौर से गुजर रही है। संगठन को मण्डल से लेकर प्रदेश तक नया नेतृत्व इन चुनावों के बाद मिलना है। भाजपा प्रदेश और केन्द्र दोनों जगह सत्ता में है। केन्द्र में इस समय प्रदेश से जगत प्रकाश नड्डा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष हैं तो लोकसभा सांसद अनुराग ठाकुर वित्त राज्य मन्त्री हैं। वित्त मंत्रालय में वह अकेले राज्यमन्त्री हैं। दूसरी ओर नड्डा का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना भी लगभग तय माना जा रहा है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि नड्डा और अनुराग दोनों ही केन्द्र में महत्वपूर्ण भूमिकाओं में हैं। ऐसे में इन दोनों का प्रदेश की राजनीति में दखल और प्रभाव होना स्वभाविक है। लेकिन क्या वास्तव में ही ऐसा है भी, इसको लेकर कई सवाल उठने शुरू हो गये हैं। यह सवाल इसलिये उठ रहे हैं क्योंकि इन दिनों प्रदेश सरकार जो इन्वैस्टर मीट आयोजित करने जा रही है उसमें नड्डा और अनुराग दोनों की भूमिका नहीं के बराबर है। बल्कि इस मीट में कांगड़ा के सांसद किशन कपूर का दखल भी कहीं नजर नही आया है। जबकि इस मीट के लिये अधिकारियों और मन्त्रीयों तथा विधायकों के स्तर पर कई कमेटीयां आदि गठित हुई हैं परन्तु इन तीनों का इन कमेटीयों में किसी तरह का कोई योगदान नहीं है। नड्डा की भागीदारी सक्रिय रूप से शायद कार्यकारी अध्यक्ष होने के नाते न रखी गयी हो लेकिन अनुराग और कपूर की भी कोई सक्रिय भूमिका न रहना निश्चित रूप से कई सवाल खड़े करता है।
पिछले दिनों जब आर्थिक मंदी और जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने जैसे मुद्दों पर उभरी प्रतिक्रियाओं का जवाब देने के लिये प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने अनुराग को महत्वपूर्ण भूमिका में रखा था और अनुराग ने उस दौरान प्रदेश के दौर भी किये थे उस दौरान भी जयराम और अनुराग एक बार भी मंच सांझा नहीं कर पाये थे। उस समय तो इस पर कोई बड़ी चर्चाएं नहीं उठी थी लेकिन अब जब इन्वैस्टर मीट में भी अनुराग किसी भी सक्रिय भूमिका में नही हैं तो निश्चित रूप से इसको लेकर सवाल उठेंगे ही। यह सवाल कहां तक जाते हैं और अन्त में क्या रंग दिखाते हैं इस पर अभी से नजरें लग गयी हैं क्योंकि संगठन के चुनावों में भी यह अन्दर पनपती खेमेबाजी बाहर आने लग पड़ी है।
पार्टी के भीतर मचे घमासान की वजह से पार्टी को मंडल के चुनावों की तारीख पांच नवंबर तक बढ़ानी पड़ी है। जबकि चुनाव के तय कार्यक्रम के मुताबिक भाजपा के 73 मंडलों के चुनावों 31 अक्तूबर तक पूरे किए जाने थे लेकिन अभी तक केवल 50 के आसपास मंडलों के चुनाव हुए है और यहां भी विद्रोह की चिंगारी सुलग गई है। भाजपा के पुराने नेताओं व कार्यकर्ताओं का इल्जाम है कि आरएसएस व विस्तारक भाजपा को हड़पने पर आ गए हैं। पूरी पार्टी हाइजैक कर दी है। जिन लोगों ने ताउम्र पार्टी के लिए लगा दी उन्हें बाहर किया जा रहा है। वरिष्ठता के मामले में वरिष्ठों के साथ लालकृष्ण आडवाणी सरीखा रवैया अपनाया जा रहा है। प्रदेश भाजपा भी अमितशाह के नक्शे कदम पर चल रही है।
पार्टी में विद्रोह का आलम यह है कि रोहड़ू में पार्टी के आला नेताओं की तानाशाही हरकतों का विरोध करने वाले रोहड़ू भाजपा के आधा दर्जन पदाधिकारियों को पार्टी से बाहर का दरवाजा दिखाया जा चुका है।
दिलचस्प यह है कि इनमें अधिकांश शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज के रिश्तेदार है। यहां पर विधानसभा चुनावों में भाजपा की प्रत्याशी रही शशि बाला के खिलाफ नारेबाजी हो गई। इसके अलावा जुब्बल कोटखाई में हुए मंडल के चुनावों के दौरान वहां से भाजपा विधायक और विधानसभा में मुख्य सचेतक नरेंद्र बरागटा के खिलाफ नारेबाजी हो गई। रामपुर में भी चुनाव थे लेकिन गुटबाजी की वजह से चुनाव टालने पड़े है। इसी तरह ठियोग में भी हुआ है। यहां भी विद्रोह हुआ। शिमला, कसुम्प्टी व शिमला ग्रामीण में भी तलवारें खिंची हुई है।
जिला शिमला की तरह ही जिला सोलन में भी, कसौली में भी घमासान हुआ और पार्टी कार्यकर्ताओं ने इन चुनावों में पारदर्शिता न होने का इल्जाम लगा दिया है। जबकि हमीरपुर में पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के वर्चस्व को समाप्त करने की मुहिम में लगी है। हालांकि धूमल सुजानपुर मंडल में अपने करीबी को मंडलाध्यक्ष बनाने में कामयाब हो गए हैं लेकिन जिला के बाकी चार मंडलों में अभी तक सहमति नहीं बनी है। इसी तरह की स्थिति बाकी जिलों में भी है।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक पुराने भाजपाईयों को दरकिनार किया जा रहा है और इन सब के पीछे पार्टी के संगठन मंत्री पवन राणा की शह है। उनको पार्टी अध्यक्ष सतपाल सती का भी साथ मिल रहा है। 11 नंवबर से जिला अध्यक्षों के चुनाव होने है। यह चुनाव 30 नवंबर तक पूरे किए जाने है। इसके बाद 16 दिसंबर तक पार्टी अध्यक्ष का चुनाव किया जाना है।
संगठनात्मक चुनाव के चुनाव अधिकारी व मंडी संसदीय हलके से भाजपा सांसद राम स्वरूप शर्मा पार्टी में जगह जगह फूट रहे विद्रोह के बीच पार्टी के संगठनात्मक चुनाव कराने में लगे है। वह कहते हैं कि अभी तक 50 के करीब मंडलों के चुनाव हुए हैं व बाकियों के पांच नवंबर तक करा दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि उनका काम चुनावों को पारदर्शी तरीके से कराना है। कौन निकाला गया है यह पार्टी का काम है।
पार्टी के पुराने नेताओं, पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज करने का नतीजा भाजपा को पच्छाद व धर्मशाला में भुगतना पड़ा है। पच्छाद में भाजपा के हजारों मतदाता बागी दयाल प्यारी के साथ चले गए। जबकि धर्मशाला में भी बागी को भाजपा के कार्यकर्ताओं का साथ मिला है।
रोहड़ू से निकाले गए पदाधिकारियों का कहना है कि अगर उनके साथ ऐसा ही रवैया अपनाया गया तो 2022 में उन्हें क्या करना है ये वो तय करेंगे। उन्होंने तीस-तीस साल पार्टी को देकर इसे यहां तक पहुंचाया है।