Friday, 19 September 2025
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जब महामहिम के यहां भी दस्तक खाली जाये तो...

2019 के लोकसभा चुनाव परिणामों को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों बुद्धिजीवियों पूर्व वरिष्ठ नौकरशाहों से लेकर समाज के कई अन्य संगठनों तक ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग को पत्र लिखे हैं जिनका कोइ्र्र जवाब नही आया है। इसी कड़ी में सर्वोच्च न्यायालय के वकील मान प्रताप सिंह की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय जनहित संघर्ष पार्टी ने 13 जून 2019 को इसी संद्धर्भ में एक ज्ञापन सौंपा था। लेकिन इसका कोई जवाब नहीं आने पर 14-7-2019 को पुनः यह ज्ञापन सौंपा गया परन्तु अभी तक कोई जवाब नही आया है। महामहिम राष्ट्रपति कार्यालय देश का सबसे बड़ा फरयाद करने /गुहार लगाने का केन्द्र है। ऐसे में जब वहां भी दस्तक देना खाली जाये तब उस विषय को जनता के बीच मीडिया के माध्यम से रखने के अतिरिक्त कोई विकल्प नही रह जाता है। इसलिये इस आशा के साथ यह विषय जनता के बीच रखा जा रहा है ताकि जनता स्वयं आकलन करे कि ज्ञापन में उठाये गये मुद्दों का जवाब जनता के सामने आना चाहिये या नही- संपादक
 सेवा में
महामहिम राष्ट्रपति महोदय,
भारत सरकार,
राष्ट्रपति भवन, नई
दिल्ली-110001
आदरणीय महामहिम, राष्ट्रपति जी,
जैसा कि आपको विदित है कि राष्ट्रीय जनहित संघर्ष पार्टी द्वारा 13 जून 2019 को आपको एक ज्ञापन ईवीएम बैलेट पेेपर तथा 2019 के लोकसभा चुनावों के सम्बन्ध में दिया गया था, किन्तु अभी तक आपके यहां से उस ज्ञापन का कोई उत्तर नहीं दिया गया है इसलिये आज उन्हें आपके समक्ष यह ज्ञापन प्रस्तुत किया जा रहा है।
भारत की आबादी इस समय लगभग 133 करोड़ हो चुकी है और इस 133 करोड़ की आबादी में लगभग 14 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हैं। जबकि केन्द्र व राज्य सरकारों के अन्तर्गत लगभग 01 करोड़ स्वीकृत पद खाली पड़े हैं। देश में हर दिन लगभग 40 करोड़ लोग भूखे पेट सोते हैं और हर वर्ष लगभग 03 लाख लोगों की मौत भूख के कारण होती है। लगभग 92000 करोड़ रूपये का अनाज हर साल मण्डियों व सरकारी गौदामों में सरकारी लापरवाही के कारण सड़ाकर बर्बाद कर दिया जाता है। प्रदूषण की हालत यह है कि हर वर्ष वायु प्रदूषण और प्रदूषित जल पीने से लगभग 20 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है। हर साल लगभग 10 हजार से ज्यादा किसान कर्जे के कारण आत्महत्या करते हैं और भारत के किसानों पर बैंको का लगभग 12 लाख करोड़ रूपया कर्जा है। प्रतिवर्ष लगभग 11 हजार विद्यार्थी पढ़ाई के दबाव के कारण आत्म- हत्या करते हैं। हर साल लगभग 65700 बच्चों जिनमें अधिकतर लड़कियां हैं का अपहरण होता है और जिनमें से 40 प्रतिशत बच्चे कभी नहीं मिल पाते। प्रतिवर्ष लगभग 1,75,000 से ज्यादा बच्चियां व महिलायें यौन उत्पीड़न का शिकर होती हैं। मौबलिचिंग (भीड़तंत्र द्वारा हत्या) की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और गाय के नाम पर सरेआम मुसलमानों की हत्याएं की जा रही है प्रतिवर्ष दलित समाज की लगभग 65000 बहन बेटियों के साथ बलात्कार और उनकी हत्या होती है। सड़कों में गढ्ढा़े के कारण दुर्घटनाओं में प्रतिवर्ष लगभग 3000 लोगों की मौत और देश को लगभग 90000 करोड़ रूपये का नुकसान होता है। सरकारी चिकित्सा सुविधाओं के अभाव व निजि अस्पतालों में ईलाज कराने के कारण करोड़ों लोग हर साल गरीबी की रेखा से नीचे जा रहे हैं। देश में लगभग 10 लाख डाक्टरों की और लगभग 20 हजार छोटे बड़े अस्पतालों की कमी है। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में लगभग 10 लाख शिक्षकों की कमी है और उच्च एवं उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में लगभग 05 लाख शिक्षकों की भारी कमी है। यहां उल्लेखनीय है कि सभी केन्द्रीय विश्वविद्यालय में ही लगभग 50 प्रतिशत शिक्षकों के पद रिक्त पड़े हैं। प्रतिवर्ष लगभग 650000 विद्यार्थी विदेशों में पढ़ने जाते हैं जिन पर उनके माता -पिता लगभग 120000 करोड़ रूपये प्रतिवर्ष फीस के रूप में खर्च करते हैं। इन विदेश जाने वाले विद्यार्थीयों में से 90 प्रतिशत कभी भी वापिस भारत नही आते। मात्र 01 प्रतिशत लोगों के पास देश की 73 प्रतिशत सम्पति है। 20 प्रतिशत लोगों के पास 17 प्रतिशत और बाकी 79 प्रतिशत लोगों के पास मात्र 10 प्रतिशत सम्पति है। पिछले 03 साल में लगभग 17000 धनी भारतवासी विदेशों में जा बसे हैं जिनके कारण देश को भारी आर्थिक हानि हुई है। सड़कों पर लगने वाले जाम के कारण हर साल लगभग 80000 करोड़ रूपये का तेल बर्बाद होता है। राजमार्गों पर सड़क परिवहन विभाग टैक्स व पुलिस विभाग के कर्मियों के कारण देश को प्रतिवर्ष 90000 करोड़ की हानि हो रही है। 500 से ज्यादा सफाई कर्मचारी प्रतिवर्ष गटर साफ करते हुए मर जाते हैं। सन 2004 से बड़े -बड़े पूंजीपतियों व उद्योगपतियों को सरकार द्वारा टैक्सों में प्रतिवर्ष 05 लाख करोड़ से ज्यादा की छूट दी जा रही है। देश के बैंको का एनपीए (ऐसा कर्ज जो लगभग डूब चुका है)। सन 2014 में 02 लाख 25 हजार करोड़ था जो अब सन 2019 में बढ़कर लगभग 12 लाख 50 हजार करोड़ से ज्यादा हो चुका है। जिसमें से लगभग 80 प्रतिशत केवल चन्द बड़े पूंजीपतियों और उद्योगपतियों का है।
ऐसी गंभीर और विपरीत परिस्थिति में देश में 2019 के लोकसभा चुनाव होते हैं। जिसमें ईवीएम के माध्यम से भयंकर धांधली करके जनमत के विरूद्ध लूटतंत्र के द्वारा भारतीय जनता पार्टी को तथाकथित रूप से मतगणना के बाद आये चुनाव नतीजों से इस देश की जनता सक्ते में है और पूरी तरह से हैरान और पेरशान है। क्योंकि जितनी बड़ी जीत भाजपा को मिली है ऐसी कोई हवा देश के किसी भी कौने में भाजपा के पक्ष में नही बह रही थी। वर्ष 2014 में जब मोदी की आंधी चल रही थी और विपक्ष भी इकट्ठा नही था तब भी भजपा को मात्र 39 प्रतिशत वोट मिला था और अब जबकि मोदी सरकार के पिछले 05 सालों के कार्यों की विफलता यथा नोटबंदी से देश की कमर टुटने और करोड़ों लोगो के बेरोजगार होने तथा लगभग 200 लोगों के अपने ही पैसे के लिये बैंकों के बाहर लाईन में लगने से मरने वाले, जीएसटी से व्यापार और छोटे व्यापारियों के बर्बाद होने, पिछले 45 सालों में सबसे अधिक बेरोजगारी होने तथा बढ़ते भ्रष्टाचार और देश को लूटकर भागने वाले भगोड़ों की बढ़ती संख्या तथा अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई, किसानों की बद से बद्तर होती हालत तथा गन्ना किसानों की गन्ना मिलों के पर हजारों करोड़ की बकाया धनराशी, दलितों, आदिवासियों, मस्लिमों और महिलाओं पर बढ़ रहे लगातार अत्याचारों मोदी सरकार द्वारा 2017 के बाद किसी भी तरह के आंकड़ो को जारी न करने, छुपाने और बदनियती से आंकड़ों में हेरफेर करने के कारण देश की बहुसंख्यक जनता भाजपा और मोदी के विरोध में थी और विपक्ष भी वर्ष 2014 की तुलना में कहीं अधिक इकट्ठा था और गठबंधन में भी था तब भाजपा को पहले से ज्यादा वोट कैसे मिले? और 17 राज्यों में तो 51 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक वोट मिला है जो कि किसी भी तरह सम्भव नही है।
 चुनाव आयोग द्वारा 2019 के लोकसभा चुनावों की तारीख की घोषणा के साथ ही 07 चरणों में चुनाव कराये जाने को लेकर चुनाव आयोग की नीयत और विश्वनीयता पर सवाल उठने शुरू हो गये थे और लोगों के मन में चुनावों के दौरान बेईमानी और धांधली की आशंका पैदा होने लगी थी। चुनाव के आखिरी के 02 चरण रमज़ान के दौरान कराये जाने को लेकर भी चुनाव आयोग पर सवालिया निशान खड़े हुए। इसी दौरान 20 लाख ईवीएम गायब होने की खबरें बड़ी तेजी से सोशल मीडिया पर फैलने लगी। इन गायब ईवीएम से सम्बन्धित मुकद्दमा इस समय मुम्बई उच्च न्यायालय मे विचारधीन है। मुम्बई के आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन राय ने चुनाव आयोग में एक आरटीआई लगाकर चुनाव आयोग से यह पूछा कि सन 2014 तक पिछले 15वर्षों मे चनाव आयोग ने कितनी ईवीएम खरीदी है और किस कम्पनी से खरीदी है। चुनाव आयोग ने आरटीआई का जवाब देते हुए बताया कि उसने 2014 तक पिछले 15 वर्षों में 02 कम्पनीयों से ईवीएम खरीदी है। एक बैंगलोर स्थित बीईएल कम्पनी से 1005662 ईवीएम तथा दूसरे हैदराबाद स्थित ईसीआईएल कम्पनी से 1014644 ईवीएम खरीदी थी। इस प्रकार चुनाव आयोग ने कुल 2020306 ईवीएम खरीदी। मनोरंजन राॅय ने फिर 02 आरटीआई लगाई। एक बीईएल कम्पनी में और दूसरी ईसीआईएल कम्पनी में। और उन कम्पनीयों से पूछा कि उन्होंने सन 2014 तक पिछले 15 वर्षों में भारत चुनाव आयोग को कितनी ईवीएम सप्लाई की है। बीईएल कम्पनी ने बताया कि उसने 1969932 ईवीएम सप्लाई की है। तथा ईसीआईएल कम्पनी ने बताया कि उसने 1944593 ईवीएम सप्लाई की है। इस प्रकार भारत चुनाव आयोग को 2014 से पहले पिछले 15 सालों में कुल 3914525 ईवीएम सप्लाई की गई। अर्थात् चुनाव आयोग द्वारा बताई गई संख्या से 1894219 ईवीएम ज्यादा। आखिरी चुनाव आयोग उसके द्वारा खरीदी गई ईवीएम की सही संख्या क्यों नही बता रहा है? छुपा क्यूं रहा है? झूठ क्यों बोल रहा है? क्या राज़ है? क्या इसमें उसका कोई स्वार्थ है? और फिर चुनावों के समय बिना किसी सुरक्षा के खुलेआम ट्रकों, मैटाडोर, टैम्पो, थ्री व्हीलर/ आटो और रिक्शे इत्यादि में तहसीलदार एवं एसडीएम की गाड़ियों में ईवीएम के ले जाने तथा ढाबों और होटलो में ईवीएम के मिलने की वीडियो सामने आई। कई जगह प्रत्याशियों को बताये बिना स्ट्राॅंगरूम से ईवीएम के अन्दर और बाहर आने जाने की भी खबरे आई। लेकिन आज तक चुनाव आयोग ने इनमें से किसी प्रश्न का कोई उत्तर नही दिया है।
लोकसभा चुनाव 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के नेताओं ने, विशेषकर मोदी और अमितशाह ने चुनाव आचार संहिता की खुलेआम धज्जियां उड़ाई तथा धर्म, पुलवामा और सैनिकों के नाम पर खुलकर वोट मांगे। कई शिकायतों और सबूतों के बाद भी और चुनाव आयुक्त अशोक लबासा के विरोध और आपत्तियों के बाद भी मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा और सुनील चन्द्रा ने मोदी और अमितशाह को हर मामले में क्लीन चिट दे दी। यही नहीं पूरी चुनाव प्रक्रिया के दौरान नमो टीवी सारे नियमों और कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए लगातार 24 घंटे चला और चुनाव आयोग ने कुछ नही किया।
अमितशाह द्वारा भाजपा की 300 और एनडीए की 350 सीटें आने का दावा तथा न्यूज चैनलों द्वारा एक्जिट पोल में उन पर मोहर लगाना और मतगणना के बाद ठीक वही नजीते आना सबको हैरान कर गया और देश की जनता का शक यकीन में बदल गया कि चुनावों में बड़े पैमाने पर धांधली और बेईमानी हुई है। यह बात उस समय और पुख्ता हो गई जब बदायूं लोकसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार धमेन्द्र यादव के क्षेत्र के बिलसी विधानसभा में वोट तो पड़े 188248 और मतगणना के समय वोट निकली 196110 अर्थात् 7862 वोट ज्यादा। यह बात सिद्ध करती है कि ईवीएम में जबरदस्त गड़बड़ी की गई है। ईवीएम की इस गड़बड़ी व धांधली पर उस समय अन्तिम रूप से मोहर लग गई। जब चुनाव आयोग की वैबसाईट से लिये गये आंकड़ो के बाद ‘द क्विन्ट’ पत्रिका मे यह रिपोर्ट छपी की 373 लोकसभा क्षेत्रों में मतगणना के दौरान गिने गये वोटों की संख्या डाले गये वोटों से लगभग 8000 से 18000 तक ज्यादा है। ‘द क्विन्ट’ ने इस सब के विषय में चुनाव आयोग को पत्र लिखकर पूछा किन्तु अभी तक चुनाव आयोग ने उसके प्रश्नों का कोई उतर नही दिया है, अपितु अपनी वैबसाइट से ये आंकड़े ही हटा दिये हैं।
यहां पर कुछ और भी बड़े गंभीर सावल हैं जिनका देश की जनता को उत्तर दिया जाना परम आवश्यक है किन्तु अभी तक उनका उत्तर नही दिया गया है। इनमें एक प्रश्न तो चुनाव आयोग से ही नही देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट से भी है। सुप्रीम कोर्ट 08 अक्तूबर सन 2013 में एक मुकद्दमे मे यह माना था कि ईवीएम पूरी तरह सुरक्षित नही है और इसमें गड़बड़ी हो सकती है और इसके लिये ईवीएम के साथ वीवी पैट मशीने लगाने का आदेश दिया था। किन्तु 2017 तक चुनाव आयोग द्वारा चुनावों में ईवीएम के साथ वीवी पैट मशीनों का प्रयोग नही किया गया। सन 2017 में एक अन्य मुकद्दमें में पुनः सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आगामी चुनावों में प्रत्येक ईवीएम के साथ वीवी पैट मशीनें लगाई जाये और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही भारत सरकार ने चुनाव आयोग को लगभग 3500 करोड़ रूपये वीवी पैट मशीनों के निर्माण के लिये दिये। मशीने बनी और 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रयोग भी हुई। अब सवाल यह है कि जब वीवी पैट मशीनें चुनावों में ईवीएम की गड़बड़ी को रोकने के लिये बनाई और लगाई गई थी? यहां तक कि चुनाव आयोग और बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी 21 राजनैतिक दलों द्वारा 50 प्रतिशत वीवी पैट मशीनों की पर्चियों की गिनती की मांग के लिये दायर याचिका को भी खारिज कर दिया गया था। जब 2019 के लोकसभा चुनावों की पूरी प्रक्रिया पहले फेज के नामांकन शुरू होने से 23 मई 2019 तक मतगणना होने तक 02 महीने 08 दिन चली और हजारों करोड़ रूपया खर्च हुआ तो 50 प्रतिशत वीवी पैट मशीनों की पर्चियों की गिनती में 06 दिन और कुछ पैसा और खर्च होने मे दिक्कत क्या थी? आखिर यह देश की जनता के विश्वास का प्रश्न है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से मात्र 05 पोलिंग बूथ की वीवी पैट मशीनों की पर्चियों का ही आदेश दिया। इसके बाद 21 राजनीतिक दलों ने पुनः चुनाव आयोग से निवेदन किया कि प्रत्येक विधानसभा से 05 पोलिंग बूथ की वीवी पैट मशीनों की पर्चियों और ईवीएम की वोटों की गिनती मतगणना के शुरू में करा ली जाये जाकि कोई गड़बड़ी हो तो शुरू में ही सामने आ जाये। किन्तु चुनाव आयोग ने ईवीएम में गड़बड़ी की आशंका को निर्मूल साबित करने और चुनाव प्रक्रिया में देश की जनता के विश्वास को कायम रखने के लिये इतनी छोटी सी मांग भी नही मानी और मतगणना के अन्त में प्रत्येक विधानसभा से 05-05 पोलिंग बूथ की वीवी पैट मशीनों की पर्चियां की गिनती ही नही कराई गई।
दूसरा प्रश्न यह है कि चुनाव आयोग ने ईवीएम में इस्तेमाल होने वाली चिप को पहले तो कहा कि वह ओटीपी ;वन टाईम प्रोग्रामिंगद्ध अर्थात उस चिप में एक बार ही प्रोग्रामिंग की जा सकती है दुबारा नही किन्तु बाद में जब कई लोगों ने चुनाव आयोग के दावे को झूठा साबित किया और एक आरटीआई के माध्यम से यह सूचना हासिल की कि ईवीएम में प्रयोग होन वाली चिप की रिप्रोग्रामिंग हो सकती है , इसका अर्थ यह है कि ईवीएम में फेरबदल हो सकती है, छेड़छाड़ हो सकती है और धांधली हो सकती है। तब चुनाव आयोग के पास इसका कोई जवाब नही था।
तीसरा प्रश्न यह है कि भारत में एक ही समय में एक ही चुनाव में दो तरह की मतदान पद्धतियां अपनाई जाती है। एक जो हमारे सैनिक और अर्धसैनिक बलों के जवान हैं उनके लिये बैलेट पेपर से मतदान की पद्धति अपनाई जाती है, जिसे पोस्टल बैलेट कहा जाता है और दूसरी तरफ बाकी अन्य सभी मतदातओं के लिये ईवीएम पद्धति से मतदान कराया जाता है जो न केवल कानूनी संवैधानिक अपितु नैतिक रूप से भी गलत है और समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है।
चौथा प्रश्न यह है कि जब दुनिया के उन विकसित देशों जैसे अमेरिका, जापान, फ्रांस, जर्मनी इत्यादि जिन्होंने ईवीएम का अविष्कार किया उसका निर्माण किया ने ईवीएम का प्रयोग बंद करके बैलेट पेपर से मतदान को पुनः अपना लिया है तो भारत चुनाव आयोग इसे क्यूं प्रयोग में ला रहा है? जिस देश में बेईमानी और भ्रष्टाचार चरम पर हो सरकारी तंत्र लगातार गंम्भीर सवालों के घेरे में हो, सरकार और सरकारी अमले ने लगातार जनता के विश्वास को धोखा दिया हो, जिस देश की आधी से अधिक आबादी अनपढ़ व निरक्षर हो और पढ़े लिखे लोगों में भी अधिकतर ईवीएम की तकनीकी को न जानते और न समझते हों वहां ईवीएम का प्रयोग क्यों किया जा रहा है? इसे बंद क्यों नही किया जाता है? देश का प्रत्येक मतदाता क्यों अंधेरे में रहे कि पता नहीं उसका वोट किसको गया है? क्यों न उसे यह सुनिश्चित रहे कि उसने जिस पार्टी और उम्मीदवार को वोट डाला है उसका वोट उसी को गया है और उसी के लिये गिना जाएगा और यह केवल बैलेट पेपर से ही सम्भव हो सकता है।
पांचवा प्रश्न यह है कि ऐसा क्यों होता है कि वोट डाली गई कांग्रेस को, सपा, बसपा या किसी अन्य पार्टी को और ईवीएम के माध्यम से वह चली जाती है भाजपा के खाते में। ऐसा कभी क्यों नहीं होता कि वोट डाली गई भाजपा को और वह चली गई कांग्रेस, सपा, बसपा या किसी अन्य पार्टी के खाते में।
छठा प्रश्न यह है कि जिस कर्नाटक राज्य में भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों मे कुल 28 में से 26 लोकसभा सीटें जीती हैं वहीं पर लोकसभा चुनावों के तत्काल बाद बैलेट पेपर के माध्यम से हुए स्थानीयों निकायों के चुनावों में भाजपा की बहुत बुरी हार तथा कांग्रेस और जेडीएस की भारी जीत हुई है आखिर क्यूं? यही नहीं दिसम्बर 2017 में जब उत्तर प्रदेश में नगर निगम और नगर पालिकाओं के चुनाव हुए तो जिन 14 नगर निगमों में ईवीएम के माधयम से मतदान हुआ वहां भाजपा 14 में से 12 सीटों पर जीती और इसके अतिरिक्त जिन अन्य सभी नगर पालिकाओं में बैलेट पेपर के माध्यम से मतदान हुआ उनमें भाजपा की करारी हार हुई और 2017 के शुरू में ही हुए विधानसभा चुनावों में मिले वोटों से बहुत कम वोट लगभग 10 से 11 प्रतिशत वोट कम मिले।
सातवां प्रश्न यह है कि चुनाव के दौरान हैदराबाद के एक सज्जन ने प्रमाणिक रूप से बताया कि पूरे देश में वोटर लिस्ट में 05 करोड़ मुस्लिमों और 06 करोड़ दलितों की वोट गायब हैं और यह समाचार ‘द वायर’ और एनडीटीवी इण्डिया जैसे न्यूज चैनलों पर प्रमुखता से दिखाया गया। इनमें से किसी सवाल का जवाब चुनाव आयोग ने आज तक नही दिया है।
इस सब के अतिरिक्त एक अन्य प्रश्न यह है कि देश के जाने माने 147 लोगों ने जिनमे सेवानिवृत 64 वरिष्ठ आईएएस और आईपीएस अधिकारी हैं तथा 83 लोग पूर्व वाईस चांसलर, दो पूर्व नौसना प्रमुख सेना के जनरल एंव लेफ्टिनेंट जनरल व बिगे्रडियर तथा वरिष्ठ पत्रकार, प्रमुख समाजसेवी हैं ने 02 जुलाई 2019 को मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा तथा अन्य चुनाव आयुक्त श्री अशोक लबासा एंव सुनील चन्द्रा को एक पत्र मिलकर 2019 के लोकसभा चुनावों में हुई गंभीर अनियमितताओं को लेकर और चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को लेकर गंभीर सवाल खड़े किये हैं और अभी तक चुनाव आयोग ने इस पत्र का कोई भी जवाब नही दिया है।
क्या उपरोक्त वर्णित सभी बातें यह सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त नही हैं कि भारत में ईवीएम के माध्यम से चुनाव कराना तत्काल में बंद किया जाये और केवल बैलेट पेपेर के माध्यम से ही इस देश मे भविष्य मे कोई भी चुनाव कराये जाये।
 इसलिये महामहिम राष्ट्रपति जी, राष्ट्रीय जनहित संघर्ष पार्टी और उसके साथ इस आन्दोलन में साथ खड़े हो चुके कई अन्य राजनैतिक दल और सामाजिक संगठन जनहित और देशहित में आपसे अनुरोध करते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनावों में चुनाव आयोग द्वारा अपने पद और गरिमा को धूल में मिलाते हुए अपने कर्तव्य का सच्ची श्रद्धा और निष्ठा तथा शुद्ध अन्तःकरण से निर्वाह न करके देश के 133 करोड़ नागरिकों के साथ गंभीर और अक्षम्य अपराध किया है और भाजपा के पक्ष में खड़े होकर ईवीएम में बड़े पैमाने पर हेराफेरी, धांधली और जालसाजी करके लूटतंत्र के द्वारा लोकतंत्र की हत्या करके बेईमानी से भाजपा को चुनावों में भारी मतों से जिताया है तथा संविधान की शपथ लेकर असंवैधानिक कार्य करके संविधान को ध्वस्त और अपमानित किया है और इस देश की जनता के प्रति गद्दारी और देशद्रोह किया है। इसलिये महामहिम राष्ट्रपति महोदय जी आपसे अनुरोध है किः
1. लोकसभा चुनाव 2019 को अवैध घोषित कर निरस्त किया जाये और वर्तमान भारत सरकार को तुरन्त बर्खास्त किया जाये तथा देश में बैलेट पेपर के माध्यम से दोबारा लोकसभा चुनाव कराये जायें।
 2. अब के बाद इस देश में कोई भी चुनाव चाहे वह लोकसभा का चुनाव हो, राज्यसभा का चुनाव हो, विधानसभा या विधान परिषदों का चुनाव हो, नगर निगम या नगर पालिकाओं का चुनाव हो, जिला पंचायत, न्याय पंचायत, ब्लाॅक, ग्राम पंचायत या ग्राम प्रधान का चुनाव हो अर्थात् किसी भी तरह का चुनाव हो, केवल और केवल बैलेट पेपर से ही कराया जाये तथा ईवीएम का प्रयोग तुरन्त बंद किया जाये।
3. वर्तमान मोदी सरकार का कोई भी फैसला तथा वर्तमान भारतीय संसद द्वारा पारित कोई भी कानून देश में लागू न किया जाये।
4. मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के विरूद्ध 2019 के लोकसभा चुनावों में व्यापक धांधली और गड़बड़ी करने के लिये देशद्रोह, धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक षंडयंत्र का मुकद्दमा दर्ज करके कठोर कानूनी कार्यवाही की जाये।
5. सुप्रीम कोर्ट के 03 पूर्व न्यायाधीशों जस्टिस के रामास्वामी जी, जस्टिस आर सी लाहौटी जी और जस्टिस संतोष हेगडे जी के नेतृत्व में 2019 के लोकसभा चुनावों की जांच के लिये एक जांच कमेटी नियुक्त की जाये जो एक महीने के अन्दर अपनी रिपोर्ट दे और उस रिपोर्ट में जो भी व्यक्ति सरकारी या गैरसरकारी दोषी हो उनके विरूद्ध देशद्रोह, जालसाजी, धोखाधड़ी और आपराधिक षड़यंत्र का मुकद्दमा दर्ज करके गिरफ्रतार कर कठोर कानूनी कार्यवाही की जाये।
6. भविष्य में किसी भी हालत में लोकसभा चुनाव या किसी राज्य में विधानसभा चुनाव हो तो एक ही दिन में चुनाव कराये जायें और मतदान समाप्त होने के तुरन्त बाद मतगणना कराई जाये। ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी को रोका जा सके।
7. आधार कार्ड को मतदान पहचान पत्र के साथ जोडा जाये।
8. सभी चुनाव आयुक्तों को चुनने की प्रक्रिया पारदर्शी हो और उन्हे एक पैनल जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता, एक ईमानदार, वरिष्ठ एंव प्रतिष्ठित पत्रकार तथा एक ईमानदार, वरिष्ठ एंव प्रतिष्ठित समाजिक कार्यकर्ता हों, के द्वारा चुना जाये।
9. तीनों चुनाव आयुक्तों को मुख्य चुनाव आयुक्त की तरह ही सभी संवैधानिक और कानूनी अधिकार समान रूप से दिये जायें और उन्हें भी समान रूप से संवैधानिक संरक्षण दिया जाये।
10. इस बात की अभेद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जाये कि किसी भी व्यक्ति का वोटर आई कार्ड बने बिना नही रहे। किसी की भी वोट कटे नही और किसी भी मतदाता को दो या उससे अधिक स्थान पर वोट या वोटर आई कार्ड न बन पाये।
11. लोकसभा विधानसभा नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत, जिला पंचायत और ग्राम प्रधानों के लिये एक समान अर्थात एक ही वोटर लिस्ट होनी चाहिये। अलग-अलग नहीं, जैसा कि वर्तमान में हो रहा है।
 12. सैनिकों और अर्धसैनिक बलों के जवानों के लिये गुप्त मतदान की प्रणाली अपनाई जाये।
धन्यवाद।

क्या सरकार का कर्जा और घाटा राजस्व आय से बढ़ना अच्छा आर्थिक प्रबन्धन है

शिमला/शैल। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की वित्त मन्त्री सीतारमण ने वर्ष 2019-20 के अपने दो घन्टे के बजट भाषण में जहां सरकार की विभिन्न आर्थिक योजनाओं का जिक्र देश के सामने रखा वहीं पर उन्होने आंकड़ो का कोई खुलासा नही किया। ऐसा शायद पहली बार हुआ है अन्यथा बजट में सरकार की आय-व्यय की पूरी विस्तृत जानकारी भाषण में रहती है। जब भी सरकार को बजट सामने आता है उसका तत्काल प्रभाव शेयर बाज़ार पर पड़ता है। शेयर बाजा़र पर इस बार भी असर पड़ा और करीब 6 लाख करोड़ निवेशकों का डूब गया। यह एक ऐसी स्थिति थी जिससे बजट दस्तावेजों को देखने -समझने की जिज्ञासा होना स्वभाविक था।
 इन दस्तावेजों के मुताबिक सरकार वर्ष 2019-20 में कुल 27,86,349 करोड खर्च करेगी। यह खर्च मोटे तौर पर कहां-कहां खर्च होगा उसका विवरण इस प्रकार है।


 लेकिन इस खर्च के लिये जो आय के साधन रहेंगे उनमें सबसे बड़ा साधन है सरकार की राजस्व आय जिसमें कर राजस्व और गैर कर राजस्व दोनों शामिल रहते हैं। सरकार की यह राजस्व आय वर्ष 2019-20 के लिये 19,62,761 करोड़ रहेगी और 27,86,349 करोड़ का कुल खर्च पूरा करने के लिये विभिन्न ऋणों के माध्यम से इस बार 8,23,588 करोड़ की पूंजीगत प्राप्तियां जुटाई जायेंगी। इन पूंजीगत प्राप्तियांं के साथ इस वर्ष का खर्चा तो पूरा हो जाता है लेकिन अब तक जो राजकोषीय और राजस्व का घाटा खड़ा है वह चिन्ता और चिन्तन का विषय बन जाता है। बजट दस्तावेजों के मुताबिक यह घाटा और कर्जा मिलकर सरकार की राजस्व आय से करीब तीन लाख करोड़ से भी अधिक हो जाता है। राजस्व प्राप्तियांं, पूंजीगत प्राप्तियों और घाटे का विवरण इस प्रकार है।
 कर्जे और घाटे की आर्थिक व्यवस्था उस समय चिन्ता का विषय बन जाती है जब सरकार को अपने विभिन्न अदारों में विनिवेश करके राजस्व जुटाने की स्थिति आ जाये। बजट से पहले यह चर्चा थी कि सरकार 90,000 करोड़ विनिवेश से जुटायेगी। लेकिन बजट दस्तावेजों के मुताबिक सरकार अब 1.5 लाख करोड़ विनिवेश से हासिल करेगी। इस विनिवेश से एक समय तो सरकार को आय हो जाती है लेकिन भविष्य के लिये वह संसाधन सरकार के हाथ से निकल जाता है। परन्तु इसी के साथ एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो जाता है कि क्या सारा घाटा विनिवेश और आम आदमी पर करों का बोझ लाद कर पूरा किया जा सकता है? फिर पूंजीगत प्राप्तियों की तो परिभाषा ही यह है कि इसका निवेश तो विकासात्मक कार्यों और राजस्व के नये साधन जुटाने के लिये हो। लेकिन बजट दस्तावेजों के अवलोकन से इस धारणा पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है।



तय प्रक्रिया की अनदेखी करके हो रही सरकार में करोड़ों की खरीद GeM को भी नही दिया जा रहा अधिमान

शिमला/शैल। विभिन्न सरकारी विभागों और अन्य अदारों में छोटे-बड़े सामान की करोड़ों की खरीद होती है। बहुत सारे विभागों में तो एक ही तरह का सामान खरीदा जाता है लेकिन इस खरीद में प्राय रेटों की भिन्नता पायी जाती है और यही भिन्नता भ्रष्टाचार को जन्म देती है। इस भिन्नता और इसके परिणामस्वरूप होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिये टैण्डर और रेट कान्ट्रैक्ट की प्रणालीयां अपनाई गयी हैं लेकिन इन प्रणालीयों को नजरअन्दाज करके करोड़ों की खरीद हो रही है। अभी स्वास्थ्य विभाग में हुई बायोमिट्रिक मशीनों की खरीद में हुआ भ्रष्टाचार इसी का परिणाम है। इसमें दिलचस्प बात यह है कि इस तरह की खरीद कुछ निगमों बोर्ड़ों के माध्यम से हो रही है और इसके लिये तर्क यह दिया जा रहा है कि ऐसी खरीद करके यह सरकारी अदारे अपने कर्मचारियों का वेतन तो निकाल रहे हैं। इस समय अधिकांश निगम बोर्ड घाटे में चल रहे हैं क्योंकि जिन उद्देश्यों के लिये इनका गठन किया गया था उस दिशा में अब काम हो ही नहीं रहा है। कुछ अदारे तो बन्द कर दिये गये हैं और उनके कर्मचारियों का अन्यों में विलय कर दिया गया है। लेकिन अभी तक समग्र रूप से सारे अदारों का आकलन नही किया गया हैं बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि ऐसा करने ही नही दिया जा रहा है।
रेट कान्ट्रैक्ट की जिम्मेदारी सरकार ने कन्ट्रोल स्टोरेज़ को दे रखी है और यह उद्योग विभाग के अधीन काम करता है लेकिन उद्योग विभाग के तहत ही काम करने वाले खादी बोर्ड और हैण्डीक्राफ्ट एवम् हैण्डलूम कारपोरेशन घाटे में चल रहे हैं बल्कि बन्द होने के कगार पर पहुंचे हुए हैं क्योंकि यह दोनों अपना मूल तय काम कर ही नही रहे हैं और अपना वेतन निकालने के लिये कुछ विभागों के लिये खरीद ऐजैन्सी बन गये हैं। जबकि नियमों के अनुसार ऐसा नहीं किया जा सकता। जिन आईटमों का रेट कान्ट्रैक्ट नहीं होता है उनके लिये टैण्डर प्रणाली अपनाई जाती है। सरकारी विभाग इस तय प्रक्रिया की अनदेखी कर रहे हैं और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है यह सरकार के संज्ञान में भी है बल्कि इस पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 12.1.2017 को एक बैठक हुई थी। इस बैठक के बाद अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त की ओर से 16.1.2017 को सभी विभागाध्यक्षों को निर्देश भी जारी किये गये थे जिन पर आज तक अमल नही किया गया है। जबकि तत्कालीन वित्त सचिव आज मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव हैं।
प्रदेश सरकार के इन निर्देशों के बाद भारत सरकार ने उद्योग और वाणिज्य विभाग से एक GeM पोर्टल तैयार करवाया और राज्य सरकारों को भेजा। यह पोर्टल टैण्डर और रेट कान्ट्रैक्ट के साथ खरीद के लिये एक और प्रणाली उपलब्ध हो गयी है। हिमाचल सरकार ने ळमड के साथ 26-12-2017 को एक एमओयू साईन किया है। इस एमओयू के बाद सरकार के प्रधान सचिव उद्योग की ओर से 20-8-2018 को निर्देश जारी किये गये थे जिस पर कन्ट्रोलर स्टोरेज़ ने 4.9.2018 को सारे प्रशासनिक सचिवों और विभागाध्यक्षों को पत्र लिखकर यह कहा कि GeM पोर्टल के माध्यम से खरीद करना अनिवार्य है। इसके लिये सरकार ने अपने नियमों में संशोधन करके नियम 94 A जोड़ा और स्टेट पूल के नाम से बैंक में खाता तक खोला। सरकार की इस कारवाई से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस पोर्टल के माध्यम से ही खरीद करनी होगी।
लेकिन इस सबके बावजूद आज भी स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे बड़े विभाग राज्य सरकार के अपने और भारत सरकार के आदेशों /निर्देशों को अंगूठा दिखाते हुए हैण्डीक्राफ्ट -हैण्डलूम कारपोरेशन के माध्यम से ही खरीद कर रहे हैं। इसमें सबसे अधिक गौर तलब तो यह है कि डाक्टर बाल्दी ने जो निर्देश बतौर वित्त सचिव जारी किये थे उनकी अनुपालना बतौर प्रधान सचिव मुख्यमन्त्री सुनिश्चित नही कर पा रहे हैं।

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