Friday, 19 September 2025
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जब सीमेन्ट और विद्युत परियोजनाओं के पास हज़ारों बीघे जमीन लीज पर है तो फिर धारा 118 कहां है

शिमला/शैल।  हिमाचल प्रदेश के भूसुधार अधिनियम 1972 की धारा 118 के प्रदेश में गैर कृषकों के कृषि भूमिक्रय करने पर पांबदी लगी हुई है कोई भी गैर हिमाचली, गैर कृषक प्रदेश में सरकार की पूर्व अनुमति के बिना ज़मीन नही खरीद सकता है। ऐसी ही पाबंदी देश के कई अन्य राज्यों मे भी उनके अपने -अपने कानूनों के तहत लगी हुई हैं। इन सारी पाबंदीयों का प्रावधान संविधान की धारा 371 में दिया हुआ है। जम्मू - कश्मीर में तो जमीन खरीद के साथ ही और भी कई प्रतिबन्ध थे और संविधान की धारा 370 इसी मकसद से लायी गयी थी बल्कि 370 के प्रावधानों को 35 A लाकर और पुख्ता कर दिया गया था। अब जब धारा 370 को समाप्त करके जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद जैसी कोई भी पाबंदी वहां पर नही रही है तो स्वभाविक है कि देश के अन्य राज्यों में 371 और संविधान के पांचवे और नौंवें शडयूल के तहत लगे प्रतिबन्धों को हटाने की मांग आयेगी ही। हिमाचल के संद्धर्भ में यह मांग दिल्ली से लेकर शिमला तक उठ चुकी है। यहां पर गैर कृषक मोर्चा ने वाकायदा एक पत्रकार वार्ता मे यह मांग उठाई है। बल्कि मोर्चे के नेताओं ने तो यहां तक दावा किया है कि उन्होंने मुख्यमन्त्री जयराम से मिलकर यह मुद्दा उठाया था और उन्होंने इस मांग का समर्थन करते हुए यह कहा था कि इसमें विपक्ष रोड़ा अटका रहा है। धारा 118 के चक्रव्यूह मेे प्रदेश के दोनों बड़े दल भाजपा और कांग्रेस एक बराबर फंसे हुए हैं।
 धारा 118 के गणित को समझने  के लिये भूसुधार अधिनियम 1972 को समझने की आवश्यकता है। यह अधिनियम मूलतः कृषि भूमि का गैर कृषकों के हाथों में ट्रांसफर होने से रोकने के लिये बनाया गया था। 1972 में पारित हुए इस अधिनियम को संविधान के 40 वें संशोधन के बाद संविधान के नौंवें शडयूल में डाला गया था। ताकि इसके प्रावधानों को अदालत में भी चुनौती न दी जा सके। लेकिन इसके बाद 1976, 1987, 1994 और 1997 को इसमें संशोधन किये गये। इन संशोधनों पर राष्ट्रपति की स्वीकृति तो हासिल की गयी है लेकिन इन संशोधनों को संविधान के नौंवें शडयूल में नही डाला गया है। 1972 में पारित किये गये मूल अधिनियम के अनुसार There is a total bar on transfer of land by way of sale, gift, exchange, lease ,mortgage with possession to one who was not an agriculturalist लेकिन इसकी उपधारा (2) में इसमें भूमिहीन मजदूर अनुसूचित जाति और जनजाति के भूमिहीन, गांवों के शिल्पकार और कृषि कार्यो पर आश्रित श्रमिकों को इसमें छूट दी गयी थी। फिर इसमें भूमि की परिभाषा को लेकर भी काफी विविधता थी।
इस तरह जितने भी संशोधन इस अधिनियम में आ चुके हैं उसमें इस अधिनियम की मूल भावना का पूरी तरह लोप हो चुका है। शायद इसलिये संशोधन को नौवें शडयूल से बाहर रखा गया है। यदि 1977 के बाद से जब से प्रदेश के आद्यौगिक विकास की लाईन ली गयी है तब से सरकार ही इसमें सबसे बड़ी उल्लंघनकर्ता बन गयी है। इन्ही उल्लंघनों के कारण सरकारों पर हिमाचल बेचने के आरोप लगते रहे हैं। इन्ही आरोपों के चलते बेनामी खरीदारीयों को लेकर तीन बार प्रदेश में जांच आयोग गठित हो चुके हैं। इनकी रिपोर्टो में हजारों की संख्या में सामने आये मामलों में आज तक कोई कारवाई सामने नही आयी है। जब मूल अधिनियम में लीज के माध्यम से भी ज़मीन किसी गैर कृषक को नहीं दी जा सकती है तो फिर आज प्रदेश के सीमेन्ट उद्योग और जल विद्युत परियोजनाओं के पास हजारों बीघे जमीन कैसे है। वर्ष 2008 से 2011 के बीच प्रदेश में 19440 भू हस्तांतरण जी पी ए पर हुए हैं जिनमें से 1796 तो गैर कृषक और गैर हिमाचली हैं। जी पी ए के माध्यम से हुए इस हस्तांतरण की सूचना विधानसभा के पटल 13-3-2012 को एक प्रश्न के माध्यम ये आयी है। मूल अधिनियम के अनुसार जी पी ए के माध्यम से हुआ हस्तांतरण गैर कानूनी है लेकिन इस पर आज तक कोई कारवाई नही हुई है।
 इन तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि धारा 118 की उल्लंघना सबसे अधिक सरकार कर रही है। आज प्रदेश में कितने ऐसे बड़े अधिकारी हैं जिन्होंने सरकार से अनुमति लेकर ज़मीने खरीद रखी है कई अधिकारी तो ऐसे हैं जिन्होंने एक से अधिक प्लाट खरीद रखे हैं। आज भी सरकार बाहर से निवेशको को लाने के लिये रोड शो कर रही है। इन निवेशकों के लिये दस हजार बीघे का लैण्ड बैंक सरकार ने बना रखा है। उद्योगों के लिये सरकार नीजि भूमि का अधिग्रहण कर रही है लेकिन क्या इस तरह से अधिग्रहण करके सरकार उद्योगों को जमीन बेच सकती है या लीज पर दे सकती है? यदि धारा 118 के मूल प्रावधानों को शुद्ध कानूनी रूप से आकलन किया जाये तो शायद सरकार ऐसा नही कर सकती है। इस परिदृश्य में यदि आज धारा 118 के औचित्य पर निष्पक्षता से विचार किया जाये तो अब इसे निरस्त कर दिया जाना चाहिये। कांग्रेस और भाजपा दोनों की ही सरकारों में इसकी घोर उल्लंघना हुई और आज केवल राजनीति के लिये ही इसका विरोध किया जा रहा है।

इस घर को आग लग रही घर के ही चिराग से

शिमला/शैल। पिछले कुछ दिनों से सचिवालय के गलियारों से लेकर सड़क तक पूरे प्रदेश में यह चर्चा चली हुई है कि मुख्यमन्त्री ने अपने ओएसडी महेन्द्र धर्माणी से त्यागपत्र मांग लिया है और उन्होंने त्यागपत्र मुख्य सचिव के माध्यम से मुख्यमन्त्री को सौंप भी दिया है। चर्चाओं के मुताबिक प्रदेश महिला मोर्चा की अध्यक्षा इन्दु गोस्वामी के त्यागपत्र के बाद पैदा हुए हालात का आकलन करने के लिये मुख्यमन्त्री के आवास पर पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व की हुई बैठक में मुख्यमन्त्री सचिवालय की कार्यशैली पर भी सवाल उठे और कुछ लोगों ने ओएसडी को लेकर अपनी नाराज़गी जताते हुए धर्माणी को वहां से हटाने की बात कर दी। यदि सूत्रों पर विश्वास करें तो इस बैठक के बाद मुख्यमन्त्री ने धर्माणी से त्यागपत्र मांग लिया। लेकिन अभी तक व्यवहारिक रूप से धर्माणाी अपने पद पर बने हुए हैं परन्तु इन चर्चाओं का अभी तक अधिकारिक तौर पर किसी ने खण्डन भी नही किया है जबकि त्यागपत्र की चर्चा अखबारों की खबर तक बन चुकी है।
इस कथित त्यागपत्र की चर्चा से पहले विधायक रमेश धवाला और पार्टी के संगठन मंत्री पवन राणा का द्वन्द बड़ी चर्चा का विषय रहा है। दोनों नेता रिकार्ड पर एक दूसरे के खिलाफ प्रतिक्रियाएं दे चुके हैं। इस द्वन्द की चर्चा के दौरान ही प्रदेश महिला मोर्चा की अध्यक्षा इन्दु गोस्वामी का त्याग पत्र भी खबरों में आ गया। गोस्वामी ने अपने त्यागपत्र में सरकार और संगठन को लेकर गंभीर टिप्पणीयां की हुई हैं। इन्दु गोस्वामी के त्यागपत्र पर जिस तरह की प्रतिक्रिया पार्टी अध्यक्ष सतपाल सत्ती की रही है उसी से अन्दाजा हो जाता है कि इस आग की आंच दूर तक कई लोगों को चुभन देगी।
 इसी दौरान एक नेत्री और युवा नेता का अश्लील विडियो-ओडियो वायरल हो गया। इसके वायरल होने के बाद सीआईडी हरकत में उसने एक एडवाईजरी जारी करके इस विडियो को शेयर करने वालों के खिलाफ कारवाई करने की चेतावनी दी है। सीआईडी की एडवाईजरी के बाद कुल्लु पुलिस ने इस संद्धर्भ में मामला दर्ज करके कुछ गिरफ्रतारियां भी कर दी हैं। लेकिन अभी तक पुलिस जांच विडियो किसने बनाया? वीडियों सही या गलत इस पर नही पहुंची है। कानून की समझ रखने वालों के मुताबिक साईबर अपराधों में सोर्स तक पहुंचना और अपराध की सत्यता तक पहुंचना आवश्यक हो जाता है फिर इस मामले में जब गिरफ्तारी तक हो गयी है तो निश्चित रूप से यह प्रकरण  देर सवेर अदालत तक पहुंचेगा ही और गिरफ्तार व्यक्ति अपना पक्ष रखेगा ही। ऐसे में यह तय है कि पुलिस की कारवाई के बाद यह प्रकरण दूर तक जायेगा और इसके साथ आगे चलकर क्या -क्या और जुड़ जाये यह कहना आसान नही है। राजनीति की समझ रखने वालों का मानना है कि इसमें पुलिस कारवाई की दिशा आगे चलकर परेशानीयां ही खड़ी करेगी।
आज महेन्द्र धर्माणी, इन्दु गोस्वामी और विडियो प्रकरणों को एक साथ रखकर यदि सरकार के अबतक के कार्यकाल का आकलन किया जाये तो यह सामने आता है कि सबसे पहले कुल्लु महिला मण्डल की अध्यक्षा का एक पत्र सामने आया। इस पत्र पर वकील के माध्यम से नोटिस तक की कारवाई हुई लेकिन इससे आगे कुछ नही हुआ। इस पत्र के बाद एक पत्र सीमेन्ट के दाम बढ़ाने को लेकर सामने आ गया। इस पत्र में भी सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर आरोप लगाये गये हैं। सीमेन्ट के दाम बढ़ाने के पीछे क्या - क्या कैसे घटा इसका खुलासा इस पत्र में किया गया है लेकिन पत्र पर भी कोई खण्डन नही आया। हां इतना जरूर हुआ कि सरकार ने अखबारों के विज्ञापनों को अतिरिक्त मुख्य सचिव सूचना एवम् जन संपर्क के आदेशों पर केन्द्रित कर दिया। इस कारवाई से शैल जैसे अखबारों के विज्ञापन तो बन्द कर दिये गये लेकिन सरकार के यह प्रयास उस लावे को शान्त नहीं कर पाये जो सरकार और संगठन के बीच सुलग रहा था और अब कभी  भी भयानक ज्वाला का रूप ले सकता है।
यदि वायरल हुए सारे पत्रों का निष्पक्षता से आकलन किया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इनके पीछे उन्ही लोगों का हाथ है जो सत्ता के अति निकट बैठे हैं और उस पर गंभीर नज़र रख रहे हैं स्मरणीय है कि सबसे पहले मुख्यमन्त्री के मीडिया सलाहकार का त्यागपत्र आया। मीडिया सलाहकार के जाने के बाद अब तक इस पद को भरा नही गया है। अब  मुख्यमन्त्री के ओ एस डी और प्रधान निजि सचिव को उनके पदों से हटाने की चर्चा चल पड़ी है। पिछले दिनों पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल को प्रधानमंत्री और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जे पी नड्डा से मिलना भी राजनीतिक चर्चाओं का विषय बना हुआ है। मंत्री परिषद में खाली चल रहे पदों को अभी तक भरा नही जा सका है। लोकसभा चुनावों से पहले मुख्यमन्त्री ने सबकी परफारमैन्स देखकर इन पदों को भरने की बात की थी। लेकिन आज जिस ढंग से वायरल पत्रों से लेकर वीडियों और मुख्यमन्त्री के अपने ही ओ एस डी और प्रधान निजि सचिव को हटाने की चर्चाओं तक हालात पहुंच गये हैं उससे परफारमैन्स के गणित पर बने रहना आसान नही होगा। यह माना जा रहा है कि बहुत ही सुनियोजित ढंग से मुख्यमन्त्री कार्यालय को निशाना बनाने की व्यूह रचना की गयी है।















 






















क्या GeM के जवाब के बाद निदेशक के खिलाफ कारवाई की जा सकेगी

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार के स्वास्थ्य विभाग और आयुर्वेद विभाग में पिछले दिनों कुछ खरीदारीयों को लेकर सवाल उठे थे। इसमें स्वास्थ्य विभाग द्वारा बायोमिट्रिक मशीनों की खरीद पर और आयुर्वेद में कुछ उपकरणों की खरीद में घपला होने का आरोप लगा था। आरोप था कि स्वास्थ्य विभाग ने 15000 की बायोमिट्रिक मशीन 42000 में और आयुर्वेद ने 1555 का उपकरण 4200 में खरीदा है। इन आरोपों के बाद आयुर्वेद विभाग के अतिरिक्त निदेशक को जांच का जिम्मा दिया गया। इस जांच रिपोर्ट के बाद आयुर्वेद विभाग की परचेज़ कमेटी के तीनों सदस्यों को निलंबित कर दिया गया और निदेशक को बदल दिया गया। निदेशक आई ए एस अधिकारी थे इसलिये उनके खिलाफ कारवाई के लिये कार्मिक विभाग को अधिकृत कर दिया गया।  कार्मिक विभाग अब निदेशक के खिलाफ कारवाई की तैयारी में हैं। स्वास्थ्य विभाग में बायोमिट्रिक मशीन खरीद प्रकरण की जांच विशेष सचिव को दी गयी। अब विशेष सचिव की जांच रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन सी एम ओ कांगड़ा जो अब सेवा निवृत हो चुके हैं को चार्जशीट किया जा रहा है। स्मरणीय है कि इन दोनों विभागों के मंत्री एक ही हैं।
अब जब सरकार दोनों विभागों के अधिकारियों के खिलाफ कारवाई करने जा रही है तब इस पूरे खरीद प्रकरण और सरकार की कार्यशैली को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गये हैं। सूत्रों के मुताबिक स्वास्थ्य विभाग के सी एम ओ ने यह खरीद सीधे अपने स्तर पर न करके हैण्डीक्राफ्ट हैण्डलूम कारपोरेशन के माध्यम से की है क्योंकि विभाग ने इस कारपोरेशन को अपनी खरीद ऐजैन्सी नामज़द किया हुआ है। प्रदेश के करीब हर सी एम ओ ने इस कारपोरेशन के माध्यम से खरीद की हुई है। स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त सरकार के और भी कई विभागों ने इस कारपोरेशन के माध्यम से खरीद की हुई है और आज भी कर रहे हैं। जबकि सरकार ने जनवरी 2017 में ही इस कारपोरेशन के माध्यम से की जा रही खरीद का कड़ा संज्ञान लेते हुए इस प्रक्रिया को बन्द करने के निर्देश दे रखे हैं। लेकिन इन निर्देशों पर आज तक शायद अमल नही हुआ है। ऐसे में यदि बायोमिट्रिक मशीने खरीदने मे कोई घोटाला हुआ है तो उसमें सबसे पहले इस कारपोरेशन की संलिप्तता होना आवश्यक है और सी एम ओ के खिलाफ कारवाई के साथ ही कारपोरेशन के खिलाफ कारवाई पहले बनती है। कारपोरेशन के बिना सी एम ओ के खिलाफ कारवाई कानून की नज़र में टिक पाना संभव नही होगा। अब सरकार का जनवरी 2017 का फैसला और इस कारपोरेशन के माध्यम से की जा रही खरीद सबकुछ मुख्यमन्त्री के संज्ञान में भी आ चुका है और मुख्यमन्त्री ने इस सबकी जांच करने के निर्देश भी कर दिये हैं। फिर स्वास्थ्य विभाग के विशेष सचिव ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है कि हैण्डीक्राफ्ट, हैण्डलूम कारपोरेशन ने प्रक्रिया संबंधी गड़बड़ी कर रखी है। इस रिपोर्ट के बाद सी एम ओ के खिलाफ कारवाई करना अपने में ही कठिन हो जाता है।
इसी तरह जहां स्वास्थ्य विभाग ने इस कारपोरेशन के माध्यम से खरीद की है वहीं पर आयुर्वेद विभाग ने भारत सरकार द्वारा लांच किये गये GeM पोर्टल के माध्यम से खरीद की है। भारत सरकार ने यह पोर्टल 2017 में तैयार किया और प्रदेश सरकार ने 26-12-2017 को इसके साथ एमओयू साईन किया। एमओयू होने के बाद सारे प्रशासनिक सचिवों और विभागाध्यक्षों को निर्देश जारी करके भविष्य में खरीद इस पोर्टल के माध्यम से करना अनिवार्य करार दिया। सरकार के इन निर्देशों की अनुपालना करते हुए इस पोर्टल के माध्यम से यह खरीद की गयी। GeM के माध्यम से खरीद करते हुए यह GeM की ओर से दावा है कि हर चीज पर एमआरपी से कम से कम 10% डिस्काऊंट खरीदने वाले को मिलेगा। ऐसे में जब आयुर्वेद में 1599 का उपकरण 4200 में खरीदने का आरोप सामने आया तब विभाग ने GeM से इस बारे में विस्तृत जानकारी मांगी। सूत्रों के मुताबिक GeM की ओर से विभाग को भेजे गये जवाब में स्पष्ट किया गया है कि जो उपकरण 1599 का 4200 में खरीदने का आरोप है वह पूरी तरह गलत है। क्योंकि विभाग को जो उपकरण 4200 में दिया गया है उसका एमआरपी 5500 रूपये है। और इसमें करीब 24% का डिस्काऊंट विभाग को दिया गया है। GeM के इस जवाब के बाद यह आरोप स्वतः ही समाप्त हो जाता है कि 1599 का उपकरण 4200 में खरीदा गया बल्कि सही स्थिति यह सामने आयी कि 5500 का उपकरण  4200 में खरीदा गया।
इस परिदृश्य में विभाग के अधिकारियों पर अधिक दरों पर सामान खरीदने का आरोप अपने में ही खारिज हो जाता है और इस आरोप के आधार पर निदेशक के खिलाफ कारवाई करना तथा पहले निलंबित किये अधिकारियों का निलंबन तुरन्त प्रभाव से रद्द न करना एक नाजायज़ कारवाई हो जायेगा। वैसे सुत्रों के मुताबिक एक बड़ा वर्ग हैण्डीक्राफ्ट, हैण्डलूम कारपोरेशन के खिलाफ मुख्यमन्त्री द्वारा आदेशित कारवाई को टालना चाहता है क्योंकि इसमें कई चेहरों के बेनकाब होने की संभावना है क्योंकि चर्चाओं के मुताबिक इस कारपोरेशन के माध्यम से की जा रही खरीद में करोड़ों का घपला हो रहा है और इसका प्रमाण विशेष सचिव की रिपोर्ट से भी मिल जाता है। शायद विशेष सचिव की रिपोर्ट को मुख्यमन्त्री के संज्ञान मे न लाने के प्रयास शुरू हो गये हैं।

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