Friday, 19 September 2025
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डा. रचना गुप्ता के खिलाफ आपराधिक मानहानि मामले पर देवाशीष का राज्यपाल को पत्र

शिमला/शैल। प्रदेश लोकसेवा आयोग की सदस्य डा़ रचना गुप्ता लोक सेवा आयोग में आने से पहले पत्रकार थी। दैनिक जागरण के हिमाचल संस्करण की रैजिडैन्ट संपादक थी। दैनिक जागरण में काम करते हुए उनके खिलाफ 2016 में जे एम आई सी जोगिन्द्रनगर की अदालत में एक मानहानि का आपराधिक मामला दायर हुआ था। इस मामले में अब 12-7-2019 को उन्हें जमानत लेनी पड़ी है। यह मामला अभी तक अदालत में लंबित चल रहा है। डा. रचना गुप्ता की नियुक्ति बतौर सदस्य लोक सेवा आयोग में होने से पहले से ही उनके खिलाफ यह आपराधिक मान हानि का मामला दायर हो चुका था। अब इस मामले को लेकर एक देवाशीष भट्टाचार्य ने प्रदेश के राज्यपाल को एक पत्र लिखा है। देवाशीष ने यह सवाल उठाया है कि क्या रचना गुप्ता ने अपनी नियुक्ति से पहले यह आपराधिक मामला दायर होने की सूचना राज्यपाल और लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष को दी थी। अब जब उन्हें इस मामले में जमानत लेनी पड़ी है तब क्या इस जमानत की सूचना भी राज्यपाल और चेयरमैन लोक सेवा आयोग को दी है।
स्मरणीय है कि वर्तमान में लोक सेवा आयोग के सदस्यों /अध्यक्ष की नियुक्ति के लिये सरकार ने कोई मानक तय नहीं कर रखे हैं। इन पदों को विज्ञापित करके इनके लिये कोई आवेदन नही मंगवाये जाते है और न ही इन्हें चयन के लिये किसी साक्षात्कार बोर्ड के सामने आना पड़ता है। इनकी नियुक्तियां एकदम सरकार की ईच्छा पर निर्भर करती हैं। ऐसे में यह धारणा बनना स्वभाविक है कि इन लोगों पर इन्हें नियुक्त करने वाली सरकार का प्रभाव तो रहेगा ही। लोक सेवा आयोग एक ऐसा संस्थान है जो प्रदेश की शीर्ष प्रशासनिक सेवाओं एचए एस, एच पी एस, एच एफ एस और एच जे एस के लिये सदस्यों का चयन करता है। ऐसे में यह सवाल उठना भी स्वभाविक है कि जिन लोगों ने ऐसी वरिष्ठ सेवाओं के लिये चयन करना है उनका अपना चयन कैसे होना चाहिये? क्योंकि सेवा आयोग का सदस्य लग जाने के बाद उसके व्यक्ति को हटाने का अधिकार उस राज्यपाल के पास भी नही रह जाता है जिसने उसे नियुक्त किया होता है। इन पदों पर नियुक्त व्यक्तियों को हटाने का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास है लेकिन उसके लिये भी सर्वोच्च न्यायालय से जांच करवाकर उसकी संस्तुति लेना आवश्यक है अन्यथा इन्हें नीयत समय से पहले हटाने का कोई प्रावधान नही है।
लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति का आधार क्या हो इस पर संविधान में कोई स्पष्ट रूप से कुछ नही कहा गया है। यह लोग सरकार के प्रभाव से दूर रहे हैं इसके लिये यह बंदिश तो लगा रखी है कि आयोग छोड़ने के बाद यह लोग केन्द्र या राज्य सरकार में कोई पद स्वीकार नही कर सकते हैं। इस तरह लोक सेवा आयोग के सदस्यों /अध्यक्ष का चयन अपने में एक महत्वपूर्ण मुद्दा हो जाता है। क्योंकि इस समय जिस तरह से डा. रचना गुप्ता के खिलाफ यह आपराधिक मानहानि का मामला सामने आया है इससे एक दम स्थिति बदल जाती है। जब सदस्यों के चयन के लिये कोई प्रक्रिया या मानक पहले से तय ही नही है तो ऐसे में किसी आपराधिक मामले का सदस्य के खिलाफ लंबित होने का वैधानिक प्रभाव क्या होगा? अब जब राज्यपाल को इस विषय में एक पत्र जा चुका है तो उस पर राजभवन की प्रतिक्रिया क्या रहती है यह देखना रोचक होगा।
स्मरणीय है कि पंजाब लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति का जो मामला सर्वोच्च न्यायालय  तक पहुंच गया था उस पर 15 फरवरी 2013 को आया फैसला महत्वपूर्ण हो जाता है। इस मामले में इन नियुक्यिों के लिये क्या आधार रहने चाहिये इस पर विस्तार से चर्चा की गयी है। जस्टिस ए. के. पटनायक और जस्टिस मदन वी लोकूर की खण्डपीठ में इस संबंध में जस्टिस पटनायक ने कहा है कि  I, therefore, hold that even though Article 316 does not specify the aforesaid qualities of the Chairman of a Public Service Commission, these qualities are amongst the implied relevant factors which have to be taken into consideration by the Government while determining the competency of the person to be selected and appointed as Chairman of the Public Service Commission under Article 316 of the Constitution. Accordingly, if these relevant factors are not taken into consideration by the State Government while selecting and appointing the Chairman of the Public Service Commission, the Court can hold the selection and appointment as not in accordance with the Constitution. To quote De Smith’s Judicial Review, Sixth Edition: “If the exercise of a discretionary power has been influenced by considerations that cannot lawfully be taken into account, or by the disregard of relevant considerations required to be taken into account (expressly or impliedly), a court will normally hold that the power has not been validly exercised. (Page 280) इसी में जस्टिस लोकूर ने कहा है In the view that I have taken, there is a need for a word of caution to the High Courts. There is a likelihood of comparable challenges being made by trigger-happy litigants to appointments made to constitutional positions where no eligibility criterion or procedure has been laid down. The High Courts will do well to be extremely circumspect in even entertaining such petitions. It is necessary to keep in mind that sufficient elbow room must be given to the Executive to make C.A. No. 7640 of 2011 constitutional appointments as long as the constitutional, functional and institutional requirements are met and the appointments are in conformity with the indicators given by this Court from time to time.
Given the experience in the making of such appointments, there is no doubt that until the State Legislature enacts an appropriate law, the State of Punjab must step in and take urgent steps to frame a memorandum of procedure and administrative guidelines for the selection and appointment of the Chairperson and members of the Punjab Public Service Commission, so that the possibility of arbitrary appointments is eliminated.  अब एक मामला लोक सेवा आयोग के सदस्यों को लेकर प्रदेश उच्च न्यायालय में भी लंबित चल रहा है। राज्य सरकार ने 2013 में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद अब तक इस संद्धर्भ में कोई कदम नही उठा रखें हैं। अब देखना यह है कि राज्यपाल को आयी इस शिकायत और उच्च न्यायालय में मामला लंबित होने के चलते सरकार क्या कदम उठाती है।











































































































शिमला-कालका फोर लेन पर हुआ भूसख्लन क्या विकास की कीमत है

शिमला/शैल। सरकार प्रदेश में एक लाख करोड़ का औद्यौगिक निवेश लाने का स्वप्न देख रही है। इसके लिये दस हजार बीघे का लैण्ड बैंक भी बना लिया गया है। इसी के साथ केन्द्र द्वारा एक समय घोषित 69 राष्ट्रीय राजमार्गों की डीपीआर भी शीघ्र ही तैयार कर लिये जाने का दावा भी सरकार ने किया है। स्वभाविक है कि यह डीपीआर तैयार होने के बाद इन राजमार्गों के निर्माण का काम भी शुरू हो जायेगा। सैंकड़ों उद्योगों के साथ एमओयू साईन होने के बाद इनका निर्माण कार्य भी शुरू होगा।
इस समय एनजीटी के फैसले के तहत प्रदेश में कहीं भी अढ़ाई मंजिल से अधिक निर्माण नही किया जा सकता। सरकार इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय गयी हुई  है लेकिन वहां से अभी तक कोई राहत की खबर नही मिली है। पूरा प्रदेश भूकंप के जोन चार और पांच में है। इसी वर्ष प्रदेश के विभिन्न भागों से पांच बार भूकम्प के झटके आ चुके हैं। भूकम्प के इस खतरे को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय से राहत मिलने की उम्मीद नहीं के बराबर है।
शिमला-कालका फोरेलन का निर्माण प्रदेश के विकास का एक बड़ा आईना है। हजारों करोड़ के इस प्रौजैक्ट का काम कब पूरा होगा यह कहना आज असंभव हो गया है। क्योंकि जिस तरह से इस मार्ग पर भूस्ख्लन से जगह- जगह खतरे पैदा हो गये हैं उससे सैंकड़ों करोड़ का नुकसान अबतक इसमें हो चुका है। कई -कई घन्टों तक इस पर यातायात बन्द रखना पड़ रहा है। इस फोरलेन को लेकर लोग उच्च न्यायालय का दरवाजा तक खटखटाने की सोच रहेे हैं लेकिन इस निर्माण ने एक गंभीर सवाल यह तो खड़ा कर ही दिया है कि क्या प्रदेश में विकास के लिये इस तरह की कीमत चुकाना पर्यावरण की दृष्टि से कितना जायज़ होगा।
(कैथलीघाट व वाकनाघाट के बीच)            (जाबली के पास)                  (कुमारहट्टी के पास)










      (डगशाई के पास)                   (धर्मपुर से सनवारा के बीच)     (क्यारीघाट व कण्डाघाट के बीच मे)

 

जयराम सरकार पर भी लगा ‘‘हिमाचल आॅन सेल’’ का आरोप

कांग्रेस और भाजपा दोनों से सवाल
प्रदेश का वित्त निगम क्यो बंद हुआ
सहकारी बैंको के 980 करोड़ के एनपीए का क्या हुआ
शिमला/शैल। जयराम सरकार प्रदेश में निवेश लाने और लोगों को रोज़गार के साधन उपलब्ध करवाने के लिये न केवल अपने देश में ही बल्कि विदेशों में भी इन्वेस्टर मीट करके निवेश जुटाने के प्रयास कर रही है। इन प्रयासों की कड़ी में इस वर्ष के शुरू में पीटरहाॅफ में एक मीट करके 159 एम ओ यू साईन करके 17,365 करोड़ का निवेश आने और 40,000 लोगों को रोज़गार मिलने का दावा किया गया था। इसके बाद जून-जुलाई में 228 उद्योगों के साथ एमओयू साईन करके 27515 करोड़ का निवेश आने का दावा किया गया है। स्वभाविक है कि जब इतने उद्योगों के साथ एमओयू साईन किये गये हैं तो यह उद्योग लगाने के लिये ज़मीन भी चाहिये। जब सरकार यह मीट करके उद्योगों को आमन्त्रित कर रही है तो इनके लिये जमीन भी सरकार ही उपलब्ध करायेगी। लेकिन सरकार के इन जमीन उपलब्ध करवाने के प्रयासों को विपक्ष हिमाचल आॅन सेल के रूप में देख रहा है।
अभी नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने कांग्रेस के नौ विधायकों के सरकार पर हल्ला बोलते हुए यह आरोप लगाया है कि इस निवेश की आड़ में प्रदेश को देश-विदेश के बड़े उद्योगपतियों के हाथों बेचा जा रहा है। कांग्रेस ने ऐलान किया है कि वह सरकार के इन प्रयासों को सफल नही होने देंगे। इसके लिये कांग्रेस ने परमार जयंती के अवसर पर हिमाचल बचाओ अभियान छेड़ने का ऐलान किया है।
कांग्रेस के इन आरोपों का जवाब देते हुए जयराम के तीन मन्त्रीयों सुरेश भारद्वाज, विक्रम ठाकुर और गोविन्द ठाकुर ने एक पत्रकार वार्ता में यह दावा किया कि सरकार ने 263 उद्योगों के साथ 29500 करोड़ के एमओयू साईन किये हैं। मन्त्रीयों ने यह दावा किया है कि 6103 करोड़ के निवेश के साथ 103 प्रौजैक्टों पर काम भी शुरू हो चुका है। इसी के साथ यह भी दावा किया गया कि उद्योगों के लिये दस हजार बीघे का भूमि बैंक भी तैयार कर लिया गया है। वैसे जिस तरह के एमओयू साईन किय गये हैं उसे देखने से स्पष्ट हो जाता है कि इन उद्योगों और इस निवेश को जमीन पर उतरने के लिये अभी समय लगेगा। यह है एमओयू का प्रस्ताव जिसमें दोनो पक्षों की ओर से सिद्धान्त रूप में ही हामी भरी गयी है। 

"You are, therefore, requested to take up with and invite the investors of projects which are in pipeline and/or in which EC or permission under section-118 of H.P. Tenancy and Land Reform Act stand signed/issued and request them to participate in the aforesaid 'MOU signing ceremony'. A copy of the suggested MoU is enclosed for your reference.
You are also requested to inform the number and details of MoUs proposed to be signed in the by your department/organization, to this Office within a week.
This Memorandum of Understanding is made to facilitate M/s. for establishment of the aforesaid project in Himachal Pradesh in a time bound manner.
This MOU indicates the intention of the investor in brief about the proposed industry and the possible facilitation to be extended by the state Government and shall remain valid for a maximum period of 12 (twelve) months from the date of entering into MOU unless otherwise extended by second party. No separate notice will be required to be issued for this."

वैसे यह प्रदेश में प्रथा रही है कि हर सरकार औद्यौगिक निवेश जुटाने के लिये इस तरह के प्रयास करती रही है। हर सरकार के इन प्रयासों पर हर विपक्ष सत्ता पक्ष पर हिमाचल बेचने के आरोप लगाता आया है। भाजपा ने कांग्रेस सरकार पर यही आरोप लगाये हैं तो कांग्रेस आज भाजपा पर वही रस्म अदायगी पूरी कर रही है। लेकिन इस परिदृश्य में एक सवाल कांग्रेस और भाजपा दोनों से पूछा जाना आवश्यक हो गया है कि प्रदेश में उद्योगों को प्रोत्साहन देने और उन्हें आसान वित्त उपलब्ध करवाने के लिये प्रदेश में वित्त निगम स्थापित किया गया था। इस निगम का प्रबन्धन पूरी तरह वरिष्ठ अफसरशाहों के हाथों में ही रहा है। वित्त निगम के अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी मुख्य सचिवों के पास पदेन रही है। लेकिन आज यह निगम बुरी तरह फेल होने के बाद इसे बन्द कर दिया गया है। इसमें सरकार का करोड़ो रूपया डूब गया है। निगम के प्रबन्धन का आलम यह रहा है कि उसे अपने ऋण लेने वालों तक की जानकारी नही रही है। यह जानकारी उपलब्ध करवाने वालों को कमीशन तक देने की पेशकश की गयी है। क्या सरकार इस निगम के असफल होने के कारणों का खुलासा जनता मे रखेगी? वित्त निगम का करोड़ों रूपया डूब गया है लेकिन इसके लिये किसी को भी जिम्मेदार नही ठहराया गया है। वित्त निगम का फेल होना सरकार की औद्यौगिक नीति पर गंभीर सवाल खड़े करता है। आज जब सरकार प्रदेश में एक लाख करोड़ का निवेश लाने का स्वप्न देख रही है तो स्वभाविक है कि यह निवेश भी हमारे ही बैंको से ऋण लेकर किया जायेगा। इसलिये सरकार को आज प्रदेश के आम आदमी को यह भरोसा दिलाना होगा कि इस ऋण को एनपीए नही होने दिया जायेगा। वैसे सरकार प्रदेश के सहकारी बैंकों के 980 करोड़ के एनपीए की रिकवरी के लिये अभी तक कोई कारगर कदम नही उठा पायी है।

डाॅ.रचना गुप्ता बनाम देवाशीष भट्टाचार्य मानहानि मामले में 22 अगस्त को होगी सुनवाई

शिमला/शैल। लोकसेवा आयोग की सदस्य डा. रचना गुप्ता ने एक नोयडा निवासी देवाशीष भट्टाचार्य के खिलाफ एक करोड़ की मानहानि का मामला दायर किया है। अभी 14 जून को प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर हुए मामले में 22 अगस्त को पेशी लगी है। इस हाई प्रोफाईल मामले ने सबका ध्यान आकर्षित किया हुआ है। स्मरणीय है कि यह मामला दायर करने से पहले डा. रचना गुप्ता ने देवाशीष को 12-12-2018 को एक लीगल नोटिस भेजा था। इस नोटिस में देवाशीष द्वारा सोशल मीडिया में पोस्ट की गयी छः पोस्टों का जिक्र उठाते हुए इनसे मानहानि होने का आरोप लगाते हुए एक करोड़ के हर्जाने की मांग की गयी थी। यह पोस्टें किन-किन तारीखों को पोस्ट की गयी इसका कोई जिक्र नोटिस में नही था।
यह नोटिस मिलने के बाद देवाशीष ने रचना गुप्ता के वकील को 16-1-2019 को एक पत्र भेजकर उनसे यह जानकारी मांगी की संद्धर्भित पोस्टें किन तारीखों की हैं ताकि वह नोटिस का समुचित जवाब दे सके। वकील के इस पत्र से पहले देवाशीष ने स्वयं एक ऐसा ही पत्र रचना गुप्ता के वकील को भेजा था। लेकिन इन पत्रों का कोई जवाब नही आया। इसमें उल्लेखनीय यह है कि देवाशीष की इन सारी कथित पोस्टों में प्रश्नवाचक चिन्ह का प्रयोग किया गया है। प्रश्नवाचक चिन्ह से यह पोस्टें अपने में एक सीधा ब्यान न होकर एक सवाल बन जाती हैं। इस प्रश्नवाचक चिन्ह से यह देखना रोचक होगा कि क्या यह पोस्टें ब्यान के दायरे में आकर मानहानि का कारक हो सकती हैं या नहीं। लीगल नोटिस 12-12-2018 को भेजने के बाद अब जून में मानहानि का दावा दायर किया गया है। दावे के साथ दायर हुए शपथ पत्र के अनुसार यह याचिका संलग्नों सहित 35 पन्नों की है लेकिन उच्च न्यायालय द्वारा देवाशीष को भेजे गये नोटिस के साथ याचिका के केवल 12 ही पन्ने उन्हें मिले है। यह 12 पन्ने मिलने पर देवाशीष ने उच्च न्यायालय के रजिस्टार ज्यूडिश्यिल को 26-7-2019 को एक पत्र लिखकर याचिका के अन्य पन्ने उन्हें उपलब्ध करवाने का आग्रह किया ताकि वह सारे दस्तावेजों का अवलोकन करके इसका समुचित जवाब तैयार कर सके।
 प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में यह मानहानि मामला विशेष चर्चा का विषय बना हुआ है। क्योंकि प्रदेश में शायद ऐसा पहली बार  हुआ है कि लोक सेवा आयोग के सदस्य को इस तरह का मामला दायर करने की नौबत आयी हो। वैसे तो लोकसेवा आयोग के एक अन्य सदस्य की नियुक्ति को भी प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती मिली हुई है और यह मामला अभी तक लंबित चल रहा है। इसमें यह रोचक हो गया है कि जब पंजाब लोक सेवा आयोग का एक मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा था तब शीर्ष अदालत ने लोक सेवा आयोगों के सदस्यों की नियुक्तियों को लेकर एक सुनिश्चित मानदण्ड निर्धारित करने और अपनाने के निर्देश केन्द्र सरकार से लेकर सभी राज्य सरकारों को कर रखे हैं। लेकिन शीर्ष अदालत के इन निर्देशों की अनुपालना आज तक नही हो पायी है और संयोगवश प्रदेश लोक सेवा आयोग के सभी सदस्यों की नियुक्तियां इन निर्देशों के बाद ही हुई है। ऐसे में यह मामला भी रोचक हो गया है और सबकी निगाहें इस पर लगी हुई हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 



छोटे विद्युत उत्पादकों की पूरी बिजली नहीं खरीद रहा है बोर्ड 26 उत्पादकों ने बैठक में रखी यह समस्या

शिमला/शैल। प्रदेश सरकार ने पिछले महीनों में करीब 228 उद्योगों के साथ 27515 करोड़ के एमओयू साईन किये हैं। इन उद्योगों और इस निवेश की प्रगति मानीटर करने के लिये हिम प्रगति पोर्टल भी तैयार किया गया है। इस संद्धर्भ मेें अभी मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हिम प्रगति पोर्टल की समीक्षा की गयी है। समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ने राजस्व और टीसीपी विभागों को निर्देश दिये हैं कि वह निवेशकों को पेश आ रही समस्याओं का तुरन्त और प्राथमिकता के आधार पर निपटारा करना सुनिश्चित करे। जिन 228 उद्योगों के साथ एमओयू साईन हुए हैं उनमें से अधिकांश उद्योग पुराने ही है जो पहले ही कुछ निवेश कर चुके हैं लेकिन इन्हें सरकार से वांच्छित सारी अनुमतियां अभी तक नहीं मिल पायी हैं। लेकिन सरकारी तन्त्र ने अपनी पीठ थपथपाने के लिये इन्हीं उद्योगों के साथ नये सिरे से एमओयू साईन कर लिये हैं। अब तन्त्र को इन उद्योगों की समस्याएं सुलझाना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गयी है क्योंकि यदि इन्हीं की समस्याएं तुरन्त हल न हो पायी तो नये निवेशकों का आना असंभव हो जायेगा।
इस कड़ी में सबसे बड़ी समस्या प्रदेश की जलविद्युत परियोजनाओं में आ रही है। प्रदेश में पांच मैगावाट तक परियोजनाएं हिम ऊर्जा के माध्यम से लगायी जाती है। जलविद्युत परियोजना लगाने से पहले प्रस्तावित परियोजना द्वारा उत्पादित बिजली कौन खरीदेगा यह उत्पादक को यह सरकार को सूचित करना होता है। प्रदेश में यह खरीद बिजली बोर्ड करता है। इस तरह उत्पादक को यह चिन्ता नहीं होती है कि बिजली बेचेगा किसको। लेकिन इस समय इन विद्युत उत्पादकों को यह बिजली बेचना एक परेशानी हो गयी है। अभी हिम प्रगति पोर्टल की समीक्षा के दौरान एक बैठक इन विद्युत उत्पादकों से भी हुई है। इस बैठक में 25 मैगावाट तक  के 26 उत्पादकों ने अपनी समस्या यह रखी की बोर्ड उनकी सारी उत्पादित बिजली को खरीद नही रहा है। यदि पांच मैगावाट का उत्पादन हो रहा है तो उसमें से दो या तीन मैगावाट ही खरीदी जा रही है और बाकी बिना बिके रह रही है। लेकिन कम खरीद का आदेश बिना लिखे जबानी दिया जा रहा है। यह समस्या छोटे और मझोले उत्पादकों को पेश आ रही है। बड़े उत्पादकों को यह समस्या नही है। इससे छोटे निवेशकों की स्थिति बहुत खराब हो गयी है। उत्पादकों द्वारा रखी गयी इस समस्या पर जब मुख्यसचिव ने बोर्ड से इस बारे में जवाब मांगा तो कोई उत्तर नहीं था। समस्या को सब ने स्वीकार किया और इसका हल क्या हो सकता है यह उत्पादकों से ही पूछ लिया। अन्त में इस समस्या को हल खोजने के लिये एक और बैठक करने का फैसला लिया गया। जानकारों के मुताबिक जिन दरों पर उत्पादकों के साथ पीपीए साईन किये हुए हैं आज उसी रेट पर बोर्ड की बिजली बिक नहीं रही है। बोर्ड की वार्षिक रिपोर्टों के मुताबिक हर वर्ष बहुत सारी बिजली बिकने से रह रही है। कैग रिपोर्ट के मुताबिक बोर्ड उत्पादकों से 4.50 रूपये यूनिट खरीद कर आगे 2.40 रूपये यूनिट बेच रहा है। यही नहीं बोर्ड की अपनी परियोजनाओं में हर वर्ष हजारों घन्टों का शट डाऊन दिखाकर बिजली का उत्पादन बन्द रखा जा रहा है। यदि बोर्ड की अपनी परियोजनाओं में पूरा उत्पादन होता रहे तब तो बिजली बेचने की समस्या और भी विकट हो जायेगी। लेकिन बोर्ड के अन्दर की इस स्थिति की ऊर्जा मन्त्री और मुख्यमंत्री को कोई जानकारी दी ही नही जाती है। अपने तौर पर यह लोग बोर्ड की वार्षिक रिपोर्टों और कैग रिपोर्टों का अध्ययन ही नही कर पाते हैं जबकि यह रिपोर्ट वाकायदा विधानसभा सदन में रखी जाती है। यदि समय रहते इस समस्या का समाधान न किया गया तो इसका प्रभाव सारे प्रस्तावित निवेश पर पडे़गा यह तय है।

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