शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने मुख्यमन्त्री जयराम की मौजूदगी में अपना सदस्यता अभियान शुरू करके पहले ही दिन नगर निगम शिमला की वरिष्ठ कांग्रेस पार्षद अर्चना धवन को पार्टी में शामिल करके कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। क्योंकि धवन उस वार्ड से कांग्रेस की पार्षद थी जिसमें पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह का अपना आवास है। इसमें और भी गंभीरता इस कारण है कि धवन के लिये वोट मांगने अपने वार्ड में वीरभद्र स्वयं गये थे। धवन आज भी वीरभद्र का आशीर्वाद प्राप्त होने का दावा करती है। धवन ने कांग्रेस छोड़ने का बड़ा कारण यह कहा है कि पार्टी में वरिष्ठता की कोई कद्र नही रही है। मजे की बात यह है कि धवन के पार्टी छोड़ने और अनदेखी का आरोप लगाने पर कांग्रेस की ओर से कोई प्रतिक्रिया तक नही आयी है। नगर निगम शिमला क्षेत्र को मिनी हिमाचल की संज्ञा दी जाती है और इसके चुनावों की विधानसभा का संकेतक माना जाता है। इस दृष्टि से यहां पर ऐसी राजनीतिक घटना का अपना ही एक अलग स्थान हो जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण वरिष्ठता की अनदेखी का आरोप हो जाता है। कांग्रेस इस समय न ही प्रदेश में सत्ता में है और न ही नगर निगम में। ऐसी अनदेखी का आरोप सीधे संगठन पर आता है।
प्रदेश कांग्रेस को लोकसभा की चारों सीटों पर शर्मनाक हार झेलनी पड़ी है। लेकिन इस हार के बाद अध्यक्ष समेत कांग्रेस के किसी भी पदाधिकारी ने अपने पदों से त्यागपत्र देने की बात नही कही है। बल्कि हार के कारण जानने के लिये बुलायी गयी बैठक में भी उम्मीदवारों और अन्य नेताओं से जो कुछ पूछा गया वह वीरभद्र और विद्या स्टोक्स की मौजूदगी में पूछा गया। जबकि पूरे चुनाव के दौरान वीरभद्र के ही ब्यान अपने उम्मीदवारों को लेकर सबसे विवादित रहे हैं। वीरभद्र ही अकेले ऐसे नेता थे जो समय-समय पर मुख्यमन्त्री जयराम को सफलता /श्रेष्ठता के प्रमाण पत्र बांटते रहे हैं और उनके ब्यानों पर अध्यक्ष समेत हर बड़ा नेता चुप्पी साधे बैठा रहा। चुनाव के बाद भी संगठन की ओर से इसको लेकर कोई सवाल नही उठाया गया है। आज प्रदेश कांग्रेस में चुनाव के दौरान और उससे पहले हुए खर्चो के आडिट करवाने की चर्चा शुरू हो गयी है। चुनाव प्रचार के लिये आये पैसे से पहली बार ऐसा सामने आया कि अखबारों को कोई विज्ञापन तक जारी नही हुए। इस समय पार्टी के अन्दर पैसे को लेकर एक बड़ा विवाद छिड़ा हुआ है। सोशल मीडिया में कुछ लोगों की विवादित भूमिका को लेकर उनके खिलाफ कारवाई की जा रही है। इस कारवाई से संगठन को आगे चलकर कितना लाभ/नुकसान होगा शायद यह इस समय का सवाल ही नही रह गया है।
इसी वर्ष विधानसभा के लिये दो उपचुनाव होने हैं। लेकिन इन चुनावों को लेकर अभी तक पार्टी की ओर से कोई गतिविधि सामने नही आयी है। प्रदेश सरकार के किसी भी फैसले पर कोई प्रतिक्रिया नही आ रही है। यहां तक कि केन्द्र सरकार के बजट पर प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व एकदम खामोश सा ही रहा है। प्रदेश अध्यक्ष राठौर की प्रतिक्रिया भी एक रस्म अदायगी से अधिक कुछ नही रही है। इससे लगता है कि या तो उन्हें बजट समझ ही नही आया है या फिर वह जानबूझ कर इस पर चुप्प हैं लेकिन यह दोनों ही स्थितियां संगठन के लिये घातक हैं।
ऐसे में वीरभद्र की करीबी पार्षद के भाजपा में शामिल होने से कुछ राजनीतिक हल्को में यहां तक चर्चा चल पड़ी है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के कई बड़े नेता पासा बदल ले तो इसमें कोई हैरानी नही होगी।
स्वास्थ्य विभाग की खरीद ऐजैन्सी हैण्डीक्राफ्ट हैण्डलूम कारपोरेशन कैसे
आयुर्वेद डाक्टरों के निलंबन से उठे यह सवाल
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश सरकार ने आयुर्वेद विभाग में दवाईयों और उपकरणों की खरीद के लिये बनाई गयी विशेषज्ञ कमेटी के सदस्य डाक्टरों को निलंबित कर दिया हैं इनके खिलाफ आरोप है कि इन्होंने 1599 रूपये का उपकरण 4200 रूपये में खरीद कर एक बड़ा घपला किया है। पहली नजर में देखने पर ही यह एक बड़ा घपला नज़र आता है जिस पर तुरन्त कारवाई करके सरकार ने एक बहुत ही सराहनीय कार्य किया है और भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टालरैन्स का प्रमाण दिया है। लेकिन यदि इस प्रकरण का आधार बने दस्तावेजों का निष्पक्षता और गहराई से अवलोकन किया जाये तो यह सामने आता है कि शायद इन डाक्टरों के निलंबन से प्रदेश सरकार ने सरकारी तन्त्र के सहयोग से घट रहे एक बड़े घोटाले को ढकने का प्रयास किया है। इसका संकेत इस तथ्य से उभरता है कि भारत सरकार ने उद्योग एवम् वाणिज्य मन्त्रालय के माध्यम से देशभर में केन्द्र और राज्यों सरकारों द्वारा की जा रही स्टोर परचेज को एकरूपता देने के लिये एक डिजिटल प्रणाली GeM पोर्टल 2017 में तैयार की। इस पोर्टल पर सभी स्टोर परचेज आईटमों उनके सप्लायरों और दामों की जानकारी दर्ज की गयी। एक तरह से यह भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर किया गया रेट कान्ट्रैक्ट ही था।
जब यह पोर्टल तैयार हो गया तब इसे सारी राज्य सरकारों को भेज दिया गया और यह निर्देश दिये गये कि अब सारी स्टोर परचेज इसी पोर्टल के माध्यम से की जाये। पोर्टल को आपरेट करने का वीडियो कॉन्फैंस के माध्यम से प्रदेश सचिवालय में एक सप्ताह का प्रशिक्षण तक दिया गया। बल्कि केन्द्र ने मुख्य सचिव को एक पत्र लिखकर इस पोर्टल के माध्यम से खरीद न करने को लेकर अपनी नाराज़गी भी जताई। प्रदेश के कन्ट्रोल स्टोर ने सरकार के सभी प्रशासनिक सचिवों और विभागाध्यक्षों को इस पोर्टल का उपयोग करने के निर्देश जारी किये। इन निर्देशों से स्पष्ट हो जाता है कि स्टोर परचेज की कोई भी आईटम इस पोर्टल से बाहर नही खरीदी जा सकती है। इस खरीद के लिये पोर्टल के संद्धर्भ में नये सिरे से नियम बनाए गये। स्टोर परचेज के नियमों में संशोधन किया गया। इसमें 94। और 112 दो नये नियम जोड़े गये जिनकी अधिसूचना 19-7-2017 को जारी की गयी। 20-2-2018 को इसमें पेमैन्ट करने के लिये एसबीआई की छोटा शिमला शाखा में स्टेटपूल का खाता खोला गया। पोर्टल की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये प्रदेश सरकार द्वारा उठाये गये कदमों से स्पष्ट हो जाता है कि केन्द्र सरकार इस खरीद प्रक्रिया को लेकर कितनी गंभीर रही होगी। बल्कि इस गंभीरता का इससे और पता चल जाता है कि चुनाव आचार संहिता के दौरान इसे संहिता की नैगटिव सूची से भी बाहर ही रखा था।
दस्तावेजो के आईने में पोर्टल
पोर्टल को लेकर भारत सरकार की गंभीरता के बाद यह सवाल उठता है कि क्या सरकार के सारे विभाग इसके माध्यम से खरीद कर रहे हैं या नही। इस समय केन्द्र सरकार आयुष्मान भारत और प्रदेश सरकार हिमकेयर योजनाओं के माध्यम से लोगों को मुफ्त ईलाज की सुविधा प्रदान कर रही है और इसके लिये करोड़ों रूपयों की दवाईयां और उपकरण प्रतिदिन खरीदे जा रहे हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग में यह खरीद इस पोर्टल के माध्यम से नही हो रही है। यह विभाग सारी खरीद हैण्डीक्राफ्ट और हैण्डलूम निगम के माध्यम से कर रही है जबकि नियमों में सरकार में ऐसी किसी भी खरीद के लिये एचपीएफआर या टैण्डर प्रक्रिया के माध्यम का ही प्रावधान है। अब यह पोर्टल आने के बाद एक और प्रक्रिया इस माध्यम उपलब्ध हो गयी है। हिमाचल में स्वास्थ्य और आयुर्वेद दोनों विभागों का मन्त्री एक ही है। लेकिन आयुर्वेद में तो पोर्टल का इस्तेमाल किया जा रहा है जबकि स्वास्थ्य विभाग की खरीद हैण्डलूम कारपोरेशन के माध्यम से की जा रही है। जिसका नियमों में कोई प्रावधान ही नही है। बल्कि प्रदेश का पशुपालन विभाग भी इसी कारपोरेशन के माध्यम से खरीद कर रहा था लेकिन पशुपालन विभाग के मन्त्री के संज्ञान में जब यह आया तो उन्होंने विभाग के अधिकारियों को चार्जशीट तक कर दिया था। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि एक ही सरकार के दो मन्त्रीयों का एक ही विषय पर अलग- अलग आचरण क्यों? फिर यहां तो स्वास्थ्य मंत्री के अपने ही विभागों में अलग-अलग आचरण सामने आया है। भारत सरकार तो यह पोर्टल लाकर सारे देश में एकरूपता लाने का प्रयास कर रही है लेकिन हिमाचल सरकार के स्वास्थ्य मंत्री इस एकरूपता के प्रयास को अंगूठा दिखा रहे हैं। बल्कि शायद सरकार के अधिकांश विभाग इस पोर्टल का इस्तेमाल ही नहीं कर रहे हैं। जबकि सरकार के हर विभाग में कोई न कोई परचेज होती ही रहती है और इसी के कारण इस खरीद में रेटों और गुणवत्ता की भिन्नता आ जाती है। इस पोर्टल के माध्यम से खरीद करने में रेट और गुणवत्ता पूरे देश में एक समान ही रहेगी। इसमें समय की भी बचत रहे इसके लिये ही ऑनलाईन खरीद सुनिश्चित की गयी है। लेकिन केन्द्र सरकार के इस प्रयास को हिमाचल सरकार का कोई समर्थन नही मिल रहा है क्योंकि सरकार इस पोर्टल के माध्यम से खरीद कर ही नही रही है। जबकि केन्द्र की मोदी सरकार सारा कार्यव्यवहार डिजिटल करने का अभियान चलाये हुए है और इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित भी कर रही है। इसलिये राज्य सरकार की कार्य नीति पर सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या प्रदेश सरकार डिजिटल कार्य प्रणाली का समर्थन नही करती है। क्योंकि इस परिदृश्य में जो कुछ आयुर्वेद विभाग में घटा है यदि उसका अवलोकन किया जाये तो यही सत्य और तथ्य प्रमाणित होता है।
सरकार के कन्ट्रोलर स्टोरज़ के 4-9-2018 के पत्र में जारी निर्देशों की अनुपालना में आयुर्वेद विभाग ने 26-3-2019 को एक उपकरण की खरीद का ऑनलाईन आर्डर इस पोर्टल के माध्यम से भेजा लेकिन सप्लायर ने आदेशित उपकरण के स्थान पर अन्य उपकरण भेज दिया। आनलाईन आर्डर में सप्लायर ने यह परिवर्तन कैसे कर दिया? क्या यह चेन्ज़ सप्लायर ने स्वयं अपने स्तर पर कर दी या इसमें पोर्टल में कोई बदलाव आने के कारण ऐसा हुआ। यह तो जांच के बाद ही सामने आना था और यह जांच अभी तक हुई नही है। जबकि आयुर्वेद निदेशक ने इस संबंध में 28-6-2019 को दो पत्र भेजकर कन्ट्रोलर स्टोरज़ और स्वास्थ्य मन्त्री के कार्यालय तक को इस बारे में अवगत करवा दिया। निदेशक ने अपने पत्र में यह आग्रह किया है कि इस पोर्टल में दर्ज जिस सप्लायर ने यह गड़बड़ की है उसके खिलाफ कारवाई करके उसे पोर्टल से बाहर निकाला जाये और विभाग का पैसा उससे वापिस दिलवाया जाये। क्योंकि इस पोर्टल के माध्यम से खरीद कन्ट्रोलर के निर्देशों पर की गयी हैं
निदेशक आयुर्वेद द्वारा इस मामले को कन्ट्रोलर के संज्ञान में लाने के बाद कन्ट्रोलर द्वारा इसे भारत सरकार के भी नोटिस में लाया जाना चाहिये था। क्योंकि पोर्टल का संचालन नियन्त्रण हिमाचल में प्रदेश सरकार द्वारा तो किया नही जा रहा है और जिस दिन हिमाचल का आर्डर जा रहा है संभव है उसी दिन देश के अन्य स्थानों से भी ऐसे ही कई आर्डर गये हां और उनके साथ भी ऐसा ही घटित हुआ हो। इस संबद्ध में एक विस्तृत जांच की आवश्यकता है जो केवल भारत सरकार के स्तर पर ही की जा सकती है। निदेशक आयुर्वेद ने इसे कन्ट्रोलर, सरकार और स्वास्थ्य मन्त्री के संज्ञान में ला दिया। लेकिन इस पर कोई जांच होने से पहले ही सरकार ने अपने डाक्टरों को ही निलंबित करके अपरोक्ष में सप्लायर का ही पक्ष पुख्ता कर दिया है। क्योंकि सप्लायर को पोर्टल से हटाने और पैसा रिफंड करने का आग्रह किया गया है जिस पर वह अब कह सकता हैं कि इस मामले में जब सरकार ने ही अपने डाक्टरों का दोष मान लिया है तो उसे दोष क्यों दिया जाये। इसी के साथ अब यह सवाल भी जवाब मांगेगा कि केन्द्र द्वारा 2017 में प्रेषित इस पोर्टल के माध्यम से खरीद क्यों नही की जा रही है। यदि सरकार केन्द्र की इस योजना से सहमत नही है तो फिर कन्ट्रोलर ने इसके लिये निर्देश ही जारी क्यों किये। इसी के साथ यह भी स्पष्ट करना होगा कि हैण्डलूम कारपोरेशन स्वास्थ्य विभाग की खरीद ऐजैन्सी कैसे बन गयी और इसके लिये किन वित्तिय नियमों में प्रावधान किया गया है।
आयुर्वेद निदेशक के पत्र
शिमला/शैल। जगत प्रकाश नड्डा अन्नतः भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष बन गये हैं और वर्ष के अन्त में होने वाले कुछ विधानसभाओं के चुनावों के बाद वह पूर्णकालिक अध्यक्ष बन जायेंगे क्योंकि अमित शाह ने इन्हीं चुनावों तक यह जिम्मेदारी संभाले रखने की बात की है। नड्डा का नाम जब नये मन्त्रियों की सूची में नहीं आया था तभी यह चर्चा सामने आ गयी थी कि वह अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। वैसे नड्डा के अध्यक्ष बनने की चर्चा प्रदेश में बहुत अरसे से चलती आ रही है। नड्डा का अध्यक्ष बनना हिमाचल के लिये गौरव की बात है क्योंकि यहां से लोकसभा की चार ही सीटें होने से इसे छोटे प्रदेशों में गिना जाता है इस नाते भी यह बड़ी उपलब्धि है। लेकिन अध्यक्ष का कार्यकाल एक नीयत समय तक ही होता है और भाजपा में इस पद पर दो टर्म से अधिक तक नहीं रह सकते हैं यह संगठन का नियम और प्रथा है। लेकिन नड्डा अभी युवा हैं तो दो टर्म के बाद ही उनके रिटायर हो जाने की बात नहीं होगी। ऐसे में विश्लेष्कों के सामने यह सवाल उठना स्वभाविक है कि अध्यक्ष की टर्म खत्म होने के बाद केन्द्र की राजनीति में ही रहना पसन्द करेंगे या प्रदेश में वापिस आयेंगे।
इस समय केन्द्र में हिमाचल से युवा सांसद अनुराग ठाकुर वित्त राज्य मन्त्री हैं और वित्त मन्त्रालय में एक ही राज्य मन्त्री है। राज्य मन्त्री के रूप में वित्त विभाग में ऐसे बहुत सारे काम होतें हैं जो उसी स्तर पर निपटा दिये जाते हैं। इस तरह वित्त राज्य मन्त्री के रूप में अनुराग का राजनीतिक कद भी बड़ा हो जाता है और इसी नाते यह भी प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा शक्ति केन्द्र हो जाते हैं। फिर वह नड्डा और जयराम के मुकाबले ज्यादा युवा हैं। क्रिकेट के माध्यम से जो काम उन्होंने प्रदेश में कर रखे हैं उससे उनकी अपनी एक अलग पहचान भी बन गयी है। प्रदेश के युवा वर्ग में उनका अपना एक अलग स्थान बन चुका है इसमें कोई दो राय नहीं है।
नड्डा और अनुराग के साथ ही प्रदेश का तीसरा बड़ा शक्ति केन्द्र मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर हैं। लेकिन जयराम मुख्यमन्त्री होने से शक्ति केन्द्र बने हैं। यदि वह मुख्यमन्त्री न होते तो स्वभाविक है कि वह शक्ति केन्द्र न हो पाते क्योंकि वह चुनाव में पार्टी के सी एम फेस नहीं थे। लेकिन आज एक वर्ष से अधिक का कार्यकाल पूरा कर लेने और लोकसभा की चारों सीटों पर शानदार जीत हासिल करने के बाद अब वह स्थापित हो गये हैं। अब उनकी अगली राजनीतिक परीक्षा 2022 के लोकसभा चुनाव ही होंगे। 2022 तक उन्हें किसी भी तरह की राजनीतिक अस्थिरता का कोई खतरा नहीं है बशर्ते कि राजनीति के यह दूसरे शक्ति केन्द्र उन्हें सहयोग करते रहें। क्योंकि धूमल के कार्यकाल में यह घट चुका है जब पार्टी के कुछ विधायकों ने ही विधानसभा सत्र बहिष्कार करने का रूख अपना लिया था। धूमल के ही कार्यकाल में यह भी घटा है जब अपनी ही सरकार के खिलाफ अपने ही मन्त्रियों/ विधायकों और अन्य नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी को ज्ञापन सौंप दिया था। यह कुछ ऐसे घटनाक्रम रहे हैं जिनसे यह पता चलता है कि राजनीति में कभी भी कुछ भी घट सकता है। फिर विधानसभा के पिछले दो सत्रों में ही भाजपा के कुछ विधायक सरकार के प्रति जिस कदर आक्रामक हो चुके हैं उससे इसी सबकी पुष्टि होती है। क्योंकि जब सत्ता शक्ति के एक से अधिक केन्द्र बन जाते हैं तो स्थितियां नाजुक हो ही जाती हैं।
इस समय प्रदेश में मन्त्रीयों के दो पद खाली हैं जो कि भरे जाने हैं। इसी के साथ विधानसभा के दो उपचुनाव भी होने हैं। मुख्यमन्त्री ने पिछले दिनों यह संकेत दिये हैं कि वह इन मन्त्री पदों को उपचुनावों के बाद भरेंगे। जबकि पहले यह कहा था कि लोकसभा चुनावों की परफारमैन्स के आधार पर मन्त्री बनाये जायेंगे। बल्कि मन्त्रीयों के विभागों में फेरबदल तक करने के संकेत दे दिये थे। लेकिन आज सभी विधायकों की चुनावों में सफलता आशा से अधिक रही है। ऐसे में अब मन्त्रीयों का चयन बहुत आयान नही रह गया है। यह सही है कि सिद्धान्त रूप में मन्त्री बनाना मुख्यमन्त्री का ही एकाधिकार होता है लेकिन व्यवहारिकता में ऐसा नही हो पाता है। इसलिये यह तय है कि इस बार मन्त्री बनाने में नड्डा और अनुराग का भी दखल रहेगा। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मन्त्री पद उपचुनावों के बाद भरे जाते हैं या अभी। इसी के साथ यह देखना भी रोचक होगा कि विधानसभा के उपचुनावों में भी जीत के आंकड़ों का अनुपात लोकसभा की जीत के बराबर रह पाता है या नही। क्योंकि जीत का अनुपात यह प्रमाणित करेगा कि लोगों ने प्रदेश सरकार के काम पर कितना समर्थन दिया है और मोदी को व्यक्तिगत तौर पर कितना।
यहां पर यह भी उल्लेखनीय रहेगा कि विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद भी विधायकों का एक बड़ा वर्ग धूमल को ही मुख्यमन्त्री देखना चाह रहा था और इसके लिये दो लोगों ने त्याग पत्र देकर सीट खाली करने की आफर भी दे दी थी। उसी समय यह भी सामने आया था कि नड्डा का नाम मुख्यमन्त्री के लिये फाईनल हो गया है। यह सामने आया था कि नड्डा का नाम मुख्यमन्त्री के लिये फाईनल हो गया है। यह सामने आते ही नड्डा के लोगों ने लड्डू बांटते हुए शिमला का रूख कर लिया था और फिर वह आधे रास्ते से वापिस हुए थे। उस समय नड्डा के पिछड़ जाने के बाद संगठन के चुनावों में भी बिलासपुर में नड्डा के समर्थकों को पूरी सफलता नही मिली थी। उस दौरान राकेश पठानिया जैसे विधायकों ने जिस हिम्मत और स्पष्टता के साथ नड्डा के साथ खड़े होने का साहस दिखाया था स्वभाविक है कि नड्डा उन्हें मन्त्री बनाने के लिये पूरा दम दिखायेंगे। इसी तरह नरेन्द्र बरागटा आज भी पहले धूमल के समर्थक माने जाते हैं बाद में जयराम के। फिर उनके मन्त्री के समकक्ष मुख्य सचेतक होने को उच्च नयायालय में चुनौती मिल चुकी है और इसमें नोटिस तक हो गये हैं। ऐसे में बरागटा को मंत्री पद दिलाने के लिये धूमल-अनुराग भी प्रयास करेंगे ही। विधानसभा अध्यक्ष डा. बिन्दल का नाम तो कई दिनों से चर्चा में है। इस परिदृश्य मे यह रोचक होगा कि मन्त्री पद मुख्यमन्त्री के अनुसार उपचुनावों के बाद भरे जाते हैं या पहले ही और उसमें किस को यह झण्डी मिलती है। इसी से प्रदेश की राजनीति में नये समीकरणों की की शुरूआत होगी यह तय है।
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